21 March 2021

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' हमारा  संघर्ष   व्यक्तियों  से  नहीं  ,  वृत्तियों  से  है   और  इसकी  शुरुआत  हमें   स्वयं   के जीवन  से  करनी  है   l '  महाभारत  के   युद्ध  में    अपने   ही  सगे - संबंधियों   को  सामने  देख   अर्जुन  युद्ध  से  भागना  चाहता  था  , तब  भगवान  कृष्ण  ने  उसे  गीता  का  उपदेश  दिया    और समझाया  ----  ऐसा  कर  के  तुम  कहीं  भी  चैन  से  न  बैठ  सकोगे  l   पाप  को  हम  न  मारें  ,  अधर्म , अनीति  का  संहार  हम  न  करें  ,  तो  निर्विरोध  स्थिति  पाकर   ये  पाप ,  अधर्म  व  अनीति  हमें  मार  डालेंगे  l   इसलिए  जीवित  रहने  पर  सुख   और  मरने  पर  स्वर्ग  का  उभयपक्षीय  लाभ   समझाते   हुए  उन्हें    युद्ध  करने  के  लिए  प्रेरित  किया   l     भगवान  परशुराम  का  अवतार  कहे  जाने  वाले   गुरु  गोविंदसिंह  ने   अपने  समय  की  दुर्दशा   का कारण    जन - समाज  की   आंतरिक  भीरुता  को  ही  माना  था   l   उनका  निष्कर्ष  था  कि   जब  तक  जन   आक्रोश  नहीं  जागेगा  ,  शौर्य  और  साहस  की   पुन:  प्राण - प्रतिष्ठा  न  होगी   ,  तब  तक   पददलित   स्थिति  से  उबरने  का  अवसर  नहीं  मिलेगा   l   उन्होंने  संघर्ष  के  लिए  जनमानस  को  ललकारा   l   भगवान  को  असिध्वज   और   महालौह   नाम  दिए   l   गुरु  गोविंदसिंह  की  तलवार   केवल  मार -काट  का  अभिप्राय   नहीं  समझाती ,  बल्कि  यह   सामर्थ्यपूर्ण  संघर्ष  का  प्रतीक   है  l