सभी चिंतक - विचारक , संत - दार्शनिक , तपस्वी - सुधारक मानवता के मूलभूत सिद्धांतों को धारण करने वाले तत्व को धर्म कहकर पुकारते हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहा करते थे ---- "सच्चा धार्मिक एक अव्यक्त भाषा बोलता है , जिसे संसार का हर व्यक्ति समझ सकता है l यह वाणी उसके अंत:करण से भाव -संवेदनाओं के रूप में प्रस्फुटित होती है l विश्व उसका परिवार और संसार का प्रत्येक व्यक्ति उसका अपना संबंधी होता है l सबका कल्याण करना ही उसकी पूजा बन जाता है और इसलिए महात्मा गाँधी हों या विनोबा , मार्टिन लूथर किंग हों या कागाबा , संत फ्रांसिस हों या हजरत मुहम्मद , भगवान बुद्ध हों या आचार्य शंकर ----- ये सभी अपने अंत:करण में व्याप्त करुणा तथा मानवता के मूलभूत सिद्धांतों को जीने के कारण सच्चे अर्थों में धार्मिक कहे जा सकते हैं l यही धर्म का सच्चा स्वरुप है l '
3 January 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- मनुष्य तरह - तरह के कर्मकांड कर के ईश्वर को खुश करना चाहता है लेकिन भगवान की तो एक ही शर्त है --हर व्यक्ति में छिपे भगवान को पहचान कर उसकी सेवा सहायता करें l ' सांसारिक मनुष्य झूठी प्रशंसा और विभिन्न उपहारों से प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन ईश्वर सर्वशक्तिमान है , उन्हें इन सबकी जरुरत ही नहीं है l आचार्य श्री झूठी प्रशंसा पर एक कहानी बताते हैं ------ उष्ट्राणां विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्धभा: l परस्परं प्रशंसन्ति अहो रूपं अहो ध्वनि: l गधा और ऊंट दोनों के विवाह हुए l दोनों एक दूसरे के विवाह में गए l ऊंट के ब्याह में गधा गया , उसने कहा ---- " अहो रूपं l " अर्थात रूप तो आपका ही है l आपके बराबर सुन्दर रूप तो किसी का है ही नहीं l जब ऊंट गधे के ब्याह में गया तो उसने कहा --- " अहो ध्वनि: l " अर्थात आपकी जैसी ध्वनि तो बस एक कोयल की है और एक आपकी l दोनों एक दूसरे की प्रशंसा करते हैं l ' संसार में ऐसी प्रशंसा से लोगों के काम बन जाते हैं लेकिन आचार्य श्री कहते हैं ---- केवल जीभ की नोक के सहारे हम भगवान को नहीं बहका सकते l