3 July 2021

WISDOM ------

   महापुरुषों  के  सम्मुख    अनेक     प्रलोभन  प्राय:  आया  करते  हैं  ,  पर  सच्चे  आत्मज्ञानी  सदा  उनकी  उपेक्षा  करते  हैं   l   स्वामी  दयानन्द   सरस्वती    के  जीवन  का  प्रसंग  है  -----  एक  दिन  एकांत  में  उदयपुर  के  महाराणा  उनसे  मिले   तो  कहने  लगे  ----- " भगवन  !  आप  मूर्ति पूजा  का  खंडन  छोड़  दें   l   यह  राजनीति   के   सर्व  ' संग्रह  '  सिद्धांत  के  प्रतिकूल  है   l   यदि  आप  इस  बात  को    मान    लें   तो  उदयपुर  के   एकलिंग  महादेव   के  मंदिर  की  गद्दी   आपकी  ही  है  l   वैसे  हमारा  समस्त  राज्य  ही   उस  मंदिर   में  समर्पित  है   पर  मंदिर  में  राज्य  का  जितना  भाग  लगा  हुआ  है   उसको  भी  लाखों  रूपये  की  आय  है   l   इतना    भारी    ऐश्वर्य  आपका  हो  जायेगा   और  आप  समस्त  राज्य  के  गुरु  माने  जायेंगे   l  "     यह  सुनते  ही    स्वामी  जी  रोष  से  बोले  ---- " महाराज  !  आप  मुझे  तुच्छ  प्रलोभन  दिखाकर   परमात्म देव  से  विमुख  करना  चाहते  हैं   l   उसकी  आज्ञा   भंग  कराना   चाहते  हैं   ?  राणाजी !  आपके  जिस  छोटे  से  राज्य   और  मंदिर  से  मैं  एक  दौड़  लगाकर   बाहर  जा  सकता  हूँ  ,  वह  मुझे  अनंत  ईश्वर  की  आज्ञा   भंग  करने  के  लिए   विवश  नहीं  कर  सकता   l   परमात्मा  के  परम  प्रेम  के  सामने   इस  मरुभूमि  की   मायाविनी  मारीचिका   अति  तुच्छ  है  l   फिर  मुझसे  ऐसे   शब्द  मत  कहियेगा   l   मेरे  धर्म  की  ध्रुव  धारणा   को   धराधाम  और  आकाश  की  कोई  वस्तु  डगमगा  नहीं  सकती   l  "  स्वामी  दयानन्द जी  को  इस  प्रकार  के  प्रलोभन   जीवन  में  अनेक  बार  दिए  गए   l                               काशी  नरेश  ने   उनसे  भारत   प्रसिद्ध   विश्वनाथ  मंदिर  का  अध्यक्ष   बनने  का  प्रस्ताव  किया  था   l    गुजरात    में  एक  वकील  ने    उनसे  कहा  ---- "  आप  मूर्ति  पूजा  का  विरोध  करना  छोड़  दें   तो  हम  आपको  शंकर  जी  का   अवतार    मानने    लगें   l  "  पर  उन्होंने  सदैव    यही   कहा  कि   मेरा  कार्य  देश  और  जाति   की  सेवा  करना  है  l   मैं  परमात्मा  के  दिखाए  मार्ग  से    कभी     विमुख    नहीं  हो  सकता   l