3 January 2022

WISDOM ------

   जब  तक  मनुष्य  स्वयं  न  सुधरना  चाहे  ,  उसे  कोई   नहीं  सुधार   सकता  l   दुर्योधन  को  भगवान  स्वयं  समझाने   गए   लेकिन  उसने  उनकी  एक  न  सुनी  और  महाभारत   हुआ   l   जब  तक  व्यक्ति  के  संस्कारों  में  परिवर्तन  नहीं  होगा  ,   सुधार   संभव  नहीं  है   l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' हम  चाहते  तो  हैं  कि  पाप  कर्म  न  करें  , परन्तु  फिर  भी   बुरे  कर्म , पाप  कर्म  करने  से  स्वयं  को  रोक  नहीं  पाते  l   इसका  कारण   है कि    जो  व्यक्ति  बुरे  कर्म  करता  है   उसकी  चित्त  भूमि  में  पूर्व  में  किए   गए   बुरे  कर्मों  के  संस्कार  हैं   , जिनके  प्रभाव  में  आकर  व्यक्ति  पाप  कर्मों  में  शीघ्र  ही  लिप्त  हो  जाता  है   l  '               इस  सत्य   के आधार  पर     एक  बात  स्पष्ट  है  कि   वर्तमान  में  संसार  में  इतना  पाप , अन्याय , अत्याचार   है  ,  लोग  बहुत  अशांति  और  तनाव  में  जीवन  जी  रहे  हैं  , उसका  कारण  उनके  पूर्व  में   किए   गए  बुरे  कर्मों  का  संस्कार  है  l   यदि  हम  पिछले  दो  सौ   वर्षों  के  इतिहास  को  ही  देखें    तो  इस  अवधि  में  कितना  अत्याचार  हुआ  --- गोरे - कालों  का  भेदभाव , दो  विश्व - युद्ध ,  विभाजन  की  त्रासदी  ,  गुलामी  की  यातनाएं   यह  सब  इसी  धरती  पर  रहने  वाले  लोगों  ने  किया  l   पुनर्जन्म  को  माने  तो  उन्ही  आत्माओं  ने   पुन:   अपने  किए   गए  पाप  कर्मों  के  संस्कार   के साथ  जन्म  लिया  , जिसके  वशीभूत  होकर    वे  वर्तमान  में  स्वयं   को  अत्याचार , अन्याय  और  षड्यंत्र   आदि  विविध  पाप  कर्म  करने  से  स्वयं  को  रोक  नहीं  पा  रहे  हैं  l   संसार  में  शांति  चाहिए ,  लोग  तनाव  से  मुक्त  होकर  सुख - शांति  की  नींद  लेना  चाहते  हैं  तो  संस्कारों  में  परिवर्तन  अनिवार्य  है  l   यह  परिवर्तन  कैसे  हो  ?  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं  ---- '  जैसे  किसान  बीज   बोने     से  पूर्व   अपने  खेत  की  मिटटी  को   विविध  प्रकार  की  खाद  का  इस्तेमाल  कर  के ,  जुताई , सिंचाई  कर  के  उर्वर  करता  है  ---- उसी  प्रकार  हम   निरंतर  जप , तप , निष्काम  कर्म ,  ध्यान , भक्ति , स्वाध्याय   आदि  के  द्वारा   अपनी  चित्तभूमि   में  पूर्व  में   निहित   बुरे  संस्कारों   को  सदा  के  लिए  समाप्त  कर   उसे  उर्वर  बना  सकते  हैं  l   बुरे  संस्कारों  का  प्रभाव  समाप्त  होते  ही    हम  में  पुण्य  कर्म  करने   की  सहज  प्रवृति  पनपने   लग  जाएगी   और  तब  हम   सदा  आनंदित  और  प्रफुल्लित  रह  सकेंगे   l '