शिष्य ने गुरु से पूछा ---- ' मनुष्य एक बुद्धिमान प्राणी है फिर वह स्वाभिमान से क्यों नहीं जीवन व्यतीत करता ? " गुरु ने कहा ---- ' लोभ , लालच , कामना , वासना , धन और पद की अति महत्वाकांक्षा ये मनुष्य की कमजोरियाँ हैं , केवल स्वयं के ईमानदार प्रयास से इनका पूरा होना संभव नहीं है l ये वो खाई है जिसे पाटना संभव नहीं है लेकिन फिर भी जो इन्हें पूरा करने में सहयोग देने का लालच देता है , व्यक्ति अपना स्वाभिमान खो कर उसी के इशारों पर चलने लगता है l अति की इन महत्वाकांक्षा को पूरा करने में भौगोलिक सीमा भी बाधक नहीं होती , हर ताकतवर अपने से कमजोर को लालच देता है और दोनों के स्वार्थ पूरे होते हैं l इसमें मानवीय मूल्यों की उपेक्षा होती है इस कारण समाज का पतन होने लगता है l
17 March 2021
WISDOM ------
विक्रमादित्य ने चौथेपन में संन्यास लिया और वे अवधूत जीवन जीने लगे l उनके स्थान पर जो भी राजा बैठता उसे भयंकर ब्रह्मराक्षस रात्रि के समय मार डालता l इस प्रकार कितने ही राजाओं की मृत्यु हो गई l इसलिए कहीं से विक्रमादित्य को खोज निकालने और उनसे इस समस्या का समाधान कराने का निश्चय किया गया l खोजने पर वे एक स्थान पर मिल गए l सारी स्थिति समझाई गई और गुत्थी सुलझा देने के लिए सहमत कर लिया गया l विक्रमादित्य ने अपनी दिव्यदृष्टि से ब्रह्मराक्षस की करतूत समझ ली l उन्होंने शयनकक्ष के बाहर इतने पकवान - मिष्ठान रखवा दिए कि उन्हें खाकर उसका पेट भर गया l फिर भी वह राजा को मारने शयनकक्ष में आ पहुंचा l विक्रमादित्य बड़े बुद्धिमान थे l उन्होंने ब्रह्मराक्षस को सम्मानपूर्वक बिठाया और वार्तालाप में लगाया l उससे उसकी शक्तियां और सिद्धियां पूछीं l राजा ने उसकी भूख शांत करने का अधिक उपयुक्त प्रबंध करा देने का भी आश्वासन दिया l साथ ही मित्रता की शर्त के रूप में यह वर माँगा कि उनकी आयु बता दे l ब्रह्मराक्षस ने 100 वर्ष बताई l राजा ने कहा --- इनमे से आप दस घटा या बढ़ा सकते हैं ? " ब्रह्मराक्षस ने मना कर दिया और कहा --- यह कार्य विधाता का है l विक्रमादित्य तलवार निकाल कर खड़े हो गए और कहा जब आयु निर्धारित है तब तुम मुझे कैसे मार सकते हो ? निर्भय राजा के सामने राक्षस सहम गया और वहां से उलटे पैर भाग गया l इसके बाद उस राज्य में ही प्रवेश का साहस उसने नहीं किया l