12 November 2020

WISDOM ------

   काशी  नरेश  युवराज  के  विकास  से  संतुष्ट  थे  l   वे  प्रात:  ब्रह्म  मुहूर्त  में  उठ  जाते  ,  व्यायाम , घुड़सवारी  , अध्ययन , राजदरबार  के  कार्य  आदि  सभी  कुछ  समय  से  करते   l   किसी  भी  दुर्व्यसन   में  नहीं  उलझते  थे   l   किन्तु  राजपुरोहित  बार - बार  आग्रह  करते   कि   उन्हें  कुछ  वर्षों  के  लिए  किसी  संत  के  सान्निध्य   में  ,  आश्रम  में  रखने  की  व्यवस्था   बनाई  जाए  l   किन्तु  काशिराज  सोचते  थे  कि   उन्हें  इसी  क्रम  में   राजकार्य  का  अनुभव  बढ़ाने  का  अवसर  दिया  जाए   l   तभी  एक  घटना  घटी   l   राजकुमार  नगर  भ्रमण  के  लिए  घोड़े  पर  निकले  l   जहाँ  वे  रुकते  ,  स्नेह भाव  से  नागरिक   उन्हें  घेर  लेते   l   एक  बालक  कुतूहलवश   घोड़े  के  पास  जाकर  पूंछ   सहलाने  लगा  l   घोड़े  ने  लात  फटकारी  और  बालक  दूर  जा  गिरा  l   उसके  पैर   की  हड्डी  टूट  गई  l   राजकुमार  ने  देखा ,  हँसकर   बोले  ,  असावधानी  बरतने  वालों  का  यही  हाल  होता  है  ,  और  आगे  बढ़  गए   l   सिद्धांतः   बात  सही  थी   पर  लोगों  को  व्यवहार  खटक  गया   l   काशिराज  को  सारा  विवरण  मिला  तो  वे  भी  दुःखी   हुए   l  राजपुरोहित  ने  कहा ---  महाराज  !  स्पष्ट  हुआ   है  कि   युवराज  में  संवेदनाओं  का  अभाव  है   l   मात्र  सतर्कता - सक्रियता  के  बल  पर  जनश्रद्धा   का  अर्जन  और  पोषण    न  कर  सकेंगे   l   हो  सकता  है  कभी  क्रूरकर्मी  बन  जाएँ  l    अत:  समय  रहते  युवराज  की  इस  कमी  को   पूरा  कर  लिया  जाना  चाहिए  l   राजा  का  समाधान  हो  गया   और  उन्होंने  राजपुरोहित  के   मतानुसार  व्यवस्था    कर  दी   l