7 April 2021

WISDOM -------

  श्री  महादेव  गोविन्द  रानाडे   के  जीवन  का  प्रसंग  है  --- जब  वे  कुछ  समय  के  लिए   कोल्हापुर  में  जज  के  पद  पर  थे  l उनके  पिता   के  अनेक  परिचित  उन  दिनों   घर  आने  लगे  कि   वे  उनके  मुकदमे  में  सिफारिश  कर  दें  l   एक  बार  उनके  दूर  का   कोई  संबंधी   जो    प्रतिष्ठित  व्यक्ति  था ,  किसी  बड़े   झगड़े   में  फँस   गया  था  , उसने  उनके  पिता  से    कहा  कि   वे   रानाडे  से  सिफारिश  करें कि   वे  उनके  कागजात  अच्छी   तरह देख  लें  ,  तब  मुकदमे  का  फैसला  करें   l  उसके  बार - बार  अनुनय - विनय  करने  पर  रानाडे  के  पिता  को  उस  पर  दया  आ  गई   और  उन्होंने  अपने  बेटे  से  कहा  कि   वे  उसकी  बात  सुन  लें   l   रानाडे   बड़े  पितृभक्त  थे  उन्होंने  कोई  जवाब  नहीं  दिया  l   तब  उस  व्यक्ति  ने  कहा  --- ' मैं  आपको   अपने  कागज - पत्र  दिखाना  चाहता  हूँ  ,  जब  आपको   अवसर  हो  तो   दिखाऊं  l  '  रानाडे  ने  बड़ी  नम्रता  से  उत्तर  दिया  ---- जी  नहीं ,  आज  तो  मुझे  बहुत  काम  है  ,  जब  अवसर  होगा   तब  आपको   सूचना   दे  दूंगा   l  "   जब  वह  सज्जन  चले  गए  तब  बहुत  विनय  के  साथ  किन्तु   स्पष्ट  शब्दों  में  उन्होंने  अपने  पिता  से  कहा ---- " मैं  जानता   हूँ   कोल्हापुर   के  सभी  लोग  आपके  परिचित  हैं   l   वे  सभी  अपने  मुकदमे  में   आपसे  सिफारिश  कराना   चाहेंगे   आप  किस  प्रकार    सबके    मन   की   बात  पूरी  कर   सकेंगे   ?   इसलिए  इस  संबंध   में  अच्छी   तरह विचार  कर  लीजिए ,  अन्यथा   विवश  होकर  मुझे    यहाँ  से  बदली  करा  लेनी  पड़ेगी   l  "