भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम में भारी भीड़ लगी हुई थी l प्रभु ने आज संकल्प किया था कि वे अपने धाम से किसी को खाली हाथ नहीं जाने देंगे l सभी प्राणी उनसे भांति -भांति की संपदा मांगने में लगे थे l वैकुण्ठ का कोष रिक्त होते देख महालक्ष्मी ने भगवान विष्णु से पूछा ---" हे प्रभु ! यह सारी संपदा आप मुक्त भाव से लुटा देंगे तो वैकुण्ठ में क्या बचेगा ? यहाँ के निवासी कहाँ जाएंगे , क्या करेंगे ? " लक्ष्मी जी की बात सुनकर भगवान विष्णु मुस्कराते हुए बोले ----" देवी ! आप चिंता न करें l सब कुछ लुटाने पर भी एक निधि ऐसी है , जो मेरे पास सदा सुरक्षित रहती है l उसे यहाँ उपस्थित नर , किन्नर , गंधर्व , विद्याधर , देव और असुरों में से किसी ने नहीं माँगा l यह निधि है --- 'मन की शांति ' l ये प्राणी यह नहीं जानते कि मन की शांति के बिना समस्त धन संपदा और त्रिलोक का वैभव -विलास किसी मूल्य का नहीं है l बिना शांति प्राप्त किए यह सारी संपदा व्यर्थ सिद्ध होती है l "
22 September 2023
WISDOM ----
अध्यात्म रामायण में एक कथा है ---- एक बार भगवान राम और लक्ष्मण एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे l उतरते समय उन्होंने अपने -अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए l जब वे स्नान कर के बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा उनके धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ है l उन्होंने भगवान राम से कहा --- लगता है अनजाने में कोई हिंसा हो गई l दोनों ने मिटटी हटाकर देखा तो वहां एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा है l भगवान राम ने करुणावश मेढ़क से कहा ---- " तुमने आवाज क्यों नहीं दी ? हम लोग तुम्हे बचा लेते l जब सांप पकड़ता है , तब तुम खूब आवाज लगाते हो , धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ? ' मेढ़क बोला ---- " प्रभु ! जब सांप पकड़ता है तो मैं राम -राम चिल्लाता हूँ , पर आज देखा कि भगवान राम स्वयं धनुष लगा रहे हैं , तो मैं किसे पुकारता ? बस , इसे अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप लेता रहा l " सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीकार करते हैं l सुख ईश्वर की कृपा है तो दुःख देकर ईश्वर हमें कुछ सिखाना चाहते हैं l