राजा जनक की शोभा यात्रा निकल रही थी , उस अवधि में राज कर्मचारी सारा रास्ता पथिकों से शून्य बनाने में लगे थे l अष्टावक्र को हटाया गया तो उन्होंने हटने से इनकार कर दिया और कहा प्रजाजनों के आवश्यक कार्यों को रोककर अपनी सुविधा का प्रबंध करना राजा के लिए उचित नहीं है l यदि राजा अनीति करे तो विवेकवानों का कर्तव्य है कि वे उन्हें रोके और समझावें l आप राजा तक मेरा संदेश पहुंचाएं और कहें कि अष्टावक्र ने अनुपयुक्त आदेश को मानने से इनकार कर दिया l वे हटेंगे नहीं राज - पथ पर ही चलेंगे l
राज्य अधिकारियों ने अष्टावक्र को बंदी बना लिया और राजा के पास पहुंचे l राजा जनक ने सारा किस्सा सुना तो वे बड़े प्रभावित हुए और कहा ---" इतने तेजस्वी और विवेकवान लोग जहाँ मौजूद हैं जो राजा को भी ताड़ना कर सकें , तो वह देश धन्य है l नीति और न्याय के पक्ष में आवाज उठाने वाले सत्पुरुषों के द्वारा ही जान - मानस की उत्कृष्टता स्थिर रह सकती है l राजा जनक ने अष्टावक्र से माफी मांगी और कहा ---- " मूर्खतापूर्ण आज्ञा चाहे राजा की ही क्यों न हो तिरस्कार के योग्य है l आपकी निर्भीकता ने हमें अपनी गलती समझने और सुधारने का अवसर दिया l "
राज्य अधिकारियों ने अष्टावक्र को बंदी बना लिया और राजा के पास पहुंचे l राजा जनक ने सारा किस्सा सुना तो वे बड़े प्रभावित हुए और कहा ---" इतने तेजस्वी और विवेकवान लोग जहाँ मौजूद हैं जो राजा को भी ताड़ना कर सकें , तो वह देश धन्य है l नीति और न्याय के पक्ष में आवाज उठाने वाले सत्पुरुषों के द्वारा ही जान - मानस की उत्कृष्टता स्थिर रह सकती है l राजा जनक ने अष्टावक्र से माफी मांगी और कहा ---- " मूर्खतापूर्ण आज्ञा चाहे राजा की ही क्यों न हो तिरस्कार के योग्य है l आपकी निर्भीकता ने हमें अपनी गलती समझने और सुधारने का अवसर दिया l "