पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी मानव मन के मर्मज्ञ थे , उनके विचार हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं l भावनाओं के संबंध में उन्होंने लिखा है -----" भावनाओं का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है l सकारात्मक भावनाएं जहाँ प्रसन्नता , हर्ष , उत्साह , उमंग , साहस , संतोष व आत्मविश्वास के रूप में अभिव्यक्त होती हैं , वहीँ नकारात्मक भावनाएं ईर्ष्या , द्वेष , दुःख , असंतोष , चिंता , आत्महीनता , असुरक्षा आदि के रूप में प्रकट होती हैं और व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं l आचार्य श्री लिखते हैं ----- " भावनाओं में बहकर कभी भी अपने जीवन के निर्णय नहीं लेने चाहिएं क्योंकि ऐसी नाजुक मन: स्थिति में लिए गए निर्णय भविष्य के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध होते हैं l भावनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए हमें अपने जीवन में कठोर श्रम करना चाहिए और उससे मिलने वाले परिणामों को स्वीकार करना चाहिए l यदि परिणाम आशा के अनुकूल है तो ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए और आशा के विपरीत होने पर अपनी कमियों पर ध्यान देकर उन्हें सुधारना चाहिए l " आचार्य श्री एक बात और समझाते हुए कहते हैं ----- ' अपने जीवन में चाहें जितने भी रिश्ते हों , लेकिन एक रिश्ता भगवान से भी रखना चाहिए और अपने मन की हर बात को उनसे बताना चाहिए l यह संवाद भले ही एकतरफा होता है , लेकिन जिंदगी में बहुत सारी उलझनों को सुलझाता है l इससे हमारी भावनाओं को सम्बल मिलता है कि कहीं कोई तो है , जो हमारा ध्यान रखता है और मुसीबत के समय भी हमें गिरने नहीं देता है , संभाल लेता है l आचार्य श्री कहते हैं ---इसके साथ ही अपने कर्तव्य पालन और प्रबल पुरुषार्थ करने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए l "