पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' नकारात्मकता एक ऐसी खाई की तरह है , जो सुन्दर जीवन को नष्ट कर देती है , स्वस्थ जीवन को रुग्ण कर देती है l लेकिन जो व्यक्ति अपनी दिनचर्या की शुरुआत सकारात्मक विचारों से करते हैं , उनके पास रुग्ण व नकारात्मक भाव नहीं ठहरते l सकारात्मक विचारों का इतना प्रभाव है कि रुग्ण व्यक्ति भी सकारात्मक विचारों के संपर्क में आकर दृढ़ इच्छा शक्ति से स्वयं को स्वस्थ कर सकते हैं l ' ------- एक बच्चे की एक आँख ख़राब थी , लेकिन पढ़ने में रूचि के कारण वह एक आँख से ही पुस्तकें पढ़ता था l डॉक्टर ने यह आशंका जताई कि ऐसा करने से वह अपनी दूसरी आँख भी खो देगा l परिवार वालों ने जब उसे पढ़ाई से रोका तो उसका जवाब था --- " मैं पढ़ना - लिखना तब छोडूंगा जब कोई न कोई प्रतिदिन पुस्तक पढ़कर सुनाता रहेगा और मुझे बीमार नहीं समझेगा l परिवार वाले बच्चे की बात से सहमत हो गए l उसने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से न केवल अपनी पढ़ाई पूरी की , बल्कि अनेक पुस्तकें भी लिखीं l उसने अपनी पुस्तकों में सकारात्मक ढंग से जीवन जीने पर जोर डाला l यही बच्चा आगे चलकर फ़्रांस का प्रसिद्ध दार्शनिक ज्यांपाल सार्त्र बना , जिन्होंने न केवल अपने जीवन के नकारात्मक पहलुओं पर विजय पाई , बल्कि दूसरों के जीवन को भी सकारात्मक दिशा देने में सफल रहा l मनोवैज्ञानिकों का भी यही कहना है कि यदि कोई व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति से नकारात्मक पहलुओं से दूर रहने की बात ठान ले तो न केवल वह अपने शरीर की छोटी - छोटी बीमारियों को ठीक कर सकता है , बल्कि गंभीर बीमारियों से भी उबर सकता है l