15 December 2019

WISDOM ----- भारतीय संस्कृति ---- वसुधैव कुटुंबकम के सारे सूत्र हैं

 भारतीय  संस्कृति  हमारी  मानव  जाति   के  विकास  का    उच्चतम  स्तर  कही  जा  सकती  है   और  मनुष्य  में   संत , सुधारक , शहीद  की  मनोभूमि  विकसित  कर   उसे  मनीषी , ऋषि ,  महामानव ,  देवदूत  स्तर  तक  विकसित  करने  की  जिम्मेदारी   भी  अपने  कंधों   पर  लेती  है   l
  महाभारत  के  शांति  पर्व  में   एक  श्लोक  है  जिसका  अनुवाद  है ---- " हमारे  जिन  कर्म  और  पौरुष  से   दूसरों  का  हित   बिगड़ता   है  ,  उन  कर्मों  और  पौरुषों  को  प्रयत्न  से  त्याग  देना  चाहिए   l  "
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  वाङ्मय  ' भारतीय  संस्कृति  के  आधारभूत  तत्व  में  लिखा  है  --- "  हमारी  एक  विशेषता   रही  है  कि  देश  में   विभिन्न  धर्म , पंथ  और  विभिन्न  विचार  रहते  हुए  भी   सब  एक  सूत्र  में  बंधे  रहे   l   न  बंधे  रहते  ,  तो  एक  सहस्त्र  वर्ष  की   भयंकर  दासता   और  विदेशियों  की  प्रभुता  का  दीर्घ  काल  ,  इसमें  यह  भारत  जीवित  ही  कैसे  रहा  ?  इस  पर  संसार  आश्चर्य  करता  है   l   वह  इस  भारतीय  संस्कृति  के  कारण   ही  जीवित  रहा  l   समस्त  देश  की  दृष्टि  से   भारतीय  संस्कृति  में  कभी  कोई  ऐसा  विधान  स्वीकार  नहीं  किया  गया    जिसके  अनुसार  एक  समुदाय  को  तो   सब  प्रकार  की   सुविधाएँ  और  सुख  मिले    और  दूसरे  को  भूखों  मरने  को  छोड़  दिया  गया  हो  l   यहाँ  की  संस्कृति  में  शोषण  का  सिद्धांत  कभी  स्वीकार  नहीं  किया  गया   l  '
  आचार्य  श्री  आगे  लिखते  हैं ---- "  इस  नए  युग  के  नए  विचारों  में     हमको  अपनी  एकता  के  लिए   नए  सूत्रों  को  टटोलने  की  आवश्यकता  नहीं  है     हम  अपनी  संस्कृति  को  सम्भाले   रहेंगे   तो  बने  रहेंगे   l   केवल  बने  ही  नहीं  रहेंगे  , बल्कि  बिगड़े  हुओं  को  सुधारेंगे  l   जो  हमारी  संस्कृति  है  ,  उसी  का   उच्छिष्ट   संसार  में  बिखरा  पड़ा  है   l  "