विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की बढ़ती हुई प्रतिभा और लोकप्रियता से लोग ईर्ष्या करने लगे थे l उन्होंने गुरुदेव की छवि को धूमिल करने के लिए विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं के माध्यम से अपने कलुषित प्रयास प्रारम्भ कर दिए l परन्तु गुरुदेव समभाव से सब सहन करते रहे तथा तनिक भी विचलित नहीं हुए l श्री शरतचंद्र को जब ये आलोचनाएं सहन नहीं हुईं तो उन्होंने गुरुदेव से कहा कि वे इन आलोचकों को रोकने का कुछ प्रयास करें l टैगोर ने शांत भाव से शरतचंद्र को समझाया कि , प्रयास क्या करूँ ? मैं उन जैसा नहीं बन सकता और उन्होंने जो मार्ग अपनाया है , वह भी मैं नहीं अपना सकता l
23 February 2021
WISDOM -----
पुरानी आदत आसानी से जाती नहीं l यह आदत किसी को गुलाम बनाने की , शोषण करने की हो या मानसिक पराधीनता की हो l व्यक्ति हो या समाज , अपनी आदत के पोषण के रास्ते , विभिन्न तरीके ढूँढ़ ही लेता है l ----- गुरु और शिष्य भ्रमण को निकले l उन्हें राह में एक हाथी मिला , जो एक रस्सी से खूँटे से बँधा खड़ा था l उत्सुकतावश शिष्य ने महावत से पूछा ---- " बंधु ! यह रस्सी तो पतली सी है और ये विशाल हाथी , जब चाहे इसे तोड़कर मुक्त हो सकता है , फिर यह भागता क्यों नहीं ? महावत बोला ---- " जब ये हाथी छोटा था , तब यही रस्सी इसे बाँधने के लिए पर्याप्त थी और अब इसके पूर्व अनुभव इसे ये आभास ही नहीं होने देते कि रस्सी इतनी मजबूत नहीं कि इसे रोक सके l " मनुष्य अपनी संकल्प शक्ति को जगाकर मानसिक पराधीनता से मुक्त होकर स्वाभिमान की जिंदगी जी सकता है l