12 September 2021

WISDOM -----

   मनुष्य  जिसे  अपने  बुद्धिमान  और  ज्ञानी  होने   का   अभिमान  है  ,  क्या  इस  बात  में  कुछ  सच्चाई  है  ?   बुद्धिमान  और  ज्ञानी  तो  हम  तब  होते  जब  हमारे  हृदय  में  संवेदना   और   सहयोग   की  भावना  होती  , मानवीयता  होती   l  जिस   भौतिक  प्रगति  का  मनुष्य  अभिमान  करता  है   उसका  एक  पक्ष  यह  भी  है  ---- मनुष्य  ने  अपनी  बुद्धि  के  बल  पर  जल  में  तैरने   आदि  की  क्षमता  हासिल  की  है  ,  परन्तु  यह  क्षमता  तो  मछली  आदि   जल -जीव  जंतुओं  ने  कब  से  प्राप्त  कर  रखी   है   l    मनुष्य  ने   आकाश  में  विचरण  की  कला   सीख    ली  है   तो  यह  कला  तो  आदिम  युग  से  पक्षियों  के  पास  है  ,  बाज  कितनी  ऊंचाई  पर  उड़ता  है  l  हमने  यह  सब  सीखकर  कुछ  नया ,  कोई  कमाल  नहीं  किया   l   जहाँ  तक  जमीन  पर  जीने  की  बात  है   तो  मनुष्य  ने  उत्पात  और  उपद्रव  ही  मचाया  है   ,  प्रकृति  की  दुर्दशा  कर  दी  ,  रासायनिक  कीटनाशक  डालकर  स्वयं  अपने  लिए  विषैले   खाद्य  का  उत्पादन  किया   ,  इसे  क्या  बुद्धिमानी  कहा  जायेगा  ?    चींटी , दीमक ,  मधुमक्खी  ने   कितने  युग  पहले  से  समूह  में  , सहयोग  से  रहना  सीख  लिया   लेकिन  मनुष्य  किसी  समूह  या  संगठन  से  जुड़ा  है   तो  उसके  पीछे  उसका  स्वार्थ  है   l   हमने  जीवन  जीने  की  कला  नहीं  सीखी   l   एक  छोटे  से  परिवार  में  ही  कितना  कलह , क्लेश  होता  है  ,  कोई  परिवार   लड़ाई - झगड़े   से  अछूता  नहीं  है  ,  तो  फिर  समाज  राष्ट्र  और  संसार  में  क्या  शांति  होगी   ?    शांति  तो  बहुत  दूर  की  बात  है  ,  आज  संसार  में  असुरता  के  प्रति  आकर्षण   बड़ा  तीव्र  है  l  बुराई  में  तुरंत  लाभ  होता  है   यही  कारण  है   कि   स्वार्थ , लाभ  और  महत्वाकांक्षा  के  कारण   ही  संसार  असुरता  की  और  भाग  रहा  है   l   अहंकार  ने  बुद्धि  भ्रष्ट  कर  दी  है  ,  मनुष्य  स्वयं  अपने  विनाश    के  साधन    जुटा       रहा  है   l    हमारी  बुद्धिमानी  इनसान   बनने  में  है  ,  हम  इंसानियत  का  पाठ  जानवरों  से  ही  सीख  लें   !    ------ पुराण  में  एक  कथा  है  -------  कौशल   देश  का  राजा  ब्रह्मदत्त   को  आखेट  का   व्यसन  था  ,  अपने   बहुत  से  सैनिकों  के  साथ  राजा  अक्सर  शिकार  पर  जाता  था    जिससे  अनेक  वन्य जंतुओं , मृग  व  पक्षियों  का  भारी  संहार  होता  था   l   उस  वन  में  नंदीय   नाम  का  मृग  अपने  कुटुंब  के  साथ  रहता  था  ,  उसे   नित्य  के    संहार   से  बड़ा  कष्ट  होता  था   तो  उसने  सब  जानवरों  की  एक  सभा  बुलाई  और   यह निश्चय  हुआ   कि   हममें  से  एक  मृग   रोज  राजा  से  मिलने  स्वयं  चला  जाये   इससे   यह विनाश लीला  कुछ  थम  जाएगी    l   राजा  ने  भी   जानवरों  के  इस  निर्णय  को  मान  लिया  l   कुछ  दिन  बाद  नन्दीय  मृग  की  बारी  आई  l   उसका  शांत  और  सौम्य  भाव  देखकर   राजा  ने  अपना  धनुष बाण   नीचे   रख  दिया   l   मृग  ने  कहा ---- 'राजन  !  तुम  मुझे  मारते  क्यों  नहीं  ? '  राजा  ने  कहा ---- " मृग  ! तुममें  बहुत  से  दिव्य  गुण   है   इसलिए  मैं  तुम्हे  मार  नहीं  रहा   l '  मृग  ने  कहा  ---- ' इसके  लिए  मैं  आपका  आभारी  हूँ  ,  लेकिन  मेरा  जीवन  मेरा  समूह है  , मैं  जीता  रहूं ,  और  मेरे  परिवार  के , समूह  के  सदस्य  मरते  रहें  , यह  मेरे  लिए  असहनीय  होगा   l  मेरी  मृत्यु  ही  मेरे  लिए  कल्याणकारी  होगी   l '  यह  सुनकर  राजा  ने  कहा --- ' मैं  तुम्हारे  सम्पूर्ण  समूह  को  अभयदान  देता  हूँ   l  '  मृग  ने  कहा ----- ' क्या  आप  यह  अभयदान   पक्षियों  और  जल  में  रहने  वाले  जंतुओं  व  मछलियों  को  दे   सकते  है  l '  राजा  ने  कहा  --- ' तुम्हारे  लिए  निश्चित  ही  l '  राजा  ने   अपने  दूतों  से  राज्य  में  घोषणा  करा  दी  कि   अब  से  सभी  वन्य जंतु , पक्षी और जलचरों  को  अभयदान  दिया  जा  रहा  है  ,  कोई  हिंसा  न  करे   l  राजा  ने  नन्दीय  मृग  से  कहा ---- "  तुमने  वन - पशु  होकर  मुझे   जीवन - संवेदना  का  पाठ  पढ़ाया  ,  जीवन  जीने  की  कला  सिखा   दी   l तुमने  बताया  कि  जीवन  सामूहिक   संवेदनशीलता ,  सहयोग  -सहकार   का  पर्याय  है   l  "