' जो धैर्यवान अपने तथा अपनी प्रवृतियों पर नियंत्रण कर सकने के अभ्यासी होते हैं वे किसी भी स्थिति में संतुलन बनाये रखने में सफल रहा करते हैं । '
अहिल्याबाई एक साधारण ग्रामीण कन्या से इन्दौर की युवरानी बन गई थीं । एक छोटी स्थिति से इतनी बड़ी पदवी पर आ जाने पर भी उनमे जरा भी अभिमान नहीं हुआ । महारानी अहिल्याबाई ने अभिमान के स्थान पर उत्तरदायित्व का ही अधिक अनुभव किया ।
पति की मृत्यु के बाद साध्वी अहिल्याबाई अब पुत्र और पुत्रवधू दोनों के रूप में सास - ससुर की सेवा में तत्पर हो गईं । कुछ समय बाद उनके ससुर महाराज मल्हार राव की मृत्यु हो गई । अहिल्याबाई ने यह आघात भी धैर्य से सम्भाल लिया ।
इस आघात से निराश होकर घर में ही पड़े रहने के स्थान पर उन्होंने अपने पूज्य ससुर का प्रतिनिधित्व कर उनकी आत्मा को संतोष देने का निश्चय किया । उन्होंने ससुर की पावन स्मृति में अनेक विधवाओं , अनाथों तथा अपंग लोगों को आश्रय दिया । मेधावी तथा प्रतिभाशाली कितने ही छात्रों के लिए छात्रवृति शुरू की । ऐसे लोग जिनके पास कोई जीविका नहीं थी उन्हें काम पर लगवाया । निराश्रित माताओं और उनके बच्चो के पालन - पोषण के लिए अनेक प्रकार के छोटे - मोटे काम - धन्धों का प्रारंभ कर दिया ।
महाराज मल्हार राव की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई का पुत्र मालीराव गद्दी पर बैठा , वह बड़ा विलासी था l एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो गई । आगे कोई उत्तराधिकारी न होने से इंदौर की बागडोर अहिल्याबाई ने अपने हाथ में ले ली । उन्होंने अपने को कर्तव्य की वेदी पर समर्पित कर दिया , परोपकार तथा परमार्थ को अपना ध्येय बना लिया ।
उन्होंने राज्य भर में बड़ी - बड़ी सड़कों का निर्माण कराया , सड़क के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये । स्थान - स्थान पर कुएं , अतिथिशाला व धर्मशाला का निर्माण कराया । उन्होंने राज्य में न जाने कितने औषधालय, अस्पताल व दानशालायें खुलवाई । अनेक पुस्तकालय , पाठशालाएं और वाचनालय की व्यवस्था की । उन्होंने धन और सत्ता के सदुपयोग का एक ऐसा महान आदर्श उपस्थित किया जिसकी गुण गाथा हमेशा गाई जाएगी ।
अहिल्याबाई एक साधारण ग्रामीण कन्या से इन्दौर की युवरानी बन गई थीं । एक छोटी स्थिति से इतनी बड़ी पदवी पर आ जाने पर भी उनमे जरा भी अभिमान नहीं हुआ । महारानी अहिल्याबाई ने अभिमान के स्थान पर उत्तरदायित्व का ही अधिक अनुभव किया ।
पति की मृत्यु के बाद साध्वी अहिल्याबाई अब पुत्र और पुत्रवधू दोनों के रूप में सास - ससुर की सेवा में तत्पर हो गईं । कुछ समय बाद उनके ससुर महाराज मल्हार राव की मृत्यु हो गई । अहिल्याबाई ने यह आघात भी धैर्य से सम्भाल लिया ।
इस आघात से निराश होकर घर में ही पड़े रहने के स्थान पर उन्होंने अपने पूज्य ससुर का प्रतिनिधित्व कर उनकी आत्मा को संतोष देने का निश्चय किया । उन्होंने ससुर की पावन स्मृति में अनेक विधवाओं , अनाथों तथा अपंग लोगों को आश्रय दिया । मेधावी तथा प्रतिभाशाली कितने ही छात्रों के लिए छात्रवृति शुरू की । ऐसे लोग जिनके पास कोई जीविका नहीं थी उन्हें काम पर लगवाया । निराश्रित माताओं और उनके बच्चो के पालन - पोषण के लिए अनेक प्रकार के छोटे - मोटे काम - धन्धों का प्रारंभ कर दिया ।
महाराज मल्हार राव की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई का पुत्र मालीराव गद्दी पर बैठा , वह बड़ा विलासी था l एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो गई । आगे कोई उत्तराधिकारी न होने से इंदौर की बागडोर अहिल्याबाई ने अपने हाथ में ले ली । उन्होंने अपने को कर्तव्य की वेदी पर समर्पित कर दिया , परोपकार तथा परमार्थ को अपना ध्येय बना लिया ।
उन्होंने राज्य भर में बड़ी - बड़ी सड़कों का निर्माण कराया , सड़क के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये । स्थान - स्थान पर कुएं , अतिथिशाला व धर्मशाला का निर्माण कराया । उन्होंने राज्य में न जाने कितने औषधालय, अस्पताल व दानशालायें खुलवाई । अनेक पुस्तकालय , पाठशालाएं और वाचनालय की व्यवस्था की । उन्होंने धन और सत्ता के सदुपयोग का एक ऐसा महान आदर्श उपस्थित किया जिसकी गुण गाथा हमेशा गाई जाएगी ।