वैराग्य शतक में भतृहरि ने भय की स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किया है ---- ' भोग में रोग का भय है , सत्ता में गिरने का भय है , धन में खोने का , उसके चोरी होने का भय है , सत्ता में शत्रुओं का भय है , मान - सम्मान में अपमान का भय , सौंदर्य में बुढ़ापे का भय , शरीर में मृत्यु का भय है l इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है l ' पं. श्रीराम शर्मा आचार्य श्री लिखते हैं ----- ' भय को भय से निपटने के नकारात्मक रवैये ने समूची मानव जाति को अवर्णनीय त्रासदियों एवं दुःख - कष्टों से गुजरने के लिए विवश किया है क्योंकि भय की नकारात्मक शक्ति अविश्वास , घृणा एवं हिंसा की वाहक होती है l चंगेज खां ने लगभग आधी दुनिया का क़त्ल जनता को भयभीत कर अपने अधीनस्थ करने के लिए ही किया था l ' आज भी अमानवीय कृत्य , नर - संहार , अत्याचार के मूल में भय ही है l अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार ---- संकीर्ण स्वार्थ , दैहिक वासना और अहंकार से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है l इस तरह के भय से मुक्ति का एकमात्र मार्ग ईश्वरीय अनुशासन को अपने जीवन में धारण करना है l