5 February 2019

WISDOM ----- शुभारम्भ हमेशा छोटे - छोटे कदमों से होता है

  छत्रपति  शिवाजी  उन  दिनों  मुगलों  के  विरुद्ध    छापामार  युद्ध  लड़  रहे  थे  l  रात  को   थके - मांदे  एक  बुढ़िया  की  झोंपड़ी  में  जा  पहुंचे  और  कुछ  खाने - पीने  की याचना  की  l  बुढ़िया  के  घर  में  कोंदों  थी  ,  सो  उसने  प्रेमपूर्वक  भात  पकाया  और  पत्तल  पर  उनके  सामने  परोस  दिया  l  शिवाजी  बहुत  भूखे  थे  l  सो  सपाटे  से  भात  खाने  की आतुरता  में  उँगलियाँ  जला  बैठे  , मुंह  से  फूंककर  जलन  शांत  करनी  पड़ी  l   बुढ़िया  बोली --- सिपाही  तेरी  शक्ल  शिवाजी  जैसी  लगती  है    और  साथ  ही  यह  भी  लगता  है  कि   तू  उसकी  तरह  मूर्ख  भी  है  l 
 शिवाजी  स्तब्ध  रह  गए  l  उनने  बुढ़िया  से  पूछा ---- भला  शिवाजी  की  मूर्खता  तो  बताओ  और  मेरी  भी  l    बुढ़िया  ने  कहा --- तूने  किनारे - किनारे  से  थोड़ी - थोड़ी  ठंडी  कोंदो  खाने  की  अपेक्षा   बीच  के  सारे  भात  में  हाथ  मारा   और  उँगलियाँ  जला  डालीं  l  यही  बेअकली  शिवाजी  करता  है  l  वह  दूर  किनारों  पर  बसे   छोटे - छोटे  किलों  को  आसानी  से  जीतते  हुए   अपनी  शक्ति बढ़ाने  की  अपेक्षा   बड़े किलों  पर  धावा  बोलता  है   और  मार  खाता  है  l 
  शिवाजी  को  अपनी   रणनीति   की   विफलता  का   कारण  समझ  में  आ  गया  l  उन्होंने  बुढ़िया  की  सीख  मानी   और  पहले  छोटे - छोटे  लक्ष्य बनाये   और  उन्हें  पूरा करने  की  रीति - नीति  अपनाई  l  छोटी  सफलताएँ  पाने  से   उनकी  शक्ति  बढ़ी   और  अंततः  बड़ी  विजय  पाने  में  समर्थ  हुए  l  शुभारम्भ  हमेशा  छोटे - छोटे  कदमों  से  होता  है   और  ज्ञान  कहीं  से  भी मिले  ,  उसे  समझने  और  जीवन  में  उतारने  से  सफलता  मिलती  है  l