27 February 2021

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'मनुष्य  जीवन  की  सबसे  बड़ी  उपलब्धि   भावनाओं  का  परिष्कार  है   l   भावनाएं  न  हों  तो  जीवन  नीरस  हो  जायेगा  l   जीवन  का  उल्लास   भावात्मक  आधार  पर  ही  बन  पाता   है   l   ये   भावनाएं  यदि  पवित्र  हो  जाएँ   ,  अंत:करण   प्रेम  और  शीतलता  से  भर  उठे    तो  मानवीय  व्यक्तित्व  ,  शांति  व  सुगंध  का   प्रतीक   बन  जाता  है   l   उसमें  से  कुछ   ऐसी सुगंध  निकलती  है  ,  जो  कस्तूरी  मृग  की   कस्तूरी  की  तरह  से  समस्त  उपवन  को   सुरभित  करने  में  पीछे  नहीं  रहती   l   पवित्र  अंत:करण   वाले  व्यक्तित्व   इसी  प्रकार   समस्त  वातावरण  को  सुगन्धित  एवं  सुरभित  बनाते  हैं   l  '

संत रविदास

     स्वामी  रामानंद जी  ने   चर्मकारों  की  बस्ती    मडुआडीह   में  जाकर   जन्म  लिए   बालक  को  ढूंढ़ा ,  उसके  बत्तीस  लक्षणों  से  उसे  पहचाना   एवं  बीस  दिन  के  बालक  का  नाम   रविदास  रखा   l  रविदास  बड़े  हुए  l   जूते   सीने  के  काम  में  लग  गए   l   उनकी  पत्नी  लोना  भी  उनके  रंग  में  रंग  गई   l   एक  दिन  पिता  से  अपने  जन्म  का  विवरण  सुन   वे  काशी   में   स्वामी  रामानंद जी  के  आश्रम  में   पहुंचे   l   गुरु   ने शिष्य   को विधिवत   दीक्षा  दी   एवं  मन्त्र  दिया  l   गरीबी  की  स्थिति  में  रहकर   समाज  को   सच्चे  अध्यात्म   का  शिक्षण  देने  का  उपदेश  दिया  l   संत  रविदास  ने  उस  समय  के  समाज  में  अपनी  जाति   की  घोषणा  कर   अपनी  प्रतिष्ठा  सभी  संतों  में  की  l   उनने  लिखा ---- ' मेरी  जाति   कमीनी   पाँति  कमीनी   ओछा  जनमु  हमारा  l    तुम  सरनागति  राजा  रामचंद  कहि   रविदास  तुम्हारा   l   जाति   भी  ओछी  ,  करम  भी  ओछा  किसन   हमारा   l   नीचे  से  प्रभु  ऊँच   कियो  है  ,  कह  रैदास  चमारा   l '    उनको  धर्मोपदेश  देते  देख    पंडित  लोग  चिढ़े   l   राजा  से  शिकायत  की  l   महल  में  शास्त्रार्थ  हुआ   l   सभी  पंडित  पराजित  हुए  l   उनकी  प्रार्थना  पर   मूर्ति  ,  मंदिर  से   निकलकर    उनकी  गोदी  में  आ  गई   l   सभी  ने  रैदास  की  जय -जयकार  की  l   एक  बार  रैदास  झाला  रानी  के  भंडारे  में  भोजन भोजन   कर रहे  थे  l   उन्हें  अछूत  समझने  वाले  ब्राह्मणों  ने    अपना  स्वयं  का  अलग  भंडारा  किया   और  वे  खाने  बैठे  l   खाना  खाते   समय  का  दृश्य  बड़ा  ही  विस्मयकारक  था  ,  जब  ब्राह्मणों   का समूह  खाने  बैठा   तो  देखा  कि   प्रत्येक  की  बगल  में  रैदास  बैठे  हैं  l   तब  उन्हें  यह  ज्ञात  हुआ  कि   हम  जिन्हे  अछूत  समझ  रहे  हैं  वे  असाधारण  व्यक्ति  हैं   l