21 July 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- '  अपने  युग  की  सबसे  बड़ी  विडम्बना  एक  ही  है  कि   साधन  तो  बढ़ते  गए  ,  किन्तु  उनका  उपयोग  करने  वाली   अंत:चेतना  का  स्तर  ऊँचा  उठने  के  स्थान  पर   उलटा   गिरता  चला  गया  l   फलत:  बढ़ी  हुई  समृद्धि   उत्थान  के  लिए  प्रयुक्त  न  हो  सकी  l   आंतरिक  भ्रष्टता  ने   दुष्टता  की  प्रवृतियां  उत्पन्न  कीं  और  उनके  फलस्वरूप   विपत्तियों  की  सर्वनाशी  घटाएं   घिर  आईं  l  '
आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---  शक्ति , साधन , धन  आदि  सुविधाओं  का   उपयोग  करने  वालों  की  चेतना  का  परिष्कृत   होना  आवश्यक  है  ,  अन्यथा  बढ़े   हुए  साधन - सुविधा    दुष्ट  बुद्धि  के  हाथ  में  पड़कर   नई  समस्या  और   नई  विपत्तियाँ   उत्पन्न  करेंगे   l  
 दुष्ट  जब  शारीरिक  दृष्टि  से  बलिष्ठ  होता  है   तो  क्रूर  कर्मों  पर  उतारू  होता  है   और  आततायी  जैसा  भयंकर  बनता  है  l
  चतुर  और  बुद्धिमान  होने  पर   ठगने  और  सताने  के  कुचक्र  रचता  है  l 
  धनी   होने  पर  व्यसन  और  अहंकार   के  सरंजाम  जुटाता  है   और  अपने  तथा  दूसरों  के  लिए   क्लेश - विद्वेष  के  सरंजाम  खड़े  करता  है  l 
सुरक्षा  सामग्री  का  उपयोग  दुर्बलों  के  उत्पीड़न   और  कला - कौशल  गिराने  के  लिए  होता  है  l 
 विज्ञानं  जैसे  महत्वपूर्ण  आधार  को   विषाक्तता   और  विनाश  के  रोमांचकारी   प्रयोजन  में  प्रयुक्त  होते  देखा  जाता  है  l 
 न्याय  और  विकास  के  लिए    नियुक्त  किए   गए   अधिकारी   ' मेड़   ने  खेत  खाया  '  की  भूमिका  निभाते  देखे  जाते  हैं  l 
  इस  युग  की  सबसे  बड़ी  आवश्यकता   चेतना  को  परिष्कृत  करने , व्यक्तित्व  को  सुसंस्कृत  और  समुन्नत  बनाने  की  है  l