फादर कामिल बुल्के बेल्जियम वासी थे और 1935 में मिशनरी अध्यापक बनकर भारत आये क यहाँ आकर 1945 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से संस्कृत से बी.ए. किया l उन्होंने वाल्मीकि रामायण का गहन अध्ययन किया फिर हिन्दी पढ़ने के लिए उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया l यहाँ एम. ए. करते हुए वे तुलसी साहित्य के संपर्क में आये l उनके भाषणों का विषय होता था --'रामचरितमानस कि गरिमा ' l उनका शुद्ध उच्चारण युक्त धारा-प्रवाह भाषण सुनकर श्रोता मन्त्र मुग्ध हो जाते थे l भरत के चरित्र से उन्हें विशेष लगाव था l भरत से उन्होंने यही सीखा कि ----" साधना का अर्थ पलायन नहीं अपितु सेवा के प्रति समर्पण है l "
उनका सारा जीवन ज्ञान और कर्म की साधना में ही लगा रहा l उनके व्यक्तित्व , चरित्र और व्यवहार को देखकर यह सिद्ध होता है कि यदि प्रयास किया जाये और मनुष्य अपनी संकीर्णता छोड़ दे तो सभी धर्म एक हो जाएँ l
उनका सारा जीवन ज्ञान और कर्म की साधना में ही लगा रहा l उनके व्यक्तित्व , चरित्र और व्यवहार को देखकर यह सिद्ध होता है कि यदि प्रयास किया जाये और मनुष्य अपनी संकीर्णता छोड़ दे तो सभी धर्म एक हो जाएँ l