11 June 2020

WISDOM ---

 राजा  जनक  की  शोभा  यात्रा  निकल  रही  थी  ,  उस  अवधि  में  राज  कर्मचारी  सारा  रास्ता  पथिकों  से  शून्य  बनाने  में  लगे  थे  l  अष्टावक्र  को  हटाया  गया  तो  उन्होंने  हटने  से  इनकार   कर  दिया   और  कहा  प्रजाजनों  के  आवश्यक  कार्यों   को  रोककर  अपनी  सुविधा  का  प्रबंध  करना  राजा  के  लिए  उचित  नहीं  है  l   यदि  राजा  अनीति  करे  तो  विवेकवानों  का  कर्तव्य  है   कि   वे  उन्हें  रोके  और  समझावें  l   आप  राजा  तक  मेरा  संदेश   पहुंचाएं   और  कहें  कि  अष्टावक्र  ने  अनुपयुक्त  आदेश  को  मानने  से  इनकार   कर  दिया  l   वे  हटेंगे  नहीं  राज - पथ  पर  ही  चलेंगे  l
राज्य अधिकारियों   ने  अष्टावक्र  को  बंदी  बना  लिया   और  राजा  के  पास  पहुंचे  l  राजा  जनक  ने  सारा  किस्सा  सुना  तो  वे  बड़े  प्रभावित  हुए   और  कहा ---" इतने  तेजस्वी  और  विवेकवान  लोग  जहाँ  मौजूद  हैं   जो  राजा  को  भी  ताड़ना   कर  सकें  ,  तो  वह  देश  धन्य  है  l   नीति   और  न्याय  के  पक्ष  में  आवाज  उठाने  वाले   सत्पुरुषों  के  द्वारा  ही   जान - मानस  की  उत्कृष्टता  स्थिर  रह  सकती  है  l   राजा  जनक  ने  अष्टावक्र  से  माफी   मांगी   और  कहा ---- " मूर्खतापूर्ण  आज्ञा  चाहे  राजा  की  ही  क्यों  न  हो   तिरस्कार  के  योग्य  है  l   आपकी  निर्भीकता  ने  हमें  अपनी  गलती  समझने  और  सुधारने  का  अवसर  दिया  l  "