3 June 2018

जब तक मानसिकता नहीं बदलती , सामाजिक बुराइयाँ समाप्त नहीं होतीं , ऐसे जातिगत भेदभाव करने वाले चेहरे बदल जाते हैं

    अंग्रेजों  के  जमाने  में   जातीय  पक्षपात   के  शिकार  होने  वाले  सर्व  प्रथम   भारतीय   उच्च  पदाधिकारी  श्री  सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  थे  ,  जिसकी  चर्चा   आज  से  लगभग  सवा  सौ  वर्ष  पूर्व   बहुत  दिनों  तक  देश - विदेश  में  सुनाई  पड़ती  रही   l 
  यद्दपि  सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  का  जन्म    बंगाल  के  एक  प्रसिद्ध  ब्राह्मण  परिवार  में  हुआ  था  ,  लेकिन  अंग्रेजों  की  निगाह  में  वे  एक  भारतीय  थे   और  भारतीयों  को  नीचा  समझकर  वे   आगे  बढ़ने  देना  नहीं  चाहते  थे   l   उस  समय  में  वे  आई. सी. एस.  की  परीक्षा  पास  कर  के    सिलहट ( आसाम )  में   असिस्टेंट  डिस्ट्रिक्ट  मजिस्ट्रेट     नियुक्त  हुए  l  भारतीयों  के  लिए  यह  गर्व  की  बात    थी    लेकिन   अंग्रेज  भारतीयों  को  हीनता   की  द्रष्टि  से  देखते  थे  , इस  कारण   सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  के  साथ  रुखा   व्यवहार  करने  लगे   l  श्री  बनर्जी  बहुत  योग्य  थे   लेकिन  उच्च  अधिकारी  बात - बात  में  उनकी  गलती  निकालने  लगे   l  उच्च  अधिकारी  से   वैमनस्य  रहने  के  कारण  दो  वर्ष  के  भीतर  ही  वे  सरकारी  नौकरी  से  हटा  दिए  गए   l 
  इस  अन्याय  की  शिकायत  करने  के  लिए  श्री  बनर्जी  इंगलैंड  गए    लेकिन  जातीयता  के  आधार  पर  वहां  भी   गोरे  लोगों  का  ही  पक्ष  लिया  गया  l    अब  उन्होंने  अपना  लक्ष्य  देश  में  शिक्षा  का  प्रसार  और  शासन  में  सुधार  का  बना  लिया  l  एक  कार्यक्रम  में  उन्होंने  कहा ----- "  जो  अन्याय  मेरे  साथ  किया  गया   वह  हमारे  समाज  और  देशवासियों  की   नितान्त  शक्तिहीनता    का  द्दोतक   है  l  यह  अन्याय  मुझे  केवल  इसलिए  सहना  पड़ा  क्योंकि  मैं  भारतीय  हूँ  ,  एक  ऐसे  समाज  का  सदस्य  जिसमे  कोई  संगठन  नहीं  है ,  जिसका  एक  सार्वजनिक  मत  नहीं  है   l 
  उनकी  मान्यता  थी  कि  अच्छी  शिक्षा  देशोन्नति  की  पहली  सीढ़ी  है   l