पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- ' ख़ुशी दृष्टिकोण है , विचारणा की शक्ति है जो हमें प्रसन्नता देती है l हमारी नाभि में खुशी रूपी कस्तूरी छिपी पड़ी है l ढूंढते हम चारों ओर हैं l हर दिशा से वह आती लगती है पर होती अंदर है l '
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' आज आदमी खुशी के लिए तरस रहा है , वह ख़ुशी ढूंढने के लिए सिनेमा , क्लब , रेस्टॉरेन्ट , कैबरे डांस सब जगह जाता है पर ख़ुशी उसे कहीं नहीं मिलती l वही व्यक्ति ज्ञानवान होता है जिसे ख़ुशी तलाशना और बांटना आता है l जीवन का आनंद सदैव भीतर से आता है l यदि हमारे सोचने का तरीका सही हो तो बाहर जो भी क्रियाकलाप चल रहे हों , उन सभी में हमको ख़ुशी ही खुशी बिखरी हुई दिखाई पड़ेगी l '
दृष्टिकोण विकसित होते ही ऐसा आनंद आता है कि जिसको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता l --- दाराशिकोह मस्ती में डूबते जा रहे थे l जेबुन्निसा ने पूछा --- ' अब्बाजान ! आपको क्या हुआ है आज ? आप तो पहले कभी शराब नहीं पीते थे l फिर यह मस्ती कैसी ? '
दाराशिकोह बोले ---- " बेटी ! आज मैं हिन्दुओं के उपनिषद पढ़ कर आया हूँ l जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे हैं l जीवन का असली आनंद उनमे भरा पड़ा है l बस , यह मस्ती उसी की है l "
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' आज आदमी खुशी के लिए तरस रहा है , वह ख़ुशी ढूंढने के लिए सिनेमा , क्लब , रेस्टॉरेन्ट , कैबरे डांस सब जगह जाता है पर ख़ुशी उसे कहीं नहीं मिलती l वही व्यक्ति ज्ञानवान होता है जिसे ख़ुशी तलाशना और बांटना आता है l जीवन का आनंद सदैव भीतर से आता है l यदि हमारे सोचने का तरीका सही हो तो बाहर जो भी क्रियाकलाप चल रहे हों , उन सभी में हमको ख़ुशी ही खुशी बिखरी हुई दिखाई पड़ेगी l '
दृष्टिकोण विकसित होते ही ऐसा आनंद आता है कि जिसको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता l --- दाराशिकोह मस्ती में डूबते जा रहे थे l जेबुन्निसा ने पूछा --- ' अब्बाजान ! आपको क्या हुआ है आज ? आप तो पहले कभी शराब नहीं पीते थे l फिर यह मस्ती कैसी ? '
दाराशिकोह बोले ---- " बेटी ! आज मैं हिन्दुओं के उपनिषद पढ़ कर आया हूँ l जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे हैं l जीवन का असली आनंद उनमे भरा पड़ा है l बस , यह मस्ती उसी की है l "