31 January 2020

WISDOM -----

' अहंकार  एक  भयानक  रोग  है   l   इसकी  खास  बात  यह  है  कि   यदि  व्यक्ति  सफल  होता  है   तो  उसका  अहंकार  भी  उसी  अनुपात  में  बढ़ता  जाता  है    और  वह  विशाल  चट्टान  की  भांति  जीवन  के  सुपथ ,   सत्यपथ  या  आध्यात्मिक  पथ  को  रोक  लेता  है  l
  इसके  विपरीत  यदि  व्यक्ति  असफल  होता  है   तो  उसका  अहंकार  एक  घाव  की  भांति  रिसने  और  दुखने  लगता  है   l   साथ  ही  धीरे - धीरे  मन  में  हीनता  की  ग्रंथि  बन  जाती  है  ,  जो  सदा - सर्वदा  डराती   रहती  है   l   अहंकार  भक्ति  और  ज्ञान  दोनों  के  लिए  ही  बाधक  है  l   हमारा  आध्यात्मिक  उत्थान ,  आत्मिक  उत्थान  ,  अपने  ही  अहंकार  के  कारण  अवरुद्ध  है   l 

30 January 2020

वर्तमान जगत के युग - पुरुष --- महात्मा गाँधी

    ' तीस  जनवरी  शाम  को  बापू  बिड़ला  घर  से  बाहर  आए   और  प्रार्थना - सभा  में  जाने  धीरे - धीरे  कदम  बढ़ाए ,  उस  दिन  होनी  अपना  रूप  बदल  कर  आई  और  अहिंसा  के  सीने  पर  हिंसा  ने  गोली  बरसाई  l    बापू  ने  कहा  राम - राम   और  जग  से  किया  किनारा ,  श्रीराम  के  घर  जा  पहुंचा  श्रीराम  का  प्यारा  l '
     मृत्यु  से  पहली  रात  को  जब  वे  विश्राम  के  लिए  बिस्तर  पर  लेट  गए  और  एक  दो  अनुयायी  उनके  थके  हुए  अंगों  को  मल   रहे  थे  ,  उन्होंने  कहा ---- ' अगर  मैं  किसी  बीमारी  से , सामान्य  फोड़े  से  भी  मरीज  होकर  मरुँ  ,  तो  तुम्हारा  यह  कर्तव्य  है  कि   संसार  को  बता  दो   कि   गांधीजी  सच्चे  ईश्वर  भक्त  नहीं  थे  ,  चाहे  इससे  लोग  तुमसे  नाराज  ही  क्यों   न हो  जाएँ  l   अगर  तुम  ऐसा  करोगे  तो  मेरी  आत्मा  को  शांति  मिलेगी  l    साथ  ही  यह  लिखकर  रख  लो  कि   अगर  कोई   गोली  चलकर  मेरे  जीवन  का   अंत  कर  दे   और  मैं  उस  आघात  को   बिना  हाय - तौबा  किये   सह  लूँ  , तब  भी  राम   नाम  लेता  हुआ  प्राण  त्यागूँ  ,  तो  यह  समझना  कि   मैं  जो  दावा   करता  था   वह   'सच  है  l
  संसार  में  गांधीजी  के  देहान्त   होने  का  जितना  अधिक  शोक  मनाया  गया   और  सब  तरह  के  लोगों  ने  इसे   जिस  प्रकार  अपनी  व्यक्तिगत  हानि  माना  ,  वैसा  संसार  में  शायद  ही  पहले  कभी  हुआ  हो  l   अमरीका  के  सबसे  बड़े  अख़बार  ' न्यूयार्क  टाइम्स '  ने  लिखा --- " गांधीजी  अपने  उत्तराधिकार  स्वरुप  एक  ऐसी  आध्यात्मिक  शक्ति  छोड़  गए   जो  भगवान   के  निर्देशित  समय  पर   अवश्य  ही  हथियारों   और  हिंसा  की   दूषित  नीति   पर   विजय  प्राप्त  करेगी  l  "
    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  वाङ्मय  ' हमारी  संस्कृति  इतिहास  के  कीर्ति  स्तम्भ  '   में    लिखा  है----  '  महात्मा  गाँधी  वास्तव  वास्तव  में  युग  पुरुष  थे  l   ऐसे  महामानव   प्रकृति   अथवा  ईश्वर  के  नियमानुसार  ' युग - परिवर्तन '  के  अवसर  पर  प्रकट  होते  हैं   और  संसार  की  परिस्थितियों  के  अनुकूल  सत्य - मार्ग  का  उपदेश  देते  हैं  l   उनकी  सबसे  बड़ी  विशेषता  यही  होती  है   कि   वे  जो  कुछ  कहते  हैं   उसके  अनुसार  स्वयं  भी  आचरण  कर  के   दिखा  देते  हैं   l  '

28 January 2020

WISDOM ------ शक्ति का सदुपयोग जरुरी है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है --- ' समर्थ  होने , शक्तिसम्पन्न  होने  से  अधिक  जरुरी  है   सद्गुण संपन्न  होना  , क्योंकि  सद्गुणों  के  अभाव  में  शक्ति  के  दुरुपयोग  की  संभावना  हमेशा  बनी   रहती  है   l   गुणहीन   व्यक्तियों  के  पास   जो  भी  शक्ति  आती  है  ,  वो  हमेशा  दुरूपयोग  करते  हैं  ,  फिर  चाहे  यह  शक्ति  सामाजिक  हो , राजनीतिक   हो   या  फिर  वैज्ञानिक    अथवा  आध्यात्मिक   हो  l   इसलिए   पहले  सद्गुण  , फिर  शक्ति  l  व्यक्ति  का  व्यक्तित्व  समर्थ - बलशाली   होने  से  भी  ज्यादा  महत्वपूर्ण  है   उसका  सदगुणसम्पन्न  होना  ,  गुणवान  होना  ,  मानवीय  मूल्यों  के  प्रति  सचेष्ट    एवं    समर्पित  होना  l  '
    रामचरितमानस  में  दो  व्यक्तित्व  हैं ---- एक  हैं  वानरराज  बालि   और  दूसरे  अंजनी पुत्र  हनुमान  l   इन  दोनों  में  हनुमानजी  का  ज्ञान  बालि   से  कहीं  अधिक  था   l
 बालि   को  बल  पर  संयम  करने  की  असाधारण  क्षमता  प्राप्त  थी  ,  इस  वजह  से   जो  भी  प्रतिपक्षी  उसके  सामने  आता  ,  बालि   उसकी  समस्त  शक्तियों   को  स्वयं    में  आत्मसात  कर  लेता  था  l  उसका  स्वयं  का  बल  तो  उसके  पास   था  ही   l   इस  तरह   उसके  सामने  प्रतिपक्षी  योद्धा  का  बल  घटकर  आधा  रह  जाता  था   और  बालि   का  स्वयं  का  बल  ड्योढ़ा - दूना  हो  जाता  l  इस  तरह  बालि   की  विजय  सुनिश्चित  होती  और  प्रतिपक्षी  की  पराजय  सुनिश्चित  l   इस  शक्ति  ने  बालि   को  अहंकारी  और  दम्भी  बना  दिया  था   l  उसने  अपने  छोटे  भाई  सुग्रीव  का  उससे  सब  कुछ  छीन  लिया   l   प्रकृति  किसी  के  अहंकार    को  बर्दाश्त  नहीं  करती  l   प्रकृति  के  दंडविधान  के  अनुरूप  बालि    को  दण्डित  होना  पड़ा  l   हनुमानजी  की  सहायता  से  भगवान   श्रीराम  ने  उसे  दण्डित  किया  l   बालि   की  उस  शक्ति  की  वजह  से  भगवान   को  भी  उसे  छिपकर  मारना  पड़ा  ,  क्योंकि  प्रत्यक्ष  होने  पर  संभावना  यही  थी  कि  बालि   के  पास  उनका  भी  आधा  बल  चला  जाता  l
  बालि   के  स्वभाव   के  ठीक  विपरीत   हनुमानजी  भगवान   के  परम   भक्त  एवं   विनम्र  थे  l   जन  - सेवा , ईश्वर - सेवा  उनका  ध्येय  था  l   प्रकृति  के  सभी  देवी - देवताओं  का  उन्हें  आशीर्वाद  प्राप्त  था , असाधारण  क्षमता संपन्न  थे  l  परन्तु  हनुमानजी  को  अपने   बल  पर  कोई  अभिमान  नहीं  था   इसलिए  वे  प्रभु  की  योजना  व  कार्य  में  उनके  सहयोगी  बने  l   उनसे  सभी  का  कल्याण  हुआ  l   आज  भी  वह  अपने  सद्गुणों  व  शक्ति  के  कारण  अनगिनत  जनों   के  आराध्य  हैं  l
 आचार्य श्री  लिखते  हैं ---  संयम  की  योग्यता , शक्ति  और  उसके  सदुपयोग  के   आदर्श  हैं -  हनुमान जी  , जिन्होंने  अपनी  शक्तियों  का  उपयोग  सदा  ही  लोक - कल्याण  में  किया  l   उनके  जीवन  का  एक  ही  
ध्येय   वाक्य  था ---- ' राम  काजु   कीन्हें   बिनु  मोहि  कहाँ  बिश्राम  l 

27 January 2020

WISDOM ---- उचित यही है कि हम जैसे हैं , वैसे ही बाहर दिखें

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ---' महत्व   को  पाने  की  ललक  एक  ऐसा  विष  है  , जो  जिस  क्षेत्र  में  घुलेगा  उसे  विषैला  बनाएगा   l   इसकी  टोह   में  लगा  आदमी   अंदर  से  नीति ,  मर्यादाओं  और  अनुशासन  की  अवहेलना  करते  हुए   बाहर  से  नैतिक , मर्यादित  और  अनुशासनप्रिय   दिखाने   का  प्रयत्न  करता  है  l   सम्मान  पाने  के  लिए  नकली  समाज सेवी  पनपते  हैं , अमीरी  पाने  के  लिए  चोरी , बटमारी , तस्करी  फैलती  है  l '
  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- 'नैतिकता  या  अच्छाई  का  खोल  ओढ़े  लोगों  से    अनैतिक  अमर्यादित  दिखने  वाले  लोगों  की  अपेक्षा  कहीं  अधिक  खतरा  है  l   बुराई    बुराई  है  पर  अच्छाई  के  गर्भ  में  बुराई  को  भरण - पोषण  मिलना  और  अधिक  भयंकर  है  l   पाप  को  पाप  समझ  लेने  के  बाद  उससे  बचा  जा  सकता  है  ,  लेकिन  जो  पाप  पुण्य  की  आड़  में  किया  जाता  है  ,  उससे  बच  पाना  बहुत  कठिन  है   l   बुराई  का  अपना  कोई  अस्तित्व  नहीं  है  ,  वह  अच्छाई  में  घुसकर  पनपती  है  l 
  शत्रु   से  बचाव  आसान  है  ,  पर  मित्र  बने  शत्रु  से  बच  पाना  असंभव  है   l   जितने  व्यक्ति  जहर  से  नहीं  मरते   उतने  मिठाई  में  जहर  छिपा  कर  दिए  जाने  से  समाप्त  हो  जाते  हैं  l  डाकू  को  पहचानना  और  उससे  बचना  सामान्य  क्रम  है   किन्तु  साधु  के  वेश  में  घूमने  वाले  डाकू  से  बच  पाना  आसान  नहीं  है   l   डाकू  संसार  की  जितनी  हानि  नहीं  करते    तथाकथित   सफ़ेद  पोश   उससे  कहीं  अधिक  परेशानी  खड़ी  करते  हैं   l
  महानता  कमाई  जाती  है  , इसे  किसी  तरह  छीनना - झपटना  संभव  नहीं  है  l   अपनी  स्थिति  को  बढ़ा - चढ़कर  दिखाने   का  प्रयत्न  विकास  की  राह  से  भ्रष्ट  कर  देता  है   और  हमेशा  यही  डर   बना  रहता  है  कि   कहीं  भेद  न  खुल  जाये  l  '

26 January 2020

WISDOM ----- विद्दा के उपासक ---- श्री रामकृष्ण परमहंस

 कामारपुकुर  से  कलकत्ता  आने  पर  रामकृष्ण  परमहंस  के  बड़े  भाई  ने   उन्हें  स्कूल   में  पढ़ाने  की  बहुत  कोशिश  की  l   इस  पर  उन्होंने  साफ़  इनकार   करते  हुए  कहा --- " दादा  ! मैंने  अक्षर  ज्ञान  पा  लिया  है  , सत्साहित्य  को  पढ़  सकता  हूँ   l   अब  इस  पेट  भरने  वाली  शिक्षा  को  पढ़कर  जिंदगी  बरबाद   नहीं  करूँगा   l    मैं    तो  इनसान   बनूँगा l  '   और  जुट  गए  अपने  व्यक्तित्व  को  संवारने   l   जीवन  विद्दा  के  आचार्य  के  रूप  में  ढालकर    उन्होंने  दक्षिणेश्वर  मंदिर  को  जीवन  विद्दा  का  केंद्र  बनाया    और  जुट  गए  इंसानो  को  गढ़ने  में  l 
  विवेकानंद , अभेदानन्द , ब्रह्मानंद  जैसे  चमचमाते  खरे  व्यक्तित्व   ढालकर  उन्हें   जीवन  विद्दा  के  विस्तारक  के  रूप  में  समाज  को   समर्पित    किया   l   विद्दा  के  आचार्यों  को  गढ़ने  वाले    इस  महामानव  की  स्तुति  में    स्वामी  विवेकानंद  ने  कहा  है --- "  वे  आचार्यों  के  महा आचार्य  थे  l   स्वामीजी  कहते --- मेरे  गुरु  ने   मुझे  विद्दा  दी  है   l   इसको  पाकर  मैं  दार्शनिक  नहीं  हुआ  ,  तत्ववेत्ता  भी  नहीं  बना  हूँ  l   संत  बनने  का  दावा   नहीं  करता  ,  परन्तु  मैं  एक  इन्सान   हूँ   और  इन्सानों   को  प्यार  करता  हूँ  l "
  ब्रह्मानंद  के  शब्दों  में  --- ठाकुर  हम  लोगों  से  कहा  करते  थे  ---- ' जब  तुम  सोलह  आने  बनोगे   तब  तुम्हे  देखकर  लोग   आठ  आने  अपनाने  की  सकेंगे  l "  उनके  ये  शब्द  आज  भी   लोक  शिक्षक  के  लिए  कसौटी  हैं   l

23 January 2020

WISDOM ------

  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   एक  प्रसंग  में   वाङ्मय  में  लिखा  है  ----- '  अपनी  हीन   तथा  निम्न  वृत्तियों  को  संतुष्ट  करने  के  लिए   लोग  प्राय:  अहंकार   का  पालन  किया  करते  हैं  l   वे  मद  में  इतने  मत्त   हो  जाते  हैं  कि  इस  बात  का  विचार  ही  नहीं  करते  कि   उनके  अहंकार  के  नीचे  दबकर    कितने  निरपराध  तथा  असहाय  लोगों  का  बलिदान  हो  रहा  है  ?   किसी  का  भी  त्याग  और  बलिदान  व्यर्थ  नहीं  जाता   l   कम    समझ  लोग  चाहे  उसके  प्रभाव  को  अनुभव  न  कर  सकें   और  अदूरदर्शी  भी   तुरंत  उसका   कोई  परिणाम   न  देखकर   उसे  व्यर्थ  बताने  लगें   l   पर  तत्ववेत्ता   इस  बात  को  अच्छी  तरह  जानते  हैं  कि    इस  जगत  में  छोटे  से  छोटे  काम  की  भी  प्रतिक्रिया  अवश्य  होती  है   l 

22 January 2020

अपने बौद्धिक होने का अहंकार और बढ़ती निष्ठुरता के कारण मनुष्य ऐसा कुछ कर रहा है जिसे देखकर प्राचीनकाल के दैत्यों के दिल दहल जाएँ --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य श्री  लिखते  हैं --- बौद्धिकता  के  बल  पर  अनेकों  तरह  की  खोजबीन  करने  वाला  मानव  कितना  ही  अभिमान  क्यों  न  करे  पर  संवेदनाओं  के  क्षेत्र  में  वह   पाषाण  युगीन  मनुष्य  से  भी  कोसों  पीछे  है  l  जान   रसेल  ने  लिखा  है --- "प्रत्येक  व्यवहार  विज्ञानी  ईसा , फ्रांसिस , संत पाल , गाँधी  और  बुद्ध  के  व्यवहार  को  ललचाई  नज़रों  से  देखता  है  l   लेकिन  हिटलर , मुसोलिनी  को  व्यवहार  के  कलंक  के  रूप  में   देखता  है  l  "
 आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' निस्संदेह  व्यवहार  सम्बन्धी  दोषों , दुर्बलताओं  और  कमियों  का  एकमात्र  कारण  निष्ठुरता  है   l   कितने  ही  शासन  बदले , सत्ताएं  बदली  लेकिन   क्या  इस  उलट - फेर  में  मनुष्य  सुखी  हो  सका   ?   ' नहीं '  l   क्योंकि  उसने    निष्ठुरता  के   स्थान  पर  अन्त: संवेदना  की  स्थापना  नहीं  की   l   यदि  मनुष्य  के  हृदय  में  संवेदना  जाग  जाये   तो  उसके  व्यवहार  में  स्थायी  सुधार  संभव  है  l
    अन्त : संवेदना  का  जागरण  इस  कदर  बेचैनी  उत्पन्न  करता  है   और  व्यवहार  को  बदलने  के  लिए  बाध्य  करता  है  l 
  एक  ऐतिहासिक  घटना  है ----- विजयनगर  सम्राट   कृष्णदेव  राय  ने  अपने  गुरु  संत  कनकदास  से  पूछा  ---   महाराज  !  भगवान   गज  को  बचाने   स्वयं  क्यों  दौड़े  ?  दौड़े  भी  थे  तो  सवारी  क्यों  नहीं  ली  ?'
  संत  दूसरे  दिन  समझाने   का  वादा  कर  के  चले  गए  l   दूसरे  दिन  उन्होंने  नवजात  राजकुमार  की   ठीक  वैसी  ही  प्रतिमा  बनवाई  ,  बिलकुल  स्वाभाविक  थी ,  और  उसे  गोद   में   खिलाते   हुए  राजमहल  के  तालाब  के  पास  आये   l   राजा  भी  पास  ही  थे  l   उस  कृत्रिम  प्रतिमा  को  उन्होंने  धीरे  से  तालाब  में  डाल   दिया   l   प्रतिमा  बहुत  स्वाभाविक  थी   , नकली  राजकुमार  के  गिरते  ही  राजा  कूद  पड़ा   और  बहुत  देर  बाद  जब  वह  निकला  तो  राजकुमार  की  प्रतिमा  उसके  हाथ  में  थी  l   अपनी  बेवकूफी  पर  खिन्न  भी  था  l   संत  ने  कहा --- उत्तर  मिला  सम्राट  l   अन्त:  संवेदना  का  जागरण  ऐसी  ही  बेचैनी  उत्पन्न  करता  है   l   फिर  भगवान   तो  संवेदनाओं  के  घनीभूत  रूप  हैं  ,  गज  की  पुकार  पर  , द्रोपदी  की  पुकार  पर  दौड़े  चले  आये  l

WISDOM --- महानता बड़प्पन प्रदर्शन में नहीं , अपितु अपनी तुलना में अनेकों का अनेक गुना हित - साधन में है --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

    कीट्स   ने  अपनी  कविता  ' महिमा  से  महानता  की  ओर  '  में  ठीक  ही  कहा  है ---- ' जब  मनुष्य  अपनी  ही  महिमा  का  गुणानुवाद  अपने  मुख  से  करने  लगे ,  तो  समझना  चाहिए  कि   वह    उस  महानता  से  दूर  हटता   जा  रहा  है ,    जो  उसे  सहज  में  उपलब्ध  हो  सकती  थी  l   क्षुद्र  स्तर  के  लोग  ऐसी  ही  चर्चा  में  संलग्न  रहते  हैं  और  अपना  एवं   दूसरों  का  समय  बरबाद   करते  हैं  l   महानता  यत्र - तत्र  उल्लेख  कर  लेने  भर  से  व्यक्तित्व  में  नहीं  आ  जाती  ,  न  ही  यह  विज्ञापन  का  विषय  है  l  यह  एक  ऐसी  विभूति  है  ,  जो  बिना  कहे  हुए  भी  सामने  वाले  को  बहुत  कुछ  कहती  बताती  रहती  है  l   फूलों  को   अपनी   सुगंध  की  चर्चा  करने  की  कहाँ  आवश्यकता  पड़ती  है  l   वह  काम  तो  उनकी  अद्भुत  सुवास  ही  अनायास  करती  रहती  है   और  अनेकानेक  भौरों  को  मदमस्त  करती  हुई  खींच   बुलाती  है  l   जिस  दिन  हिमालय  अपने  गुणों  का  बखान  करने  लगे  ,  उसी  दिन  उसकी  आध्यात्मिकता  की  दिव्यता  समाप्त  हो  जाएगी   और  लोग  उसका   सान्निध्य  लाभ  लेने  से  कतराएंगे  l
  एक  अन्य  विद्वान्  ने  लिखा  है  --- महानता  बताने  की  वस्तु  नहीं  है  , वरन  करने  योग्य  कार्य  है  l   वे  कहते  हैं  कि   यदि  कोई  व्यक्ति    दिन - रात  चीखता  रहे  कि   वह  महान  है  ,  लोगों  को  उसका  सम्मान  करना  चाहिए  ,  तो  उलटे  वह  अपमान  और  उपहास  का  पात्र  साबित  होगा  l   इसके  विपरीत  यदि  लोगों  की    भलाई  के  लिए   छोटा  सा  भी  कार्य  कर  दे   तो  जान - श्रद्धा  उसके  प्रति  सहज  ही  उमड़  पड़ेगी  l
श्रद्धा   से    सम्मान   और  सम्मान  से  महान  बनने  की   ओर   उसका  मार्ग  प्रशस्त  हो  जायेगा   l 

21 January 2020

WISDOM ------ प्रकृति किसी के भी अहंकार को बर्दाश्त नहीं करती

     ' पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है --- बुरे  दिनों  की  चपेट  में  आने  से  पहले  आदमी  अहंकारी  हो   चुका   होता  है  l  उद्धत  मनुष्यों  की   दुर्मति  ही  उनकी  दुर्गति  कराती  है   l  मनीषियों  का  कहना  है  कि   अहंकार  मनुष्यों  को  गिराता   है  l   उसे  उद्दंड  और  परपीड़क  बनाता  है  l   अपने  साथियों  को  पीछे  धकेलने ,  किसी   के अनुग्रह  की  चर्चा  न  करने  ,  दूसरे  के  प्रयासों  को   हड़प  जाने  के  लिए  अहंकार  ही  प्रेरित  करता  है   ताकि  जिस  श्रेय  की  स्वयं  कीमत  नहीं  चुकाई  गई   उसका  भी  लाभ  उठा  लिया  जाये  l
  अहंकारी  लोग  आमतौर  से  कृतध्न  होते  हैं   और  अपनी  विशेषताओं   और  सफलताओं  का  का  उल्लेख  बढ़ - चढ़  कर  करते  हैं  l   इनमे  नम्रता , विनयशीलता  का  अभाव  होता  है   और  अन्यों  को  छोटा  दिखाने, पिछड़ों   का  तिरस्कार - उपहास  करने     की  प्रवृति  बढ़ती  जाती  है   l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'जब  अहंकार  बढ़ने  लगता  है   तो  व्यक्ति  की  संवेदनशीलता , सरलता , सरसता  जैसे  सद्गुणों  का  ह्रास   होने  लगता  है  l   इस  कारण  ऐसा  व्यक्ति  दूसरों  की  नज़रों  में  निरंतर  गिरता  जाता  है  , घृणास्पद  बनता  है  ,  शत्रुओं  की  संख्या  बढ़ाता  है   और  अन्तत:  घाटे  में  रहता  है  l  आत्मसम्मान  की  रक्षा  करनी  हो  तो  अहंकार  से  बचना  ही  चाहिए  l 

20 January 2020

WISDOM ----

  बहुत  वर्ष  पहले    एक  मूर्तिकार  मूर्तियां  बनाता   और  उन्हें  बेचकर  गुजारा   करता   l  उसकी  मूर्ति  प्राय:  एक  रूपये  में  बिकती  l   लड़का  बड़ा  हुआ  तो  मूर्तिकार  ने   उसी  धंधे  में  उसे  लगाया  l   लड़का  कुशाग्र  बुद्धि  था  , जल्दी  ही  अच्छी  मूर्तियां  बनाने  लगा    और  वे  बाप  की  अपेक्षा  दूने   दाम  में  यानि  दो  रूपये  में  बिकने  लगीं  l  इतने  पर  भी  बाप  ने  अपना  नित्य  कर्म  जारी  रखा  l   वह  लड़के  की  मूर्तियों  को  बड़ी  बारीकी  से  देखता   और  उनमे  जो  नुक्स  होता  उसे  सुधारने  की  सलाह  देता  l   लड़के  के  अहंकार  को  चोट  लगी  ,  उसकी मूर्तियां  दूने   दाम  में  बिकने  लगीं   थीं  l   तब  भी  प्रशंसा  मिलने  के  स्थान  पर     उसके  कार्य  में   पिता  द्वारा  मीन  मेख  ही  निकाली   जाती  थी   l   अपने  को  दुःख  लगने  की  बात  उसने  अपने  पिता   पर  प्रकट  की   और  कहा   मेरी  मूर्तियां  इतनी  सुन्दर  हैं  ,  आपकी  मूर्तियों  से  ज्यादा  दाम  में  बिकती  हैं ,  फिर  भी  आप  कमी  निकालते  हैं  ,  मुझे  बहुत  दुःख  होता  है  l
  यह  सुनकर  पिता  को  बहुत  दुःख  हुआ  ,बोला --- ' बेटे  !  तेरी  प्रगति  अब  रुक  गई  l   दो  रूपये  से  अधिक  मूल्य  की   मूर्ति  अब  न  बना  सकेगा  l   यह  भूल  मुझसे  बचपन  में  हुई  थी   और  एक  रूपये  की   मूर्ति  बनाने  के  बाद  और  अधिक  प्रगति  न  कर  सका  l   वही  भूल  अब  तुम  कर  रहे  हो  l  लड़के  ने  अपनी  भूल  समझी   l     पिता  की  सीख  मानकर  वह  पहले  से  अच्छी  मूर्तियां   बनाने  लगा  l   गलतियों  को  स्वीकार  करना  और   उन्हें  सुधारना ,   यही  अनवरत  प्रगति  का  राह  मार्ग  है  

18 January 2020

WISDOM -----

  एक   कसाई  की  गाय  वध  शाला  से  छूटकर  भाग  गई  l   कसाई  पकड़ने  के  लिए  पीछे - पीछे  दौड़ा  l   गाय  एक  संत  के  आश्रम  में  घुस  गई  और   आश्रम  के  पीछे  घनी  झाड़ियों  में  घास  चरने  लगी  l घनी  झाड़ियों  की  वजह  से   वह  कसाई  की  आँखों  से  ओझल  थी  l  कसाई  ने  संत  से  पूछा --- " इधर  से  गाय  निकली  है  क्या  ?  आपने  उसे  देखा  है  क्या  ? "
 संत  सोचने  लगे   सच  बोलने  से  गाय  का   प्राण  जायेगा  और  गौ - हत्या  से  बड़ा  कोई  पाप  नहीं  l   इसलिए  परिणाम  को  देखते - समझते  हुए  शब्द - छल   करने  में  कोई  हर्ज  नहीं  l   कसाई  के  बार - बार  पूछने  पर  संत  ने  कहा ---- " जिसने  देखा  वह  बोलता  नहीं  और   जो  बोलता  है  उसने  देखा  नहीं  l '  कसाई  इस ब्रह्म ज्ञान  की  भाषा  का  अर्थ  नहीं  समझ  सका   और  आगे  चला  गया    l   ऋषि  की  पत्नी  ने
 इस  रहस्य  वचन  का  कारण  पूछा   तो  उनने  कहा --- ' गाय  के  प्राण  बचाने   के  लिए  शब्द - छल  किया  l  नेत्रों  ने  गाय  देखी   पर  वे  बोलते  नहीं   l   जीभ  बोलती  है  पर  देखती  नहीं   l   इस  प्रकार  सत्य  वचन  भी  हो  गया   और   गाय  की  रक्षा  भी  हो गई  l '  संत  ने  कहा --- ' हमें  कभी  अप्रिय   सच   नहीं  बोलना  चाहिए   अर्थात  ऐसा  सत्य  नहीं   बोलना  चाहिए   जिससे  किसी  का  अहित  हो  l    ' 


16 January 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है --- ' ख़ुशी  दृष्टिकोण  है ,  विचारणा  की  शक्ति  है   जो  हमें  प्रसन्नता  देती  है  l   हमारी  नाभि  में  खुशी   रूपी  कस्तूरी  छिपी  पड़ी  है  l   ढूंढते  हम  चारों  ओर   हैं   l   हर  दिशा  से  वह  आती  लगती  है   पर  होती  अंदर  है  l '
  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- ' आज  आदमी  खुशी   के  लिए  तरस  रहा  है  ,  वह  ख़ुशी  ढूंढने  के  लिए  सिनेमा , क्लब , रेस्टॉरेन्ट ,  कैबरे  डांस  सब  जगह  जाता  है   पर  ख़ुशी  उसे  कहीं  नहीं  मिलती  l  वही  व्यक्ति  ज्ञानवान  होता  है  जिसे  ख़ुशी  तलाशना   और  बांटना  आता  है  l   जीवन  का  आनंद  सदैव  भीतर  से  आता  है  l   यदि  हमारे  सोचने  का  तरीका  सही  हो   तो  बाहर  जो  भी  क्रियाकलाप  चल  रहे  हों  ,  उन  सभी  में  हमको  ख़ुशी  ही  खुशी   बिखरी  हुई  दिखाई  पड़ेगी  l '
   दृष्टिकोण   विकसित  होते  ही   ऐसा  आनंद  आता  है  कि  जिसको  शब्दों  में  व्यक्त  नहीं   किया जा  सकता  l    --- दाराशिकोह  मस्ती  में  डूबते   जा  रहे  थे  l   जेबुन्निसा  ने  पूछा --- ' अब्बाजान  !  आपको  क्या  हुआ  है  आज  ?  आप  तो  पहले  कभी  शराब  नहीं  पीते  थे  l   फिर  यह  मस्ती  कैसी   ?  '
  दाराशिकोह  बोले ---- " बेटी  !  आज    मैं   हिन्दुओं  के  उपनिषद  पढ़  कर  आया  हूँ   l  जमीन  पर   पैर  नहीं  पड़   रहे  हैं  l   जीवन  का  असली  आनंद  उनमे   भरा  पड़ा  है  l   बस ,  यह  मस्ती  उसी  की  है  l  "

15 January 2020

WISDOM ----- मृत्यु के साथ शत्रुता का अंत हो जाता है

    रामचरित  मानस  का   यह  प्रसंग  हमारी  संस्कृति  की  महानता  को  दिखता  है   ----  ब्रह्मर्षि  विश्वामित्र    राक्षसों  के  आतंक  से  यज्ञ  की  रक्षा  करने  के  लिए  राम  व  लक्ष्मण  को  अपने  साथ  ले  गए   l   विश्वामित्र  ने  उनसे   कहा --- 'मनुष्य  के  जीवन  को  बिना  किसी  कारण ध्वस्त  व  विनष्ट  करने  वाले  और  आतंक  फ़ैलाने  वाले , शिशुओं , युवाओं , कन्याओं  को  अपना  आहार  बनाने  वाले  राक्षस  वध  के  योग्य  हैं   ,  वे  दया  के  पात्र  नहीं  हैं  l  ',
   मारीच , सुबाहु  और  ताड़का  प्रमुख  थे   l   ताड़का  मायाविनी  थी , उसने  विश्वामित्र  पर  महाशूल   का  संघातक   प्रहार  किया  l  भगवान   राम  ने  अपने  अमोघ  बाण  से   महाशूल   को  छिन्न - भिन्न  कर  दिया  ,  अब  वह  मायावी  राम  की  और  दौड़ी    तब  भगवन  राम  ने  अपने  बाण  से  ताड़का  का  वध  कर  दिया  l
                         ताड़का  का  वध  होते  ही  मारीच  और  सुबाहु  तो  भाग  खड़े  हुए  ,  उन्हें  ताड़का  के   अंतिम  संस्कार  की  कोई  चिंता  नहीं  थी  ,  यह  चिंता  राम  को  थी  ,  उन्होंने  विश्वामित्र  से  कहा ---- " गुरुदेव  ! ताड़का  के  जीवन  के  साथ  ही  उसके  दुष्कर्मों  और  शत्रुता  का  अंत  हो  गया  l   अब  हमें  विधिपूर्वक  उसका  अंतिम  संस्कार  संपन्न  करना  चाहिए   l 
 अपने  अग्रज   का  संकेत  समझकर  लक्ष्मण जी  ने  वन  से  काष्ठ  लेकर  अंतिम  संस्कार  की   तैयारी   की  l   चिता  की  व्यवस्था  हो  जाने  पर  दोनों  भाइयों  ने   ताड़का  की  मृत  देह  को  चिता    पर  रखा   l   अंतिम  संस्कार  के  प्रत्येक  कृत्य  में  राम  का  उसके  प्रति  स्नेह  व  अपनत्व  झलक  रहा  था  ,  ऐसा  लग  रहा  था   जैसे  कि   वह  कोई  उनकी  सगी - सम्बन्धी  हो   l  उन्होंने  बड़े  धैर्य  और  शांति  से   अंतिम  संस्कार  की  सभी  विधियां  संपन्न  कीं ,  कहीं  कोई  त्रुटि  नहीं  रहने  दी  l  फिर  पास  के  जल - स्रोत  से स्नान  कर  विश्वामित्र  के  साथ  आगे  बढे  

14 January 2020

WISDOM ------ परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस मानव जीवन का सदुपयोग ही उसका सम्मान करना है

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ---- '  वे  सारे  कर्म  जिनसे  आत्मा  का  विकास  हो  , परमात्मा  का  सामीप्य  प्राप्त  हो  और  संसार  का  हित - साधन  हो  ,  जीवन  का  सदुपयोग  है  ---- स्वार्थ   त्याग       कर    परमार्थ   करना  , अभाव  एवं   आवश्यकता  से  पीड़ित  व्यक्तियों  की  सहायता  करना , , दींन - दुःखियों , निरुपाय  एवं   रोगी  जनों  की  सेवा  करना  ,  अपने  धन , अपने  पुरुषार्थ , अपनी  शक्ति , अपनी  योग्यता  को  समाज  की  उन्नति  तथा  विकास  में  लगाना   ही  जीवन  का  सदुपयोग  करना  है   l   संवेदना , सौहार्द , दया , करुणा , प्रेम   तथा  क्षमा  भावों   का  अपनी  आत्मा  में  विकास  करना  ही  मानव  जीवन  का  सम्मान  करना   है  l    इन   सब   सद्गुणों   से  संपन्न  मनुष्य  ही  देवतुल्य  है  l 
    इसके  विपरीत     सारे    कर्म  और  सारे   मंतव्य  जीवन  का  दुरूपयोग  हैं  , उसको  नष्ट  करना  है  l   अपनी  हीन   तथा  निम्न  वृत्तियों  को  तुष्ट  करने  के  लिए   लोग  प्राय:  अहंकार  का  पालन  किया  करते  हैं  ,  उनके  अहंकार  के  नीचे  दबकर  कितने  ही   निरपराध  और  असहाय  लोगों  का  बलिदान  हो  जाता  है  l   दूसरे  की  उन्नति  तथा  प्रगति  देख  जल  उठना  ,  दूसरे  के  विकास  में  बाधा  डालना  ,  अपनी  दुर्बलता  पर  जरा  सा  आघात  पाकर  सर्प  की   तरह  कुपित  होकर   अपना  अथवा  पराया  अनिष्ट  कर  डालने  को  तत्पर  होना --- यह  सब  आसुरी  और  अमानवीय  प्रवृतियां  हैं   l   ऐसे  लोगों  को  न  तो  इस  लोक  में  शांति  व  संतोष  है   और  न  ही  परलोक  में  सद्गति  है  l
  आचार्य  श्री  ने  लिखा  है  --- ईश्वर  ने  प्रत्येक  मनुष्य  को  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  l   देवता  बनना  अथवा  असुर  बनना   यह  मनुष्य  की  इच्छा  पर  निर्भर  है  l
  मनुष्य  अपने  कर्मों  से  ही  अपना  भाग्य  लिखता  है  ,  कहा  भी  गया  है ---- ' कर्म प्रधान  विश्व  रचि   राखा ,  जो  जस  करहि    सो  तस  फल  चाखा  l '

13 January 2020

WISDOM ------ अहंकार सर्वेसर्वा होने की भ्रान्ति जरूर करा सकता है , परन्तु वह आंतरिक संतुष्टि नहीं दे सकता है

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  लिखा  है --- ' केवल  और  केवल  ' मैं '  का  बोध  ही  अहंकार  है  l  अहंकार  रूपी  ' मैं '  , सदा  किसी  और  के  अस्तित्व  को  चुनौती  देता  है   और  प्राणिमात्र  में  उपस्थित  परमात्मा  को  एक  तरह  से  नकार  देता  है  l   अहंकारी  व्यक्ति  की  सम्यक  जीवन  दृष्टि  समाप्त  हो  जाती  है   l  कभी - कभी  तो  वह  स्वयं  को  ही  परमात्मा  मान  बैठता  है  l  उसकी  सोच - विचार  और  समझ  सभी  गलत  होने  लगते  हैं  l 
  अनीति , दुष्कर्म    करते  हुए  भी   मनुष्य  को  यह  नहीं  जान  पड़ता  कि   कहीं  कुछ  गलत  हो  रहा  है  ,  बल्कि  उसे  लगता  है  कि   जो  कुछ  हो  रहा  है  वह  नैसर्गिक  है  l   अहंकारी  मनुष्य  का  उचित - अनुचित  का  भेद  चला  जाता  है   और  उसे  कोई  कुछ  भी  समझाए  ,  उसका  उस  पर  कोई  प्रभाव  पड़ता  दिखाई  नहीं  पड़ता  है  l  
  रामकथा   जिसे  हम  पीढ़ी - दर - पीढ़ी  सुनते - सुनाते   आये  हैं  ,  हमें  बताती  है  कि   राम  और  रावण  , दोनों  में  बुनियादी  फरक  बस  अहंकार  को  लेकर  था  l   श्रीराम  अहंकारशून्य  थे  ,  जबकि  रावण  के  अहंकार  की   कोई  सीमा  नहीं  थी   l   रावण  की  पत्नी  मंदोदरी  ने  उसे  कितना  समझाया  कि  माता  सीता  साक्षात्  जगदम्बा  है    लेकिन  रावण  ने  एक  न  सुनी  ,  उसका  अहंकार  उसे  ले  डूबा  l
  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- अहंकार  एक  रोग  के  समान   है  ,  जिसकी   औषधि   एवं   उपचार  ---- सच्चिंतन , सद्ज्ञान   अवं  सेवाभाव  में  सन्निहित  है   l  दुःखी , पीड़ित  एवं   व्यथित  व्यक्तियों  की  निस्स्वार्थ  एवं   निष्काम  सेवा  से  भी  अहंकार  की  चट्टान  टूटने - दरकने  लगती  है   l   अहंकार  के  मिटने  पर  ही  विवेक  का  उदय  होता  है  l 

12 January 2020

WISDOM ----- जरूरतमंदों की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है ----- स्वामी विवेकानन्द

 कलकत्ता  में  स्वामी  रामकृष्ण  मठ  की  स्थापना  हो  चुकी  थी  , उनके  सारे  भक्त  संन्यास  लेकर  मठ  में  प्रवेश  कर  चुके  थे  l  मठ  का  सारा  काम  मठ  से  लगी  जमीन   पर  चलता  था  l  तभी  कलकत्ते  में  प्लेग  का  प्रकोप  हुआ  l  लोग  बुरी  तरह  मरने  लगे  l   स्वामी  विवेकानन्द   से  यह  देखा  न  गया ,  उन्होंने  मठ  को   सेवा - सुश्रूषा   शिविर  में  बदल  दिया  l   सारे  अध्यात्म  साधकों  को  सेवा  कार्य  में  लगा  दिया   और  कहा ---- आज  भगवान   ने  अपने  सच्चे  भक्तों  और   सच्चे  संन्यासियों   की  परीक्षा  ली  है  l   आज  मनुष्य  और  महामारी  के  बीच  संग्राम  छिड़  गया  है  l   आज  मठ  के  प्रत्येक  संन्यासी  को  अपनी  सच्चाई  का  प्रमाण  देना  है  l   ऐसी  सेवा  करो , इतनी  परिचर्या  करो  ,  इतनी  सहानुभूति  बरसाओ  कि   मठ  में  आया  हुआ  कोई  भी  रोगी  मृत्यु  से  पराजित   न  होने  पाए  l    जब   भक्तों  ने  पूछा   इसके  लिए   इतना  धन   कहाँ  से  आएगा ?  तो  स्वामीजी  ने  कहा  --- चिंता  न  करना ,   धन  की  कमी  होने  पर  मठ  की  भूमि  बेच  दूंगा  l  '  स्वामीजी  की  प्रभावोत्पादक    पुकार  पर   संन्यासी    देवदूतों  की  भांति  रोगियों  की  सेवा  में  जुट  गए   l
  स्वामीजी   का  कहना  था  कि   धर्म  की  महत्ता  उसके  आचरण  में   निहित  है    और  विडंबना   यह  है  की    अपने  श्रेष्ठ  धर्म  और  संस्कृति  के   होते  हुए  भी    भारतवासी   तदनुरूप  उसका  आचरण  नहीं  करते  l 

11 January 2020

WISDOM ---- अहंकार से विवेक का नाश होता है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ---- ' अहंकार  में  दोष  ही  दोष  हैं  l  '   अहंकारी   व्यक्ति  के   विवेक  का  नाश  होता  है  l   उस  पर  दुर्बुद्धि  हावी  हो  जाती  है  ----   जब  समूचा  हिंदुस्तान  रियासतों  में   बंटा   था  ,  इन्ही  में  से  एक  रियासत  थी --- विक्रमपुर   ,  यह  रियासत  छोटी  थी  किन्तु  यहाँ  का  राजा  चित्रसेन   स्वयं  को  बहुत  बड़ा  सम्राट  समझता  था  , उसका  अहंकार  बहुत  बढ़ा - चढ़ा  था  l   अच्छी  से  अच्छी  चीज  में  कमी  निकाल  देता  था  l   उसके  पास  पुरस्कार  की  आशा  लगाकर  आने  वाले  दंड  पाकर लौटते  थे  l
  एक  बार  किसी  अन्य  रियासत  से  एक  मूर्तिकार   विक्रमपुर  आया  , वह  राजा  चित्रसेन  से  मिलने  को  उत्सुक  था   l  लोगों  ने  उसे  बहुत  समझाया  कि   वह  राजा  से  न  मिले  , किन्तु   वह  नहीं  माना  l  उसने  राजदरबार  जाकर  राजा  को  अपनी  विद्दा  से  परिचित  कराया  ,  उसके  हाथ  में  सारस   की  एक  मूर्ति  थी  l   राजा  ने  कहा --- ' सारस  इतना  छोटा  होता  है ?  तुम्हे  क्या  दंड  दूँ  ? '   मूर्तिकार  ने  कहा ---- ' ऐसा  सारस  यहाँ  से  कुछ  हजार  मील   की   दूरी   पर  पाया  जाता  है ,   आप  आज्ञा  दें  तो  आपकी  नजरबंदी  में  जाकर  मैं  उसे  यहाँ  ला  सकता  हूँ   l   क्या  मजाल  जो  जरा  सा  भी  अंतर  पड़   जाये  l   मैं  सिर्फ  हाव - भाव  पर  ही  नहीं  वजन  पर  भी  ध्यान  देता  हूँ  l  '
  राजा  चिढ़   गया , बोला --- ' उसकी  जरुरत  नहीं ,  तुम  मेरी  मूर्ति  बनाओ  l जरा  सी  भी  कमी  निकलने  पर  तुम्हारा  सिर   कलम  कर  दिया  जायेगा   l  " 
चार  दिन  बाद  मूर्तिकार  दरबार  में  उपस्थित  हुआ  , मूर्ति  को  उसने  कपडे  से  ढँक  रखा  था  l  राजा  के  कहने  पर  उसने  मूर्ति  पर  से  कपड़ा   हटाया  , वह  सिर   से  कमर  तक  ही  थी  l  राजा  चीखा --- 'ये  पूरी  मूर्ति  है  ? '  कलाकार  ने  कहा --- '  महाराज , आपने  मूर्ति  बनाने  को  कहा  था , पूरी  या  आधी  का  आदेश  नहीं  दिया  था  l '  राजा  के  चेहरे  पर  क्रोध  तैर  रहा  था  l   मूर्तिकार  ने  आगे  कहा --- "  यह  हू - ब - हू  आपकी  मूर्ति  है  l   इसका  वजन  चालीस  सेर  है  l   पैरों  को  छोड़कर  आपका  वजन  भी  इतना  ही  है  l  आपका  वजन  भी  इतना  ही  है , यह  मैं  दावे  के  साथ  कह  सकता  हूँ  l  '
 क्रोध  से  बुद्धि  का  नाश  हो  जाता  है  l   राजा  ने   कहा --- ' यदि  तुम्हारा  दावा   गलत  निकला  तो  तुम्हारा  सिर   कलम  कर  दिया  जायेगा  l  ' राजा  ने  इसी  आवेग  से  मंत्री  को  आदेश  दिया --- ' परीक्षण   किया   जाये  ---- l  '  थोड़ा  विलम्ब  होते  देख  वह  और  क्रोधित  हुआ ,  तब  मंत्री  ने  समझाया  कि  परीक्षण   के  लिए  आपका  शरीर  काटना  पड़ेगा  सिर   से  कमर  तक  l  '  अब  राजा  कुछ  बोल  न  सका ,  उसकी  आँखें  झुक  गईं   l   उसने  मूर्तिकार  से  क्षमा  मांगी  और  कहा  ---तुम  जो  चाहो  पुरस्कार  मांग  लो  ll 
मूर्तिकार  ने  कहा --- '  देना  ही  है  तो  आप   अहंकार  की  वृत्ति  का  त्याग  कर  दें  ,  अहं   त्यागने  से  देवी  सरस्वती  सम्मानित  होंगी   l   भगवती  सरस्वती  के  सम्मान  से   उनके  वरद  पुत्रों  की  ख्याति  बढ़ती  रहेगी   l  '  राजा  ने  भी  अपने  अहं   के  त्याग  का  संकल्प  लिया  l 

10 January 2020

WISDOM ----- कर्तव्यनिष्ठा , सूझबूझ और चारित्रिक गुण व्यक्ति को प्रामाणिक बनाते हैं

   किसी  भी  देश , समुदाय   अथवा  समाज  का  भाग्य   चरित्रवान  और  व्यक्तित्ववान  व्यक्तियों  पर  निर्भर  है  l  सामान्य  अर्थों  में  चरित्रवान  उन्ही  को  कहा  जाता  है    जिनकी  व्यक्तिगत  जीवन  में  कर्तव्यपरायणता , सत्यनिष्ठा , पारिवारिक  जीवन  में  सद्भाव  , स्नेह , सामाजिक  जीवन  में   शिष्टता  आदि  आदर्शों  के  प्रति  निष्ठा    है  l   जब  राष्ट्र  या  समुदाय  पर  संकट  के  बादल   घिर  आते  हैं  तो  जन - समुदाय  ऐसे  ही  चरित्रवान  और  साहसी  लोगों  से   मार्गदर्शन  की  अपेक्षा  करता  है  l    ऐसे  व्यक्तियों  की  प्रमाणिकता  हर  किसी  के  लिए  विश्वसनीय  होती  है   l
  स्वामी  विवेकानन्द   ने  एक  स्थान  पर   कहा  है ----' संसार  का  इतिहास  उन  मुट्ठी  भर  व्यक्तियों  का  बनाया  हुआ  है   जिनके  पास  चरित्रबल  का  उत्कृष्ट  भंडार  था  l   यों   कई  योद्धा  , विजेता  हुए   हैं  l  बड़े - बड़े  चक्रवर्ती  सम्राट  हुए  हैं  ,  इतने  पर  भी  इतिहास  ने  उन्ही  व्यक्तियों  को   अपने  हृदय  में  स्थान  दिया  है   जिनका  व्यक्तित्व  समाज  के  लिए  एक  प्रकाश स्तम्भ  का  कार्य   कर  सका  है   l '
  उन्ही   महापुरुषों  का  गुणगान  किया  जाता  है   जिन्होंने  समाज  को   प्रगतिशील  जीवन मूल्य   दिए  और  आदर्शों  की  समयानुकूल   परिभाषा   स्वयं  के  व्यक्तित्व   व   कार्यों  के  माध्यम  से  दी  है  l
     अमेरिका  ने  जार्ज  वाशिंगटन  के  नेतृत्व  में  स्वतंत्रता  प्राप्त  की  थी   l   कुछ  समय  तक  शासन  सँभालने  के  पश्चात   वे  राजनीति   से  विरत   होकर  सामान्य  जीवन  व्यतीत  करने  लगे   l   इसी  समय  अमेरिका  और  फ्रांस   में  युद्ध  छिड़ा  l   इस  विषम  बेला  में  लोगों  ने   एक  बार  फिर  वाशिंगटन  को  याद  किया   l   अपने  कार्यकाल  में   कर्तव्यनिष्ठा , सूझबूझ  और  चारित्रिक  गुणों  की  ऐसी  धाक   जमा  ली  थी    कि   तत्कालीन  प्रेसिडेंट   मि.  एडम्स  ने   उन्हें  देश  की  बागडोर  सँभालने  को  कहा   l   एक  प्रमुख  नेता  ने  अपने  अनुरोध पत्र   में  लिखा  ---- " अमेरिका  की  सारी   जनता  आप  पर  विश्वास  करती  है  l   यूरोप  में  एक  भी  राज्य  सिंहासन     ऐसा  नहीं  है   जो   आपके  चरित्र  बल   के  सामने  टिक  सके   l  " 
    

9 January 2020

WISDOM ------ अहंकार अपने लिए नरक की सृष्टि करता है

   अहंकारी  व्यक्ति  स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझता  है   और  हर  किसी  को  अपने  अनुसार  चलाना   चाहता  है  l  अपने  इस  दुर्गुण  की  वजह  से  वह  समाज  को  तो  उत्पीड़ित  करता  ही  है ,  यह  अहंकार  उसके  स्वयं  के  लिए  कितना  घातक  है ,  यह   ' युग  गीता '  के  इस  लेख  के  अंश  से  स्पष्ट  है ----"  सारी   तकलीफें  अहंकार  के  साथ  जुड़ी   हैं  l  अहंकार  कांटे  की  तरह  चुभता  है , घाव  की  तरह  रिसता   है  l  एक  आदमी  अपने  पास  से  निकला --- उसने  नमस्कार  नहीं  किया , चरण  नहीं  छुए , बस , समझो  कि   आरम्भ  हो  गई  तकलीफ  l   बात  कुछ  नहीं , बस , अपने  अहंकार  का  घाव  दुःख  गया  l   इस  अहंकार  के  कारण   रोज  नई - नई  तकलीफें  होती  है  l   किसी  की  हँसी ,  किसी  की  ख़ुशी , सभी  कुछ  तो  तकलीफ  देती  है  l  अहंकार  घाव  है , फिर  हर  चीज  उसी  में  लगती  है  l   जब  तक  कुछ  न  लगे  अहंकारी  की  बेचैनी  बढ़ती  ही  जाती  है   कि   आज  बात  क्या  है , अपने  अहंकार  से  कोई  टकराया  ही  नहीं   l   हालाँकि  हमसे  हमारे  अहंकार  से  किसी  को  मतलब  नहीं  है l   फिर  भी  अहंकार  को  सबसे  मतलब  है  l   अहंकार  अपने  लिए  नरक  की  सृष्टि  करता  ही  रहता  है  l  "
  गीता  में   भगवान   ने  कहा  है  -- सारे   कर्म  प्रभु  को  अर्पित  करने  से  जीवन  का  नरक  चला  जाता  है  ,  हम  केवल  निमित  हैं    l  हम  न  करेंगे   तो  कोई  और  करेगा ,  हम  ही  ईश्वर  का  कार्य  करने  के  पुण्य  से  वंचित  रह  जायेंगे  l
  अहंकारविहीन  होने  में  ही  जीवन  का  सच्चा  आनंद  है  l 

8 January 2020

WISDOM ----

  इनसान   का  जीवन  लक्ष्य  इनसानियत   के  अतिरिक्त    और कुछ  नहीं  हो  सकता  l   इसी  को  गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  धर्म  की  परिभाषा  के  रूप  में  स्वीकार  किया  है  ---- पर  हित   सरिस   धर्म  नहीं  भाई ,
 पर  पीड़ा  सम   नहीं  अधमाई  l '   जिसे  दूसरे  की  पीड़ा  को  देखकर  स्वयं  भी  पीड़ा  का  अनुभव  होता  है  ,  उसे  देखकर   ही  यह  कहा  जा  सकता  है  कि   इसके  भीतर  इनसानियत   है  l  यह  इनसानियत   की  भावना  ही  हमें   जानवरों  से  भिन्न  करती  है   और  हमें , हमारे  जीवन  लक्ष्य  से  परिचित  कराती  है  l  इसी  को  ध्यान  में  रखकर  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  प्रज्ञा  पुराण  में  लिखा  है --- " परोपकार रहित  मनुष्य  के  जीवन  को  धिक्कार  है  ,  उसकी  तुलना  में  तो  पशु  श्रेष्ठ  हैं  -- उसका  कम - से - कम  चमड़ा  तो  काम  आ  जायेगा  ,  परन्तु  मानवता रहित  मनुष्य  का  जीवन  तो  किसी  के  भी  उपयोग  का  नहीं  रहता  l   हमें  इनसानियत   को  ही  अपना  जीवन  लक्ष्य   मानकर  जीवन  जीना  चाहिए  l "
   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' परमात्मा  ने  मनुष्य  को  जिस  विशेष  गुण   से  नवाजा  है  उसका  नाम  है ---- संवेदना  l   भाव - संवेदना  ही  मनुष्य  की  आत्मिक  प्रगति  की  सच्ची  कसौटी  है   l   मनुष्य  यदि  संवेदना  की  विभूति  से  आभूषित  नहीं  है   तो  उसका  जीवन  मृतप्राय  ही  कहा  जा  सकता  है  l  '  इनसान   होकर  भी  जिसमे  इनसानियत   का  अभाव   है  ,  दूसरे  मनुष्यों  को  , पशु - पक्षियों  को  पीड़ित  करता  है   , वह  पैशाचिक  प्रवृति   का  मनुष्य  है  l   आचार्य जी  लिखते  हैं --- जो  लोग  दुर्जनों  की  तरह  व्यवहार  कर  रहे  हैं   एवं    प्राणीमात्र   को  संताप  देते  दिखाई  पड़ते  हैं  , उन्हें  स्वयं  से  यह  प्रश्न  पूछने  की  आवश्यकता  है  कि   उनका  आचरण  पशुओं  के  समान   है  या  सत्पुरुषों  के  समान  ! '

7 January 2020

WISDOM ------- अनाचार का प्रतिरोध करना मनुष्य का अत्यंत पवित्र कर्तव्य है

  'अन्याय  को  सहन  करना ,  पाप  से  सहयोग  करने  एवं   उसे  बढ़ावा  देने  के  समान   है  l  प्रतिरोध  न  करने  से  अन्यायी  की  हिम्मत  बढ़ती  है  और  वह  दूने - चौगुने  साहस  के  साथ   अपनी  सफलता  पर  गर्व  करता  हुआ   और  अधिक  अत्याचार करता  है  l  '
  आज   की  परिस्थिति  में  दुष्ट  मनुष्य  के  साथ  भी   व्यक्तिगत  रूप  से  मरने - मारने   का  युद्ध  नहीं  हो  सकता  l   अब  अनीति  के  विरुद्ध  संघर्ष  के  दूसरे  तरीके  हैं  --- असहयोग , विरोध  और  मर्यादित  संघर्ष  -- यह  आज  की    स्थिति  में  संभव  है  l  अविद्दा , बीमारी , गरीबी , मूढ़ता , अन्धविश्वास , रूढ़िवादिता , कायरता , भीरुता , स्वार्थपरता , संकीर्णता , व्यसन , अहंकार  आदि  के  रूप  में  असुरता  जन - जन  के  मन  में   गहराई  तक  समा   गई  है  l  असंयम , आलस  और  अज्ञान  ने  अपना  साम्राज्य  स्थापित  कर  लिया  है  l        इस  असुरता  के  नाश  के  लिए  अब  युद्ध  किसी  एक  व्यक्ति विशेष ,  जाति   या  धर्म  विशेष  के  विरुद्ध  नहीं  अपितु  दुष्प्रवृतियों  के  विरुद्ध   करना  चाहिए  l
  किसी  जाति ,  किसी  धर्म  में  जन्म  लेने  से  व्यक्ति  बुरा  नहीं  होता  l  काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष  आदि  मानवीय  कमजोरियों  के  कारण  ही  व्यक्ति   दुष्कर्म  करता  है , अपराध  में  संलग्न  होता  है  l     

6 January 2020

WISDOM -----

सविनय - असहयोग  आंदोलन  के  प्रवर्तक  हेनरी  थोरो  ने  कहा  था --- ' लोकतंत्र  पर  मेरी  आस्था  है  ,  पर  वोटों   से  चुने  गए  व्यक्ति   स्वेच्छाचार  करें  ,  यह  मैं  कभी  बर्दाश्त  नहीं  कर  सकता  l   राज सञ्चालन  उन  व्यक्तियों  के  हाथ  में  होना  चाहिए  ,  जिनमे  मनुष्य  मात्र  के  कल्याण  की  भावना   और  कर्तव्य परायणता  विद्द्मान  हो   और  जो  उसकी  पूर्ति  के  लिए  त्याग  भी  कर  सकते  हों  l '

5 January 2020

WISDOM ------

   एक  व्यक्ति  ने  किसी  विद्वान्  से  प्रश्न  किया  ---- " शास्त्रों  में  सत्संग  की  इतनी  महिमा  क्यों  कही  गई  है  ? "  विद्वान्  ने  उत्तर  दिया ----  "  संग  जिसके  साथ  होता  है  ,  उसके  जैसे  गुण  संग  करने  वाले  को  प्राप्त  होते  हैं  l  गरम  लोहे  पर  पड़ने  से  जल  का  निशान  नहीं  पड़ता  ,  परन्तु  वही  जल   कमल  के  पत्ते  पर  पड़ने  से  मोती  जैसा  चमकता  है   और  वही  जल  स्वाति  नक्षत्र  में  सीप   के  मुंह  में  पद  जाने  से  मोती  बन  जाता  है  l   ठीक  ऐसे  ही  संसर्ग  जैसा  हो  ,  प्राणी  वैसे  ही   उत्तम ,  मध्यम   अथवा  अधम  गुण   प्राप्त  करता  है  l 

4 January 2020

WISDOM ------

 महान  पुरुष  वास्तव  में  किसी  खास  जाति , धर्म  या  देश  से  बंधे  नहीं  होते  ,  वे ' वसुधैवकुटुंबकम '  के  सिद्धांत   का   अपनी  अंतरात्मा   से  अनुभव  करते  हैं  l   गैरीवाल्डी   की  गणना  संसार  के  महापुरुषों  में  की  जाती  है  , उनका  जन्म  1807   में  इटली  में  हुआ  था   l   देशभक्ति , स्वाधीनता प्रेम  और  उदारता   उनके  जन्मजात  गुण   थे  l   वे  कहते  थे  कि   ये  गुण   उन्हें  अपनी  माता  से  मिले  जो  असाधारण  दयालु  प्रकृति  की  एवं   कर्तव्य परायण  स्त्री  थीं  l   गैरीवाल्डी  के  प्रेरणास्रोत   ये  शब्द  थे  -----
  '  हर  एक  मनुष्य  का  पहला  और  पवित्र  कर्तव्य  यह  है  कि   वह  अपने  देश  की  रक्षा  के  लिए  तलवार  उठाये   l  दूसरी  बात  यह  है  कि  किसी  देश  को  परतंत्र  बनाने  वाले  आक्रमण  में  मदद  न  करे  l  और  तीसरी  बात  यह  है  कि   जो  देश  किसी  बलवान   शत्रु  के  आक्रमण   और  शासन  से  पीड़ित  हो  रहा  है   उसको  अपना  ही  देश  मानकर   उसकी  राष्ट्रीयता  की  रक्षा  के  लिए  तलवार  उठाये  l  ऐसे  व्यक्ति  का  दर्जा  सबसे  ऊँचा  होता  है  l ' 
  गैरीवाल्डी   की  उदारता  का  सबसे  बड़ा  प्रमाण  उस  समय  मिला  जब  जर्मनी  ने  फ़्रांस  पर  हमला  किया  l   यद्द्पि  फ्रांस   गैरीबाल्डी   को  अपना  ' जानी  दुश्मन ' समझता  था   और  उसने  गैरीवाल्डी   को  हर  तरह  से  तंग  भी  किया  था  ,  लेकिन  इस  संकट  के  समय  फ्रांस   ने  गैरीवाल्डी   से  सहायता  की  अपील  की  l
  गैरीबाल्डी   सब  बातों  को  भूलकर   फ़्रांस  की  मदद  को  चल  दिया  l   लोग  उसकी  उदारता  देखकर  दंग   रह  गए  l   लोगों  ने  उसे  पुरानी   बात  याद   दिलाई    तो  गैरीवाल्डी   ने  कहा ---- "  राष्ट्रीय   आजादी  एक एक  पवित्र  वस्तु   है  और  उसकी  रक्षा  के  लिए  तत्पर  होना  हर  आदमी  का  कर्तव्य  है  l   इटली  अपनी  स्वाधीनता  प्राप्त  कर  चुका ,  अब  जर्मनी  , फ्रांस   को  हड़पना  चाहता  है  ,  तो  इटली  का  कर्तव्य  है  कि   फ़्रांस  की  स्वाधीनता  की  रक्षा  में  सहायक  बने   l "  इस   युद्ध  में  गैरीवाल्डी   ने  बहुत  वीरता  दिखाई ,  उसे  करोड़ों  फ्रांसीसी   जनता  का  सम्मान  मिला  l   अंत  में  फ़्रांस  और  जर्मनी  में  सुलह  हो  गई  l
         इस  संबंध   में  सबसे  महत्वपूर्ण  बात  यह  थी  कि   गैरीवाल्डी   का  जन्म  जिस  ' लैसी ' नगर  में  हुआ  था  , वह  पहले  इटली  नगर  का  ही  था  l   पर  एक  युद्ध  में  सहायता  पाने  के  एवज   में  इटली  की  सरकार  ने  उसे  फ्रांस  को  दे  दिया  था  l  अब  गैरीबाल्डी  ने   फ्रांस   की  रक्षा  के  लिए  एक  बड़ा  काम  कर  दिखाया   तो  एक  मित्र  ने  कहा  कि --- वह  फ़्रांस  सरकार  से  ' लैसी '  का  नगर  इटली  को  लौटा  देने  की  प्रार्थना  करे  l  तब  गैरीवाल्डी   ने  कहा --- ' मैं  अपनी   जिह्वा   से  अपनी   सेवा  का  बदला  मांगू  यह  संभव  नहीं  है  l   "गैरीवाल्डी   का  समस्त  जीवन  अन्याय पीड़ितों  की  मदद  करने  में  व्यतीत  हुआ  l 
उसकी  मृत्यु  पर  इटली व  यूरोप  में  शोक  छ  गया  कि  यूरोप  का  साबसे  बड़ा  वीरात्मा  चल  बसा  l 

3 January 2020

WISDOM ---- हम क्या करते हैं , इसका महत्व कम है किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत अधिक महत्व है

   पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य  जी  ने  वाङ्मय  ' संस्कृति - संजीवनी  श्रीमद भागवत  एवं   गीता '  में  लिखा  है ---------- किसी  भी  कार्य  के  पीछे   हमारी  भावना  क्या  है , इसका   महत्व   है  l    यदि  हम  अपने  क्षुद्र  अहंकार   की  पूर्ति  के  लिए   और  अपने  कहलाने  वाले  कुछ   व्यक्तियों  को  सुख  पहुँचाने  के  लिए    तथा  दूसरों  को  दुःख  पहुँचाने  की  भावना  से  कर्म   करते  हैं   तो  हम  कभी  सफल  नहीं  हो  सकते  l  
   यदि  हमारी  भावनाएं  कलुषित  हैं   तथा  हमारे  कर्मों  के  मूल  में  अपना  लाभ  तथा  दूसरों  की  हानि  करने  की  वृत्ति  छिपी  हुई  है   तो  हम  दिखावे  के  लिए  कितने  ही  व्यवस्थित   और  कठिन  कार्य  करें  मनवांछित  परिणाम  नहीं  पा  सकते   l   मात्र  क्रिया  ही  सब  कुछ  नहीं   उसके  मूल  में  छिपी  भावना  और  विचारणा  का  भी  महत्व   है   l 
  इस  संबंध   में में  संस्कृत  का  एक  श्लोक  है   जिसका  अर्थ  है ----  मनुष्य  अपने  प्राण , धन , कर्म , मन  और  वाणी  आदि  से  शरीर  एवं  पुत्र  आदि  के  लिए   जो  कुछ  करता  है -- वह  व्यर्थ  ही  होता  है   क्योंकि  उसके  मूल  में  भेद  बुद्धि  बनी   रहती  है   परन्तु  जब  मनुष्य  द्वारा  भगवान   के  लिए  कुछ  किया  जाता  है  ,  तब  वह  सब  भेदभाव  से  रहित  होने  के  कारण  शरीर , पुत्र  और  समस्त  संसार  के  लिए  सफल  हो  जाता  है  l
 भगवान   के  लिए  कर्म  करने  का  अर्थ  है  --- सबके  हित    की  कामना  से  , संकीर्णता  से  ऊँचे  उठकर   व्यापक  लोक हित   को  ध्यान  में  रखते  हुए  कर्म  करना  l
  रावण  वेद , शास्त्र  का  ज्ञाता  , बहुत  विद्वान्  था  ,  कहते  हैं  उसने  काल  को  भी  पाटी   से  बाँध  रखा  था  l  रावण  के  बारे  में  बताते  हुए  भगवान   कृष्ण  युधिष्ठिर  से  कहते  हैं  ---- जिसका  त्रिकूट  ही  दुर्ग  था , समुद्र  जिसकी  खाई  थी ,  राक्षस  जिसके  योद्धा  सिपाही  थे   और  कुबेर  का  वैभव  जिसका  धन  था   और  शुक्राचार्य  द्वारा  निर्धारित  जिसकी  नीति   थी  ,  वह  रावण  भी  दैव  के  वश  होकर  विनष्ट  हो  गया  l
 रावण  की  भावना  पवित्र  नहीं  थी , वह  अत्याचारी  था , परायी स्त्री  का  हरण  किया  था  l   उसका  अहंकार  उसे  ले  डूबा  l 

2 January 2020

WISDOM ----- भक्ति और शौर्य के अमर साधक ---- गुरु गोविन्द सिंह

  गुरु  गोविन्द सिंह   ने  जन  - शक्ति  को  जाग्रत  कर   एक  विशाल  संगठन  खड़ा  किया , उनका  कहना  था  कि   यदि  अपने  उद्देश्य  के  प्रति   हम  सब  एक  निष्ठावान  रहे  तो  निश्चय  ही   आततायियों  को  परास्त  कर  उन्हें  रास्ते  पर  आने  के  लिए  विवश  कर  सकेंगे  l
        संगठन  का  सूत्रपात  करने  के  बाद  उनका  मानसिक  तथा  बौद्धिक  विकास  करने  के  लिए  प्रचार  कार्य  शुरू  किया  l   उसके  लिए  उन्होंने   सैकड़ों  विद्वानों   तथा  शिक्षकों  को  नियुक्त  किया  l  उन्होंने  स्वयं  हिंदी , संस्कृत , फारसी  आदि  अनेक  भाषाएँ  पढ़ीं  और  जनता  को  भी  पढ़ने  के  लिए  प्रेरित  किया   l  उन्होंने  सैकड़ों  अनुयायियों  को   विद्दा - अध्ययन  के  लिए   काशी    भेजा  l  जो  वहां  से  विद्वान्  बन  कर  आये  , वे  जनता  में  शिक्षण  का  कार्य  करने  लगे  l   इसके  अतिरिक्त  उन्होंने   जगह - जगह  रामायण , महाभारत  तथा  भागवत   की  कथाएं  बिठाईं  और  निरंतर  उनका  वाचन   कराया  l  प्रशिक्षित  पंडित  जनता  को   भगवान   राम ,   कृष्ण  तथा  अन्य  महापुरुषों  की   चरित्र  व्याख्या  करते  हुए  जनता  को  वैसा  बनने  की  प्रेरणा  देते   l
उन्होंने  जनता  में  चन्द्रगुप्त , विक्रमादित्य , स्कंदगुप्त , समुद्रगुप्त  तथा   अशोक  जैसे  राजाओं  के  इतिहास  का  प्रचार  किया   और  हतोत्साह   जनता  को   अपने  अतीत  के  गौरव  का  भान  कराया    जिससे  उनका   हीनता  का  भाव  दूर  होने  लगा  , उनमे   नवीन   जाग्रति  आई  l 

WISDOM ----- विवेक दृष्टि ही वास्तविक दृष्टि है

  ' दूरदृष्टि  के  अभाव   में  व्यक्ति  का  जीवन  व्यर्थ  चला  जाता  है  l '  धृतराष्ट्र  अंधे  थे ,  वे  मोहान्ध  भी  थे   l   आजीवन  विभिन्न  उपायों  द्वारा   अपने  शरीर  तथा  पुत्रों  को  ही  संपन्न  बनाने  का  स्वप्न  संजोते  रहे  l   परिणाम  क्या  हुआ  ?  सर्वनाश  l
 पुराणों  में  भक्त  प्रह्लाद  की  कथा  है  -- प्रह्लाद  के  हृदय  में  विवेक  था , वह  वही  करना  चाहता  था   ' जो  न्याय  एवं   विवेकयुक्त  हो  l '    उसका  पिता  हिरण्यकश्यपु   चाहता  था   कि  उसका  पुत्र  उसी  के  कहने  में  चले  ,  पिता  होने  के  कारण  उसकी   अनुचित  और  अनीतियुक्त  बातों  को  भी  माने   और  जिस  कुमार्ग  पर  वह  चलाना  चाहता  है  , उसी  पर  चले  l
 प्रह्लाद  ने  औचित्य  को  पिता  से  भी  बढ़कर  माना   और  कहा ---- पितृभक्त  के  नाते  आपकी  सेवा  करना  और  सुख  देना  मेरा  कर्तव्य  है  ,  उसे  मैं  निष्ठापूर्वक  पालन  करूँगा  l   पर  अनीति  एवं   अविवेकयुक्त  बात  पिता  की  भी  स्वीकार  नहीं  की  जाएगी  l   पिता  के  कहने  पर  भी  सत्य  या  धर्म  को  नहीं  छोड़ा  जा  सकता  ,  इसलिए  मैं  आपकी  केवल  उचित  आज्ञाएं  ही   मानूंगा  l
  ऋषियों  का  वचन  है --- ' बालक  द्वारा  कही  गई  युक्तिसंगत  बात  को  मान  लेना  चाहिए  l '
किन्तु  हिरण्यकश्यपु  क्रुद्ध  हो  गया l  उसने  प्रह्लाद  को  विवश  करने  के  लिए  अनेक  कष्ट  दिए ,  पहाड़ों  पर  से  गिराया , बहन  होलिका  के  साथ   अग्नि  में   जलाने  की  चेष्टा  की,  पर  ईश्वर  ने  उसकी  रक्षा  की  l  अंत  में  एक  लोहे  के  खम्भे  से  उसे  बाँध  दिया  गया   और  मार  डालने  की   तैयारी    की  जाने  लगी  l   तब  प्रह्लाद  की  रक्षा  के  लिए  उस  खम्भे  से  भगवान    नृसिंह   प्रकट  हो  गए   और  हिरण्यकश्यपु  को  फाड़ - चीड़   के  रख  दिया  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  वाङ्मय  में  लिखते  हैं ---- ' मनुष्यों  में  दो  तरह  के  व्यक्ति  होते  हैं  -- एक  कायर , कृपण , दीन , डरपोक , अकर्मण्य ,   इन्हे श्वान - श्रृगाल   की  श्रेणी  में  गिना  जा  सकता  है  l  दूसरे  होते  हैं  न्याय  की  रक्षा  के  लिए , सत्य  की  रक्षा  के  लिए ,   इन्हे  कहते  हैं ---  नरसिंह  l   ऐसे  नरसिंहों  की  सदा  ही  जयकार  होती  है  l 

1 January 2020

WISDOM ----- कर्मफल सिद्धांत

    महाभारत  के  युद्ध  में   सात  महारथियों  ने  मिलकर  बालक  अभिमन्यु  का  वध  कर  डाला  l   अभिमन्यु  श्रीकृष्ण  की  बहन  सुभद्रा-अर्जुन    का  पुत्र  था  l  उस  दिन   कौरवों  के  ललकारने  पर  भगवान   कृष्ण  व  अर्जुन  संशप्तकों  से  युद्ध  करने  गए  हुए  थे   l   उनके  वापिस  लौटने  पर  सुभद्रा  ने   कृष्ण  से  कहा --- तुम  तो  स्वयं  भगवान   हो  ,  तुम्हारे  रहते  हुए   भी  तुम्हारे  प्राणों  से  भी  प्रिय  भानजे   की  मृत्यु  हो  गई   और  तुम  उसे  न  रोक  सके  l '
 भगवान   कृष्ण  ने  कहा ---- ' मैं  भगवान   अवश्य  हूँ   किन्तु  मैं   कर्मफल  व्यवस्था  में  किसी  प्रकार  का  हस्तक्षेप  नहीं  कर  सकता   l   जब  छोटे - छोटे  राज्य  भी  बिना  विधि - व्यवस्था  के  नहीं  चल  सकते   तब  इतना  विशाल  ब्रह्माण्ड  बिना  नियम  व  अनुशासन  के  कैसे  चल  सकता  है  l 
 गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  विनय पत्रिका  में  कहा  है --- ' जिन्ह  बांधिस   असुर  नाग  मुनि  प्रबल  कर्म  की  डोरी '  l   कर्मफल  व्यवस्था  इतनी  अकाट्य  है  कि   स्वयं  भगवान   भी  इसका  सम्मान  करते  हैं  l 
  मनुष्य   अपने  क्षुद्र  अहं   को  संतुष्ट  करने  के  लिए   तथा  तत्काल  लाभ  पाने  की  दृष्टि  से  दूसरों  को  पीड़ा  पहुंचा  कर   सुख - शांति  पाना  चाहता  है  l   क्या  ऐसा  संभव  है  ?  बबूल   बीज  बोकर  आम  पाने  की  इच्छा  व्यर्थ  है   l   जब  तक  व्यक्ति  को  उसके  पापों  का  परिणाम  प्राप्त  नहीं  होता  तब  तक  वह  बहुत  खुश  रहता  है  l   अपने  जैसा  सफल  व्यक्ति  किसी  को  भी  नहीं  समझता   l   किन्तु  कहते  हैं ---' भगवान   के  घर  देर  है , अंधेर  नहीं   l '
  जब  व्यक्ति  को  उसके  दुष्कर्मों  का  दंड  मिलता  है  तब  वह  बहुत  खीजता  है  ,  दूसरों  पर  दोषारोपण  कर  स्वयं  को  निर्दोष  बताने  का  प्रयास  करता  है   l   महाभारत  के  युद्ध  में   जब  सभी  कौरवों  का  अंत  हो  गया   और  भीम  की  गदा  से  घायल  दुर्योधन  जमीन   पर  पड़ा  था  ,  वह  धर्म  की  दुहाई  दे  रहा  था  और  पांडवों  व  कृष्ण  पर   आक्षेप  लगा  रहा  था  ,  तब  उसके  आक्षेपों  का  उत्तर  देते  हुए  भगवान   कृष्ण  ने  कहा ---  दुर्योधन  ! तुम्हारी  ही  प्रेरणा  से  बहुत  से  योद्धाओं  ने  मिलकर  युद्ध स्थल  में  अकेले  बालक  अभिमन्यु  का  वध  किया  था  ,  इन्ही  सब  कारणों   से  आज  तुम  भी  रणभूमि   में  पड़े  हो  l  '