जब मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब उसे साक्षात् भगवान भी समझाने आएं तो वह नहीं समझता l इस दुर्बुद्धि में वह अपना सुखी - सुन्दर जीवन भूलकर कष्ट , आपदा और अंत में मृत्यु को स्वयं ही चुन लेता है l हाय ! री दुर्बुद्धि ! यह कथन हर युग में सत्य है l रावण को मंदोदरी ने विभीषण ने कितना समझाया कि माँ सीता साक्षात् जगदम्बा हैं , ईश्वर ने स्वयं धरती पर राम के रूप में जन्म लिया है , तुम उनसे क्षमा मांगो लेकिन रावण ने किसी की नहीं सुनी l हनुमानजी और अंगद भी गए उसे समझाने पर उसके सिर पर तो मृत्यु सवार थी l इसी तरह महाभारत में --- भगवान कृष्ण स्वयं दुर्योधन को समझाने गए कि पांच गाँव ही दे दो लेकिन वो नहीं माना और महाभारत होकर रहा l इन सब के मूल में देखें तो एक बात स्पष्ट है कि व्यक्ति के पास जो ईश्वर ने दिया है वह उसका महत्त्व नहीं समझता , जो दूसरे की है उस पर ललचाता है l रावण के पास एक से एक सुन्दर रानी - महारानी की कमी नहीं थी लेकिन उसकी नजर सीताजी पर थी l दुर्योधन के पास हस्तिनापुर का विशाल साम्राज्य था लेकिन उसे पांडवों का इंद्रप्रस्थ इतना अच्छा लगा कि अब वह उन्हें सुई की नोक बराबर भूमि भी नहीं देना चाहता l यही स्थिति वर्तमान में है ---- संसार में विभिन्न देश हैं हर देश की अपनी संस्कृति , अपनी चिकित्सा है l हमारे पास भी अपनी संस्कृति , अपनी चिकित्सा पद्धति , वेद , उपनिषद में दिए गए जीवन जीने के सूत्र आदि बहुमूल्य ज्ञान - सम्पदा है लेकिन दुर्बुद्धि ऐसी कि हम उसका महत्त्व नहीं समझते l दुर्बुद्धि के साथ यदि मानसिक गुलामी भी हो , हम दूसरे को अपने से श्रेष्ठ समझें तो परिस्थिति विकराल हो जाती है l आज वैश्वीकरण के युग में हमारी बुद्धि हंस जैसी हो l कहते हैं हंस को दूध दो तो वह दूध पी लेता है , उसमें का पानी छोड़ देता है l इसी तरह हम करें , अपना महत्त्व समझें दूसरे का जो श्रेष्ठ है उसे स्वीकार करें , भेड़ -चाल न चलें l ऐसी विवेक - बुद्धि के लिए हम ईश्वर से सद्बुद्धि की प्रार्थना करें l एक प्रार्थना हम उन देशों के लिए भी करें जिनके पास शक्ति और वैभव और श्रेष्ठता का अहंकार भी है , कि उन्हें भी सद्बुद्धि आये -----------