चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस की महानता से चीन के सम्राट परिचित थे l एक दिन वे कन्फ्यूशियस से बोले --- " तुम मुझे उस व्यक्ति के पास ले चलो जो महान हो l "
सम्राट के इस प्रश्न को पूछने के पीछे यह भाव था कि कन्फ्यूशियस स्वयं को या सम्राट को महान की श्रेणी में रखेंगे l परन्तु कन्फ्यूशियस उन्हें लेकर एक वृद्ध व्यक्ति के पास पहुंचे l देखने में साधारण और कमजोर वह व्यक्ति एक कुआं खोद रहा था l सम्राट को उस वृद्ध व्यक्ति से परिचय कराते हुए कन्फ्यूशियस बोले --- " सम्राट ! मुझसे भी अधिक महान यह वृद्ध है l इसकी काफी आयु बीत चुकी है , शरीर से भी दुर्बल है , तब भी यह परोपकार के भाव से कुआं खोद रहा है l परोपकार में ही इसको आनंद की अनुभूति होती है l जिसका तन और मन दोनों ही परोपकार में निमग्न हों उससे अधिक महान अन्य कौन हो सकता है ? "
महान व्यक्ति समस्त मानवता के लिए संवेदनशील होते हैं , दूसरों के दुःख - दर्द को दूर करने का यथासंभव प्रयास करते हैं l
सम्राट के इस प्रश्न को पूछने के पीछे यह भाव था कि कन्फ्यूशियस स्वयं को या सम्राट को महान की श्रेणी में रखेंगे l परन्तु कन्फ्यूशियस उन्हें लेकर एक वृद्ध व्यक्ति के पास पहुंचे l देखने में साधारण और कमजोर वह व्यक्ति एक कुआं खोद रहा था l सम्राट को उस वृद्ध व्यक्ति से परिचय कराते हुए कन्फ्यूशियस बोले --- " सम्राट ! मुझसे भी अधिक महान यह वृद्ध है l इसकी काफी आयु बीत चुकी है , शरीर से भी दुर्बल है , तब भी यह परोपकार के भाव से कुआं खोद रहा है l परोपकार में ही इसको आनंद की अनुभूति होती है l जिसका तन और मन दोनों ही परोपकार में निमग्न हों उससे अधिक महान अन्य कौन हो सकता है ? "
महान व्यक्ति समस्त मानवता के लिए संवेदनशील होते हैं , दूसरों के दुःख - दर्द को दूर करने का यथासंभव प्रयास करते हैं l