30 July 2018

WISDOM ----------

   सम्राट  पुष्यमित्र  का  अश्वमेध  सानंद  संपन्न  हुआ   और  दूसरी  रात  अतिथियों  की   विदाई   के  उपलक्ष्य  में   नृत्य - उत्सव  रखा  गया  l  यज्ञ  के  ब्रह्मा  महर्षि  पतंजलि    उस  उत्सव  में  सम्मिलित  हुए  l   महर्षि  के  शिष्य  चैत्र   को   उस  आयोजन  में  महर्षि  की  उपस्थिति  अखरी   l  उस  समय  तो  उसने  कुछ  नहीं  कहा  ,  पर  एक  दिन  जब  महर्षि  योगदर्शन  पढ़ा  रहे  थे  ,  तो  चैत्र  ने  पूछा --- " गुरुवार  !  क्या  नृत्य - गीत  के  रस - रंग   चितवृतियों   के  निरोध  में  सहायक  होते  हैं    l  "
    महर्षि  ने  शिष्य  का  अभिप्राय  समझा   l  उन्होंने  कहा --- सौम्य    !  आत्मा  का  स्वरुप  रसमय  है  l  रस  में  उसे  आनंद  मिलता  है  l  वह  रस  विकृत  न  होने  पाए   और  अपने  शुद्ध  स्वरुप  में  बना  रहे  ,  इसी  सावधानी  का  नाम  संयम  है   l  विकार  की    आशंका   से     रस  का  परित्याग   कर  देना  उचित  नहीं  है  l  क्या  कोई  किसान  पशुओं  द्वारा  खेत  चरे  जाने  के  भय  से   कृषि  करना  छोड़  देता  है   ?  यह  तो  संयम  नहीं  पलायन  है   l   रस रहित  जीवन  बनाकर  किया  गया   संयम  प्रयत्न  ऐसा  ही  है  जैसे   जल  को  तरलता   और  अग्नि  को  ऊष्मा  से  वंचित  करना  l  "

WISDOM ----- रुग्णता ( रोग ) असंयम की प्रतिक्रिया भर है

   हकीम  लुकमान  कहते  हैं --- कि  मनुष्य  समय  से  पहले  मरने  और  गढ़ने   के   लिए   अपनी  कब्र  अपनी  जीभ  से  स्वयं  ही  खोदता  है   l  इसका  तात्पर्य  यह  है  कि चटोरेपन  के  वशीभूत   जिह्वा  अनुपयोगी  पदार्थों  को   अनावश्यक  मात्रा   में  उदरस्थ   करती   है    और  जीवन - मरण  का संकट  उत्पन्न  करती  है  l  
  यदि   असंयम  पर ----- वासना  और  लिप्सा  पर   नियंत्रण  स्थापित  किया  जा  सके   और  सुसंयत  जीवनक्रम  अपनाकर   उस  पर  आरूढ़  रहा  जा  सके   तो  रुग्णता  की  जड़ें    अपने  आप  सूखती  चली  जाएँगी   और  बिना  चिकित्सा  और  उपचार    के  भी  निरोग   बना   जा   सकेगा   l 

28 July 2018

WISDOM ------ व्यक्ति चाहे कितना भी धनी हो , लेकिन ख़ुशी , शांति और प्रेम के लिए उसे अलग से प्रयास करने पड़ेंगे

 धन  कमाना  व्यक्ति  की  नैसर्गिक  आवश्यकताओं  में  से  एक  है  ,  लेकिन  धन  की  सार्थकता  तभी  है  ,  जब  उसका  इस्तेमाल  करने  वाले  के  पास  सद्बुद्धि  और  सदभावनाएँ  हों ,  अन्यथा   यही  पैसा कई  तरह  की  बुराइयों  को   जन्म  देकर  पतन  की  राह  पर  भी  ले  आता  है  l 
   अमेरिका  के  प्रसिद्द  उद्दोगपति  एंड्रयु  कारनेगी  ने   बहुत  धन  कमाने  के  बाद   अपना  सारा  धन  गरीबों  के  लिए  पुस्तकालय  बनाने  में  खर्च  कर  दिया   l  उन्होंने  एक  साक्षात्कार  में  कहा  था  कई  उन्हें  जीवन  में  सबसे  ज्यादा  संतोष  दुनिया  का  सर्वाधिक  अमीर  बनने  में  नहीं  ,  बल्कि  गरीबों  के  लिए   पुस्तकालय  बनाने  से  मिला  l  

27 July 2018

WISDOM ---- क्रोध से बचें

  ' क्रोध  एक  ऐसा  विष  है   जो  मनुष्य  के  चिंतन  और  व्यक्तित्व  को  विषाक्तता  में  बदल  देता  है  l  क्रोध  एक  ऐसे  विकार  के  रूप  में  है  , जो  कई  तरह  की  बीमारियों  को  जन्म  देता  है  l  चिकित्सकों  के  अनुसार  कैंसर , उच्च  रक्त चाप , सिरदर्द   और  मानसिक  रोगों  की   एक  मुख्य  वजह  क्रोध  ही  है  l   यह  एक  ऐसा  मनोविकार  है  जो  बुद्धि , विवेक  और  भावना  सबको  नष्ट  कर  देता  है   l
   क्रोध  का  सबसे  पहला  प्रहार   विवेक  पर  और  दूसरा   प्रहार  होश  पर  होता  है   l  इसलिए  कठिन  कार्यों  ,  संकट  के   समय   व  अपमान  होने  पर  धैर्य  धारण  की  सलाह  दी  जाती  है  l  इसके  अलावा  शारीरिक  और  मानसिक  उर्जा  का   जितना  क्षय  क्रोध  से  होता  है    उतना  किसी  दूसरी  वजह  से  नहीं  होता  l
 यदि  क्रोध  पर  नियंत्रण  पाना  है  तो  हमें  अपनी  समझ  को  इतना  परिपक्व  कर  लेना  चाहिए  की  वह  क्रोध  के  आवेश  में  न  आ  सके   l  

26 July 2018

WISDOM ----- गुरु बिन ज्ञान नहीं

' हम  सबके  भीतर   महानतम  , श्रेष्ठतम  बनने  की  संभावनाएं  हैं   l  कभी - कभी  जीवन  को  गढ़ने  वाला   गुरु ,  मार्गदर्शक  मिल  जाता  है   तो  हम  क्या  से  क्या  बन  जाते  हैं   l  
       एक  मंदिर   बन  रहा  था  l  देश  भर  से  आये  शिल्पी  पत्थरों    पर   छैनी  से  काम  कर  रहे  थे  l  एक  पत्थर  कारीगरों  के  मुखिया  ने  बेकार  समझकर   फेंक  दिया  l  रास्ते  में  पड़ा  वह  पत्थर   मजदूर - राहगीरों  की   ठोकरें  खाता,  इधर - उधर  होता  व  उदास मन  से  देखता  रहता  कि  और  तो   सँवरकर   मूर्ति  का  रूप  लेकर   निखर  रहे  हैं  l   मैं  अभागा  पैरों  के  नीचे  दबाया  जा  रहा  हूँ   l 
  एक  दिन  एक  राजकलाकार  उधर  से  गुजरा  l उसने  वह  बेकार  पड़ा  हुआ  पत्थर  उठाया  ,  छैनी  चलानी  आरम्भ  की   व  देखते - देखते   कुछ  ही  घंटों  में  एक  सुन्दर  सी  मूर्ति  तराशकर  खड़ी  कर  दी   l  सबने  उसकी  प्रशंसा  की   कि  वह  बड़ा  प्रतिभाशाली  है   l  एक  राह  के  रोड़े  को  रूपांतरित  कर  दिया  l
 कलाकार  बोला  ---- " मैं  तो  औरों  की  तरह  ही  हूँ  l  जो  पत्थर  में  से प्रकट  किया   है ,  वह  था  पत्थर  के  अन्दर  ही   l  मैंने  तो  मात्र  पहचाना  व  उकेरा  है  l  " 
  हम  सबके  भीतर  भी  श्रेष्ठतम  बनने  की  संभावनाएं   हैं   l  जब  जीवन  को  गढ़ने  वाला  गुरु ,  मार्गदर्शक  मिल  जाता  है    तो  हम  क्या  से  क्या  बन  जाते  हैं   l   

25 July 2018

WISDOM ---- किन परिस्थितियों में कौनसा कार्य जरुरी है , इसे विवेक का आश्रय लेकर समझा जाये

   जो  लोग  चापलूसी   से  आगे  बढ़ना चाहते  हैं   उनकी  स्वयं  की   विवेक   बुद्धि   शून्य  हो  जाती  है  और  वे  परिस्थितियों  के  अनुसार  सही  निर्णय  नहीं  ले  पाते l  लेकिन  जो   सच्चाई  के  रास्ते  पर  चलते  हैं ,  उनका  विवेक  जागृत  होता  है  , वे  परिस्थितियों  के  अनुसार  सही  निर्णय  लेते  हैं  l 
  एक  कथा  है ----- एक  संत  अपने  किसान  भक्त  की  प्रार्थना  स्वीकार  कर  के   उसके  गाँव  पहुंचे  l  किसान  ने  उनके  लिए  प्रवचन  का  आयोजन  किया  था  l  अचानक  किसान  का  बैल  बीमार  हो  गया  l  किसान  जानता  था  कि  यदि  बैल  को  समय  पर  उपचार  न  मिला  तो  वह  मर  जायेगा  ,  इसलिए  वह  प्रवचन  में  न  जाकर   बैल  को  चिकित्सक  को   दिखाने  ले  गया  l  गाँव  के  कुछ  लोगों  ने  संत  से  उसकी  शिकायत  की  और  बोले  --- महाराज  !  यह  किसान  कितना  स्वार्थी  है   l  आपके  प्रवचन  का  आयोजन  कर  के  खुद  ही  यहाँ  नहीं  आया  l  "
 संत  बोले ---- "  किसान  ने  प्रवचन  में  न  आकर  एक  पीड़ित   की  सेवा  को  महत्व  देकर   यह  सिद्ध  कर  दिया  कि  वह  मेरी   शिक्षाएं  ठीक  प्रकार  से  समझ  गया  है   l  मेरे  सारे  प्रवचनों  का  सार  यही  है  कि  दुःखी - पीड़ितों  की  सहायता  की  जाये   और  विवेक  का  आश्रय  लेकर   यह  समझा  जाये कि  किन  परिस्थितियों  में  कौनसा  कार्य  जरुरी  है   l  " 

24 July 2018

WISDOM ---- हमें जीवन में विनम्रता को स्थान देना चाहिए , अहंकार को नहीं

   हमारे  धर्म ग्रंथों  का  एक  मूल मन्त्र  है  ----- जो  नम्र  होकर  झुकते  हैं  ,  वही  ऊपर   उठते  हैं  l   भारतीय  संस्कृति  में  इसी  विनम्रता  को  व्यक्त  करने  के  लिए   प्रणाम ,  अभिवादन  और  बड़ों  के  समक्ष  झुककर   आशीर्वाद  लेने  की  प्रथा  है   l  
   विनम्रता  न  केवल  हमारे    व्यक्तित्व  में  निखार  लाती  है  ,  बल्कि  कई बार  सफलता  का  कारण  भी  बनती  है   l 
महाभारत  के  युद्ध  के  बाद  धर्मराज   युधिष्ठिर   भीष्म  पितामह  के  पास  गए  ,  वे  बाणों  की  शैया  पर  थे   l  युधिष्ठिर  ने  विनम्रता पूर्वक   उनसे  धर्मोपदेश  देने  का  निवेदन  किया   l   भीष्म  पितामह  ने  कहा -----
    नदी  समुद्र  तक  पहुँचती  है  तो  अपने  साथ  पानी  के  अतिरिक्त  बड़े - बड़े  लम्बे   पेड़  साथ  ले  आती  है  l   एक  दिन  समुद्र  ने  नदी  से  पूछा   कि  तुम  पेड़ों  को  तो   अपने  प्रवाह  में  ले  आती  हो   परन्तु  कोमल  बेलों  और  नाजुक  पौधों  को   क्यों  नहीं  लाती  हो  ? 
  नदी  बोली  कि  जब - जब  पानी  का  बहाव  बढ़ता  है   तब  बेलें  झुक  जाती  हैं   और  झुककर  पानी  को  रास्ता  दे  देती  हैं   , इसलिए  वे  बच  जाती  हैं   l   जबकि  पेड़  तानकर  खड़े  रहते  हैं   इसलिए  अपना   अस्तित्व  खो  बैठते  हैं   l
भीष्म  ने  कहा   युधिष्ठिर  ठीक  वैसे  ही  ,  जो  जीवन  में  विनम्र  रहते  हैं  ,  उनका  अस्तित्व  कभी  समाप्त नहीं  होता   l  

23 July 2018

स्वाधीनता के मंत्रदाता ------ लोकमान्य तिलक

  लोकमान्य  तिलक  ने   हिन्दुओं  में  उत्साह  और  जागृति  उत्पन्न  करने  के  लिए  ' गणपति  उत्सव '  और  'शिवाजी  जयंती '  दो  बड़े  त्यौहार   समारोहपूर्वक  संगठित  रूप  से  मनाने  का  प्रचलन  किया  l  इससे  अंग्रेज  अधिकारियों  में  भय  उत्पन्न  हो  गया  और  वे  इस  जागृति  को   दबाने  का  प्रयास  करने  लगे  l   इसी  समय  पूना  और  उसके  बाद  बम्बई  में  हिन्दू - मुस्लिम  दंगे  हो  गए   l  अंग्रेज  अधिकारियों  ने  इसका  दोष   लोकमान्य  तिलक  द्वारा  प्रचारित  ' शिवाजी  जयंती '  उत्सव  पर  डालना  चाहा  l 
  तिलकजी  ने  इस  आक्षेप  को  असत्य   बताते  हुए  अपने  पत्र  में  लिखा ----- " मैं  समझता  हूँ   इन  सब  झगड़ों  का   कारण  सरकार  ही  है   l  उसकी  पक्षपातपूर्ण  नीति  के  कारण  ही  दंगे  होते  हैं  l  देश  में  इस  समय  हिन्दू - मुस्लिम  द्वेष  के  बीज  बोये  जा  रहे  हैं   l  लार्ड  डफरिन  की  भेद  नीति  ही  सब  दंगों  का  मूल  कारण  है   l " 
  तिलकजी  ने   हिन्दुओं  को  कभी  भी   मुसलमानों  के  प्रति  शत्रु - भाव  रखने  की  प्रेरणा  नहीं  दी   l  उन्होंने  हिन्दुओं   को  समझाया  कि  यदि  कोई  अमानुषिक  करती  करने  पर   तुल  गया  है   तो  भी  तुम्हे  तत्काल  रक्तपात   और  अनुचित  उपायों  का  अवलंबन  नहीं  करना  चाहिए  ,  बदले  की  भावना  से  अनुचित  कार्य  नहीं  करना  चाहिए  l 
 लोकमान्य  भारतीय  स्वाधीनता  के  सच्चे  उपासक  थे   और  वे  किसी  भारतीय  को  धर्म  के  आधार  पर  शत्रु  नहीं  मानते  थे   l   यही  कारण  था  कि  '  अलीबंधु '  जैसे  प्रमुख  मुसलमान  नेताओं  ने  कहा   कि--- " राजनीति  में  तिलक    हमारे  गुरु  हैं   l  "  इसके  अतिरिक्त  ' आफताय '  के  संपादक   सैयद  तैदर  रजा  और  मौलाना  हसरत  मोहानी  जैसे  धार्मिक  मुसलमान  विद्वान्   उनके  अनुयायी  और  भक्त  थे   l 
  लोकमान्य  तिलक  ने  सरकारी  अधिकारियों  पर  दोषारोपण  करते  हुए   ' केसरी '  में  कई  लेख  लिखे  l  इस  पर  सरकार  ने  उन  पर  कार्यवाही  कर  18  महीने  की  कठोर  सजा  दी  l  जेल  में  उनके  साथ  बुरा  व्यवहार  किया  गया   l  जब  यह  समाचार  चारों  तरफ  फैला  तो  भारतीय  जनता  ही  नहीं  ,  इंग्लैंड  के  प्रसिद्ध  पुरुषों  ने  भी  इसकी  निंदा  की  l   मैक्समूलर, सर  विलियम  हंटर , दादाभाई  नौरोजी  आदि  प्रसिद्ध  विद्वानों  ने  सरकार  को  बताया  कि  तिलक  जैसे  महान  विद्वान्  के  साथ  ऐसा  व्यवहार  नहीं  किया जाना  चाहिए   l  इन  सबके  सम्मिलित  प्रयत्न  से  तिलकजी  को  एक  वर्ष  बाद  रिहा  कर  दिया  गया  l  जेल  से  छूटने  पर  जनता  ने  उनका  जैसा  भव्य  स्वागत  किया  उसकी  मिसाल  उस  समय  तक  देखने  में  नहीं  आई  थी   l  

वीर - शिरोमणि ---- चंद्रशेखर आजाद

 ' चरित्र  मनुष्य  की  श्रेष्ठता  का  बहुत  बड़ा  प्रमाण  है  ,  सच्चाई , ईमानदारी ,  नैतिकता  आदि  भी  चरित्र  के  ही  अंग  हैं  l '  उनके  चरित्र  लेखक  वैशम्पायन  ने  लिखा  है  --- '  आजाद  के  जीवन  का  सबसे  बड़ा  संबल  था  उनका  चरित्र  l  इसको  उन्होंने  सदा   महत्व   दिया  l  और  इस  धारणा  पर  जीवन  के  अंत  तक  द्रढ़  रहे   l  '   एक  घटना  का  जिक्र  करते  हुए  उन्होंने  लिखा  है --- ' जिन  दिनों  आजाद   रेलवे  लाइन  की  गुमटी  पर  रहते   थे  ,  उनके  सामने  भीषण  आर्थिक  संकट  था  ,  कई  दिन  केवल  एक  समय  चना  खाकर  गुजारा  कर  लेते  थे   l  एक  दिन  उनके  पास  केवल  एक  आना  था  ,  दूसरे  दिन  की  चिंता  थी   लेकिन  आज  की  भूख  की  समस्या  हल  करने  के  लिए  एक  आने  के  चने  ले  आये   l  खाते - खाते  जब  आखिरी  मुट्ठी  भरी  तो  देखा  उसमे  इकन्नी  थी  l  उन्हें  ध्यान  आया   कि  यह  उस  गरीब  चने  वाले  की  गाढ़ी  कमाई  का  हिस्सा  है  इस  पर  मेरा  कोई  अधिकार  नहीं  है  l  तुरंत  गए  और  दुकानदार  को  यह  कहकर  इकन्नी  लौटा  दी  कि  तुमने  मुझे  जो  चने  दिए  उसमे  यह  इकन्नी  आ  गई  थी  l    कल  की  भूख  प्रश्न चिन्ह  बनी   रही   l  '
  वैशम्पायन  ने  एक  और  घटना  का  उल्लेख  किया  है ---- '   एक  बार  आजाद  को  किसी  को  मारने  के  लिए  उनके  दल  के  लिए  बहुत  अधिक  धन  का  लालच  दिया  गया  ,  तब  आजाद  ने  उनको  स्पष्ट  शब्दों  में  समझाया   कि--- ' ऐसा  करना  अनुचित  है   l   देश  की  स्वतंत्रता  के  महान  लक्ष्य  को  सामने  रखकर   मजबूरी  में  किसी  को  मारना  और  बात  है   और  जानबूझ  कर  हत्या  करना  दूसरी  बात  है   l   हमारा  क्रांतिकारियों  का  दल  है , हत्यारों  का  नहीं  l  पास  में  पैसे  हों  या  न  हों  ,  हम  भूखे  रहकर   फांसी  पर  भले  ही  लटक  जाएँ  ,  पर  पैसे  के  लिए  ऐसा  घ्रणित  कार्य   नहीं  कर  सकते  l  यह  सब  हमारे  सिद्धांतों  के  प्रतिकूल  है   l '
 आजाद  मानवता  में   बड़ी   श्रद्धा  रखते  थे   और  अकारण  मानव - रक्त  बहाना  निंदनीय  समझते  थे  l  केवल    राष्ट्रोद्धार  के  महान  आदर्श  के  लिए  ही   वे  ऐसा  कोई  काम  करने  को  तैयार  होते  थे  l  

22 July 2018

WISDOM ----- भौतिक विकास तभी सार्थक है जब उसके साथ जीवन में सुख - शांति हो

 आज  व्यक्ति  के  जीवन  में  भौतिक  सुख - सुविधा   एवं  समृद्धि  के  नाम  पर  बहुत कुछ  है  ,  किन्तु नैतिक  मूल्यों   की  कसौटी  पर   स्थिति  दिवालियापन  की  है  l  
  शारीरिक  और  बौद्धिक  विकास  पर  तो   ध्यान  दिया  जा  रहा  है   किन्तु  भावनात्मक  एवं  मानसिक  विकास  उपेक्षित  है   l   मानवीय  मूल्यों  के  पतन  के  कारण  ही   आज  धरती  पर   युद्ध , बहशीपन ,  शोषण - उत्पीड़न  की   घटनाएँ  बढ़ी  हैं  l   मनुष्य  अभी  भी  अपनी  आदिम - अवस्था  से  बाहर  नहीं  निकला  है  l  विशेष  रूप  से  नारी  के  प्रति  जो  सोच  है ,  उसके  शोषण  और  उत्पीड़न  के  जो   तरीके  हैं   उसने  उसके  मानव  होने  पर  ही  प्रश्न  चिन्ह  लगा  दिया  है  l 
  ' लक्ष्मी '  का  अर्थ ---  केवल  धन-वैभव  नहीं  है   l  ' लक्ष्मी '  का  अर्थ  है --- धन - संपदा  के  साथ  सुख -समृद्धि  और  मानसिक  शांति  हो ,  सुकून  का  जीवन  हो  l   लेकिन   आज  पारिवारिक  हिंसा   है  ,   हर  व्यक्ति  तनाव  से  पीड़ित  है  ,  लाइलाज  बीमारियाँ  हैं  ,   ऐसा  क्यों  है   ?   ----
  एक  कथा  है -----   लक्ष्मी  जी  असुरों  का  वास  स्थान   सदैव  के  लिए  परित्याग  कर     देवताओं  के  आश्रम  में  आ   गईं  l   देवराज   ने   असुरों  के  पास  से  चले  आने  का  कारण  पूछा    तो    महालक्ष्मी  ने  कहा ----- " देवराज  !  जब  किसी  राष्ट्र  में   प्रजा  सदाचार  खो  देती  है   तो  वहां  की  भूमि ,  जल , अग्नि   कुछ  भी  मुझे  पसंद  नहीं   l  व्यक्ति  के  सदाचारी  मानस  में  ही   मैं  अटल  निवास  करती  हूँ   l  जहाँ  लोग  नीतिपूर्वक    रहते  है   और  परिश्रमपूर्वक  अपना  उद्दोग  करते  रहते  हैं  ,  उस  स्थान  को  मैं  कभी  नहीं   छोड़ती  ,  लेकिन  जहाँ  पर   आक्रमण , वैरभाव ,  हिंसा , क्रोध ,  प्रमाद  , शोषण , अत्याचार    आदि  बढ़  जाते  हैं  ,  उस  स्थान  को  छोड़कर  मैं  तत्काल  चली  जाती  हूँ   l   मैं  शुभ  कार्यों  से  उत्पन्न  होती  हूँ  ,  उद्दोग  से  बढ़ती  हूँ ,  और  संयम  से  स्थिर  रहती  हूँ   l  जहाँ  इन  गुणों  का  अभाव  होता  है   उस  स्थान  को  छोड़  जाती  हूँ   l  "    यही  है  मेरे  द्वारा  असुरों  का  निवास  छोड़ने  का  कारण  l   

21 July 2018

WISDOM -----

 एक  साधू  वर्तमान  शासन तंत्र  की  आलोचना  कर  रहे  थे  ,  तब  एक  तार्किक  ने  उनसे  पूछा  ---- "  कल  तो  आप  संगठन शक्ति   की  महत्ता  बता  रहे  थे  ,  आज  शासन  की  बुराई  l  शासन  भी  तो  एक  संगठन  ही  है  l  "  इस  पर  महात्मा  ने  एक  कहानी  सुनाई-----                                                                                                                                                                                         
   एक  वृक्ष  पर  उल्लू  बैठा  था  ,  उसी  पर  आकर  एक  हंस  भी  बैठ  गया   और  स्वाभाविक  रूप  से  बोला --- "  आज  सूर्य  प्रचंड  रूप  से  चमक  रहे  हैं  ,  इससे  गरमी  तीव्र  हो  गई  है  " उल्लू  ने  कहा --- सूर्य कहा  है        गर्मी  तो    अंधकार बढ़ने  से  होती  है  ,  जो  इस  समय  भी  है  l  "
उल्लू  की  आवाज  सुनकर  एक  बड़े  वट  वृक्ष  पर   बैठे  अनेक  उल्लू   वहां  आकर  हंस  को  मुर्ख   बनाने  लगे   और  सूर्य  के  अस्तित्व  को  स्वीकार  न  कर   हंस  पर  झपटे    l   हंस  यह  कहता  हुआ  उड़  गया  कि---   " यहाँ  तुम्हारा  बहुमत   है  l  बहुमत  में  समझदार  को   सत्य  के  प्रतिपादन  में  सफलता  मिलना  दुष्कर  ही  है   l "
तार्किक  संगठन  और  बहुमत   के  अंतर  को  समझकर  चुप   हो  गया  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   

20 July 2018

WISDOM ------

  संकल्प  शक्ति  के  अभाव  में  लोग  असफलता  का  दोष   भाग्य  पर  मढ़ते  हैं   और  अकर्मण्यता  की  चादर  ओढ़   जीवन  भर  को  सो  जाते  हैं   l  मनुष्य  का  कर्तव्य  है  कि  वह  अपने  जीवन  की  प्राथमिकतायें  तय  करे   ताकि  दिशाहीन  विचारों  को    संगठित  कर  संकल्प  का  रूप  दिया  जा  सके   एवं  उच्च  उद्देश्यों  को  पूरा  किया  जा  सके   l   भगवान  राम  के  संकल्प  बल  ने  समुद्र  को  राह  देने  पर  मजबूर  किया  l  दुबले - पतले  महात्मा  गाँधी   की  संकल्प  शक्ति   अंग्रेजों  की  विशाल  हुकूमत  को  नाकों  चने  चबवा  दिए   l 

19 July 2018

WISDOM ---- मूर्द्धन्यजनों की ईर्ष्या अन्यों की अपेक्षा अधिक घातक और व्यापक परिणाम प्रस्तुत करती है

  एक  बार  वैशाली  क्षेत्र  में  दुष्ट - दुराचारियों  का  आतंक  इतना  बढ़ा  कि  उस  प्रदेश  में  भले आदमियों  का  रहना  कठिन  हो   गया  l  लोग  घर  छोड़कर  अन्यत्र  सुरक्षित  स्थानों  के  लिए  पलायन  करने  लगे  l   इन  भागने  वालों  में  ब्राह्मण  समुदाय  का  भी  बड़ा  वर्ग  था   l  वैशाली  के  ब्राह्मणों  ने  महर्षि  गौतम  के  आश्रम  में  रहना  उचित  समझा  l  वे  पहुंचे ,  आश्रय  मिल  गया  l वहां  न  कोई   कष्ट  था , न  भय  l 
   एक  दिन  महर्षि  नारद  उधर  से  निकले  ,  कुछ  समय   महर्षि  गौतम  के  आश्रम  में  रुके  l  इस  समुदाय  के  संरक्षण  की  नयी  व्यवस्था  देखकर  वे  बहुत  प्रसन्न  हुए  और   महर्षि  गौतम  की  उदारता  की  बहुत  प्रशंसा  करने  लगे   l 
  नारदजी   द्वारा    महर्षि  गौतम   की  इतनी  प्रशंसा   ब्राह्मण  समुदाय  से  देखी    न  गई  l  वे  ईर्ष्या  की  आग  में  जलने  लगे  l   आपस  में  यह  चर्चा  करने  लगे  कि  हमने  ही  उन्हें  यह  यश  दिलाया ,  हम  लोगों  के  यहाँ  आकर  रहने  से  ही  गौतम  ने  इतना  यश  कमाया  ,  अब  हम  ही  अपना  पुरुषार्थ  दिखाकर   उन्हें  नीचा  दिखायेंगे  l  
  षड्यन्त्र  रचा  गया   l  रातोंरात  मृत  गाय   आश्रम  के  आंगन  मे  डाली  गई   l  कुहराम  मच  गया  l  यह  गौतम  ने   मारी  है  l  हत्यारा  है ,  पापी  है  ,इसका  भंडाफोड़  करेंगे   l 
  गौतम  योग  साधना  से  उठे   और  यह  कुतूहल  देखकर   अवाक्  रह  गए  ,  उन्होंने  इन  आगंतुकों  को  विदा  करने  का  निश्चय  किया  और  कहा ----  " आप  लोग  जहाँ  रहते  थे  वहीँ  चले  जाएँ  l  अपनी   ईर्ष्या  से  जिस  क्षेत्र  को  कलुषित  किया   था  ,  उसे  स्नेह - सौजन्य  के  सहारे  सुधारने  का  नए  सिरे  से  प्रयत्न  करें   l  "  समुदाय  ने  ऋषि  की  बात  मानी   और  कलुषित  क्षेत्र  पुन:  पवित्र  हो  गया   l   

18 July 2018

WISDOM ----- सार्थक मौन उसे कहते हैं जब मन में सद्चिन्तन होता रहे

   चुप  रहकर  मन  में   ईर्ष्या - द्वेष  का  बीज  बोते  रहने  को  मौन  नहीं  कहा  जाता  l   यह  तो  और  भी  खतरनाक   व  हानिकारक    सिद्ध  हो  सकता  है   l   मौन  के  साथ  श्रेष्ठ  चिंतन  और   ईश्वर  स्मरण  आवश्यक  है  तभी  मौन  की  सार्थकता  है   l    ऐसे  सार्थक  मौन  से  आत्मशक्ति     उत्पन्न   होती  है   l   मौन  रहकर  श्रेष्ठ  चिंतन  करने  से  आंतरिक    ऊर्जा    व्यर्थ  के  नकारात्मक  विचारों   में  नष्ट  नहीं  हो     पाती   l   प्रत्येक  श्रेष्ठ  और   महान  कार्य  की   सफलता   में    गंभीर  मौन  सहायक  रहा  है   l 
  अरुणाचलम  के  महर्षि  रमण  सदैव  मौन  रहते  थे   l  बिना  बोले  वह  हरेक  की   जिज्ञासा  को  शांत  करते  और हर  कोई  उनसे  अपनी  गंभीर  समस्या  का  समाधान  अनायास  पा  जाता  था  l 
  महात्मा  गाँधी  के  मौन  का  प्रभाव  विलक्षण  और  अद्भुत  था  l   अत:  सप्ताह  में  एक  निश्चित  दिन  कुछ  घंटे  मौन  अवश्य  रहना  चाहिए   l    

16 July 2018

WISDOM ----- मनुष्य जब तक स्वयं बदलना न चाहे , तब तक उसे कोई भी शक्ति बदलने में समर्थ नहीं हो सकती l

   मनुष्य  स्वयं  का   सबसे  बड़ा  और  बुरा  दुश्मन  है  l  इसने  काल  और  इतिहास से   कुछ  नहीं  सीखा   l  इसने  आदिम  पशुता  और   दुष्टता  को  अभी  भी  जीवन्त  बनाये  रखा l
  अपने  पिता  बिन्दुसार  से     सम्राट   अशोक  को   सुविस्तृत  राज्य  प्राप्त  हुआ  l  परन्तु  उसकी  तृष्णा  और  अहंकार  ने   उसे  चैन  नहीं  लेने  दिया   l  आस - पास  के  छोटे - छोटे  राज्यों  को  जीतकर   उसने  अपने  राज्य  में  मिला  लिया  l   अब    उसने  कलिंग  राज्य  पर  आक्रमण  किया   l  वहां  की  सेना  तथा  प्रजा  ने   अशोक  के  आक्रमण  का   पूरा  मुकाबला  किया   l  उसमे  प्राय:  सारी   आबादी  मृत्यु  के  मुख  में  चली  गई   l  अब  उस  देश  की  महिलाओं  ने  तलवार  उठाई   l  अशोक  इस  सेना  को  देखकर  चकित  रह  गया   l  वह  उस  देश  में  भ्रमण  के  लिए  गया  ,  तो  सर्वत्र  लाशें  ही  पटी  थीं   और  खून  की  धारा  बह  रही  थी   l  अशोक  का  मन  पाप  की  आग  से  जलने  लगा  l  उसने  बौद्ध  धर्म  की  दीक्षा  ली   और  जो  कुछ  राज्य  वैभव  था  ,  उस  सारे  धन  से   बौद्ध  धर्म  के  प्रसार   तथा  उपयोगी  धर्म  संसथान  बनवाये   l   अपने  पुत्र  और  पुत्री  को    धर्म  प्रचार  के  लिए  समर्पित  कर  दिया  l
 परिवर्तन  इसी  को  कहते  हैं  l  एक  क्रूर  और  आततायी  कहा  जाने  वाला   अशोक  बदला  ,  तो  प्रायश्चित  की  आग  में  तपकर   एक  संन्यासी   जैसा  हो  गया ,  सच्चे  अर्थों  में  प्रजापालक  सम्राट  हो  गया  l  

15 July 2018

WISDOM ----- चिंता नहीं विचार करें

 ' सारे  दिन  चिंता  के  बाद    भी   कुछ  हाथ  न   लगेगा   l  पर  जब  कभी  भी   समस्या  का  समाधान  हाथ  लगा  है  ,  वह  ठीक  ढंग  से  सोचने  और  करने  से  ही  लगा  है   l  समस्या  की  चिन्ता  न  कर  समाधान  खोजें  l  
    जेम्स  मिचनर  नामक  अमरीकी  नागरिक    द्वितीय  विश्व युद्ध     में    अमरीका  में    नौसैनिक  अधिकारी  था   l  एक  बार  सुरक्षा  की  द्रष्टि    वह  प्रशान्त   महासागर  में    मोटरबोट  में   घूम  रहा  था    कि रास्ता   भटक  कर  एक  बिलकुल  निर्जन  द्वीप  में    पहुँच  गया  l   बहुत  सोच विचारकर  उसने  निश्चय  किया   कि  क्यों    कुछ  लिखा  जाये  l  अपने  सैन्य   जीवन    में   उसने    जो  कुछ  देखा  ,  सुना  और  अनुभव  किया  था  ,  उसे  कहानियों  के   कथानक  के  रूप  में    अपनी  मोटरबोट  में   मौजूद   पोर्टेबल   टाइपराइटर  में   उतारना  आरम्भ   कर  दिया   l   बाद  में    यही  उसकी  प्रथम  पुस्तिका   " टेल्स   ऑफ  दि  साउथ   पैसिफिक "  के  नाम  से  प्रख्यात  हुईं   l  अपनी  पांडुलिपि  लेकर   वह  वापस  बाहर  आने   और  अपने  शहर  पहुँचने  में    सफल  हुआ   l  अपनी  इस  कृति  पर   उसे  पत्रकारिता   का  सर्वोच्च    पुलित्जर  पुरस्कार  मिला  ,  इसके  बाद  उसकी  लेखन  प्रतिभा  विकसित  होती  गई   l  

14 July 2018

WISDOM -----

 संसार  में  जितने  भी  प्रतिभाशाली  महापुरुष  हुए   हैं ,  अत्यंत  निर्धनता  की  स्थिति  में  रहते  हुए  भी  वे   धन  का  लालच , पद  का  प्रलोभन   और  उच्च  वर्ग  के  दबाव  के  सामने  झुके  नहीं  ,  जीवन  भर  उसका  साहस पूर्वक  सामना  करते  रहे    और  समाज  सेवा  के , पीड़ा  निवारण  के  कार्यों   को  करते  रहे   l 
                    अंग्रेज  शासक  चार्ल्स  द्वितीय   के  सांसदों  में    मार्वल  एक  ऐसा  प्रतिभाशाली  सदस्य  था   जिससे  निरंकुश  शासक  को   अपनी  सत्ता  छीन  जाने  का  सतत  भय  बना  रहता  था  l  जनता  उसके  विरुद्ध  थी   और   मार्वल  को  अपना  नेता  मानती  थी  l   राजा  ने  सभी  प्रमुख  व्यक्तियों  को   कामिनी - कांचन  का  प्रलोभन  देकर   अपने  पक्ष  में  कर  लिया   फिर  भी  मार्वल  को  वह  अपनी  मुट्ठी  में  न  ले  सका  l  चार्ल्स  के  लाखों  प्रयत्न  भी  उसे  उसके  पथ  से  डिगा  न सके  l    उसका  कोषाध्यक्ष  डेनवी   जब  एक  लाख  पौंड    लेकर    सांसद  के  पास  पहुंचा   तो  उसने  यह  कहते  हुए वापस कर  दिया  कि---- " मैं  यहाँ  उन  लोगों  की  सेवा   करने  आया  हूँ   जिन्होंने  मुझे  चुन कर  भेजा  है   l  अपनी  स्वार्थ पूर्ति  के  लिए  राजा    और  किसी  , मंत्री  को  चुन  ले  ,  मैं  उनमे  से  नहीं  हूँ   l "  
  मार्वल  की  सादगी  और  चरित्र  निष्ठा  आज  भी  लोगों  के  लिए  प्रेरणास्रोत  बनी  हुई  है  l   उसकी  समाधि  पर     अंकित   ये  शब्द   आज  भी  सार्थक  हैं  ----- " अच्छे  लोग  उससे  प्यार  करते  थे  ,  बुरे  लोग  उससे  डरते  थे  ,  कुछ  लोग  उसका  अनुकरण  करते  थे    परन्तु  उसकी  बराबरी  करने  वाला  कोई  न  था   l  "

13 July 2018

WISDOM ---- संगठन की शक्ति

  संगठन  में  शक्ति  होती  है  ,  लेकिन  यह  भी  जरुरी  है   कि   वे  नैतिकता  ,  मर्यादा  के  आधार  पर  संगठित  हों   l  अनैतिकता  और  अधर्म न  हो  l
    पांडवों  के  अज्ञातवास  से  लौटने   के  बाद  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उनकी  मन:स्थिति  परखी  और  परिस्थिति  को  देखते  हुए   कौरवों  से  संघर्ष  हेतु   उन्हें  महाभारत  में  प्रवृत  किया   l  असमंजस  को  देखते  हुए   उन्होंने  कहा  -- तुम्हारा  विजयी  होना  सुनिश्चित  है  ,  क्योंकि  तुम  पांच  होते  हुए  भी  एक  हो   और  कौरव गण  सौ  होते  हुए  भी  अलग - अलग  मत  वाले  हैं   l  संघ  शक्ति  के  कारण  ही  नीति - पक्ष  की  विजय  होती  है   l  
  हुआ  भी   यही  l  पांडवों  में  कोई  सेनापति  नहीं  था   l  प्रतीक  रूप  में  पांच  पांडवों  को  छोड़कर 
 धृष्टद्दुम्न  को  सेनापति  पद  दे  दिया  गया  l  संगठन  - शक्ति ,  सहयोग - सहकार  के  कारण  वे  विजयी  हुए   , परन्तु  कौरव गण  सेनापति  पद  के  लिए  ही  लड़ते  रहे  ,  परस्पर  विरोध - विग्रह  ही   उनकी  हार  का  मूल  कारण  बना   l  

12 July 2018

WISDOM ------ आततायी और अहंकारी के विनाश का विधान भगवान स्वयं रच देते हैं

 कहते  हैं  ईश्वर  जिस  पर कृपा  करते  हैं  उसे  सद्बुद्धि  देते  हैं  , विवेक  देते  हैं   लेकिन  जो  अहंकारी  है ,  अत्याचारी  है  , उसके  दुर्गुणों  की  वजह  से  उसकी  बुद्धि ,  दुर्बुद्धि   में  बदल  जाती  है   और  वह  स्वयं   अपने   विनाश  के  लिए  उत्तरदायी  होता  है  l
     एक  प्रसंग  है ----- राम , रावण  के  युद्ध  से  पहले  ब्रह्मा जी  ने  श्रीराम  से  कहा  था   कि  इस  युद्ध   में  आपको  विजयश्री  का  वरदान  आदिशक्ति  देवी  चंडी  से  प्राप्त  करना   होगा  l   इस  हेतु   उन्हें  प्रसन्न  करने  के  लिए  चंडी  पूजन  और  चंडी  यज्ञ  का  आयोजन  करें  , इस  हवन   में  एक  सौ  आठ  नील कमलों   की  आवश्यकता  पड़ेगी  l   भगवान  राम  ने   ऐसा  करने  का  संकल्प  लिया  l  लक्ष्मण  ने  देवताओं  की  मदद  से    दुर्लभ   नीलकमल  की  व्यवस्था  की  l  मायावी  रावण    को  यह  गुप्त  रहस्य  पता  चल  गया   और  उसने  एक  नीलकमल  गायब  कर  दिया   l  हवन  का  विशिष्ट  क्षण  समाप्त  होने  को  था  ,  इसने  कम  समय  में  नीलकमल  की  व्यवस्था  कर  पाना  असंभव  था  l   भगवान  राम  को  विदित  था  कि  उनकी  आँखों  को  ' कमलनयन '  ' नवकंजलोचन '  की  संज्ञा  दी  जाती  है  l  अत:  वे  नीलकमल  के  स्थान  पर  तीर  से  अपनी   आँख  निकाल्ने  को    तत्पर  हुए  ,  उसी  समय  देवी  चंडी  प्रकट  हुईं   और  भगवान  राम  को  विजयश्री  का  आशीर्वाद  दिया  l   
   इधर  रावण  ने  भी  विजयश्री  के  लिए  चंडी  पाठ  प्रारंभ  किया  l  अनेकों  ब्राह्मण   विधि - विधान  से  इसे  संपन्न  करने  में  लगे  थे  l  एक  ब्राह्मण  बालक  इन  पाठ  कर  रहे  ब्राह्मणों  की  सेवा  में   कटिबद्ध  रहता  था    l  उसकी  निस्स्वार्थ  सेवा  से  प्रसन्न  होकर    ब्राह्मणों   ने  उसे  वरदान  मांगने  को  कहा  l  बालक  ने  कहा  कि  मेरी  इच्छा  है  कि  यज्ञ  में  प्रयुक्त  एक  शब्द   मूर्तिहरिणी  के  ' ह '  अक्षर  के  स्थान  पर  'क '  उच्चारित  किया  जाये  l    ' विनाशकाले  विपरीत  बुद्धि  '     रावण   स्वयं  प्रकांड  विद्वान्  था    लेकिन  वे  सब   इस  गूढ़ार्थ  को  समझ  न  सके   और  बालक  के  कहे  अनुसार  ' मूर्तिहरिणी '  के  स्थान  पर
 '  मूर्तिकरिणी ' कह  कर  आहुतियाँ  डालने  लगे   l         ' मूर्तिहरिणी '  का  अर्थ  होता  है --- प्राणियों  की  पीड़ा  हरने  वाली   और  ' मूर्तिकरिणी ' का  अर्थ  होता  है --- प्राणियों  को  पीड़ित   करने  वाली  l
  इस  विकृत  मन्त्र  के  प्रभाव  से  देवी  अत्यंत  क्रोधित  हुईं   और  रावण  को  ' सर्वनाश ' का  अभिशाप  दिया  l    कहते  हैं  वह  बालक  स्वयं  हनुमानजी  थे   l 

11 July 2018

लोक प्रतिष्ठा से परे ---- भाई जी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार

 बात  उन  दिनों  की  है   जब  गीता  प्रेस  गोरखपुर  के  संस्थापक   भाई जी  श्री  हनुमानप्रसाद  पोद्दार  का  नाम  ' भारत  रत्न '  के  लिए  चुना  गया  l यह  बात  उन  तक  पहुंची  तो  उन्होंने  तत्कालीन  गृहमंत्री  पं. गोविन्द वल्लभ  पन्त  से  कहा  ---     " हम  इस  योग्य  नहीं  हैं  l   देश  बड़ा  है , कई  सुयोग्य  व्यक्ति  होंगे  l  हमने  अगर  कुछ  किया  भी  है  तो  पुरस्कार  की  आशा  से   नहीं  किया  l  आप  किसी  और  को  दे,  दें  l  "
  नेहरु  जी  को  पता  चला  तो  उन्होंने  पन्त जी  से  कहा  --- " जाओ  और  मिलो  l  आदर - सत्कार  से  बात  करो  l  कोई  बात  हो  सकती  है  ,  पता  लगाओ  l  " 
  पन्त जी ने  जाकर  बात  की  तो  पुन:  भाई  जी  बोले  ---- "  हम  स्वयं  को  इस  लायक  मानते    ही  नहीं  l  हमने    भक्तिभाव  से   परमात्मा  की  आराधना  मानकर    ही  सब  कुछ  किया  l  "
 ऐसा  ही  हुआ , सरकार  को  अपना  इरादा बदलना  पड़ा   l   भाई जी  को  दैवी  सत्ताओं  का  अनुग्रह  सहज  ही  प्राप्त  था  ,  फिर  उन्हें  लोक  सम्मान  क्या  प्रभावित  करता  ?                                                                                                                                                                                                                                         

10 July 2018

WISDOM ------ मन पर नियंत्रण से ही विजय प्राप्त होती है

   ' यदि  मन  काबू  में  नहीं  है , तो  विजय  की कल्पना  भी  दूर  है   l  मन  पर  नियंत्रण  होना  चाहिए   l  '
            सिकन्दर  जब  भारत  आया   , तब  यहाँ  युद्धों  में  हाथियों  का  प्रयोग  होता  था  l  जब  वह  युद्ध  के  लिए  कूच  करने  लगा   तो  उसे  हाथी  पेश  किया  गया  l   वह  उस  पर  चढ़  गया  l  उस  पर  चढ़कर  उसने  कहा  ---  लगाम  कहाँ  है  ?    लोगों  ने  कहा  ---- इसके  लिए  अंकुश  का  प्रयोग  होता  है   और  वह  महावत  के  पास  है  l 
  यह  सुनकर  वह  हाथी  से  कूद  पड़ा   और  बोला  ----  ऐसी  सवारी  पर  मैं   नहीं  बैठता  ,  जिस  पर  मेरा  नियंत्रण  न  हो  l    उसने  घोड़ा  संभाला  और  उस  पर  बैठ  गया  ,  लगाम  उसके  हाथ  में  थी   l 
    

8 July 2018

WISDOM ---- जो महाभारत में है , वही इस धरती पर है , ईश्वर सद्बुद्धि दें हम सद्गुणों को अपनाएं

  '  यह  मनुष्य  की  कमजोरी  है  कि   वह  महाकाव्यों  से ,  इतिहास  से   अच्छी  बातें --- स्वाभिमान ,  वीरता ,  सम्मान ,  साहस ,   उदारता ,  सेवा - संवेदना  जैसे  सद्गुणों  को  नहीं  सीखता ,  अपने  जीवन  में  नहीं   अपनाता   लेकिन  दुर्गुणों  को  बहुत  जल्दी  अपनाता  है   जैसे   रावण  और  दुर्योधन  का  अहंकार ,   दुर्योधन  द्वारा  सारे  जीवन  किये  जाने  वाले  षड्यंत्र  ,  दुशासन  द्वारा  चीर- हरण  ,  ईर्ष्या - द्वेष ,  अपने  ही  भाइयों  का  राज्य  हड़प   लेना  ,  भगवान  श्रीकृष्ण  को  ही  अपमानित  करना   l  ये  सब  अवगुण  आज  समाज  में  बड़े  पैमाने  पर  मिल  जायेंगे   l ----
    महाभारत   का   प्रसंग  है ----- अर्जुन  ने  जब   खांडव  वन  को  जलाया  ,  तब  अश्वसेन  नामक  सर्प   की  माता   बेटे  को  निगलकर  आकाश  में   उड़  गई  ,  अर्जुन  ने  उसका  मस्तक  बाणों    काट  डाला  l  सर्पिणी  तो  मर  गई  लेकिन  अश्वसेन  बचकर  भाग  गया  l    उसी  वैर  का  बदला  लेने  वह  कुरुक्षेत्र   की    रणभूमि  में   आया   l  उसने  कर्ण   से  कहा  ---- "  मैं    विश्रुत  भुजंगों    स्वामी  हूँ  l  जन्म   से  ही   पार्थ    शत्रु   हूँ   l  तेरा  हित  चाहता  हूँ   l  बस  एक  बार  अपने  धनुष  पर   मुझे   चढ़ाकर  मेरे  महाशत्रु   तक   मुझे  पहुंचा  दे   l  तू  मुझे  सहारा  दे   l  मैं   तेरे    शत्रु   को    मारूंगा   l "
  कर्ण  हँसे  और  बोले  --- "  जय  का  समस्त  साधन  नर  की  बाँहों  में  रहता  है  ,  उस  पर  भी   मैं  तेरे  साथ  मिलकर  ---- सांप  के  साथ  मिलकर  मनुज  के  साथ  युद्ध करूँ  ,  निष्ठा  के  विरुद्ध  आचरण  करूँ   !  मैं  मानवता  को  क्या  मुंह  दिखाऊंगा   ? " 
 इसी  प्रसंग  पर  रामधारी सिंह  ' दिनकर '  ने  अपने  प्रसिद्ध  काव्य  ' रश्मिरथी ' में  लिखा  है  ----- 
" रे  अश्वसेन   तेरे  अनेक  वंशज  हैं  ,  छिपे  नरों  में  भी ,   सीमित  वन  में  ही  नहीं  ,  बहुत बसते   पुर - ग्राम - घरों  में  भी   l " 
  सच  ही  है   ,  आज  सर्प  रूप  में   कितने  अश्वसेन   मनुष्यों  के    बीच  बैठे  हैं  ---- राष्ट्रविरोधी  गतिविधियों  में  लीन  !  महाभारत  की  ही  पुनरावृति   है   l  

6 July 2018

WISDOM ----- किसी भी कर्म के पीछे जो भावनाएं हैं , उनका महत्व है

भावनाएं  यदि  निम्न  कोटि  की   हों  तो  यह  आदमी  को   दुःखी , दरिद्र ,  पतित  और  पापी  बना  देती  हैं    लेकिन  यदि  भावनाएं  उच्च स्तरीय  हों   तो  वह  मनुष्य   के  भविष्य  का  निर्माण  करती  हैं ,  मनुष्य  को  शांति  और  शक्ति   के   ऊँचे  स्तर  पर  ले  जाती  हैं  ,   आदमी  को  संत , महापुरुष , ऋषि  और  देव मानव  बना  देती  हैं   l 
   एक   पुरानी    कथा  है ----------    एक  शहर   में  एक  ही  दिन  दो  मौतें  हो  गईं  l    एक  संन्यासी  थे  और  एक   नर्तकी   l  शहर  में  दोनों  का  निवास  आमने - सामने  था  l  संयोग  की  बात  दोनों  एक  ही   घड़ी  में  संसार  छोड़कर  चल  दिए  l   जैसे  ही  उनकी  मृत्यू  हुई   उन्हें  ले  जाने  के  लिए  ऊपर  से  दूत  आये  l  वे  दूत  नर्तकी  को  स्वर्ग  की  ओर  और  संन्यासी    नरक  की   ओर  ले  चले  l   संन्यासी   धैर्य  न  रख  सका , बोला ---- "  यह   क्या   अंधेरगर्दी  है , तुम   नर्तकी  को   स्वर्ग    की  ओर   और  मुझे  नरक  की  ओर   ले   जा  रहे  हो  l  "  संन्यासी  ने  उन्हें  नीचे  धरती  की  ओर  देखने  को  कहा ,  जहाँ  उसके  मृत  शरीर  को   फूलों  से  सजाया  गया  था  और  बैंड की  धुन  पर राम - नाम  गाते  हुए   उसे  शमशान  की  ओर  ले  जा  रहे  थे  l  संन्यासी  बोला -- " देखो ,  तुमसे  समझदार    धरती  के  लोग  हैं  जो   मुझ  पर   न्याय  कर  रहे  हैं  l  "
  दूत  हंसने  लगे   और  बोले ---- "  वे  बेचारे  तो  केवल  वही  जानते  हैं ,  जो  बाहर  था  l  ये  व्यवहार  तो  देख  पाते  हैं  लेकिन  अंत:करण  को  नहीं   जान  पाते  l   जबकि  असली  सवाल    व्यवहार  का  नहीं  ,  चरित्र  और  चिंतन  का  है   l  शरीर  का नहीं  मन  का  है   l  इन  लोगों  ने  वाही  जाना  ,  जो  तुम  दिखाते     रहे ,  जो  तुमने  लोगों  के  सामने  किया    , परन्तु  जो  तुम  सोचते  रहे ,  मन  की  दीवारों  के  भीतर  करते  रहे  ,  उसे  ये  सब  जान  नहीं  पाए  l --  सच  तो  यही  है  कि  शरीर  से  तुम  संन्यासी  थे    पर  तुम्हारा  मन  सदा  नर्तकी  में  अनुरक्त  रहा  l  तुम्हारे  मन  में   वासना  थी  ,  तुम  सोचते  रहते  थे  कि नर्तकी  के  घर  में  कितना  सुन्दर  संगीत  और  नृत्य  चल  रहा  है   और  मेरा  जीवन  कितना  नीरस  है  l     
   जबकि  नर्तकी  निरंतर  यही  सोचती  रही   कि  संन्यासी  का  जीवन  कितना  पवित्र  और  आनंदपूर्ण  है   l  जब  तुम  भजन  गाते  थे   तो    वह  बेचारी   अपने  पापों  की  पीड़ा  से   विगलित  होती  ,   रोती  थी   l   पतित  जीवन    जीते  हुए  भी   उसके  मन  में  ईश्वर  का  चिंतन  और  भक्ति  गीत  ,  भजन  गूंजते  थे   l   अपने  तथाकथित  ज्ञान  के  कारण  तुम  अहंकारी  थे    किन्तु  नर्तकी    के  चित  में   न  अहंकार   था  , न  वासना  l   उसका  चित  परमात्मा  के  चिंतन ,  प्रेम  और  प्रार्थना  से  परिपूर्ण  था   l  
भावनाओं  की   श्रेष्ठता  और  पवित्रता  के  कारण  वह  स्वर्ग  की  अधिकारिणी  है   और  भावनाओं  की  निकृष्टता    के  कारण  तुम  नरकगामी  हो   l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     

5 July 2018

WISDOM ---- कर्मकांड की सार्थकता तब है जब उसके साथ सेवा - परोपकार के कार्य किये जाएँ

  नदी  के  किनारे  संत  ज्ञानेश्वर  जा  रहे  थे   l  समीप  में  ही  एक  लड़का  स्नान  कर  रहा  था  l  एकाएक  लड़के  का  पैर  फिसल  गया   और  वह  तेज  बहाव  में  चला  गया  l  लड़का  सहायता  के  लिए  चिल्लाया  ,  पर  किनारे पर  बैठे  महात्मा  अपने  जप  में  लगे  रहे  l  एक  बार  डूबते  बालक  को  देख  लिया  और   फिर    आँखें   बंद  कर  लीं   l  संत  ज्ञानेश्वर  बिना  विलम्ब  किये  नदी  में  कूद  पड़े   और  डूबते  बालक  को   बाहर   खींच  लाये   l 
 किनारे  पर  जप  कर  रहे  महात्मा  से   संत  ज्ञानेश्वर  ने  पूछा ,  आप  क्या  कर   रहे  हैं   ?    महात्मा  ने  कहा --- जप  कर  रहे  हैं  , और  पुन:  आँख  बंद  कर  ली  l   संत  ने  पूछा -- क्या  ईश्वर  के  दर्शन  हुए   ?
 महात्मा  ने  कहा --- नहीं ,   मन  स्थिर  नहीं  हो  रहा  है   l 
  संत  ज्ञानेश्वर  ने  कहा --- तो  उठो ,  पहले  दीन - दुःखियों  की  सेवा  करो  ,  उनके  कष्टों  में  हिस्सा  बंटाओ अन्यथा  उपासना  का  कोई  विशेष  लाभ  नहीं  मिलेगा   l  महात्मा  को  अपनी  भूल  मालूम  हुई   कि  सच्चा     ज़प  तो  ये  था  कि    डूबते  हुए  बच्चे  को  बचाया  जाता   l  उस  दिन   से  महात्मा    उपासना  के  साथ  दीन - दुःखियों  की   सेवा  में  लग  गए  l  

4 July 2018

WISDOM ---- प्रतिशोध भी सकारात्मक हो

    युवराज  आदित्यसेन   भगवती  के  मंदिर  में  दर्शन  हेतु  आने  वाले  थे  l  पूरा  मंदिर  सजा  हुआ  था  l   वे  आये ,  उन्होंने  अपनी  चरण - पादुकाएं  द्वारपाल  चित्रक  के  पास  छोड़ी और  स्वयं  मंदिर  में  दर्शन  के  लिए  चले  गए  l  रेशमकढ़ी  पादुकाओं  में  धूल  के  कण  देखकर   चित्रक  ने  उन्हें  अपने  अंगोछे  से  साफ  किया  l  लेकिन  पादुकाएं  और  गन्दी  हो  गईं  l  युवराज  बाहर  आये , उद्दंड   स्वभाव   के  तो  थे  , उनने  देखा  चित्रक  सिर  झुकाए  खड़ा  है   l  बिना  सोचे - समझे  उनने  चित्रक  के  कपाल  पर  पादुका  दे  मारी   l  खून  निकल  आया  l  चित्रक  अपमानित  स्थिति  में  ,  क्रोध  की  ज्वाला  में  भरा  हुआ  घर  पहुंचा  l  कई  दिन  उसने  अन्न  नहीं  खाया ,  प्रतिशोध  की  ज्वाला  में  वह  जल  रहा  था  l
  चित्रक  की  पत्नी  कुशला  ने  समझाया --- " स्वामी  !  यह  प्रतिशोध  की  अग्नि  आपको  नष्ट  कर  देगी  l  प्रतिशोध  का  सही  तरीका  मैं  बतलाती  हूँ  l  l  स्वस्थ चित्त  हो  नहाकर  चित्रक  भोजन  को  बैठे   l  भोजन  के  बाद  कुशला  ने  सारी  व्यवस्थाओं  के  साथ   चित्रक  को  विद्दा अध्ययन  के  लिए   वाराणसी  भेज  दिया  l   दस  वर्ष  के  कठोर  तप , विद्दा अध्ययन   और  इन्द्रिय  संयम  ने  उन्हें   आचार्य  चित्रक  बना  दिया  ,  जिनकी  ख्याति   चारों  ओर  फैल  गई   l  
  युवराज   भी  अब  महाराज  बन  गए  l  राजमाता  की  सेहत  के  लिए  एक  यज्ञ   आयोजित  किया  गया ,  जिसका  आचार्य  चित्रक  को   ही  बनाया  गया  l   उन  दिनों  आचार्य  ब्रह्मा  के  रूप में  महाराज  से  भी  ज्यादा  सम्मान  पाते  थे   l  चित्रक  ने  सफलता पूर्वक  यज्ञ  संपन्न  किया  l  दक्षिणा  का  समय  आया  ,  तो  वे  बदले  के  रूप  में  कुछ  भी  मांग  सकते  थे  ,  लेकिन  उनने  आदित्यसेन  की  पुरानी  पादुकाएं  मांग  लीं  l  प्रतिदिन  उनकी  पूजा  करते  l  महाराज  मिलने  आते  तो  देखते  कि  उनकी  पादुकाओं  की  पूजा  हो  रही  है  l   एक  दिन  राजा  ने  पूछा   --- "  आचार्य प्रवर  ! पुरानी पादुकाएं  ,  वह  भी  मेरे जैसे  साधारण  पुरुष  की  ,  आप  क्यों  इनकी  पूजा  करते  हैं  ? "
 चित्रक   ने  कहा ---- "  आज  मैं  जो  कुछ  भी  हूँ , इनकी  एवं  अपनी  पत्नी  की  शिक्षा  की  वजह  से  हूँ   l  मैं  प्रतिशोध  से  जल  रहा  था ,  जब  आपने  इन्हें  मेरे  सिर  पर  मारा  था  l  पत्नी  ने  काशी  भेजा  ,  तब  मैं  आचार्य  बन  सका  l  "    अपने  द्वारपाल  को  इस  रूप  में  देखकर   राजा  शर्मिंदा  हुए  ,  फिर  पुन:  प्रणाम  कर    राज्य  स्तर  पर  उन्हें   सम्मानित  किया   एवं  राजपुरोहित  बनाया   l  

3 July 2018

WISDOM ----- सुखी जीवन का रहस्य

  एक  व्यक्ति  संत  कबीर  के  पास  पहुंचा   और  उनसे  पूछने  लगा  कि--- " सुखी  दाम्पत्य  जीवन  का  क्या  रहस्य  है  ? "  कबीर  बोले --- " अभी  थोड़े  समय  में  समझाता  हूँ  l " 
कुछ  समय  पश्चात्  कबीर  ने  अपनी  पत्नी  को  आवाज  लगाई--- "  यहाँ  बड़ा  अँधेरा  है ,  जरा  दीपक  तो  रख  जाओ  l "  उनकी  पत्नी  आई  और  एक  दीपक  चौखट  पर  रख  गई   l  उस  आदमी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ  कि  कमरे  में  बड़ा प्रकाश  होते  हुए  भी   कबीर  ने  पत्नी  को  बुलाया   और  वो  भी  बिना  प्रतिवाद  के  दीपक  रखकर  चली  गई   l 
 थोड़ी  देर  में  उनकी  पत्नी  दोनों  के  लिए  भोजन  रख  गई   l  जब  दोनों  ने  खाना  आरम्भ  किया   तो  कबीर  की  पत्नी  ने  आकर  पूछा --- " खाने  में  कुछ  कमी  तो  नहीं  है  l "  कबीर  ने  उत्तर  दिया --- " बिलकुल  नहीं  l  खाना  बेहद  स्वादिष्ट  बना  है  l "  उस  आदमी  को  अचरज  हुआ  कि  सब्जी  में  नमक  कम  होते  हुए   कबीर  ने  भोजन  की  प्रशंसा  की  l
  अब  संत  कबीर  ने  उस  व्यक्ति  को  समझाया  और  कहा --- "  अब  समझ  में  आया  कि  सुखी  दाम्पत्य  जीवन  का   क्या  रहस्य  है  ?   इसको  पाने  का  एक  ही  सरल  मार्ग  है  कि  हम  एक  दूसरे  के  साथ  तालमेल  बैठाना  सीखें  l  एक  दूसरे  की  कमियां    निकाल   कर  उनको  नीचा  दिखाने  के   बजाय   यदि  हम  उनके  गुणों  को  प्रश्रय  दें   तो  गृहस्थ  एक  तपोवन  बन  जाये   l  " 

1 July 2018

WISDOM ------ तृष्णा बूढ़ी नहीं होती !

  भर्तहरि  ने  अपने  वैराग्य  शतक  में  लिखा  है ------ " तृष्णा  बूढ़ी  नहीं  होती ,  हम  ही  बूढ़े  होते  हैं  l  भोग  नहीं  भोगे  जाते ,  हम  ही  भोग  लिए  जाते  हैं  l  "    शरीर  ढल  जाता  है ,  इन्द्रियां  शिथिल  हो  जाती  हैं   लेकिन  कल्पनाएँ - मनोभाव  उसी  दिशा  में  दौड़ - भाग  लगते  हैं   l  कामनाएं  - वासनाएं  कभी  समाप्त  नहीं  होतीं  l "
                बूढ़ा    आदमी  पेड़  के  समीप  आकर  रुका    और  बोला  ---- " अरे ,  फल  नहीं ,  फूल   भी  नहीं   और  पत्ते  भी  नहीं  l  क्या  हो  गया  ,  हर  वसंत  में  तुम्हारी  बहार   देखते  ही  बनती  थी   l  "
  पेड़  ने  लम्बी  आह  भरी   और  बोला ---- "  काश  !  तुमने  अपना  झुर्री  भरा  चेहरा  देख  लिया  होता  l  वसंत ऋतू  तो    सदा  आती - और   जाती  रहेगी  ,  पर  बूढी  पीढ़ी  को   अपना  दायित्व  पूरा  करते  हुए   नयी  पीढ़ी  के  लिए  भी  तो   स्थान  खाली करना  होता  है  ,   अन्यथा  यह  स्रष्टि  भी   बूढी  होकर  समाप्त  हो  जाएगी   l  " 
ययाति   का  उदाहरण  बड़ा  प्रासंगिक  है   l  उसने  सब  सुख  भोगे  l तृष्णा  बढ़ती  चली  गई  l  देह  जवाब  दे  गई  l  मृत्यु  आने  को  थी  l  औरों  से  पुण्य  लेकर  समय  बढ़ा  लिया  l  वह  काल  भी  समाप्त  हो  गया  l   मृत्यु  का  समय  आ  गया  , काल  आ  गया , बोला ---- " जवानी  किसी  और  से  मांग  लो   l "
 ययाति  ने  अपने  बेटों  से   भोगने  के  लिए  जवानी  मांगी   l  अन्य  बेटों  ने  तो  मना  कर  दिया  l  सबसे  छोटा   बेटा  पुरु  बोला --- " आप  जवानी  मुझसे  ले  लें  l  जिन  इन्द्रियों  से  आपकी  तृष्णा  शांत  नहीं  हुई ,  हमारी  क्या  होगी --- आप  भोग  लें  l "
 भर्तहरि  ने  सच  कहा  है ----  तृष्णा  न  जीर्णा   वयमेव  जीर्णा   l