24 May 2021

WISDOM------

जब  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   तब  उसे  साक्षात्  भगवान  भी  समझाने   आएं  तो  वह  नहीं  समझता   l   इस  दुर्बुद्धि  में  वह  अपना  सुखी - सुन्दर  जीवन   भूलकर   कष्ट , आपदा  और  अंत  में  मृत्यु  को  स्वयं  ही  चुन  लेता  है    l   हाय  !   री    दुर्बुद्धि  !   यह  कथन  हर  युग  में  सत्य  है   l   रावण  को    मंदोदरी  ने     विभीषण  ने   कितना  समझाया   कि   माँ  सीता  साक्षात्  जगदम्बा  हैं ,  ईश्वर  ने  स्वयं  धरती  पर  राम  के  रूप  में  जन्म  लिया  है  ,  तुम   उनसे  क्षमा  मांगो   लेकिन  रावण  ने  किसी  की  नहीं  सुनी  l  हनुमानजी  और  अंगद  भी  गए   उसे   समझाने     पर  उसके  सिर   पर  तो  मृत्यु  सवार  थी   l   इसी  तरह  महाभारत  में  --- भगवान  कृष्ण   स्वयं    दुर्योधन  को  समझाने  गए    कि   पांच  गाँव  ही  दे  दो    लेकिन  वो  नहीं  माना    और  महाभारत  होकर  रहा   l    इन  सब  के  मूल  में  देखें     तो  एक  बात  स्पष्ट  है   कि   व्यक्ति  के  पास  जो  ईश्वर  ने  दिया  है    वह  उसका  महत्त्व  नहीं  समझता  ,  जो  दूसरे  की  है   उस  पर  ललचाता  है   l   रावण  के  पास   एक  से  एक  सुन्दर  रानी - महारानी  की  कमी  नहीं  थी    लेकिन  उसकी     नजर    सीताजी  पर  थी  l   दुर्योधन  के  पास  हस्तिनापुर  का  विशाल  साम्राज्य  था   लेकिन  उसे  पांडवों  का   इंद्रप्रस्थ  इतना  अच्छा  लगा  कि   अब  वह  उन्हें  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  नहीं  देना  चाहता   l    यही  स्थिति  वर्तमान  में  है  ---- संसार  में  विभिन्न  देश  हैं   हर  देश  की  अपनी  संस्कृति , अपनी  चिकित्सा   है   l   हमारे  पास  भी  अपनी   संस्कृति ,   अपनी  चिकित्सा  पद्धति ,  वेद , उपनिषद  में  दिए  गए  जीवन  जीने  के  सूत्र    आदि  बहुमूल्य  ज्ञान - सम्पदा  है    लेकिन  दुर्बुद्धि  ऐसी  कि   हम  उसका  महत्त्व  नहीं  समझते   l   दुर्बुद्धि  के  साथ  यदि  मानसिक  गुलामी   भी  हो   ,  हम   दूसरे     को  अपने  से  श्रेष्ठ  समझें     तो  परिस्थिति   विकराल  हो  जाती  है   l   आज  वैश्वीकरण  के  युग  में  हमारी  बुद्धि  हंस  जैसी  हो  l   कहते  हैं  हंस  को  दूध  दो  तो  वह  दूध  पी   लेता  है  ,  उसमें  का  पानी  छोड़  देता  है   l   इसी  तरह  हम  करें  ,  अपना  महत्त्व  समझें    दूसरे  का  जो  श्रेष्ठ  है   उसे  स्वीकार  करें ,  भेड़ -चाल  न  चलें   l   ऐसी   विवेक - बुद्धि  के  लिए    हम  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  करें   l   एक  प्रार्थना  हम   उन  देशों  के  लिए  भी  करें  जिनके  पास   शक्ति  और  वैभव  और   श्रेष्ठता  का     अहंकार  भी  है  ,  कि   उन्हें  भी  सद्बुद्धि  आये -----------