18 June 2022

WISDOM ------

    लुकमान  से  किसी  ने  प्रश्न  किया  कि   आपने  इतनी  शिष्टता  कहाँ  से  सीखी  ?   लुकमान  ने   उत्तर  दिया  --- " भाई  ,  मैंने  शिष्ट  व्यवहार   अशिष्ट   लोगों  के  बीच  रहकर  ही  सीखा    है  l  लुकमान  का  उत्तर  सुनकर   लोग  अचरज   में  पड़  गए  l   लुकमान  ने  और  आगे  स्पष्ट  करते  हुए  कहा  कि   अशिष्ट  लोगों लोगों  के  बीच  रहकर  ही  मैंने  जाना  कि  अशिष्ट  व्यवहार  क्या  है  l  मैंने  पहले  उनकी  बुराइयों  को  देखा   l  फिर  देखा  कि  कहीं  ये   बुराइयाँ  मुझ  में  तो  नहीं  हैं   l  इस  तरह  के  आत्म निरीक्षण  से   मैं  बुराइयों  से  दूर  होता  गया   और  आत्मसुधार   के  फलस्वरूप   लोग  मुझे   लुकमान  से  हजरत  लुकमान  कहने  लगे   l  

WISDOM --------

    एक  दिन  राजा  भोज  गहरी  निद्रा  में  सोए  हुए  थे   l  उन्हें  स्वप्न  में  एक  अत्यंत  तेजस्वी   वृद्ध  पुरुष  के  दर्शन  हुए  l  भोज  ने  उससे  पूछा ----- " महात्मन  ! आप  कौन  हैं  ? "  वृद्ध  ने  कहा ---- " राजन  !  मैं  सत्य  हूँ  l  तुझे  तेरे  कार्यों  का  वास्तविक  रूप  दिखाने  आया  हूँ  l  मेरे  पीछे -पीछे  चला  आ   और  अपने  कार्यों  की  वास्तविकता   को  देख  l  "  राजा  उस  वृद्ध  के  पीछे -पीछे  चल  दिए   l  राजा  भोज  बहुत  दान , पुण्य ,  यज्ञ , व्रत , तीर्थ , कथा - कीर्तन   करते  थे , उन्होंने   अनेक  कुएं , मंदिर , तालाब , बगीचे   आदि  भी  बनवाये  थे   l  राजा  के  मन  में  इन  कार्यों   के  कारण  बहुत  अभिमान  आ  गया  था   l  वृद्ध  पुरुष  के  रूप  में  आया  सत्य   राजा  भोज  को   अपने  साथ उसकी  कृतियों   के  पास  ले  गया  l  वहां  जैसे  ही  सत्य  ने  पेड़ों  को  छुआ  ,  सब  एक - एक  कर  के  ठूंठ  हो  गए  l  राजा  आश्चर्य चकित  रह  गया   l  इसके  बाद  सत्य  राजा  भोज  को  मंदिर  ले  गया  l  सत्य  ने  जैसे  ही  उसे  छुआ  ,  वह  खंडहर  के  रूप  में   परिणत  हो  गया   l  वृद्ध  पुरुष  ने  राजा  के   यज्ञ  ,  तीर्थ ,  कथा , पूजन ,  दान  आदि  के  निमित्त  बने  स्थानों  , उपादानों , व्यक्तियों   को  जैसे  ही  छुआ  ,  वे  सब  राख  हो  गए   l   राजा  यह  सब  देखकर  विक्षिप्त  सा  हो  गया   l  सत्य  ने  कहा  ---- " राजन  !  यश  की  इच्छा  से   और    अपने  किसी  स्वार्थ  की  पूर्ति  के  लिए   जो  कार्य  किए  जाते  हैं  ,  वह  दिखावा  है  ,  उनसे  केवल  अहंकार  की  पुष्टि  होती  है   l  सच्ची  सद्भावना  से   निस्स्वार्थ  होकर   कर्तव्य  भाव  से   जो  कार्य  किए  जाते  हैं  ,  उन्ही  का  फल  पुण्य  रूप  में  मिलता  है   l  "  इतना  कहकर  सत्य  अन्तर्धान  हो  गया  l     राजा  ने  निद्रा  टूटने  पर  स्वप्न  पर  गहरा  विचार  किया    और  सच्ची  भावना  से  कर्म  करना  प्रारम्भ  कर  दिया  l