4 July 2019

WISDOM ---- भारतीय संस्कृति पुरुषार्थवादी आदर्श के स्थान पर भाग्यवादी कैसे हो गई ?

 भारतीय  संस्कृति  में कर्मयोग   की  प्रधानता  है ,  ईश्वर  को  पुरुषार्थी  प्रिय  हैं   फिर  आज  मनुष्य  इतना  भाग्यवादी  कैसे  हो  गया  ?   अन्याय , अत्याचार , अनीति  सबको   अपना  भाग्य  मानकर  मूर्छित  स्थिति  में  रहता  है  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' भारतीय  संस्कृति  के  आधारभूत  तत्व '  में  लिखा  है --- जहाँ  प्रतिरोध  की  संभावना  न  हो  वहां  हर  बुराई  मनमाने  ढंग  से  पनपती  और  फलती - फूलती  रह  सकती  है  l   उन्होंने  लिखा  है  कि  विदेशी  आक्रमणकारियों  ने  इतने  लम्बे  समय  तक    भारत  पर  शासन  किया  , मनमाने  अत्याचार  किये  l  इसके  पीछे  एक  ही  दर्शन  था  --- भाग्यवाद  l 
आचार्यजी   ने  वाड्मय पृष्ठ 1.57  पर  लिखा  है  ---- अन्याय पीड़ितों  और  शोषितों  के  मन  में  प्रतिकार  की , विद्रोह  की  आग  न  भड़कने  लगे  इसलिए  अनाचारी  लोगों  ने  यह  भाग्यवादी  विचारधारा  तथाकथित  पंडितों   और  विद्वानों  के  माध्यम  से  प्रचलित  करायी l     भारतीय  जनता  को  अन्याय  सहने  का  अभ्यस्त  बनाने  के  लिए   कुछ  साधुओं , पंडितों  को  प्रचुर  धन  देकर   भाग्यवाद  का  प्रचार  किया  -- कि   अनीति  के  प्रतिरोध  का  उपाय   विद्रोह  न  बताकर  यह  कहा  कि  ईश्वर  की  भक्ति  करो , भजन कीर्तन  में मन  लगाओ , इससे  भगवान  प्रसन्न  होंगे  तो  कष्ट  कम  हो  जायेंगे  l  इस  प्रकार  भाग्यवाद  की  नशीली  गोली  खिलाकर सर्वसाधारण  की  मनोभूमि  को  लुंज -पुंज , अर्ध -मूर्च्छित   कर  दिया  l
आचार्यजी  ने  लिखा  है   उच्च  वर्ग  के  तथाकथित  अहंकारियों  को    अपने   इस  प्रयोजन  के  लिए  यह  तीर  उपयुक्त  जंचा l  जो  लोग  किसी  वर्ग  को  पिछड़ा  रखकर  उनके  शोषण  का  लाभ  उठाना  चाहते  हैं  उनके  लिए  यह  भाग्यवादी  विचारधारा  बहुत  लाभकर  सिद्ध  हो  रही  है   l 
अमेरिका  में  नीग्रो  को  मानवीय  अधिकार  प्राप्त  हो  गए ,  गोर - काले  रंग  का  भेदभाव  समाप्त  हो  गया   लेकिन  भारत  जैसे  धार्मिक  देश  में   जहाँ  इतनी  पूजा  आराधना  होती  है  , कहते  हैं  सब  में  एक  आत्मा  है  फिर  भी  दलितों  पर  अत्याचार  हैं ,  नारी - जाति  की  स्थिति  भी ---- 
मूर्च्छा  से  जागना  जरुरी  है  ,  अपनी  संस्कृति  के  प्रति  श्रद्धा  रखें  और  जो  अनुपयुक्त  है  उसका  विरोध  करने  की    हिम्मत  और  प्रगति  के  लिए  अपार  उत्साह  हो  l