28 July 2021

WISDOM ------

  धर्म  क्या  है   ?  पं.  श्री  राम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं  ---- " धर्म  का  मर्म  है  ---- अन्याय  का  प्रतिकार ,  अनीति  का  विरोध  एवं   आतंक  का  उन्मूलन  l   धर्म  की  सार्थकता  प्रकृति  और  परमात्मा  का  साहचर्य  निभाने  में  है   और  पीड़ा  व  पतन  के  निवारण  में  है  l   धर्म  सद्भाव , सद्विचार   एवं  सत्कर्म  के   सम्मिलन  में  रहता  है "  l     महाभारत  के  महायुद्ध  में  धर्म , अधर्म  की  परिभाषा  बड़ी  विलक्षण  है  l   महाभारत  के  तीन  प्रमुख  पात्र    हैं     भीष्म  पितामह  --- बड़े  धर्मात्मा  थे  , इनका  जीवन  पवित्रता  और  पावनता  का  प्रतीक   था   l   गुरु  द्रोणाचार्य  --- ब्राह्मण  थे  , शस्त्र , शास्त्र  के  ज्ञाता  ,प्रकांड  विद्वान्  थे  l     कर्ण --- महादानी  और  महावीर  थे   l   प्रतिदिन  प्रात:  सूर्य  को  अर्घ्य  चढ़ाया  करते  थे   और  उसके  बाद  उनसे  कोई  कुछ  भी  मांग  ले , सहर्ष  देते  थे  l   उन्होंने  अपने  कवच  और  कुण्डल  देवराज  इंद्र  को  दान  में  दे  दिए  थे   l   लेकिन  इन  तीनो  ने  ही  दुर्योधन   के  अनेक  दुष्कृत्यों  में  से  एक  का  भी  विरोध  नहीं  किया   l   भरी  सभा  में  द्रोपदी  के  चीरहरण    पर  भी  मौन  रहे  ,  कोई  प्रतिरोध  नहीं  किया  l  सामर्थ्य , शौर्य  और  विद्या  होते  हुए  भी    अनीति  और  अधर्म  का  साथ  दिया  ,  ऐसे   व्यवहार  ने  उन्हें  अधर्म  की  कसौटी  पर  ला  खड़ा  किया  l   अधर्म  का  साथ  देकर  वे   न  तो   दुर्योधन  की  रक्षा  कर  सके    और  न  ही  स्वयं  की  रक्षा  कर  सके   l 

WISDOM ------

   महात्मा  ईसा  प्रात:  भ्रमण  के  लिए  जा  रहे  थे  l   उनके  साथ  उनके  शिष्य  भी  थे  l   घास  पर  ओस  की  बूंदे   मोतियों  सी   चमक  रही  थीं   l   पास  के  उद्यान  में  लिली  के  फूल  खिल  रहे  थे  l   ऐसे  में  एक  शिष्य  ने  पूछा  ---- "  भगवन  !  जीवन  में  सुख  एवं  सौंदर्य  का  रहस्य  क्या  है   ?  "  प्रश्न   के  उत्तर  में  ईसा  ने  कहा  --- " देख  रहे  हो  इन  लिली  के  फूलों  को   l   ये  सम्राट  सोलोमन  से  भी  ज्यादा  सुखी    और  सुन्दर  हैं   क्योंकि   इन्हें   न  तो  बीते  हुए  कल  का  दुःख  है    और  न  आने  वाले  कल  की  चिंता   l   ये  तो  बस ,  वर्तमान  में  अपनी  सुगंध   भरी  मुस्कराहट   बिखेर  रहे  हैं  l   जो  इन  लिली  के  फूलों  की  तरह    भूत   एवं  भविष्य  की   फिक्र   छोड़कर     वर्तमान  में   सत्कर्मों  की  सुगंध  बिखेरता  है  ,  वह  स्वयं  ही   जीवन  के  सुख  और  सौंदर्य   के  रहस्य  को   समझ  जाता  है   l  "