24 October 2020

WISDOM ----

    भगवान    को  अपने  भक्तों  से  बहुत  प्रेम  होता  है  ,  वे  अपने  भक्तों  के  वश  में  होते  हैं   इसलिए  भक्तों  को  सताने  वाले ,  उनके  प्रति  अपराध  करने  वाले  को  भगवान  कभी  क्षमा  नहीं  करते   l   पुराणों  में  कथा  है  ----   प्रह्लाद  भगवान  के  भक्त  थे  l   उनके  पिता   हिरण्यकश्यप   को  यह  बात  मंजूर  नहीं  थी  l   ईश्वर  के  मार्ग  से  हटाने  के  लिए  उसने  अपने  पुत्र  प्रह्लाद  को  बहुत  कष्ट  दिए  ,  उन्हें  पहाड़  से  फेंका , समुद्र  में  गिराया ,  साँपों  से  कटवाया ,  अपनी  बहन  होलिका  की  गोदी  में  बिठाकर  अग्नि  में  जलाने   का  प्रयास  किया   लेकिन  भगवान  अपने  भक्तों  की  रक्षा  करते  हैं  ,  प्रह्लाद  सकुशल  रहे  l   हिरण्यकश्यप   अहंकारी  था ,  लेकिन  तपस्वी  भी  था l   तपस्या  कर  के  उसने   ईश्वर  को  प्रसन्न  किया   और  अमरता  का  वरदान  माँगा ,  लेकिन  यह  प्रकृति  के  विरुद्ध  है   इसलिए  भगवान  ने  कहा ---  यह  संभव  नहीं  है  l   तब  उसने   ईश्वर  से  कहा --- मैं  न  दिन  में  मरुँ , न  रात  में   l  न  मैं  पुरुष  से  मरुँ  न  नारी  से  ,  न  जानवर  से न  इनसान   ,  किसी  भी  अस्त्र - शस्त्र   से  न  मारा जाऊं  , न  धरती  पर  न   आकाश में  , न  घर  के  अंदर   न बाहर  ---------- जीवित  रहने  के  लिए  जो  भी  विकल्प  थे  , वह  सब  उसने  वरदान  में  मांग  लिए  l   और  अब  वह  अहंकारी  होकर  स्वयं  को   सर्वशक्तिमान  समझने  लगा   l   जनता  पर  बहुत  अत्याचार  किये  ,  अपने  पुत्र  प्रह्लाद   को  बहुत  सताया  l   वह  चाहता  था  कि   प्रह्लाद  उसे  ही  भगवान   माने  l   हिरण्यकश्यप     ने  प्रह्लाद  को  खम्भे  से  बाँध  दिया   और  पूछा  --- बता  ,  इस  खम्भे  में  भगवान  हैं  या  नहीं   l   प्रह्लाद  के  हाँ  कहते  ही   खम्भे  में  से  नरसिंह   भगवान  प्रकट  हो  गए  ,  अपने  भक्त  पर  होने  वाले  अत्याचार  के  कारण   क्रोध  से  उनकी  आँखे  लाल  थी  l   अपने  दिए  गए  वरदान  के  अनुसार     नृसिंह   भगवान   का आधा  शरीर  शेर  का  व  आधा  मनुष्य  का  था  ,  संध्या  का  समय  था ,  भगवान  ने  घर  की  देहरी  पर  बैठकर       हिरण्यकश्यप   को  अपनी  गोद   में    लिटाकर     अपने  नाखूनों  से  उसका  पेट  फाड़  दिया  l  भगवान  का  क्रोध  किसी  तरह  शांत  नहीं  हो  रहा  था   तब  भक्त  प्रह्लाद  ने  उनकी  स्तुति   की  और   अपने  को  अति  का  कष्ट   देने वाले  पिता   को  क्षमा  करने  के  लिए   प्रार्थना  की  l