गुरु अपने शिष्यों के साथ गुरुकुल में बैठे थे , प्रश्न - उत्तर का क्रम चल रहा था l एक शिष्य ने गुरु से पूछा ---- " गुरुदेव ! सम्पति का सदुपयोग न करने पर मनुष्य का क्या होता है ? "
गुरु ने उत्तर दिया --- " वत्स ! तुमने रेशम का कीड़ा देखा है ? एक रेशम का कीड़ा रेशम इकट्ठी कर के भारी - भरकम हो जाता है l पर इस प्रगति का क्या लाभ ? वह बेचारा अपने ही बनाये जाल में जकड़ कर मर जाता है l उसके पास की वह जमा - पूंजी , जिसे वह स्वयं के किसी काम में नहीं ला सकता , वह दूसरों का जी ललचाती है और वो लालची ही उसके जीवन का नाश करते हैं l धन का सदुपयोग न करने वाले संपत्तिवान भी उस रेशम के कीड़े की तरह हैं , जो स्वयं तो आवश्यकता से अधिक सम्पति का उपयोग नहीं कर पाते , परन्तु इसके कारण मात्र लालचियों और दुष्टों के भरण - पोषण का माध्यम बनते हैं l आवश्यकता से ज्यादा एकत्रित संपदा स्वयं के लिए एवं परिवार के लिए पतन का कारण बनती है l " शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया l
गुरु ने उत्तर दिया --- " वत्स ! तुमने रेशम का कीड़ा देखा है ? एक रेशम का कीड़ा रेशम इकट्ठी कर के भारी - भरकम हो जाता है l पर इस प्रगति का क्या लाभ ? वह बेचारा अपने ही बनाये जाल में जकड़ कर मर जाता है l उसके पास की वह जमा - पूंजी , जिसे वह स्वयं के किसी काम में नहीं ला सकता , वह दूसरों का जी ललचाती है और वो लालची ही उसके जीवन का नाश करते हैं l धन का सदुपयोग न करने वाले संपत्तिवान भी उस रेशम के कीड़े की तरह हैं , जो स्वयं तो आवश्यकता से अधिक सम्पति का उपयोग नहीं कर पाते , परन्तु इसके कारण मात्र लालचियों और दुष्टों के भरण - पोषण का माध्यम बनते हैं l आवश्यकता से ज्यादा एकत्रित संपदा स्वयं के लिए एवं परिवार के लिए पतन का कारण बनती है l " शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया l