18 January 2023

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- ' वैराग्य  की  पहली  पाठशाला  गृहस्थ  जीवन  है  l  उसी  को  तपोवन  बना  लिया  जाए   तो  वहां  रहकर  भी  साधना  की  जा  सकती  है   l ' ------ देवदत्त  ईश्वर  भक्त  था , बात -बात  में  पत्नी  को  धमकी  देता  था   कि  देख  !  यदि  अमुक  काम  नहीं  किया  , सतर्क  नहीं  रही  तो  मैं  संत  पुनीत  के  आश्रम  चला  जाऊँगा  l  उसकी  पत्नी  यह  सोच -सोचकर  दुबली  होती  गई  कि  कहीं  सचमुच  न  चले  जाएँ  l   उसकी  पत्नी  ने  एक  दिन  संत  को  अपनी  व्यथा  बताई   l  संत  ने  कहा --- "  अबकी  बार  धमकी  दे  तो  मेरे  पास  भेज  देना  l  मैं  उसे  ठीक  कर  दूंगा  l "  अगले  दिन  भोजन  बनाने  में  कुछ  देर  हो  गई  l  देवदत्त  ने  फिर  धमकी  दी  l  उसकी  पत्नी  ने  कहा --- 'कल  क्यों  ,  आज  ही  चले  जाइए  l '  देवदत्त  के  अहं  पर  चोट  थी  , वह  आश्रम  चला  गया  l  रात  को  आश्रम  में  सोने  की  व्यवस्था  हो  गई  , अगले  दिन  वह  संन्यास  दीक्षा  के  लिए  पुनीत  महाराज  के  पास  पहुंचा  l  उन्होंने  कहा  --- अपने  कपड़े  यहाँ  रख  दो  और   नहाकर  आओ  l  जब  वह  नहाने  गया  तो  संत  के  इशारे  पर  उसके  कपड़ों  कुछ  काटकर  ख़राब  कर  दिया  , स्वल्पाहार  के  लिए   कडुए  फल  रखे  l  ऐसी  व्यवस्था  से  उसे  बहुत  क्रोध  आया   और  वह  सेवकों  को  अपशब्द  कहने  लगा   l  महर्षि  बोले ---- " वैरागी  को  पहले  संतोषी , धैर्यवान  और  सहनशील  बनना  होता  है  l "  देवदत्त  बोला --- 'यह  तो  मैं मैं  घर  पर  भी  कर  सकता  था  l  आपके  पास  तो  विशिष्ट  साधना  के  लिए  आया  हूँ  l ' महर्षि  पुनीत  बोले  --- " तात  !  घर  लौटकर  सद्गुणों  का  अभ्यास  करो  l  विभूतियाँ  तो  बाद  की  बातें  हैं  l "    देवदत्त  समझ  गया  कि  सद्गुणों  के  सहारे  सुख -शांति  का  जीवन  जिया  जा  सकता  है  l  

WISDOM-----

   एक  संत  के  पास  एक  व्यक्ति  पहुंचा , बहुत  दुखी  था  l  संत  ने  उससे  पूछा  --क्या  बात  है  , बताओ  , इतना  परेशान  क्यों  हो  ?  संत  का  स्नेह  पा  कर  उसने  अपने  मन  की  सारी  बात  कह  डाली  कि  उसकी  पत्नी  उससे  बहुत  झगड़ा  करती  है , कटु  शब्द  बोलती  है  , वह  परेशान  हो  चुका  है  और  तलाक  देना  चाहता  है  l  कैसे  भी  पीछा  छूटे  , कोई  उपाय  बताएं  ?  संत  ने  उसकी  सारी  बातें  बहुत  ध्यान  से  सुनी  , फिर  पूछा  -- वह  एक  महीने  में  कितनी  बार  झगड़ा  करती  है  ?  उस  व्यक्ति  ने  कहा --- यही  कोई  पांच , छह  बार  l  संत  ने  पूछा  --- और  शेष  दिन  ?   उस  व्यक्ति  ने  कहा ---  शेष  दिन  तो  वह   मुझे  गरम  खाना  खिलाती  है , मेरी  माँ  का  भी  बहुत  ध्यान  रखती  है , बच्चों  को   स्कूल  भेजना , सारी  जिम्मेदारी  उठाती  है , बच्चों  को  घर  में  पढ़ाना  आदि  सब  काम  करती  है  l  तब  संत  ने  कहा ---- ' पच्चीस  दिन  के  सुखी  जीवन  के  लिए  तुम  उसका  5 -6   दिन  का  कटु  व्यवहार  सहन  नहीं  कर  सकते  ?   अपने  मन  के  तराजू  के  एक  पलड़े  में  उससे  मिलने  वाले  सुख  को  रखो  और  दूसरे  पलड़े  में  उससे  जो  कष्ट  होता  है  उन  कष्टों  को  रखो  ,  फिर  देखो  कौन  सा  पलड़ा  भारी  है   ?  जल्दबाजी  में  कोई  निर्णय  न  लो   अन्यथा  पछतावे  के  सिवा  और  कुछ  हासिल  नहीं  होगा  l  '   संत   के  वचनों  से  उस  व्यक्ति  के  ऊपर  छाई  हुई  नकारात्मकता  हट  गई  ,  उसकी  आँखें  खुल  गईं   l  सुखी  जीवन  जीने  का  मन्त्र  उसे  मिल  गया  l