4 April 2021

WISDOM ------- शौर्य और धर्म - निष्ठा के प्रतीक ----- छत्रपति महाराज शिवाजी

   गुणी   की  विशेषताएं  प्रकट  होते  देर  नहीं  लगती  l   वीर  शिवाजी  के  गुणों  और  योग्यताओं  के   विषय  में  सुनकर  बीजापुर  का  सुल्तान    आदिलशाह  उन्हें  देखने  के  लिए   उत्सुक  था  l   उसने  उनके   पिता   शाहजी  से  उन्हें  दरबार  में  लाने  के  लिए  कहा  l   शाहजी  ने  उन्हें  दरबार  में  चलने  की  आज्ञा  दी   l    शिवाजी  स्वाभिमानी  थे  ,  उन्होंने  इस  अनुचित  आज्ञा  को  मानने   से  इनकार   कर  दिया  l    शाहजी  और  मुरार पंत  ने    शिवाजी  को  समझाया  ---' दरबार  में  चलने   से  बड़ा  लाभ  होगा  , बादशाह  खुश  हो  जायेगा   तो  ख़िताब  और  ओहदा  देगा  ,  जागीर   बख्शेगा  l   अपने  बड़े  लाभ  के  लिए    बादशाह  को   एक  बार  सलाम   कर  लेने  में  क्या  हर्ज  है  ?  '  मुरार  पंत  की  बात  सुनकर   किशोर  शिवा   बड़ी  देर  तक  उनका  मुंह  देखते   रहे  फिर  बोले --  "  देश  और  धर्म  पर   होते  अत्याचार  पर  दृष्टिपात   न  कर   केवल  अपने  स्वार्थ  की  और  देखते  रहना   अमानवीय  प्रवृति  है  ,  जो     स्वाभिमानी  आदमी  को  शोभा  नहीं  देती    ये  बादशाह  रोटी  के  टुकड़ों  की  तरह  जागीरें  सामने  डालकर    स्वानवृत्ति  जगाते       और  भाई  से  भाई  का  गला   कटवाते  हैं  l   दुनिया  में   हेय   तथा  हीन   बनकर  काम  नहीं   चलता  l   यह  तो  मनुष्यों  की  अपनी  कमजोरी    और   सोचने  का  ढंग  है  कि   अन्यायियों   के  तलवे  चाटने  से   ही    काम  चलता  है  l   ईश्वर  ऐसे  अत्याचारी    लोगों  को   सत्तावन  देखने  की  इच्छा   नहीं  कर  सकता  l  '