28 October 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " अशांति  से  आज  सभी  परेशान  हैं  l  एक  मनुष्य  के  पास  पर्याप्त  साधन , संपत्ति , जीवन  निर्वाह  की  वस्तुएं  हैं  , फिर  भी  वह  अशांत , परेशान  है  l  उच्च  शिक्षा  संपन्न , अच्छे  पद  पर  प्रतिष्ठित  होकर  भी   भूला -भटका  सा  दिखाई  देता  है  l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- अभिमान , अहंकार   चाहे  वह  किसी  भी  गुण ,  रूप  व  वस्तु  का  क्यों  न  हो  , मनुष्य  को  वास्तविक  सुख  और   आत्मिक  आनंद  से  दूर  रखता  है  l '   पुराण  की  एक  कथा  है -----  एक  बार  देवता  भी  भोग - विलास  में  डूब  गए  जिससे  उनकी  सामर्थ्य  नष्ट  हो  गई   l  उस  समय  असुरों  ने  उन  पर  आक्रमण  किया  ,तब  प्रजापति  ब्रह्मा  ने     पृथ्वी  के  प्रतापी  और  बलशाली  महाराज  मुचकुंद   को  सेनापति  बनाया  l  ब्रह्माजी  का  कहना  था  ---संयमी  और  सदाचारी  व्यक्ति  मनुष्य  तो  क्या   देव -दानव  सभी  को  परस्त  कर  सकता  है  l  अब  देवताओं  की  सेना  का  सञ्चालन  महाराज  मुचकुंद  कर  रहे  थे  l  एक  माह  तक  घनघोर  युद्ध  हुआ  l  असुर  बुरी  तरह  पराजित  हुए  ,  उन्होंने  बीसियों  सेनापति  बदल  डाले   लेकिन  मुचकुंद  की  वीरता  के  आगे  वे  सब  परस्त  हो  गए  l   धरती  और  देवलोक  सब  तरफ  मुचकुंद  की  जयकार  हो  रही  थी   l  अपनी  प्रशंसा  सुनते -सुनते  मुचकुंद  के  मन  में  अहंकार  जाग  गया   और  अब  वे  अपनी  शक्ति  भोग -विलास  में   नष्ट  करने  लगे  l  प्रजापति  ब्रह्मा  ने   इस  बात  को  देख  लिया  और  देवराज  इंद्र  को  बुलाकर  कहा  कि   मनुष्य  में  अहंकार  आ  जाने  से  उसका  पतन  होने  लगता  है   इसलिए  तुम  अब  शिवजी  के  पुत्र  स्वामी  कार्तिकेय  को  सैन्य  संचालन  के  लिए  राजी  कर  लो  l  प्रजापति  का  कहना  सही  था  ,  विलासिता  के  कारण   मुचकुंद  की  शक्ति  कम  हो  गई  और  असुरों  ने  उन्हें   बंदी  बनाकर  धरती  पर  पटक  दिया  l  ब्रह्माजी  ने  उन्हें  समझाया  कि ---- संयमी  और  पराक्रमी  होने  के  साथ   निरहंकारी  भी  होना  चाहिए  l  संयम  से  ही  स्वर्ग  जीते  जाते  हैं  l