भारतीय संस्कृति में कर्मयोग की प्रधानता है , ईश्वर को पुरुषार्थी प्रिय हैं फिर आज मनुष्य इतना भाग्यवादी कैसे हो गया ? अन्याय , अत्याचार , अनीति सबको अपना भाग्य मानकर मूर्छित स्थिति में रहता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व ' में लिखा है --- जहाँ प्रतिरोध की संभावना न हो वहां हर बुराई मनमाने ढंग से पनपती और फलती - फूलती रह सकती है l उन्होंने लिखा है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने इतने लम्बे समय तक भारत पर शासन किया , मनमाने अत्याचार किये l इसके पीछे एक ही दर्शन था --- भाग्यवाद l
आचार्यजी ने वाड्मय पृष्ठ 1.57 पर लिखा है ---- अन्याय पीड़ितों और शोषितों के मन में प्रतिकार की , विद्रोह की आग न भड़कने लगे इसलिए अनाचारी लोगों ने यह भाग्यवादी विचारधारा तथाकथित पंडितों और विद्वानों के माध्यम से प्रचलित करायी l भारतीय जनता को अन्याय सहने का अभ्यस्त बनाने के लिए कुछ साधुओं , पंडितों को प्रचुर धन देकर भाग्यवाद का प्रचार किया -- कि अनीति के प्रतिरोध का उपाय विद्रोह न बताकर यह कहा कि ईश्वर की भक्ति करो , भजन कीर्तन में मन लगाओ , इससे भगवान प्रसन्न होंगे तो कष्ट कम हो जायेंगे l इस प्रकार भाग्यवाद की नशीली गोली खिलाकर सर्वसाधारण की मनोभूमि को लुंज -पुंज , अर्ध -मूर्च्छित कर दिया l
आचार्यजी ने लिखा है उच्च वर्ग के तथाकथित अहंकारियों को अपने इस प्रयोजन के लिए यह तीर उपयुक्त जंचा l जो लोग किसी वर्ग को पिछड़ा रखकर उनके शोषण का लाभ उठाना चाहते हैं उनके लिए यह भाग्यवादी विचारधारा बहुत लाभकर सिद्ध हो रही है l
अमेरिका में नीग्रो को मानवीय अधिकार प्राप्त हो गए , गोर - काले रंग का भेदभाव समाप्त हो गया लेकिन भारत जैसे धार्मिक देश में जहाँ इतनी पूजा आराधना होती है , कहते हैं सब में एक आत्मा है फिर भी दलितों पर अत्याचार हैं , नारी - जाति की स्थिति भी ----
मूर्च्छा से जागना जरुरी है , अपनी संस्कृति के प्रति श्रद्धा रखें और जो अनुपयुक्त है उसका विरोध करने की हिम्मत और प्रगति के लिए अपार उत्साह हो l
आचार्यजी ने वाड्मय पृष्ठ 1.57 पर लिखा है ---- अन्याय पीड़ितों और शोषितों के मन में प्रतिकार की , विद्रोह की आग न भड़कने लगे इसलिए अनाचारी लोगों ने यह भाग्यवादी विचारधारा तथाकथित पंडितों और विद्वानों के माध्यम से प्रचलित करायी l भारतीय जनता को अन्याय सहने का अभ्यस्त बनाने के लिए कुछ साधुओं , पंडितों को प्रचुर धन देकर भाग्यवाद का प्रचार किया -- कि अनीति के प्रतिरोध का उपाय विद्रोह न बताकर यह कहा कि ईश्वर की भक्ति करो , भजन कीर्तन में मन लगाओ , इससे भगवान प्रसन्न होंगे तो कष्ट कम हो जायेंगे l इस प्रकार भाग्यवाद की नशीली गोली खिलाकर सर्वसाधारण की मनोभूमि को लुंज -पुंज , अर्ध -मूर्च्छित कर दिया l
आचार्यजी ने लिखा है उच्च वर्ग के तथाकथित अहंकारियों को अपने इस प्रयोजन के लिए यह तीर उपयुक्त जंचा l जो लोग किसी वर्ग को पिछड़ा रखकर उनके शोषण का लाभ उठाना चाहते हैं उनके लिए यह भाग्यवादी विचारधारा बहुत लाभकर सिद्ध हो रही है l
अमेरिका में नीग्रो को मानवीय अधिकार प्राप्त हो गए , गोर - काले रंग का भेदभाव समाप्त हो गया लेकिन भारत जैसे धार्मिक देश में जहाँ इतनी पूजा आराधना होती है , कहते हैं सब में एक आत्मा है फिर भी दलितों पर अत्याचार हैं , नारी - जाति की स्थिति भी ----
मूर्च्छा से जागना जरुरी है , अपनी संस्कृति के प्रति श्रद्धा रखें और जो अनुपयुक्त है उसका विरोध करने की हिम्मत और प्रगति के लिए अपार उत्साह हो l