30 May 2021

WISDOM -------

   कहते  हैं --- ' भगवान  के  घर  देर  है  ,  अंधेर  नहीं  l "  एक  घटना  है  -----  आंध्र  प्रदेश  के  दो  व्यापारी  थे  , कैलाश    और  रमेश    l  दोनों  ने  साझे  में    व्यापार    शुरू  किया   l  दोनों  में  घनिष्ठता  थी  ,  धीरे - धीरे   व्यापार  में  बहुत  मुनाफा  होने  लगा   l   एक  बार  इतना  लाभ  हुआ  कि  उन्हें   80  हजार  का  चैक  कैश  कराने  बम्बई  जाना  पड़ा   l  प्रत्येक  को  चालीस  हजार  मिलते   l   इतनी  बड़ी  धनराशि  देखकर   रमेश  को  लालच  आ  गया  ,  लोभ  - लालच  के  कारण  उसकी  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  गई   और  उसने   चालाकी  से  भोजन  में  विष  देकर  कैलाश  को  मार  दिया  और  उसकी  लाश  समुद्र  में  फिंकवा  दी   और  अस्सी  हजार  रूपये  लेकर  घर  वापस  आ  गया  l   रमेश  ने  अपने  पिता  को  सब  बात    बता   दी   और  अपने  पिता   को   मात्र  चार  हजार  रूपये  देकर  कैलाश  के  पिता   के  पास  भेजा  कि  यह  कैलाश  के  हिस्से  की  राशि  है   और  यह  कहलवाया  कि  दोनों  समुद्र  में  नहाने  गए  थे  तो  कैलाश   दुर्भाग्यवश  समुद्र  में  बह  गया   l   कैलाश   के  पिता  को  व्यापार  का  इतना  ज्ञान  नहीं  था   इसलिए  चार  हजार  रूपये  में  ही  उसको  संतोष  हुआ   और  उसने  रमेश  की  इस  ईमानदारी  के  लिए   उसे  बहुत  आशीर्वाद  दिया   l समय  बीतता  गया  ,  रमेश  का    व्यापार  खूब  चल  निकला  ,  उसका  विवाह  हुआ     l  घर  में   खुशियां  थी , सम्पन्नता  थी   l  पुत्र  का  जन्म  हुआ  ,  सबका  लाडला  था  ,  उसका  नाम  रखा ' विजय  '  l    अब  वह  लगभग  सोलह  वर्ष  का  हो  गया  l   एक  शाम  विजय  के  सिर  में  भयंकर  दर्द  हुआ  l l रमेश  ने  उसे  बड़े - से  बड़े    डॉक्टर   को  दिखाया  ,  किसी  दवा  से  कोई  फायदा  नहीं  हुआ   l  पुत्र  का  कष्ट  देखकर  माता - पिता  दोनों  बहुत  दुःखी   थे   l   रमेश   अपने  पुत्र  विजय  को  इलाज  कराने  स्विट्जरलैंड    ले  गया    किन्तु  कोई  फायदा  नहीं  हुआ  ,  उसकी  हालत  और  चिंताजनक  हो  गई   l   तब  विजय  ने  अपने  पिता  से  कहा    कि  ---- '   पिताजी  आप  मुझे   अपने  देश  ले  चलिए  अब   मेरे  ठीक   होने  की  आशा  नहीं  है  l  '  पुत्र  के  आग्रह  पर  वे  उसे  वापस  ले  आये   l   एक  शाम  विजय  लेटा   था  ,    उसकी  माँ  और  पिता  रमेश   दोनों  उसी   के    पास  बैठे  थे  ,  उसी  समय  विजय  को  हँसी   आ  गई   l   उसकी  हँसी   देखकर   पिता  ने  चकित  होकर  पूछा  --- ' बेटा  !  इस  समय  तुम्हे  हँसी    क्यों  आई   ?  "    विजय  बोला ---- "  इसलिए  कि   आपने  मुझे  पहचाना  नहीं   l    पिता  बोला  --- कैसी  बात  करते  हो  बेटा  ,  तू  मेरा   बेटा  है  ,  मैं   अच्छी  तरह  पहचानता  हूँ   l '   विजय  ने  कहा  ---  अच्छी  तरह  पहचानों  और   फिर  हँस    दिया   l    पिता  ने  उसे   खूब  अच्छी  तरह  देखा    तो    अवाक    रह   गया   कि    अरे  !  यह  तो  वही   चेहरा  है    जो  कैलाश  को  विष  खिलाने    पर   उसकी    लाश  का  था    l   रमेश  घबड़ा  गया   तब  विजय  ने  कहना  शुरू  किया  --- मैं  वही  कैलाश  हूँ   जिसके  साथ  तुमने  विश्वासघात  किया    l   मेरे  हिस्से  के  चालीस  हजार  में  से  मात्र  चार  हजार  ही  तुमने  मेरे  पिता  को  दिए  थे  ,  शेष  रकम  तुम  हजम  कर  गए   l    उन्ही  रुपयों  को  लेने  के  लिए  मैंने  तुम्हारे  यहाँ  जन्म  लिया  l   मेरे  पालन - पोषण   और  बीमारी  में   आपने  जितना  खर्च  किया  वह  सब  मेरा  कर्ज    अदा  हो  गया   अब  केवल  पांच   सौ   रूपये      शेष  रहे    वो  दाह  संस्कार   में  खर्च  कर  देना   l   इतना  कहकर  विजय  चिरनिद्रा  में  सो  गया     यह  सब  सुन  कर    रमेश  को  इस  सत्य  का  ज्ञान  हुआ  कि   कर्म -फल   से  कोई  नहीं  बचा  है  ,  ईश्वर  न्याय  करते  हैं  ,  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है   l