जब तक मनुष्य स्वयं न सुधरना चाहे , उसे कोई नहीं सुधार सकता l दुर्योधन को भगवान स्वयं समझाने गए लेकिन उसने उनकी एक न सुनी और महाभारत हुआ l जब तक व्यक्ति के संस्कारों में परिवर्तन नहीं होगा , सुधार संभव नहीं है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' हम चाहते तो हैं कि पाप कर्म न करें , परन्तु फिर भी बुरे कर्म , पाप कर्म करने से स्वयं को रोक नहीं पाते l इसका कारण है कि जो व्यक्ति बुरे कर्म करता है उसकी चित्त भूमि में पूर्व में किए गए बुरे कर्मों के संस्कार हैं , जिनके प्रभाव में आकर व्यक्ति पाप कर्मों में शीघ्र ही लिप्त हो जाता है l ' इस सत्य के आधार पर एक बात स्पष्ट है कि वर्तमान में संसार में इतना पाप , अन्याय , अत्याचार है , लोग बहुत अशांति और तनाव में जीवन जी रहे हैं , उसका कारण उनके पूर्व में किए गए बुरे कर्मों का संस्कार है l यदि हम पिछले दो सौ वर्षों के इतिहास को ही देखें तो इस अवधि में कितना अत्याचार हुआ --- गोरे - कालों का भेदभाव , दो विश्व - युद्ध , विभाजन की त्रासदी , गुलामी की यातनाएं यह सब इसी धरती पर रहने वाले लोगों ने किया l पुनर्जन्म को माने तो उन्ही आत्माओं ने पुन: अपने किए गए पाप कर्मों के संस्कार के साथ जन्म लिया , जिसके वशीभूत होकर वे वर्तमान में स्वयं को अत्याचार , अन्याय और षड्यंत्र आदि विविध पाप कर्म करने से स्वयं को रोक नहीं पा रहे हैं l संसार में शांति चाहिए , लोग तनाव से मुक्त होकर सुख - शांति की नींद लेना चाहते हैं तो संस्कारों में परिवर्तन अनिवार्य है l यह परिवर्तन कैसे हो ? पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' जैसे किसान बीज बोने से पूर्व अपने खेत की मिटटी को विविध प्रकार की खाद का इस्तेमाल कर के , जुताई , सिंचाई कर के उर्वर करता है ---- उसी प्रकार हम निरंतर जप , तप , निष्काम कर्म , ध्यान , भक्ति , स्वाध्याय आदि के द्वारा अपनी चित्तभूमि में पूर्व में निहित बुरे संस्कारों को सदा के लिए समाप्त कर उसे उर्वर बना सकते हैं l बुरे संस्कारों का प्रभाव समाप्त होते ही हम में पुण्य कर्म करने की सहज प्रवृति पनपने लग जाएगी और तब हम सदा आनंदित और प्रफुल्लित रह सकेंगे l '