3 March 2024

WISDOM -----

  हमारे  धर्म  ग्रंथों  में  अनेक  ऐसे  प्रसंग  हैं  जो  यह  बताते  हैं  कि  हम  सब  के  जीवन  में   कोई  सुअवसर , सौभाग्य  के  पल  आते  हैं  l  यदि  हमारे  पास  विवेक  होता  है  तो  हम  उन   अवसर  का  स्वागत  कर  उसका  सदुपयोग  कर  लेते  हैं   और  यदि  विवेक  नहीं  है  तो  उन  सौभाग्य  के  पल  को  गँवा  देते  हैं  l  यह  विवेक  किसी  बाजार  में  पैसा  खर्च  कर  के  नहीं  मिलता   और  न  ही  किसी  संस्था  से  मिलता  है  l '  विवेक  '  ईश्वरीय  अनुदान  है   जो  सरल  ह्रदय  से  ईश्वर  का  स्मरण  करने  पर ,  सत्कर्म  करने  और  सन्मार्ग  पर  चलने  से   ईश्वरीय  कृपा  से  मिलता  है  l  रामायण  का  एक  प्रसंग  है ------ जब  भगवान  श्रीराम  को  वनवास  मिला  l  अपनी  पत्नी  सीता  और  भाई  लक्ष्मण  के  साथ  वनवास  को  चल  दिए  l  इस  मार्ग  पर  गंगा  नदी  पार  करनी  थी  l  कैसे  उस  पार  जाएँ  ?   स्रष्टि  में  कभी -कभी  ऐसे  पल  आते  हैं  जब  भगवान  को  भी  अपने  कार्य  के  लिए  इनसान की  जरुरत  पड़ती  है  l  एक  केवट  था  , उसे  बुलाया  गया  l   भगवान  श्रीराम  ने  उससे  निवेदन  किया  कि   हमें  अपनी  नाव  से   नदी  पार  करा  दो   l  केवट  बहुत  सरल  ह्रदय  और  भगवान  का  भक्त  था  , वह  समझ  गया  कि  ये  तो  भगवान  हैं  , उसके  पास  आए  हैं , ऐसा  मौका  फिर  दोबारा  नहीं  मिलेगा  l  केवट  कहने  लगा ---- ' मेरी  छोटी  सी  है  नाव , तेरे  जादूगर  पाँव  ,   मोहे  डर  लगे  राम   ,    कैसे  बिठाऊं  तुम्हे   नाव  में  l '  भगवान  ने  कहा  --- भाई  ! डर  किस  बात  का  ?  केवट  कहने  लगा --- यह  नाव  ही  मेरी  रोजी -रोटी   का  साधन  है  , मेरे  परिवार  का  जीवनयापन  इसी  से  होता  है  l  आपके  पैरों  के  स्पर्श  से  पत्थर  की  शिला   अहिल्या  बन गई ,  मेरी  नाव  का  कुछ   हला -भला  हो  गया  तो  मैं  कैसे  अपने  परिवार  का    पालन -पोषण   करूँगा  ?  केवट  कहने  लगा  ---मेरी  एक  शर्त  है --- जब  आपके  पैर  धो  लूँगा  , तभी  आप  नाव  में  बैठ  सकेंगे  l "  भगवान  श्रीराम  को  तो  नदी  पार  करनी  थी  अत:  उसकी  शर्त  मान  ली  l  केवट  की  पत्नी  जल्दी  से  कठौता  ले  आई  , केवट  ने  खूब  मल  कर  भगवान  के  पैर  धोये  l  हजारों  वर्षों  की  तपस्या  के  बाद  भी  जो  सुख  बड़े -बड़े  ऋषि -मुनियों  को  नहीं  मिलता  , वह  केवट  को  मिल  गया  l  नदी  पार  हो  गई  l  अब  समस्या  थी  कि  केवट  को  उसके  श्रम  की  क्या  कीमत  दें  l  भगवान  तो  वनवासी  थे , उनके  पास  तो  कोई  रुपया -पैसा  था  नहीं ,  न  ही  बहुमूल्य  वस्त्र  थे  तो  अब  क्या  दें   ?  भगवान  बड़ी  दुविधा  में  थे   तब  केवट  ने  बड़ी  सरलता  से  कहा  --- ' प्रभु  !  आप  परेशान  न  हों  ,  मैंने  आपको  पार  किया  ,  आप  मुझको  पार  लगा  देना  l   '   कितना  विवेक  था  केवट  में  1   उसने  यह  नहीं  कहा  कि  जब  आप  वापस  अयोध्या  लौटे  तो  मुझे  कोई  धन -दौलत  या  कोई  पद  दे  देना  l   उसने  कहा ---- आप  मुझे  इस  संसार  रूपी  भवसागर  से  पार  लगा  देना  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- हमें  ईश्वर  से  माँगना  भी  आना  चाहिए  l  धन -दौलत  मांगने  पर  मिल  भी  जाये  , लेकिन  यदि  सद्बुद्धि  नहीं  होगी  तो  वह  दौलत  सुख  नहीं  देगी , कष्ट  का  कारण  होगी  l  हम  ईश्वर  से  सद्बुद्धि   मांगे  l  

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 धरती  पर  अत्याचार  और  अन्याय  का  अंत  करने  के  लिए , दुष्टता  का  उन्मूलन  करने  के  लिए  ही   भगवान  धरती  पर  अवतरित  होते  हैं  l  जिस  समय  भगवान  श्रीकृष्ण  का  जन्म  हुआ   उन  दिनों कुछ  ऐसी  स्थिति  थी  जैसे  आसुरी  शक्तियों  ने  राजाओं  में  प्रवेश  कर  लिया  था  , उनके  अत्याचार  से  प्रजा  बहुत  दुःखी  थी  l   मगध  नरेश  जरासंध  ने  उस  समय  के  86  प्रतिशत  राजाओं  को   कैद  कर  लिया  था   l  केवल  14  प्रतिशत  शेष  बचे  राजाओं  को  कैद  कर  के  वह  उनकी  बलि  देना  चाहता  था  l  वह    इस  मनमानी  को   ही  धर्म   कहता  था  l   इस  क्रूर  नर संहार  को  रोकना  ही   सबसे  बड़ा  धर्म  था  l   जरासंध  ने  इतनी  विशाल  शक्ति  अर्जित  कर  ली  थी  कि  सामने  से  युद्ध  कर  के  उसे  पराजित  करना  संभव  नहीं  था  l    इसलिए  श्रीकृष्ण  ने  युधिष्ठिर  से  कहा --- आप  भीम  और  अर्जुन  को  मुझे  सौंप  दीजिए  , हम  युक्तिपूर्वक  जरासंध  का  वध  करेंगे  l  श्रीकृष्ण , अर्जुन  और  भीम  ब्राह्मण  का  वेश  बनाकर  मगध  की  राजधानी  पहुंचे  l   उन्होंने  परकोटे  के  दरवाजे  से  प्रवेश  न  करके    चैतक्य पर्वत  का  शिखर  तोड़कर   जरासंध  के  महल  जा  पहुंचे  l  श्रीकृष्ण  का  कहना  था  कि  शत्रु  के  घर  में  इसी  तरह  प्रवेश  किया  जाता  है  l  जरासंध  समझ  गया  कि  ये  लोग  क्षत्रिय  है  l  तब  श्रीकृष्ण  ने  कहा  कि  तुम  बंदी  बनाए  गए  राजाओं  को  छोड़  दो  या   फिर  हम  तुम्हे  युद्ध  के  लिए  ललकारते  हैं  l  जरासंध  भी  अहंकारी  था  श्रीकृष्ण  को  तो  वह  ग्वाला  समझता  था  और  अर्जुन  को  बालक  l  वह  भीम  से  युद्ध  करने  को  राजी  हो  गया   l  कहते  हैं  तेरह  दिन  और  तेरह  रात   बिना  विश्राम  किए  भीम  और  जरासंध  लगातार  लड़ते  रहे  l  चौदहवें  दिन  जब  जरासंध  कुछ  थक  सा  गया  तब  भीम  ने  श्रीकृष्ण  का  नीतियुक्त  इशारा  पाकर  जरासंध  का  वध  कर  दिया  l  इसके  बाद  जरासंध  द्वारा  कैद  किए  गए  सभी  राजाओं  को  मुक्त  कर  दिया  गया  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उन्हें  उपदेश  देते  हुए  कहा ---  वैभव  और  अधिकार  को  समाज  या  ईश्वर  की  धरोहर  मानकर   उसका  सदुपयोग  करना  चाहिए  l   अपनी  संपत्ति  और  वैभव  का  कभी  अहंकार  न  करना  क्योंकि  अहंकार  ही  पतन  का  कारण  होता  है  l