31 March 2020

WISDOM -----

 वैज्ञानिक  प्रगति  के  इस  युग  में  मनुष्य  को  सब  कुछ  मिला   परन्तु  जो  हमसे  छीन  गया  वह  है ---- मानवीय  संवेदना  l  संवेदनहीन  व्यक्ति  और  समाज  ही  व्यवसाय  कर  सकता  है  , वह  लाभ - हानि  ढूंढता  है  l  चिकित्सा  और  चिकित्स्क  वहीँ  प्रभावशाली  हैं  , जहाँ  सम्पन्नता  है  , अन्यथा  निर्धन  रोगी  सड़कों  और  गलियों  में   दम   तोड़  देता  है   l
  बीमारी , महामारी  न  ऊंच - नीच  देखती  ,  न  जात - पांत ,  न  अमीर - गरीब  l  एक  ओर   गरीब  व्यक्ति   अपनी गरीबी , अभाव , भूख ,   रहने  को  घर  नहीं ,  गाँव  में  अच्छी  चिकित्सा  सुविधाएँ  नहीं  और  शहरों  में  व्यवसायिक  लूट   की  वजह  से  मरता  है  l   तो  दूसरी   ओर  अमीर , धनसम्पन्न  व्यक्ति   भोग - विलास  का  जीवन  जीने ,  कामना - वासना  की  अंधी  दौड़  में  अपनी   जीवनी शक्ति  को  खो देता  है  l   महँगी  दवाइयाँ , अच्छे  डॉक्टर   भी  उसका  जीवन  नहीं  बचा   पाते  l
   अधिकाधिक  लाभ  कमाने  की  प्रवृति  को   त्याग  कर  ' जियो  और  जीने  दो ' के  सिद्धांत  पर  चलकर  ही  मानवता  सुखी  हो  सकती  है  l 

WISDOM ---- ईश्वर सत्य है

  राजा  विक्रमादित्य  के  समय  की  बात  है --- राजा  रात्रि  को  वेश  बदलकर  अपनी  प्रजा  का  हाल  जानने  जाया  करते  थे  l  इसी  क्रम  में  वे  एक  रात्रि  को  एक   गाँव  में  पहुंचे ,  वहां  एक  घर  से  उन्हें  कराहने  की  आवाज  आई  l   पूछने  पर  पता  चला  कि   उस  ग्रामीण  की  पत्नी  प्रसव  वेदना  से  कराह  रही  है  l   ग्रामीण  ने  राजा  को  पहचाना  नहीं   , फिर  कहा  आप  बाहर  बैठो  , पुत्र  जन्म  होगा   , हमारी  ख़ुशी  में  सम्मिलित  होना  l   राजा  बरामदे  में  चारपाई  पर  विश्राम  करने  लगे  l  थोड़ी  ही  देर  में  बच्चे  के  रोने  की  आवाज  आई  और  ग्रामीण  ने  आकर  राजा  को  पुत्र जन्म  की  खुशखबरी  सुनाई  l
  राजा  को  निद्रा  नहीं  आ  रही  थी  वे  टहल  रहे  थे  l   अचानक  उन्होंने  देखा  एक  आकृति  नवजात  शिशु  के  कमरे  में  प्रवेश  करने  जा  रही  है  l   राजा  विक्रमादित्य  ने  तुरंत  जाकर  उसे  रोका  और  पूछा  -- इतनी  रात ,  को  तुम  इस  कमरे  में  क्यों  जा  रहे  हो   ?
  उस  आकृति  ने  कहा --- ' मैं  विधाता  हूँ ,  इस  बच्चे  का  भाग्य  लिखने  जा  रही  हूँ  l '
 राजा  ने  रोका  नहीं , लेकिन  जब  विधाता  बाहर  आये  तो  राजा  ने  उन्हें  रोक  लिया   और  कहा  कि   वे  बताएं  कि   उसके  भाग्य  में  क्या  लिखा  है 
विधाता  ने  कहा  -- और  बातें  तो  हम  नहीं  बताएँगे ,  लेकिन  मृत्यु  अटल  है  ,  उस  पल  को  बदला  नहीं  जा  सकता  l   विधाता  ने  राजा  को  बता  दिया  कि   इस  बालक   को   15  वर्ष  की  आयु  में  निश्चित  समय  में  शेर  खा  जायेगा  l
राजा  विक्रमादित्य  बहुत  वीर  थे  ,  उन्होंने  विधाता  के  इस  लेख  को  बदलने  का  निश्चय  किया  l प्रात:काल  होने  पर  ग्रामीण  को  अपना  परिचय  दिया  , उस  बालक  की  परवरिश  की  जिम्मेदारी  ली   फिर  राज्य  में  पहुंचकर  एक  बहुत  मजबूत  महल  बनवाना  शुरू  किया  जिसमे  शेर  तो  क्या  एक  परिंदा  भी  पर  नहीं  मार  सकता  था  l   बालक  15  वर्ष  का  हुआ  ,  उसे  उस  महल  के  बीचोबीच  एक  बड़े   सुरक्षित  कमरे  में  रखा  गया  ,  उसके  मन  बहलाने  का हर  सामान  वहां  था  l  कमरे    को  बहुत   सुन्दर  पेंटिंग ,  पक्षियों , जानवरों  के  चित्र  आदि  से  सजा  रखा  था  l  विधाता  द्वारा  बताये  निश्चित  समय  से  बहुत  पहले  ही  राजा  स्वयं  तलवार  लेकर  अपनी  सेना  सहित  उपस्थित  थे    l  सभी  चौकन्ने  थे  l  निश्चित  पल  पर  शेर  की  दहाड़  सुनाई  दी  ,  सब  लोग  बालक  के  कमरे  की  ओर   दौड़े ,  देखा  खून  से  लथपथ  बालक  मरा   पड़ा  है  l   कहते  हैं  दीवार  पर  बने  शेर  के  चित्र  ने  ही  शेर  का  रूप  ले  लिया  और  बालक  का  वध  कर  दिया  l
कथा   में  सत्यता  हो  न  हो ,  यह  तो  सत्य  है  कि   मृत्यु  अटल  है  ,  जो  इस  संसार  में  आया  है  उसे  जाना  है  l   आप  किसी  को  हजार  तालों  में  बंद  कर  दो ,  जब  हमें  मिली  हुई  साँसे  पूरी  हो  गईं ,  तब  उससे  एक  पल  ज्यादा  के  लिए  भी  संसार  की  कोई  ताकत  नहीं  रोक  सकती  l
हाँ ,  हमारे  धर्म  ग्रंथों  में  बताया  गया  है   और  आचार्य ,   ऋषियों  ने  इस  बात  पर  बहुत  जोर  दिया  है  कि   निरंतर  सत्कर्म  कर  के  हम  अकाल  मृत्यु  को   रोक  सकते  हैं ,  बड़ी  से  बड़ी  दुर्घटना  एक  छोटी  सी  सुई  चुभने  में  बदल  सकती  है  ,  हमारे  सत्कर्म ,  हमारा  निश्छल  मन  हमारे परिवार  पर  आये  हुए  बड़े  से  बड़े  संकट  को  टाल   सकता  है  l  बस ! सत्कर्मों  की  पूंजी  और  ईश्वर  की  कृपा  होनी  चाहिए  l