16 December 2020

WISDOM ----- भक्ति एवं तंत्र में भक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना गया है

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' भक्ति  किसी  बड़े  एवं   श्रेष्ठतम  तांत्रिक   अनुष्ठान  से  भी  बढ़कर  होती  है  l  भक्त  की  सुरक्षा  एवं   संरक्षण  का  भार  भगवान  स्वयं  उठाते   हैं   l   तंत्र  चाहे  कितना  ही  बड़ा   क्यों  न  हो  ,  वह  भक्ति  और  भक्त   से  सदैव  कमजोर  होता  है  l '    एक  प्रसंग   लिखा  है    -----  जगद्गुरु  शंकराचार्य    का   कर्मभोग   समाप्त  होने  को  आया  था   और  उन्होंने  शरीर  त्यागने   का  मन  बना  लिया  था  l   इसी  दौरान  एक  कापालिक  क्रकच  ने   उन  पर  भीषण  तंत्र  का  प्रयोग   कर  दिया  l   इसके  प्रभाव  से  उन्हें  भगंदर  हो  गया    और  अंत  में  उन्होंने  अपनी  देह  को  त्याग  दिया  l   देह  को  यहाँ  पर  तंत्र  लगा   तो ,  परन्तु   ऐसा  विधान  ही  था  l   परन्तु  कापालिक  को  अपने  इस  दुष्कर्म  का   भयंकर  परिणाम  भोगना  पड़ा  l  सबसे  पहले  कापालिक  की  आराध्या   अवं  इष्ट  भगवती  उससे  अति  क्रुद्ध  हुईं  और  कहा  ---' तूने  शिव  के  अंशावतार   मेरे  ही  पुत्र  पर  अत्याचार  किया   है  l  इसके  प्रायश्चित  के  लिए   तुझे  अपनी  भैरवी  की  बलि  देनी  पड़ेगी  l '  कापालिक  भैरवी  से  अति  प्रेम  करता  था  ,  परन्तु  उसे   उसको  मारना  पड़ा  l   उसको  मारने  के  बाद   वह  विक्षिप्त  हो  गया   और  अपना  ही  गला   काट  दिया  l   तांत्रिक  अपनी  ही  विद्या  का  दुरूपयोग  करते  हैं  ,  वे  अपनी  ही  विद्या  के  अपराधी  होते  हैं    , यही  वजह  है  कि   अधिकांश  तांत्रिकों  का  अंत  अत्यंत  भयानक  होता  है   l 

WISDOM ----- स्वस्थ रहने के लिए भी सद्बुद्धि जरुरी है

  कलियुग  का  एक  बहुत  बड़ा  लक्षण  है  कि   इस  युग  में  मनुष्यों  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है  ,  वे  जानबूझकर   वे  सारे  काम  करते  हैं   जिससे    उन्हें  ही  नुकसान  हो   और  प्रत्येक  व्यक्ति  की  हानि  माने  सम्पूर्ण  समाज  की  हानि  l   हमारे  ऋषि - मुनियों  ने  बताया  है  कि   स्वस्थ  रहने  के  लिए  तन  और  मन  दोनों  का  स्वस्थ  होना  बहुत  जरुरी  है    और  इसके  लिए  जरुरी  है  तन  और  मन  की   शुद्धता  l  ऋषियों  ने  बताया  है   कि   श्रेष्ठ  विचारों  के  चिंतन - मनन  से  मन  परिष्कृत  होता  है  l   यह  एक  साधना  है  और  इस   साधना  में  व्यक्ति  बहुत  धीमी  गति  से  आगे  बढ़  पाता   है  l   जो  कुछ  हमारे  हाथ  में  है  ,  जिसे  हम  स्वयं  जल्दी  कर  सकते  हैं  और  स्वस्थ  रह  सकते  हैं   वह  है  तन  की  शुद्धता  l     आज  की  सबसे  बड़ी  और  दुर्बुद्धिजन्य  समस्या  यह  है  कि   हम   बाहरी  तौर   पर  शरीर  को  साफ   और  सुंदर   बनाने  का  बहुत  प्रयत्न  करते  हैं    लेकिन  हमारे  पास  हमारी  इस  चमड़ी  के  भीतर  एक  आंतरिक  शरीर  भी  है   जिसमे  हजारों  नस - नाड़ियाँ , धमनियाँ --------- आदि  हैं  l   बचपन  से  ही  इन  नस - नाड़ियों  की  सफाई  की  और  कोई  ध्यान  नहीं  देता   इसलिए  एक  न  एक  बीमारियाँ   शरीर  को  घेर  लेती  हैं  l   इनकी  सफाई  कैसे  हो    ?   बहुत  आसान  काम  है  l   हमारे  योग  के  महान  आचार्यों  और  विद्वानों   का  कहना  है   कि    आक्सीजन    हमारी  नस  - नाड़ियों   में  भरी  हुई  गंदगी  को  हटाने  में   झाड़ू  का  काम  करती  है   l   जैसे  झाड़ू  लगाने  से  घर  की  सफाई  हो  जाती  है    वैसे  ही   जब  हम   अपनी  पीठ  सीधी  रखकर  बैठते  हैं   और  नाभि  तक  गहरी  श्वास  लेते  हैं    तो  नाभि  शरीर  का  केंद्र बिंदु  है  ,  आक्सीजन  वहां  पहुंचकर   सारी   नस  नाड़ियों  में  झाड़ू  लगाकर   वहां  जमी  गंदगी  को  बाहर  निकाल  देती  है   l    अब  यदि  हम  दुर्बुद्धि  के  कारण  विभिन्न  कृत्रिम  तरीकों  से  आक्सीजन  को  शरीर  में  जाने  से   रोकते  हैं  ,  हमारी   नस  - नाड़ियों में  भरी   हुई  गंदगी  दूर  नहीं  होगी   और  हम  बीमार  बने  रहेंगे  l    मानव  जीवन  अनमोल  है  ,  स्वस्थ  रहकर  ही  हम  संसार   के विभिन्न  सुखों  का  आनंद  ले  सकते  हैं  l   स्वस्थ  शरीर  में  स्वस्थ  मन  होगा  ,  तभी  एक  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  होगा  l