19 September 2022

WISDOM -----

श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं ---ज्ञान , कर्म  और  भक्ति  का  समन्वय  जीवन  के  समग्र  विकास  के  लिए  अनिवार्य  है  l  इन  तीनों  का  समन्वय  होने  पर  ही  सुख , शांतिमय  जीवन  बीत  सकेगा  l    कर्म  और  भक्ति  के  अभाव  में  ज्ञानी  व्यक्ति , अहंकारी  बन  सकते  हैं  l   ज्ञान  के  अभाव  में  मनुष्य  के  कर्म  दुष्कर्म  हो  सकते  हैं    और  ज्ञान  व  कर्म  के  अभाव  में   केवल  भक्ति  व्यक्ति  को  अन्धविश्वासी  तथा  अकर्मण्य  बना  सकती  है  l  भक्ति  भी  ज्ञान  और  कर्म  से  युक्त  होनी  चाहिए  l    एक  कथा  है ----- मरने  के  बाद  एक  व्यक्ति  की  आत्मा  को  यमदूत  धर्मराज  के  सामने  ले  गए  , दूतों  ने  बताया --- " यह  एक  बड़ा  धर्मात्मा  है  l युवावस्था  में  अपने  माता -पिता  और  स्त्री , बच्चों  को  छोड़कर  यह  जंगल  में  चला  गया  और  जीवन  भर  तप  करता  रहा  l  "  धर्मराज  ने  कहा --- " कर्तव्यों  का  त्याग  कर  कोई  व्यक्ति  धर्मात्मा  नहीं  बन  सकता  l  परिवार  के  लोगों  के  साथ  विश्वासघात  कर  के  इसने  अधर्म  ही  कमाया  ,  ऐसा  भजन  किस  काम  का  जो  कर्तव्यों  को  भुलाकर  किया  जाए  l  इसे  पुन:  धरती  पर  भेजो  और  कर्तव्य  पालन  के  साथ  भजन  करने  का  आदेश  करो  ,  तभी  इसे  स्वर्ग  में  स्थान  मिलेगा  l   "   यमदूतों  ने  दूसरे  व्यक्ति  की  आत्मा  उपस्थित  की  और  कहा --- " यह  व्यक्ति  बड़ा  कर्तव्यपरायण  है  l  काम  को  ही  सब  कुछ  समझता  है  l  इसकी  पत्नी  बीमार  पड़ी  और  मर  गई  ,  पर  यह  उसकी  कुछ  भी  परवाह  न  कर  के  अपने  कर्तव्य  में  ही  लगा  रहा  l " धर्मराज  ने  कहा --- " ऐसे  ह्रदयहीन  का  स्वर्ग  में  क्या  काम  ?  भावना पूर्वक  किया  गया  कर्तव्य  ही  प्रशंसनीय  हो  सकता  है  l  जिसे  अपने  नैतिक  कर्तव्यों  का  ज्ञान  नहीं  ,  उसकी  शारीरिक  दौड़ -धूप  क्या  महत्त्व  रखेगी  l  इसे  प्रथ्वी  पर  भेजो  और  कहो  कि  भावना पूर्वक  जीवन  जिए  और  दूसरों  से  प्रेम  करना  सीखे  ,  तभी  उसे  स्वर्ग  में  स्थान  मिलेगा  l  "  एक  तीसरे  व्यक्ति  की  आत्मा  लाई  गई  l  यमदूतों  ने  कहा --- " यह  एक  साधारण  गृहस्थ  है l  सदा  आस्तिक  रहा , प्रेमपूर्वक  परिवार  को  सुविकसित  किया , पवित्र  जीवन  जिया  और  दूसरों  के  उत्थान  के  लिए  निरंतर  प्रयत्न  करता  रहा  l "  धर्मराज  ने  कहा --- " स्वर्ग  ऐसे  ही  लोगों  के  लिए  बनाया  गया  है  ,  इसे  आदरपूर्वक  ले  जाओ  और  आनंद पूर्वक  यहाँ  रहने  की  व्यवस्था  कर  दो  l  "  स्वर्ग  का  अधिकारी  वही  हो  सकता  है  जिसने  ज्ञान , कर्म  और  भक्ति  तीनों  को  जीवन   में  अपनाया  है   l