ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , अहंकार, महत्वाकांक्षा , स्वार्थ , लालच आदि ----- ये सब ऐसे दुर्गुण हैं जिनसे मनुष्य तो क्या देवता भी अछूते नहीं हैं l आज संसार में जितना तांडव है , वह मनुष्य के इन्ही दुर्गुणों के कारण है l मनुष्य कितना भी बूढ़ा हो जाए , ये दुर्गुण उसका पीछा नहीं छोड़ते l सत्य तो यह है कि मनुष्य उनसे अपना पीछा छुड़वाना ही नहीं चाहता , इन्हें अपनी आत्मा से चिपकाए जन्म -जन्मान्तर की यात्रा करता है l जब व्यक्ति स्वयं सुधरना चाहे , अपने दुर्गुणों को दूर करने का संकल्प ले तभी रूपांतरण संभव है l ------ देवगुरु ब्रहस्पति इतने सम्मानित पद पर होने के बावजूद भी उनके जीवन में ईर्ष्या का दुर्गुण आ गया l उनके बड़े भाई संवर्त बहुत गुणवान थे , लोगों के ह्रदय में उनका बहुत सम्मान था l इसी बात से देवगुरु को उनसे बहुत ईर्ष्या थी , इस कारण वे अपने भाई को बहुत कष्ट देने लगे l इससे परेशान होकर संवर्त ने घर छोड़ दिया l उनके गुणों और पांडित्य के कारण वे जहाँ जाते वहां उनका सम्मान होता l देवगुरु ब्रहस्पति में उन दिनों एक बुराई यह भी आ गई थी कि वे किसी की तरक्की , किसी को आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते थे l राजा मरुत ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और उसमें देवगुरु ब्रहस्पति से आचार्य पद ग्रहण करने को कहा l देवगुरु ने सोचा कि इतना विशाल यज्ञ कर के मरुत तो इंद्र से भी शक्तिशाली हो जाएंगे , इसलिए उन्होंने आचार्यत्व ग्रहण करने से इनकार कर दिया l तब राजा मरुत ने देवगुरु के भाई संवर्त से आचार्य का पद सँभालने का निवेदन किया l वे बहुत विद्वान् थे , उनमें कोई अहंकार भी नहीं था , उन्होंने आचार्य बनना स्वीकार कर लिया l यह समाचार जब ब्रहस्पति ने सुना तो जल -भुन गए l ईर्ष्या चाहे मनुष्यों में हो या देवताओं में , यह शारीरिक , मानसिक शक्तियों को कम कर देती है , उसका पतन कर देती है l ब्रहस्पति अपने ही शिष्य इंद्र के सामने नतमस्तक हुए और कहा कि मरुत के यज्ञ को विध्वंस करो l इसके पहले उन्होंने अग्नि देव को उस यज्ञ को विध्वंस करने और राजा मरुत को अपमानित करने के लिए भेजा l लेकिन संवर्त के ब्रह्मचर्य और तेज को देखकर वे चुपचाप देवलोक लौट गए l अब इंद्र स्वयं आए यज्ञ को नष्ट करने l तब संवर्त ने उनसे प्रार्थना की कि यह यज्ञ तो वे विश्व कल्याण के लिए कर रहे हैं , आप हमारे देवता हैं यज्ञ में अपना भाग ग्रहण करें l संवर्त की उदारता , विनय , ज्ञान और उनके तेज से इंद्र बहुत प्रसन्न हुए , यज्ञ में भाग ग्रहण किया और आशीर्वाद देकर लौट आए l यह सब देख देवगुरु ब्रहस्पति बहुत लज्जित हुए l ईर्ष्या के कारण उन्हें अपमान और पश्चाताप सहना पड़ा l