लघु -कथा ---- 1 . लोमड़ी और खरगोश पास -पास रहते थे l खरगोश घास चरता था और खेत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता था l किसान भी उसकी सज्जनता से परिचित था , इसलिए उसे रहने के लिए एक कोने में जगह दे दी l एक दिन एक लोमड़ी उधर आई और खरगोश से पूछने लगी ----" मक्की पक रही है , कहो तो पेट भर लूँ ? " खरगोश ने कहा --- " खेत से पूछ लो l वह कहे , वैसा करना l " लोमड़ी ने आवाज बदलकर खेत की ओर से कहा --- " खा लो , खा लो l " इतने में किसान का पालतू कुत्ता आ गया l वह सब देख -सुन रहा था l उसने आते ही खेत से पूछा --- " बताओ तो इस धूर्त लोमड़ी को मजा चखा दूँ ? " फिर स्वर बदलकर कहा ---- " धूर्त लोमड़ी की टांग तोड़ दो l ' कुत्ते को झपटते देख लोमड़ी नौ -दो -ग्यारह हो गई l सज्जनता का व्यवहार छद्म युक्त होने के कारण आकर्षक तो लगता है , परन्तु उसकी पोल अंतत: खुल ही जाती है l
22 April 2024
WISDOM ----
संसार में जिनके पास शक्ति , धन -वैभव सब कुछ है , उन्हें इसका अहंकार हो जाता है , वे स्वयं को भगवान समझने लगते हैं l अपनी उपलब्धियों के लिए वे ईश्वर के प्रति कृतज्ञ नहीं होते l वे सोचते है कि जो हम हैं सो कोई नहीं , इसलिए ईश्वर को धन्यवाद नहीं देते l यही कारण है कि वे भयभीत और भीतर से अशांत होते हैं l ईश्वर ने हमें जो कुछ भी दिया , उसके लिए यदि हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं , उसके महत्त्व को समझते हैं तो उससे हमारा अहंकार मिटने लगता है , जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं और जीवन प्रगति की दिशा में आगे बढ़ने लगता है l एक कथा है ------ एक नगरसेठ अपनी गुत्थियों के समाधान में सहायता प्राप्त करने के लिए मंदिर में पहुंचे l देवता को प्रसन्न करने के लिए वे थाल भरकर मोती और नैवेद्य लाए थे l मंदिर छोटा था , उसमें एक भक्त पहले से ही बैठा था l झरोखे में से झांककर सेठ ने देखा तो वह फटे कपड़े पहने , अस्थि -पंजर जैसा कोई दरिद्र व्यक्ति था , वह बड़ी प्रसन्नता के साथ ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर रहा था और प्रार्थना कर कह रहा था --हे प्रभु , आपकी बड़ी कृपा है , मैं सुख की नींद सोता हूँ , आपकी कृपा से मेरे परिवार का भरण -पोषण हो रहा है और कोई मुझसे ईर्ष्या नहीं करता है l ' उस भक्त के बाहर निकलने पर सेठ ने पूजा तो की लेकिन उसके मन में यह प्रश्न उफनता रहा कि मैं इतने समय से पूजा कर रहा हूँ , भगवान को बहुमूल्य हार -मोती , फल , मिठाई आदि सब कुछ चढ़ाता हूँ पर मेरे ईर्ष्यालु बढ़ते ही जा रहे हैं और मेरा सुख -चैन घटता जा रहा है l देवता मेरी इतनी उपेक्षा कर रहे हैं और इस दरिद्र पर इतना अनुग्रह ? इस संदेह को लेकर सेठ प्रधान पुजारी के पास पहुंचे l पुजारी ने कहा --हम देवता से पूछकर तीन दिन में इसका उत्तर देंगे l जैसे -तैसे तीन दिन बीते और सवेरे ही सेठजी प्रधान पुजारी के पास जा पहुंचे l पुजारी ने देवता का अभिमत सुनाया ---- " आप देवता पर सेवक की तरह काम करने को दबाव डालते हैं और दरिद्र ने ईश्वर को अपना स्वामी मानकर बड़ी श्रद्धा से उन्हें अपने ह्रदय में स्थान दिया हुआ है l इसलिए ईश्वर ने सेवक वाले की अपेक्षा ह्रदय में स्थान देने वाले को अपना सच्चा वरदान देने का निश्चय किया है l '
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