पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ----- " मनोरोग और कुछ नहीं दबी -कुचली रौंदी गई भावनाएं मात्र हैं l भाव -संवेदना का अभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व को खंडित बना देता है और एक दर्द भरा , त्रासदी युक्त जीवन जीते हुए उन्हें देखा जा सकता है l " आज संसार में बौद्धिक विकास और भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि अपनी पराकाष्ठा पर है लेकिन फिर भी संसार में चारों तरफ धूर्तता , मनोरोग , छल -कपट , षड्यंत्र , धोखा , कलह -क्लेश ही दिखाई पड़ता है इसका कारण यही है कि मनुष्य ने केवल अपनी बुद्धि के विकास पर ध्यान दिया , भावनाओं की उपेक्षा कर दी l वैज्ञानिकों का भी मत है कि सुख -शांति और तनाव रहित जीवन जीने के लिए मनुष्य के बुद्धि और ह्रदय में संतुलन अनिवार्य है अर्थात बुद्धि के साथ संवेदनशीलता , दूसरों के दरद को समझना भी अनिवार्य है l ------ एक जमींदार था l साम , दाम , दंड , भेद -हर तरीका अपनाकर दूसरों की जमीन , सम्पत्ति हड़प कर वैभव - विलासिता का जीवन जीता था लेकिन उसे शांति न थी , मानसिक रूप से बहुत परेशान था l एक बार उसने विधवा बुढ़िया का खेत खेत बलपूर्वक छीन लिया l बुढ़िया ने गाँव के सभी लोगों के पास इस अत्याचार से बचाने की पुकार की , पर किसी की हिम्मत जमींदार के सामने मुंह खोलने की नहीं हुई l दुःखी बुढ़िया ने स्वयं ही साहस समेटा और जमींदार के पास यह कहने पहुंची कि खेत नहीं लौटाते तो उसमें से एक टोकरी मिटटी खोद लेने दे , ताकि उसे कुछ तो मिलने का संतोष हो जाये l जमींदार राजी हो गया और बुढ़िया को साथ लेकर खेत पर पहुंचा l उसने रोते -धोते एक बड़ी टोकरी मिटटी से भर ली और कहा --- इसे उठवाकर मेरे सिर पर रखवा दे l टोकरी बहुत भारी हो गई थी l जमींदार ने अकड़कर कहा --- ' बुढ़िया ! इतनी सारी मिटटी सिर पर रखेगी तो दब कर मर जाएगी l बुढ़िया ने उलटकर पूछा ---- यदि इतनी सी मिटटी से मैं दब कर मर जाऊँगी तो तू पूरे खेत की मिटटी मिटटी लेकर कैसे जीवित रहेगा ? ' जमींदार सोच में पड़ गया , उसके ह्रदय के किसी कोने में संवेदना जाग उठी और उसने बुढ़िया का खेत उसे लौटा दिया l उस दिन जमींदार को लगा कि उसके सिर पर से कोई बोझ उतर गया , मन हल्का हो गया l रात को चैन की नींद सो कर जब सुबह आँख खुली तब उसने जाना संवेदना की कीमत क्या होती है l