31 July 2019

WISDOM ------ विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और विवेक से काम लें

कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है  वही  इस  धरती  पर  है  ,  इसका  एक  प्रसंग  है ---- पांडव जुए  में  सब  कुछ  हारकर   वनवास  की अवधि   पूरी  कर  एक  वर्ष  के  अज्ञातवास  में  राजा  विराट  के  यहाँ  वेश  बदल  कर  रह  रहे  थे  l  महारानी  द्रोपदी  ' सैरंध्री  '  नाम  से  रानी  की  सेवा  करती  थीं  l  रानी  का  भाई  था  ' कीचक '  बहुत  बलशाली  था  ,  राज्य  में  उसका  दबदबा  था  और  राजा  विराट  भी  उसके  दबाव  में  थे  l    सैरंध्री ( द्रोपदी )  पर  उसकी  कुद्रष्टि थी  l  रानी  ने  उसे  बहुत  समझाया  लेकिन  वह  तो  कामांध  था  l  उसका  व्यवहार  द्रोपदी  के  लिए  असहनीय  था  l  एक  दिन  अवसर  पाकर  द्रोपदी  ने  भीम  से  अपनी  व्यथा  कही  l  भीम  को  भी  बहुत  क्रोध  आया  लेकिन  उन्होंने  द्रोपदी  को  समझाया कि  वह  बहुत  शक्तिशाली  है  ,  तुम  उसका  सामना  नहीं  कर  सकतीं ,  उसे  तो  विवेक  और  बुद्धि  से  ही  पराजित  किया  जा  सकता  है  l  भीम  ने  धीरे  से  द्रोपदी को  अपनी  योजना  समझा  दी  l
   दूसरे  दिन  जब  सैरंध्री  का  सामना  कीचक  से  हुआ    तो   उसने  कहा -- नृत्य -शाला  में  रात्रि  को  एकांत   रहता  है  ,  मैं  वहीँ  तुम्हारा  इंतजार  करुँगी ,  लेकिन  शर्त  है  वहां  घोर  अँधेरा  होना  चाहिए  l 
कीचक  खुशी  से  फूला  नहीं  समां  रहा  था  l  रात्रि  के  अंधकार  में  किसी  तरह नृत्य - शाला  पहुंचा   तो  वहां  द्रोपदी  नहीं ,  भीम  उसका  इंतजार  कर  रहे  थे  , उन्होंने  कीचक  को  युद्ध  के  लिए  ललकारा  ,  दोनों  में  भयंकर  मल्ल युद्ध  हुआ  l  वह  कामांध  कीचक   भीम   जैसे  वीर  का  जो  कष्ट  कठिनाइयों  में  तपकर  तेजस्वी  हो  गए  थे  सामना  नहीं  कर  सका  l  और  भीम  ने  कीचक  का  वध कर  दिया  l  ----
  हमारे महाकाव्य  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं   l  रामायण , महाभारत  और  गीता  का  अध्ययन - मनन  यदि  संसार  में  लोग  करें  तो  संसार  की  आधी  से  अधिक  समस्याएं   वैसे  ही  समाप्त  हो  जाएँ  l  

30 July 2019

WISDOM ------ इतिहास से शिक्षा लें ! जब जागो तब सबेरा !

  जाति प्रथा  ,  छुआछूत  की  भावना  और  रूढ़िवादिता  से   हमारे  देश  का  कितना  अहित  हुआ  है  , इसकी  कल्पना  भी  नहीं  की  जा  सकती  -- इतिहास  की  यह   घटना  समाज  को  जागरूक  करने  के  लिए  है ----- 
     11 वीं  शताब्दी    दूसरे  दशक  की  घटना  है  --- सोमनाथ  पट्टन   निवासी  विजय  भट्ट  अपने  नित्य  कर्म  से  निपटकर  वेद  पाठ  करने  बैठता  था  l  उसकी  शूद्र  सेविका  का  आठ  वर्षीय   पुत्र  देवा   उसे  देखता  तो  उसका   मन    विद्वान्   बनने  के  सपने  देखने  लगा  l  एक  दिन  बालक  देवा  ने  डरते - डरते  विजय  भट्ट  से  उसे  भी  संस्कृत   पढ़ाने  का  निवेदन  किया  l  विजय  भट्ट  ने  उसे  कठोरता  से  कहा --- " तुम  शूद्र  हो  l  शूद्रों     को  देवभाषा  पढ़ने  और  सुनने  का  अधिकार  नहीं  l " 
 विजय  भट्ट  अपनी  कन्या  शोभना  को   जो  देवा  की  समवयस्क  थी  नित्य  प्रति  संस्कृत  पढ़ाते  थे  l  जब  विजय  भट्ट  अपनी  कन्या  को  संस्कृत  पढ़ाते  तो  देवा   मकान  के  एक  सूने  कोने  में   छिप जाता  और  बड़े  ध्यान  से  सब  पाठ  सुना  करता  l  कभी  कुछ  समझ में  नहीं  आता  तो  अवसर  देखकर  शोभना  से  पूछ  लेता  l  जिज्ञासु  और  सचेष्ट  देवा  इस  तरह  संस्कृत  पढ़  गया  और  धर्मशास्त्रों  को  समझने  लगा  l  अब  उसने  अपने  समाज  में  ज्ञान  का  प्रसार  करना  आरम्भ  किया  l
 एक  शूद्र  द्वारा  वेद  मन्त्रों  का  उच्चारण  और  संस्कृत  का  अध्यापन  करना  रूढ़िवादी  पंडितों  को  सहन  नहीं  हुआ  l  उन्होंने  देवा को  चेतावनी  दी  कि  धर्म  विरुद्ध  कार्य  न  करे  l  देवा  ने  उन्हें  शास्त्रों का प्रमाण  देकर  बताया  कि  शूद्र  जन्म  से  नहीं  कर्म  से  होते  हैं  l  इस  पर  कुछ दुराग्रही ब्राह्मणों  ने  उसे  बहुत  अपमानित  किया व बहुत  मारा पीटा  l   अकारण  इस  तरह  अपमानित  होने  व  अपने  स्वाभिमान  पर  चोट  पड़ने  से   देवा  के  ह्रदय  में  सोमनाथ  पट्टन  के  ब्राह्मण  वर्ग  से  प्रतिशोध  लेने   की   अग्नि  जल  उठी   l                  हर  क्रिया  की  प्रतिक्रिया  होती  है  l दुर्योग  से   अपमानित  और  तिरस्कृत  देवा  की  भेंट  महमूद  गजनवी  के  एक  गुप्तचर  से  हो  गई  l  उसने  अपने  साथ  हुए  हिन्दू  समाज  के  दुर्व्यवहार  की  चर्चा   उस  गुप्तचर  से  की  l  उस  गुप्तचर  ने  कहा --- "  तुम  इतने  विद्वान्  हो  ,  फिर  भी  इन  लोगों  ने  तुम्हे  इतना  तिरस्कृत  किया  ,  तुम  मुसलमान  क्यों  नहीं  बन  जाते  ?  हम  तुम्हारे  अपमान  का  बदला  लेंगे  l  "  देवा  अपने  अपमान  का  बदला  लेना  चाहता  था  , उसने  इस्लाम  धर्म  अपना  लिया   और  देवा  से  फतह  मुहम्मद  हो  गया  l  
 पाटन  नरेश   भीमदेव   चौलुक्य   ने  महमूद  गजनवी  के  आक्रमण  से   सोमनाथ  मंदिर  की  रक्षार्थ  अपनी  सेना  सजा  रखी  थी  l  अन्य  क्षत्रिय  नरेशों  ने  भी  उसकी  सहायता  की  l  महमूद  गजनवी  मंदिर  पर  अधिकार  करने  में  सफल  नहीं  हो  पा  रहा  था  l  फतह  मुहम्मद ( देवा )  सोमनाथ  पट्टन  के  सभी  रहस्य  जानता  था  l  उसने  गजनवी  से  कहा --- " निराश  होने  की  क्या  आवश्यकता  है  , कल  रात्रि को  मैं  आपके  साथ  चलूँगा  l "   दूसरे  दिन  पूर्व  योजना  के  अनुसार   वह  मंदिर  की  रक्षार्थ बने  प्राचीर पर  एक  गुप्त  स्थान  देखकर  चढ़  गया  l  थोड़े  से  सैनिक  उसके  पीछे  चढ़  गए  l  उन्होंने  भीतर  जाकर  प्रवेश  द्वार खोल  दिया  l  गजनवी  की  पूरी  सेना  मंदिर में  घुस गई  ,  सोमनाथ  की  मूर्ति  तोड़  दी  गई  ,  असीमित धन  सम्पदा , हीरे - जवाहरात महमूद  गजनवी  के  हाथ  लगे  l  विद्वानों  का  कहना है -- सोमनाथ  के  पतन , भीमदेव  चौलुक्य  की  पराजय   और  लुटेरे  महमूद  की  सफलता  में   तत्कालीन  रूढ़िवादिता ,  छुआछूत  व  संकीर्णता  सहायक  हुई  l  

29 July 2019

WISDOM ------

 दुनिया के  कट्टर  और  खूंखार  बादशाहों  में  तैमूरलंग  का  नाम  भी  आता  है   l  वह  व्यक्तिगत  महत्वाकांक्षा ,  अहंकार  और  जवाहरात  की  तृष्णा  से  पीड़ित  था  l  एक  समय  की  बात  है  बहुत  से  गुलाम  पकड़कर  उसके  सामने  लाये  गए  l  तुर्किस्तान  का  विख्यात   कवि  अहमदी  भी    दुर्भाग्य  से  पकड़ा  गया  l  जब  वह  तैमूर  के  सामने  उपस्थित  हुआ  तो    तैमूर  ने  उससे  कहा --- सुना  है  कवि  बड़े  पारखी  होते  हैं  ,  दो  गुलामों  की  ओर  इशारा  करते  हुए  उसने  पूछा -- बता  सकते  हो कि  इनकी  कीमत  क्या  होगी  ? '     अहमदी  ने  सरल  और  स्पष्ट  शब्दों  में  कहा  --- "  इनमे  से  कोई  भी   चार  हजार  अशर्फियों  से   कम  कीमत  का  नहीं  है  l "
तैमूर  ने  अभिमान  से  पूछा  --- "  मेरी  कीमत  क्या  होगी  l "
निश्चिन्त भाव  से  अहमदी  ने उत्तर  दिया ---- "  यही  कोई  24 अशर्फी  l  "
तैमूर क्रोध  से  आगबबूला  हो  गया  l  चिल्लाकर  बोला --- "  बदमाश  !  इतने  में  तो  मेरी  सदरी  भी  नहीं  बन  सकती  ,  तू  यह  कैसे  कह  सकता  कि  मेरा मूल्य  कुल  24 अशर्फी  है  l  "
अहमदी  ने  बिना  किसी  आवेश   के  उत्तर  दिया  ---- " बस  यह  कीमत  तो  उस  सदरी  की  है  , आपकी  तो कुछ  नहीं  l   जो  मनुष्य  पीड़ितों  की   सेवा    नहीं कर  सकता ,  बड़े  होकर  छोटों  की  रक्षा  नहीं  कर  सकता  , असहायों  और अनाथों   की  जो   सेवा   नहीं  कर  सकता   , मनुष्यता  से  बढ़कर   जिसे  अपनी  अहमियत  प्यारी  हो  , उस  इनसान  का  मूल्य  चार  कौड़ी  भी  नहीं ,  उससे  अच्छे  तो  यह  गुलाम  ही  हैं  जो  किसी  के  काम  तो  आते  हैं  l  " 
  फिर   अहमदी  का  क्या  हुआ  यह  सर्वविदित  है  l  सत्य  कहने  का  उसमे  साहस  था  l  

28 July 2019

WISDOM ---- विनोबा भावे का सच्चा धर्म

 विनोबा सच्चे  धर्म  का  आचरण  करने  वाले  थे  l  वे  उपरी  दिखावा  और  ढोंग  से  कोसों  दूर  थे  l  बिहार  का  भ्रमण  करते  हुए  जब  वे  देवघर  पहुंचे  तो  कुछ  लोगों  ने   वैद्द्यनाथ  धाम  के  मंदिर  में  जाने  को  कहा   l  विनोबा  ने  उत्तर  दिया  कि मेरे  साथ  तो  हरिजन  भाई  भी  जाते  हैं  , यदि  मंदिर का  पुजारी  राजी  होगा  तभी  जाऊँगा  अन्यथा  नहीं   l  पुजारी  ने  पहले  तो  हाँ  कर  दी  पर  जब  वे  अपनी  समस्त  मंडली  के  साथ  पहुंचे  तो  मंदिर  वालों  ने   मारपीट   शुरू  कर  दी   l   इसी  तरह  केरल  के  गुरुवयूर  मंदिर  में  पहले  तो  उन्हें  आमंत्रित  किया  लेकिन  जब  पुजारी  को  मालूम  हुआ  कि  उनके  साथ  एक  ईसाई  है  तो  मना  कर  दिया   l     लेकिन  कर्नाटक  में  गोकर्ण  महाबलेश्वर का  प्रसिद्ध  मंदिर  है  वहां  के  पुजारी  कि  सहमति  से  एक  भूदानी  कार्यकर्त्ता  सलीम  के  साथ  दर्शन  किये  l 
पुंडरीक  मंदिर  वालों  ने  उन्हें  लिखित  में   निमंत्रण  दिया   तब  उन्होंने  अपने  हिन्दू , मुस्लिम , ईसाई  सभी  कार्यकर्ताओं    के  साथ  दर्शन  किये   l  उनके  साथ  जर्मनी  कि  लड़की  हेमा  व  बीबी  फातमा  भी  थी  l  इसी  तरह   अजमेर  की  ख्वाजा  साहब  की  दरगाह  वालों  ने  उन्हें  बुलाया   तो   अपने  सर्वोदय  सम्मलेन  के  दस  हजार  प्रतिनिधियों  के  साथ  वे  दरगाह  पहुंचे  और  वहां  उन्होंने  गीता  की  प्रार्थना  की   l  दरगाह  वालों  ने  उनका  बड़ा  आदर  किया  और  पगड़ी  बाँधी  l 
 भगवान  की  उपासना  के  सम्बन्ध  में  वे  कहा   करते  थे  --- " जब  ये  भूखे  प्यासे  , दरिद्र नारायण  हमारे  सामने  हैं  और  हम  उनकी  तरफ  से  निगाह  फेरकर  पत्थर  की  मूर्ति  के  लिए  घर  बनाये  , कपडे  पहनाएं , भोग  लगायें  , तो  कैसे  चलेगा  ?  हमारा  आज  का  धर्म   तो  यही  है  कि  हम  इस  भूखे - नंगे  और  सर्दी  से  ठिठुरने  वाले  दरिद्र  नारायण  को  खिलाएं - पिलायें  , उसे  कपड़े  पहनाएं  और  उनके  निवास  स्थान  की  व्यवस्था  करें  l  " 

27 July 2019

WISDOM ---- कृतज्ञता पुण्य है

  हमारे  महाकाव्य  हमें  सिखाते  हैं  कि  धर्म  क्या  है  ?  और  अधर्म  क्या  है  ?   और  श्रेष्ठ  व्यक्ति  अपने  दिए  हुए  वचन  को  अवश्य  पूरा  करते  हैं  ----
 महाभारत  का  एक  प्रसंग  है  ----पांडव  वनवास  में  थे   l एक  यक्ष  ने  हस्तिनापुर  पर  आक्रमण  कर  के  छल  से  दुर्योधन  को  बंदी  बना  लिया  और  उसे  लेकर  विमान  से  यक्षपुरी   जा  रहा  था  l  विमान  उस  स्थान  से  निकला  जहाँ  पांचो  पांडव  द्रोपदी  के  साथ  विश्राम  कर  रहे  थे  l  विमान  में  यक्ष  के  साथ  युद्ध  कर  रहे  दुर्योधन  को  युधिष्ठिर  ने  पहचान  लिया  और  अर्जुन  को आज्ञा  दी  कि  यक्ष  से  युद्ध  कर  भाई दुर्योधन   को  छुड़ा  दो  l  अर्जुन  ने  कहा --- " महाराज  !  दुर्योधन  की  कुटिलता  के  कारण  ही  हम  जंगलों  में  भटक  रहे  हैं  l  शत्रु  को  बचाना  भला  कोई  धर्म  है  ? " 
युधिष्ठिर ने  गंभीरता  से  कहा --- " दुर्योधन  ने  हमें  संत्रस्त  करने  में  कोई  कसर  नहीं  छोड़ी  लेकिन  नीति  कहती  है   जब  बाहरी  आक्रमण  हो  तो  आंतरिक  द्वेष भूलकर   परस्पर  मदद  करनी  चाहिए  l  दुर्योधन  आखिर  अपना  भाई  है   और  भाई  की  रक्षा  करना  धर्म  है ,  अधर्म  नहीं  l  "  
  अर्जुन   ने  यक्ष  से  युद्ध  कर   दुर्योधन  को  छुड़ा  लिया  l   दुर्योधन  ने  विनीत  भाव  से  युधिष्ठिर  से  कहा  ---- " इस  उपकार  के  बदले  वे  क्या  चाहते  हैं   ? "  युधिष्ठिर  ने  कहा  -- अवसर  आने  पर  मांगूंगा  अभी  आप  हस्तिनापुर  लौट  जाएँ   l 
  समय  बीता  l  जब  महाभारत  का  युद्ध  शुरू  हुआ  तो  भीष्म  पितामह  सेनापति  बने   l  शुरू  के नौ  दिन  में  पांडव  सेना  की  भरी  क्षति  हुई  l  भीष्म  को  इच्छा  मृत्यु  का  वरदान  था  ,  पांडव बड़े  चिंतित  हुए  और  भीष्म  पितामह  की  मृत्यु  का  कारण   उन्ही  से  जानने  का  निश्चय  किया  l  भीष्म  की  प्रतिज्ञा  थी  कि  वे  यह  रहस्य  केवल  दुर्योधन  को  बताएँगे  l  अत:  पांडवों  ने   अर्जुन  को  दुर्योधन  के  पास  भेजा    जंगल  में  दिए  गए  वचन   के  अनुसार  राजमुकुट  मांग  लाने  को  कहा  l    अर्जुन  ने  दुर्योधन  के  पास  जा  कर  कहा ---  भाई  !  आपने  एक  वचन  दिया  था  उसे  पूरा  कीजिये  और  कुछ  समय  के  लिए  राजमुकुट  मुझे  दे  दीजिये   l  "  पास में  उपस्थित  अश्वत्थामा  ने   कहा  -- शत्रु  पर  कभी  विश्वास  नहीं  करना  चाहिए  l
तब  दुर्योधन  ने  कहा ---- " किये  हुए  उपकार  को  भूल  जाना  और  दिए  हुए  वचन  को  पूरा  न  करना  दोनों  ही    पाप  और  असभ्यता  है  l  इस  कृतध्नता  से  मैं  अपनी  आत्मा  को  कलंकित  करना  नहीं  चाहता   l  "  --- उसने  अपना  मुकुट  उतार  कर  अर्जुन  को  दे  दिया   l     परिणाम   जानते    हुए  भी   दुर्योधन  ने  मानवीयता  का  सम्मान  किया  और  शत्रु  के  उपकारों  को  भी  नहीं  भुला   l  

25 July 2019

WISDOM -----

 पुराणों  में  एक  कथा  है -- लवणासुर  दैत्य  की  l  इसके  पिता  का  नाम  था -- मधु ,  यह  दैत्य  होते  हुए  भी   बहुत  दयालु  ,  भगवद भक्त  और  सद्गुण  संपन्न  था  l  उसकी  तपस्या  से  प्रसन्न  होकर   शंकर  भगवान  ने  उसे  वरदान में  अपना  त्रिशूल  दिया   और  कहा  -- जब  तक  यह  त्रिशूल  तुम्हारे  पास  है  तब  तक  कोई  तुम्हे  जीत  नहीं  सकेगा  l  मधु  ने  प्रार्थना  की  कि  यह  त्रिशूल  सदा  उसके  वंश  में  रहे  l  तो  शंकर  जी  ने  कहा --- ऐसा  संभव  नहीं  है  l  यह  तुम्हारे  एक  पुत्र  के  पास  रहेगा  l
  महान  शक्ति  के  प्रतीक  त्रिशूल  को  पाकर  मधु  ने  उसका  सदुपयोग   कमजोरों  की  रक्षा ,  विपत्ति  निवारण   और  राज्य  में  सुख - शांति के  लिए  किया  l  उसकी  मृत्यु  के  बाद  यह  त्रिशूल  उसके  पुत्र  लवणासुर  के  पास आ  गया  l  वह  बहुत  क्रोधी , निर्दयी  और  दुराचारी  था  l  त्रिशूल  पाकर  उसकी  दुष्प्रवृत्तियां  और  बढ़  गईं  l  जब  दुष्ट   व्यक्तियों  के  हाथ  में  सत्ता  एवं    शक्ति   आ  जाये  तो  वे  उसका  दुरूपयोग  ही   करते  हैं  l 
उस  समय  अयोध्या  में  भगवान  श्रीराम  का  राज्य  था  l सभी  ऋषियों  आदि  ने  भगवान  राम  को  यह  करुण  गाथा  सुनाई l  भगवान  राम  ने  कहा -- लवणासुर  के  पास  शिवजी  का  त्रिशूल  है , उसके  रहते  उसे  हराना  असंभव  है  l  ऋषियों व  विद्वानों  ने  कहा -- ' राजा  को  तो  साम , दाम , दंड -भेद  आदि  सभी  नीतियों  से  काम  लेना  चाहिए   क्योंकि  यदि  अनाधिकारी  व्यक्ति  को  सत्ता  एवं  शक्ति  प्राप्त  हो  जाये  और  वह  उसका  दुरूपयोग  करे  तो  उसे  किसी  भी  तरह  रोकने  में  संकोच  नहीं  करना  चाहिए  l '  ऋषियों  ने  बताया  कि  प्रात:काल  जब  लवणासुर  आहार  के  लिए  जाता  है  तब  वह  अपने  साथ  त्रिशूल  नहीं  ले  जाता  , उसी  समय  उसे  मारा  जा  सकता  है  l  
भगवान राम   ने  इस  कार्य  के  लिए  शत्रुध्न  को  आज्ञा  दी  l  जब  लवणासुर आहार  के  लिए  गया  तो  शत्रुध्न  महल  के  दरवाजे  पर  खड़े  हो  गए  , उसके  लौटने  पर  उसे  युद्ध  के  लिए  ललकारा  l  लवणासुर  ने  कहा --- 'नि:शस्त्र  को  युद्ध  के  लिए  ललकारना  नीति  के  विरुद्ध  है  l '  तब  शत्रुध्न  ने  कहा ---'यदि  तुमने  नीति  का  पालन  किया  होता  तो  तुम्हारे  साथ  भी  नीति  से  काम  लिया  जाता  l '  दोनों  में  भयंकर  युद्ध  हुआ  , अंत  में  लवणासुर  मारा  गया  और  त्रिशूल  शिवजी  के  पास  लौट  गया  l  फिर  श्री राम  ने  शिवजी  से  प्रार्थना  की  कि  --आप  भोलेनाथ  हैं   लेकिन  कृपा  कर  के  भविष्य  में  ऐसे  अनुत्तरदायी  व्यक्तियों  तक  शक्ति  और  सत्ता  न  पहुँचने  दे  ,  इससे  शक्ति  व  सत्ता  का  दुरूपयोग  होता  है  l 

24 July 2019

WISDOM ----- मनुष्य जन्म से नहीं , कर्म से महान होता है l

   हिन्दू  धर्म  के  संस्थापक  इतने  उदार , दूरदर्शी  व  न्यायप्रिय  थे   कि  वे  वर्तमान में  प्रचलित  जाति - पांति   के  कारण  चल  पड़े  , ऊँच - नीच  के   भेदभाव   को  कदापि  स्वीकार  नहीं  कर  सकते  थे   l  उनकी  आत्माएं  स्वर्ग  में  बैठी  रो  रहीं  होंगी    कि  हमने   किन  उच्च  उद्देश्यों  को  लेकर  वर्णाश्रम  धर्म  की  स्थापना  की  थी  और  आज  लोगों  ने    उसकी  कैसी   दुर्गति  बनाई  और  क्या  से  क्या  कर  के  रख  दिया  l    जाति , धर्म   आदि  के  आधार  पर  होने  वाले  अत्याचार  को  धर्म    कदापि  स्वीकार  नहीं  करता  l
  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' संस्कृति - संजीवनी  श्रीमद्भागवत  एवं  गीता '  में  पृष्ठ  1.114  पर  लिखा  है ----- " भारतीय  संस्कृति  यदि  ऐसी  ओछी , संकीर्ण  एवं  अन्यायी  रही  होती   तो  संसार  में  इतने  दिनों  तक  उसका  अस्तित्व  न  टिक  सका  होता  l  विवेकशील  लोगों  ने   उसे  दुनिया  के  परदे  पर  से  कब  का  मिटा  दिया  होता   l  अन्यायी  व्यक्तियों  का  नाश  हुआ  है  तो  अन्यायी  परम्पराएँ  ही  कैसे  जीवित  बनी  रहतीं  ?  "   आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ---- "  जब  से  हमने  ऐसी  अहंवादी  अन्याय मूलक   परम्पराएँ  अपनायीं  तभी  से  हमारा  पतन  हुआ  l  पिछले  एक  हजार  वर्षों  तक   हमें  विदेशी  आक्रमणकारियों   के  जो  लोमहर्षक  अत्याचार  सहने  पड़े  , उन्हें  यदि  हमारी   अन्याय  मूलक  परम्पराओं  का  दंड  कहा  जाये  तो  अतिशयोक्ति  न  होगी  l    हमने  अपनों  को  सताया    दूसरे  हमें  सताने  आ  गए  l  सेर  को  सवा  सेर  मिल  गया  l   दूसरों  को  न्याय  का  उपदेश  देने  से  पहले  हमें  अपने  हाथ  अनीति  की  कीचड़  से  सने  हुए   न  रखने  का  प्रयत्न  करना  होगा  l  "
  गीता  का  समता  द्रष्टि  वाला  आदर्श  ---  'सब  प्राणियों  में  भगवान  है , एक  ही  आत्मा  सब  में  समाया  हुआ  है  '  हमें  अपने  व्यक्तिगत  और  सामाजिक  जीवन  में   सम्मिलित  रखना  चाहिए  l  इसके  बिना  हमारी  सामूहिक  प्रगति  अवरुद्ध  बनी  रहेगी  l 
  स्वामी  विवेकानन्द जाति  के  कायस्थ  थे  l  इस  जातीय कारण  से  उन्हें   बहुत  बार  अपमान  और  घोर  विरोध  का  भी  सामना  करना  पड़ा   लेकिन  भारत  को  धर्म  का  सन्देश  देने , विश्व  में  भारत  का  सम्मान  बढ़ाने,  जन - सेवा  के  कार्यक्रमों  को  चलाने, भारतीय  समाज  को  संगठित  करने  व  उसे  जगाने   के  लिए  वे  सदैव  प्रयास  करते  रहे   l  इन  महान  सेवाओं  के  कारण  स्वामी  विवेकानंद  भारत  की  महान  विभूतियों  की  श्रेणी  में  गिने  जाते  हैं   l  कायस्थ  की  द्रष्टि  से  उन्हें  कोई  नहीं  मानता  वरन   भारतीय  जनता  के  , युवाओं  के  प्रेरणा - स्रोत  ,  महापुरुष  के  रूप  में माने  जाते  हैं  l 
  महात्मा  गाँधी  वैश्य  जाति  में  उत्पन्न  हुए    पर  वे  अपनी  महानता  के  कारण  ब्राह्मणों  के  ब्राह्मण  ,  विश्व  में  पूजनीय  बापू  बने  l  

23 July 2019

WISDOM -----

  मनुष्य  के  शत्रु  दो  प्रकार  के  हैं --- एक  वे  शत्रु  जो  दिखाई  देते  हैं  -- इसमें  वे  लोग  सम्मिलित  होते  हैं  जो  अपने  से  द्वेष  भाव  रखते  हैं , हानि  पहुँचाने  की  कोशिश  करते  हैं  l  इसमें  वे  जीव  जैसे  सिंह , सांप , बिच्छू  आदि  भी  हैं  जो   अवसर  मिलने  पर  आक्रमणकारी  हो  जाते  हैं   l  इसके  अतिरिक्त  विभिन्न  प्रकार  के  रोग  भी  हमारे  बैरी  हैं  जो  धन  व  प्राणों  पर  संकट  उपस्थित  करते है  l  --  ये  सब  शत्रु  या  हमारे  बैरी  ऐसे  हैं   जिनको  हम  देखते  हैं , पहचानते  हैं  और  उनसे  अपनी  रक्षा  के  विभिन्न  उपाय  भी  कर  लेते  हैं  l 
 दूसरे   प्रकार  के   शत्रु  वे  हैं  जो  हमें  दिखाई  नहीं  देते  , पकड़  में  नहीं  आते  l  ये  हैं  हमारे  आंतरिक  शत्रु , हमारे  मनोविकार --- काम , क्रोध , लोभ , छल ,कपट , अहंकार , मद , मत्सर  आदि  अनेक  दुर्गुण  हैं , मनोविकार  हैं   जिन  पर  नियंत्रण नहीं  किया  गया   तो  ये मनुष्य  को  पतन  की   ओर  ले  जाते  हैं  l  ये  भीतरी  शत्रु  लकड़ी  में  लगे  घुन  की  तरह  मनुष्य  के   व्यक्तित्व   को  खोखला  करते  रहते  हैं   और  इन्ही  दुर्गुणों  के  कारण  मनुष्य  स्वयं  अशांत  रहता  है  ,  अपने   आसपास    के  लोगों  को  परेशान   करता  है  और  समाज  में  अशांति  फैलाता  है  l   इन  आसुरी  प्रवृतियों  को  नियंत्रित  कर  के  ही  समाज  में  सुख - शांति  से  रहा  जा  सकता  है  l  

22 July 2019

WISDOM ----- सुख - शान्ति से रहने के लिए भेद की इन रेखाओं को मिटाना होगा

  बंट्रेंड  रसेल  का  जन्म  इंग्लैण्ड  में  हुआ  था  l  वे  मानवतावादी  विचारक  थे  और  विश्व  को  एक  कुटुम्ब  के  रूप  में  देखना  चाहते  थे  l  मानव - मानव  के  बीच  धर्म , जाति , सम्प्रदाय  और  राष्ट्र  की  जो  ऊँची , ऊँची  दीवारें  हैं  , उन्हें  वे  तोड़ने  के  लिए  प्रयत्नशील  थे  l  अपने  एक  वक्तव्य  में   उन्होंने  यही  अपील  की  थी  कि   मनुष्य  को  यह  भूल  जाना  चाहिए  कि  वे  हिन्दू  के  यहाँ जन्मे  या  मुसलमान  के  यहाँ , यहूदी  या  ईसाई  के  यहाँ   l  कोई  भी  भूमि  आपको  जन्म  दे  सकती  है   l यदि  कोई  महत्वपूर्ण  बात  है  तो  वह  यह  है  कि   आप  इन्सान  हैं   l 
  जब  प्रथम  विश्व युद्ध  छिड़ा  तो  वे  बहुत  दुःखी  हुए    और  सोचने  लगे  कि  कितने  ही  नवयुवक  जो  देश  की  रचनात्मक  गतिविधियों  में  सक्रिय  रूप  से  सहयोग  दे  सकते  हैं  ,  युद्ध  की  अग्नि  उन्हें  अपने  में  समेट  लेगी  l    वे  कहते  थे  कि  भगवान  का  सबसे  महत्वपूर्ण  वरदान  बुद्धि  है   इसके  सदुपयोग  से  बड़े  से  बड़े  कार्य  संपन्न  किये  जा  सकते  हैं   l 
 चंद्रतल  को  अपने  पैरों  से  रौंदने  वाले  मानव  को  वे  अंत  तक  यही  सन्देश  देते  रहे  कि  इस  धरती  पर  हाथ  में  हाथ  मिलकर  प्रेम  से  चलने  का  प्रत्येक  व्यक्ति  को  प्रयत्न  करना  चाहिए  l  

21 July 2019

WISDOM ----- अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना प्रत्येक धर्मशील व्यक्ति का न्यायोचित कर्तव्य है

 लोग  तो  मनुष्य  योनि  पाकर  भी  अधम  कार्य  करते  हैं  एवं  अपना  इस  धरती  पर  आना  कलंकित  करते  हैं   l  गिद्ध  की  योनि  में  जन्म  लेकर  भी  धर्मात्मा  जटायु  ने   अत्याचार  व  अन्याय  के  विरुद्ध  रावण  से  संघर्ष  किया  और  अपने  जीवन  को  सार्थक  किया  l  
  रावण   आकाश  मार्ग  से  सीता  माँ का  छल  पूर्वक  हरण  कर   ले  जा  रहा  था  l पक्षीराज  जटायु  ने  सीता  का  करुण  क्रंदन  सुना  तो  ध्यान  से  उठकर  गुफा  से  बाहर  आये  और  ध्वनि  को  लक्ष्य  कर  उड़ान  भरी  l  लंका  के  राजा  रावण  को   बलात  हरण  करते  उन्होंने  पहचान  लिया  और  पुष्पक  विमान  के  आगे  जाकर  प्रतिरोध  में   उन  ने  टक्कर  मारी   l  रावण  ने  देखा  कि  विमान  की  गति   कैसे   रुक  गई   l  फिर  जटायु  को  पहचानते  हुए  उसने  खड्ग  निकाल  लिया  l  नि:शस्त्र  जटायु  ने  बड़ी  वीरता  से  रावण  से  युद्ध  किया  ,  फिर  पंख  कट  जाने  से   पृथ्वी  पर  आ  गिरे  l  रावण  ने  अट्टहास  किया   तो  जटायु  ने  उत्तर  दिया  --- " पापी  ! परोपकार  में  प्राण  देकर  मुझे  तो  सद्गति  मिलेगी  ,  पर  तेरा  सर्वनाश  अब  निश्चित  है  l "
भगवान  राम  ने  जब  घायल  जटायु  को  देखा  तो  अपनी  गोद  में  लिया  , जटायु  ने  भगवन  की  गोद  में  ही  अपने  प्राण  त्यागे  l  सत्कर्मों  के  कारण  गिद्ध  होते  हुए  भी  जटायु  ने   देवपद  पाया  l  

20 July 2019

WISDOM ------ प्रेरणाप्रद द्रष्टान्त ----' गरीब की हाय '

 एक  राजा  ने  किसी  विद्वान्  से  जानना  चाहा  कि  ' गरीब  की  हाय ' क्या  है  , इससे  क्या  होता  है  ?
 विद्वान्  ने  इस  प्रश्न  का  उत्तर  देने  के  लिए  तीन  माह  का  समय  माँगा  l  उसने  राजा  से  कहा --- महाराज  ! इस  प्रश्न  का  उत्तर  मैं  आपको  किसी   जंगल  में  दूंगा l  अत:  आपको  500  सैनिक  साथ  लेकर  चलना  होगा  l "  राजा  को  तो  प्रश्न  का  उत्तर  जानना  था  अत:  मंत्रियों  को  राज कार्य  समझा  दिया  और  सैनिकों  समेत  जंगल  को  प्रस्थान  किया  l 
घने  जंगल  में  पहुंचे  जहाँ  मनुष्य  तो  क्या  पक्षियों  की  बोली  भी  बहुत  कम  ही  सुनाई  देती  थी  l  विद्वान्  ने  कहा  --- यहीं  ठहरना  ठीक  है  l  राजा  की   आज्ञा    से  सैनिकों  ने  वहीँ  तम्बू  लगाया  ,  भोजन  आदि  व्यवस्था  की  l  अब  विद्वान्  ने  कहा --- राजन  !  मैं  आपके  प्रश्न  का  उत्तर  दूंगा , लेकिन  यह  सामने  वाला  बरगद  का  पेड़  इसमें  सबसे  बड़ी  बाधा  है  l  यह  पेड़  जब  तक  जड़  सहित  अपने  आप   न  गिर  जाये   तब  तक  मैं  आपके  प्रश्न  का  उत्तर   नहीं  बता  सकता  l  अत:  आप  इन  500  सैनिकों  को  उस  हरे - भरे  पेड़  की  देख - रेख  में  तैनात  कर  दें  l    यह  सख्त  आदेश  दें  कि  जब  तक  पेड़  सूख  न  जाये  कोई  भी  सैनिक  वहां  से  हटे  नहीं   और  उस  पेड़  को  नष्ट  करने  के  लिए  उस  पर  किसी  शस्त्र  का  प्रयोग  न  करें  l  जैसा  विद्वान्  ने  कहा  राजा  ने  सब  वैसा  कर  दिया  l    अब  500  सैनिक  उस  पेड़  की  देख - रेख  में  लग  गए  और  महाराज  स्वयं  उस  पेड़  के  सूखने  की  राह  देखने  लगे  l
दो - तीन  दिन  जैसे - तैसे  बीते  लेकिन  दिन  भर   जून  की  तपती  धूप,  लू   और  पानी  की  कमी  से   वे  बड़े  व्याकुल  हो  गए  l  सोते - जागते , उठते - बैठते , खाते -पीते  उनके  मुंह  से  यही  निकलता --हाय !  ये  पेड़  कब  सूखेगा  ?  कब  हम  अपने  घर  जायेंगे  ?  बच्चों  से  मिलेंगे  ?  वे  500 जवान  उस  पेड़  के  लिए  ह्रदय  से  दुःखी  हो  गए  l हाय  ! ये  पेड़  कब  सूखेगा  ? 
किसे  विश्वास  था  कि  यह  सैकड़ों  वर्षों  में  गिरने  वाला  पेड़  जल्दी  ही  सूखकर  गिर  जायेगा  l  लेकिन  यह  क्या  ?  तीन  महीने  भी  नहीं  हुए  कि  पेड़  के  तमाम  पत्ते   सूखकर    झड़  गए  ,  सबको  कुछ  आशा  बंधी  l  पूरे  छह  माह  भी  समाप्त नहीं  हुए  कि  वह  पेड़  जड़  सहित  जमीन  पर  गिर  गया  l  सबकी  खुशी  का  पार  न  रहा  l  एक  सिपाही ने  खुशी  के  मारे  दौड़कर  राजा  को  यह  संदेश  भी  सुना  दिया  कि  श्रीमान ,  बरगद  का  पेड़  जड़  सहित  अपने  आप  गिर  गया  l  राजा  और  विद्वान्  बड़ी  उत्सुकता  से  देखने  आये  l  सब  देखकर  विद्वान्  ने  सैनिकों  से  पूछा --- " तुमने  इस  हजारों  वर्षों  में   नष्ट  होने  वाले  पेड़  को  कैसे  गिरा  दिया  ?  क्या  तुमने  किसी  शस्त्र  की  सहायता  से  ऐसा  किया  ?
वे  सब  बोले -- " महाराज  !यह  तो  अपने  आप  ही  गिर  पड़ा  l  हमने  कोई  शस्त्र  का  प्रयोग  नहीं  किया  l  हाँ ! हम  सोते - जागते    यह   अवश्य   कहते  रहे    कि  हाय !  ये  पेड़ सूख जाये  ,  तब  हम  अपने  घर  जाएँ  l            तब  विद्वान्  ने  कहा ,-- " राजन  !  जिस  प्रकार  यह  हजारों  वर्षों  में  नष्ट  होने  वाला  पेड़   500  जवानों  की  'हाय '  खाकर  अपने  आप  जड़  सहित  गिर  पड़ा  ,  उसी  प्रकार  आदमी  भी  दीन - दुःखियों  को  सता  कर  ,  अनेकों  की  'हाय'  खाकर   अपने  आप  ही  नष्ट  हो  जाता  है  l  "  राजा  भी  समझ  गया  कि  हाय  से  क्या  नहीं  नाश  को  प्राप्त  हो  सकता  ?  

19 July 2019

WISDOM ---- इतिहास से शिक्षा लें ---

उचित  यही  है  कि  हम  इतिहास  से  शिक्षा  लें  और  गलतियों  को  सुधारें  l  कहते  हैं --- ' इतिहास  स्वयं  को  दोहराता  है  l ' ---- जाति - पांति  के  अंतर्गत   छोटे - बड़े  की  , ऊँच - नीच  की  भावना  फूट  फैलाती  है  ,  एक  दूसरे  को  अलग  करती  है  l  एक  देश  में  अनेकों  देश ,  एक  समाज  में  अनेकों  समाज ,  एक  वर्ग  जाति  में   अनेकों  जाति  उत्पन्न  करती  है  l  इस  फूट  का  दुष्परिणाम  पिछले  दिनों  सारे  समाज  को  भोगना  पड़ा  और  हमें  एक  हजार  वर्ष  की  गुलामी  का  दंड  भुगतना  पड़ा  l  यह  जरुरी  है  कि  अलगाव  की  दुष्प्रवृत्तियों  के  खतरे  को  समझा  जाये   और  उनसे  पिण्ड  छुड़ाने  का  प्रयत्न  किया  जाये  l
 जागरूक  होने  के  लिए  इन  उदाहरणों  का  मनन  करना  चाहिए ------
 विभीषण  रावण  से  क्रुद्ध  होकर  राम  से  जा  मिला  l  उसने  लंका  का  सारा  भेद  बता  दिया   l  फलस्वरूप  असुर  वंश  का  नाश  हो  गया  l 
जयचंद  मुहम्मद  गजनवी  से  जा मिला  और  भारत  के  सब  राजाओं  की  कमजोरी  उसे  बता  दी  l  उस  भेद  से  लाभ  उठाकर  ही  मुसलमान  थोड़े  प्रयत्न  से  ही  इतनी  आश्चर्य जनक  विजय   प्राप्त  कर  सके  l 
        राजपूतों  में  से  बहुत  से   मुसलमानों  से जा  मिले  थे  , यही  कारण    था  कि  इतने  लम्बे  समय  तक  भारत  को  गुलाम  बनाये  रह  सके  l 
  अंग्रेजों  को  यहाँ  के  प्रतिभाशाली  लोगों  का  सहयोग  न  मिला  होता   तो  वे  इतनी  थोड़ी  संख्या  में  होते  हुए   भी  इतने   अधिक  समय  तक  हमारा  शोषण  कर  सकने  में  कभी  सफल  नहीं  होते  l 
   शक्तिसिंह  और  राणा  प्रताप  में  फूट  पड़  जाने  से  ही   चित्तौड़  का  पतन  हुआ  l 
 ऐसी  कलंकित  गाथाएं  इतिहास  में  अनेकों  मिलती  हैं    जिनके  कारण  उस  फूट  के  मार्ग  पर  चलने  वाले  व्यक्तियों  का  ही  नहीं  , व्यापक  पैमाने  पर   सम्पूर्ण  समाज  का  अहित  ही  हुआ  है   l 
बन्दर  और  बिल्ली  की कहानी  प्रसिद्ध  है   जिसमे  एक  रोटी  को     दो  बिल्ली  आपस  में  बाँट  न  सकने  के  कारण  बन्दर  के  हाथों  उन्हें  पूरी  रोटी  गंवानी  पड़ी  l 
भारत  में  फैली  हुई  जाति - पांति , ऊँच - नीच , भाषावाद , प्रांतवाद  , लिंग  भेद   आदि  के  नाम  पर  फैली  हुई  अलगाव  की  प्रवृतियां  सब  प्रकार  से  घातक  और  अवांछनीय  हैं   l   इनका  जितनी  जल्दी  अंत  हो  और  एकता  की  भावना  का  उदय  हो  , उसमे  हम  सब   का  हित  है  l  

18 July 2019

WISDOM ----

बाहरी  शक्तियों  की  कुटिल  चालें  तभी  सफल  हो  पाती  हैं  ,  जब  हम  में  आपसी  फूट  होती  है   और  आपसी  फूट  तभी  पनपती  है  ,  जब  हम  परस्पर  एक - दूसरे  को  प्यार  और  अपनापन  देने  में  विफल  रहते  हैं  l 
  1920 - 21  का  समय  था  l  प्रिंस  ऑफ  वेल्स  दिल्ली  आ  रहे  थे  l  ' फूट  डालो  और  राज  करो '   यह  अंग्रेजों  की   नीति  थी  l  इस  अवसर  पर  उन्होंने   हिन्दू  समाज  में   पहले  से  विद्दमान  आपसी  फूट  का  लाभ  उठाने  की  योजना  बनाई    कि  अछूतों  की  भीड़  इकट्ठी  कर  के   इस  समारोह  को  सफल  बनाया  जाये   और  हजारों -- हजार    संख्या  में   अछूत  भाई - बहनों  को  ईसाई  बनाया  जाये  l  इस  अवसर  पर  सरकार  ने  अछूतों  को  दिल्ली  आने  के  लिए  मुफ्त  रेलगाड़ी  की  भी  व्यवस्था  की  थी  l 
  ऐसे  समय  में  स्वामी  परमानन्द  महाराज   जो  संत  होने  के  साथ  सुधारक  भी  थे  l  हिन्दू  समाज  की  कुरीतियों  को  समाप्त  करने  के  उद्देश्य  से  उन्होंने  अपने  आश्रम  में  हरिजन  पाठशाला  भी  खोली  थी  l  उन्होंने  अपने  शिष्य  श्री कृष्णानंद  से कहा  कि   आश्रम  की  हरिजन  पाठशाला  के  बच्चों  को  लेकर  दिल्ली  जाओ   और  वहां  के  समारोह  में  बच्चों  से  यह  भजन  गवाओ l  यह  भजन  था ---- ' धरम  मत  हारो  रे , जीवन  है  दिन  चार  l ---- "   प्रिंस  ऑफ  वेल्स  के  पधारने  पर  जैसे  ही  समारोह  शुरू  हुआ  ,  बच्चों  ने  खंजरी  बजाकर यह  भजन  गाना  प्रारंभ  कर  दिया  l  जब  लोगों  को  यह  बताया  गया  कि  ये  अछूतों  के  बच्चे  हैं   जो  भगवद भक्ति  आश्रम  रेवाड़ी  में  पढ़ते  हैं   तो  लोग  आश्चर्य चकित  रह  गए  कि  अछूतों  के  बच्चे  और  इतने  साफ - सुथरे  l 
 कृष्णानंदजी  इस  अवसर  पर  कुछ  हरिजन  बच्चों  के  अभिभावकों  को  भी  ले  गए  थे  l  उनमे  से  एक  वृद्ध  ने  खड़े  होकर  कहा  कि  जब  साधु - महात्मा  हमारे  बच्चों  को  ऐसे  प्रेम  से  पढ़ाते  हैं  तो  अब  हमें  धर्म  बदलने  की  जरुरत  ही  क्या  है   l  पूरे  आयोजन  स्थल  पर  उस  वृद्ध  की  बात  का  समर्थन  हुआ  कि  जब  हमें  अपने  धर्म  में  प्यार  व  अपनापन  मिल  रहा  है  तो  अब  हमें  धर्म  बदलने  की  जरुरत  नहीं  है  l  इस  प्रकार  अंग्रेजी  सरकार  का  यह  षड्यंत्र   विफल  हो  गया  l 
 यह  घटना  इस  सत्य  को  बताती  है  कि  अपने  धर्म  और  अपने  समाज  में  अपनापन   न   मिले  और  निरंतर  उपेक्षा  व  अपमान  मिले   --तो  ऐसी  स्थिति  धर्म  परिवर्तन  और  अन्य  जाति  में  विवाह  का  एक  बड़ा  कारण  बन  जाती  है  l  

17 July 2019

WISDOM ------

अहंकार  की प्रवृति  ज्ञान  की  प्रगति  में  बाधक  होती  है  l  कोई  व्यक्ति  जब  अपने  को  सबसे  अधिक  विद्वान्  समझने  लगता  है   तो  विद्वान्  में  नम्रता  का और  विनय  का  जो  गुण  है  वह  लुप्त  हो  जाता  है   और  उसका  ज्ञान  एक  सीमाबद्ध  होकर  रह  जाता  है  l 
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य ने  लिखा  है  ---- " व्यक्ति  के  सद्गुण  यदि  उसे  उत्थान  की  ओर  ले  जाते   हैं  तो  उसके   अन्दर  स्थान  जमाये   अवगुण  भीतर  ही  भीतर  उसकी  जड़  खोखली  करते  रहते  हैं   l  सद्गुण  यदि अच्छाई  का  प्रसार  करते  हैं    तो  अवगुण   वातावरण  को  विषैला  करते  हैं   l "

16 July 2019

WISDOM -----

 समर्थ  गुरु  रामदास  ने  संसार  से  पूर्ण  विरक्त  होते  हुए  भी   राष्ट्र  हित  के बड़े - बड़े  कामों  को  सिद्ध   कराया  l  वे  अपने  एक  कोपीन , खडाऊं  और  माला  के  अतिरिक्त   अपने  लिए  कोई  सामग्री  नहीं  रखते  थे  ,  पर  हिन्दू  जाति   की  रक्षा  के  लिए   उन्होंने  महाराज  शिवाजी  के  राज्य - संस्थापन  कार्य  में  हर  तरह  से  सहयोग  दिया  l 
 यद्दपि  समर्थ  गुरु   स्वयं  हठपूर्वक  गृहस्थ  को  त्याग  कर  वैरागी  बन  गए  थे  ,  पर  उनके  मतानुसार  इस  मार्ग  का  अनुसरण  करने  का  अधिकार  उन्ही  को  है   जो  अपना  जीवन  धर्म  और  समाज  की  सेवा  के  लिए   उत्सर्ग  करने  की  भावना  रखते  हों   l   जो  लोग  सनक  या  मूर्खता  के  आवेश  में  आकर  साधु  बनते  हैं  उनके   लिए  अपने  ग्रन्थ  ' दासबोध '  में  वह  कहते  हैं ---- " पागल  लोग  घर - गृहस्थी  को  त्यागकर  केवल  दुःख  भोगते  हुए  मर  जाते  हैं   और  इहलोक  व  परलोक  दोनों  को  नष्ट  कर  लेते  हैं  l  ऐसे  लोग  आवेश  में  आकर  घर  से  तो  निकल  जाते   हैं  पर  लड़ने  और  झगड़ने  में  ही  उनके  जीवन  का  अंत  हो  जाता  है  l  उनके  पीछे  बहुत  से  लोग  लग  भी  जाते  हैं  ,  उनके  चेले  बन  जाते  हैं  ,  पर  गुरु  और  शिष्य  समान  रूप  से  अज्ञानी  बने  रहते  हैं  l  इसी  प्रकार  जो  किसी  आशा  अथवा  स्वार्थ   की  लालसा  से  घर  छोड़कर  चल  देते  हैं   वे  स्वयं  अनाचारी  बन  जाते  हैं  और   दूसरे   लोगों  में  अनाचार  फैलाते  हैं   l   लेकिन  जो   समाज  की   दशा  को  समझता  है  ,  देश  - काल  और  परिस्थिति  को  समझता  है  ,  उसे  भूमण्डल  में   कहीं  किसी  भी  बात  की  कमी  नहीं   हो  सकती  l  

15 July 2019

WISDOM ---- भ्रष्टाचार -----

  बात  उन  दिनों  की है  जब  चीन  में  सम्राट  ' मंचू '  वंश  का  था  और  चीन  की  प्रजा  अन्याय   को  सहने  व  अंधकार  में  रहने  को  विवश  थी ,  और  डॉ.  सनयातसेन   अपने  देश  और  समाज  के  उद्धार  के  लिए  प्रयत्नशील  थे   l   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो  '  में    लिखा ----  चीन  की  हुकूमत  में  छोटे  से  चौकीदार  या  चपरासी  से  लेकर  गवर्नर  तक  यही  चाहते  थे   कि  वर्तमान  अंधेर - खाता  जैसा  है  वैसा  ही  चलता  रहे  , जनता  में  किसी  प्रकार  के  नए  विचारों  का  प्रचार  न  हो  सके  l  वहां  के  अधिकारियों  को  वेतन  बहुत  कम  मिलता  था   और  तमाम  खर्च  ' ऊपरी  आमदनी '  से  ही  चलता  था   l
  इस  संबंध  में   सनयात  सेन  ने   इंग्लैण्ड  में  रहते  हुए  लिखा  था ---  "  शायद  अंग्रेज  लोगों  को  इस  बात  का  पता  नहीं  कि  चीन में  बड़े - बड़े  पदाधिकारियों  का  निश्चित   वेतन   कितना  कम  है  l कैण्टन  प्रान्त  के  वाइसराय  का  वार्षिक  वेतन   60 पौंड  है  l  इससे  आप  समझ  सकते  हैं  कि  अपने  पद  की  योग्यतानुसार  ठाट - बाट  से  रहने  और  दौलत  जमा  करने  के  लिए  वह  कौन  सा  अन्याय  न  करता  होगा  ?    एक  विद्दार्थी  विशेष  योग्यता  के  साथ  पास  होता  है  , वह  सरकारी  नौकरी  की  खोज  करता  है  और  पीकिंग  के  अधिकारियों  को  घूस  देकर  एक  जगह  प्राप्त  करता  है  परन्तु  उसकी  तनख्वाह  से  उसका  गुजारा नहीं  होता  क्योंकि  तनख्वाह के  बराबर  रुपया   तो  उसे  प्रतिवर्ष  अपने  अधिकारियों  को  दे  देना  पड़ता  है  ताकि  वह  अपने  स्थान  पर  बना  रहे  l  परिणाम  यह  होता  है  कि  वह  लूट -खसोट  प्रारम्भ  कर  देता  है  , जब  गवर्नमेंट  उसकी  पीठ  पर  हाथ   रखे  है    , यदि  वह  तब  भी  काफी  रुपया  न  कमाए  ,  तो  उससे  बढ़कर  बेवकूफ  कौन  होगा  ?  वह  खूब  रुपया  कमाता  है   और  अच्छी  तरह  घूंस  देकर  ऊँचे  पद  प्राप्त  करता  चला  जाता  है  l  इस  प्रकार  जो  मनुष्य  खूब  अच्छी  तरह  से  लूट  सकता  है  वही  सबसे  ऊँचा  पद  पाता  है  l  "
  आचार्य श्री  ने  आगे  लिखा  है  --बहुत  से  लोग  यह  प्रश्न   करते  हैं  कि  जब   चीन  में  ऐसा  अंधेर - खाता  था  तो  समझदार  अन्याय  को  मिटाने  का  प्रयास  क्यों  नहीं  कर  सके  ?    इसके  उत्तर  में  इतना  ही  जान  लेना     पर्याप्त  है  कि  ' मंचू ' शासक  चीन  के  निवासियों  को  डरा  कर   उनका  भेद  लेकर  ही  काम  चलाते  थे  l  सरकारी  जासूस  बड़े  शहरों  से  लेकर  छोटे  गाँव  तक , कारखानों  में , होटलों  में  , रेलगाड़ियों  में  ,  निजी  घरों  तक  में  जासूस  फैले  हुए  थे  ------ किसी  भी  व्यक्ति   के  मुंह  से  सरकार  के  विरोध  में  या  क्रांति  के  पक्ष  में  एक  शब्द  भी  निकल  जाये   तो  उसकी  आफत  आ  जाती  थी   l  
सनयात सेन  ने  एक  स्थान  पर  कहा  है --- लोग  अंधकार  में  रखे  जाते  हैं  और  जिन  बातों  को  सरकार  अपने  लाभ  का  समझती  है  ,  केवल  उन्ही  बातों  को  प्रकट  होने  देती  है   l  
अन्याय  और  भ्रष्ट  व्यवस्था  सदैव  एक  गति  से  नहीं  चल  सकते  ,  कोई  न  कोई  प्रतिक्रिया  अवश्य  होती  है   l  

14 July 2019

WISDOM ------

  जब  लोग  पाप - पुण्य  के  वास्तविक  स्वरुप , संयम , शुद्ध  आचरण , परोपकार , सेवा  आदि  सत्कर्मों  को  भूलकर   केवल  किसी  देवता  की  मूर्ति  के  आगे  मस्तक  झुका  देना  और  कुछ  चढ़ावा  चढ़ा  देना  मात्र  को  को  ही  धर्म - पालन  समझने  लगते  हैं  ,  समझदार  व्यक्ति  भी  उससे  उदासीन  हो  जाते  हैं  तब  धर्म  और  जाति  की  अवनति  होती  जाती  है  l 
  स्वामी  दयानन्द  सरस्वती  के  जीवन  का   सर्वोपरि  उद्देश्य  हिन्दू  जाति  में  प्रचलित  हानिकारक  विश्वासों , कुरीतियों   और  रूढ़ियों  को  मिटाकर   उनके  स्थान  पर  समयोचित  लाभकारी  प्रथाओं  का  प्रचार  करना  था  l   धर्म - सुधार  और  समाज - सुधार  के   इस  महान  कार्य  में  उन्हें  समाज  के  बहुत  विरोध  का  सामना  करना  पड़ा  और  स्वामीजी  के  सम्मुख  अनेक   प्रलोभन  भी  आये  ,पर  वे  कभी  अपने  सिद्धांत  से  टस  से  मस  नहीं  हुए  l 
  एक  दिन  एकांत  में   उदयपुर  के  महाराणा  उनसे  मिले  तो  कहने  लगे --- " स्वामीजी  आप  मूर्ति पूजा  का  खंडन  छोड़  दें  ,  तो  उदयपुर  के  एकलिंग  महादेव  की  गद्दी  आपकी  ही  है  l  इतना  भारी  ऐश्वर्य  आपका  हो  जायेगा  और  आप  समस्त  राज्य  के  गुरु  माने  जायेंगे  l " 
स्वामीजी  किंचित  रोष पूर्वक  बोले  --- " राणाजी  !  आप  मुझे  तुच्छ  प्रलोभन  दिखाकर  परमात्मा  से  विमुख  करना  चाहते  हैं  l  आपके  जिस  छोटे  से  राज्य  और  मंदिर  से  मैं  एक  दौड़  लगाकर  बाहर  जा  सकता  हूँ  ,  वह  मुझे  अनंत  ईश्वर  की  आग्या  भंग  करने  के  लिए  विवश  नहीं  कर  सकता  l  परमात्मा  के  परम  प्रेम  के  सामने  इस  मरुभूमि  की   माया - मारीचिका  अति  तुच्छ  है  l  मेरे  धर्म  की  ध्रुव  धारणा  को  धराधाम  और  आकाश  की  कोई  वस्तु  डगमगा  नहीं  सकती  l  " 
  काशी  नरेश  ने  भी  उनसे   भारत  प्रसिद्द  विश्वनाथ  मंदिर  का  अध्यक्ष  बनने  का  प्रस्ताव  किया  था  l  गुजरात  के  एक  वकील  ने  उनसे  कहा  आप  मूर्ति पूजा  का  विरोध  करना  छोड़  दें  हम  आपको  शंकर जी  का  अवतार मानने  लगें  l  अनेक  स्थानों  में  उनसे  वैभवशाली  मंदिरों  का  अध्यक्ष  बन  कर  रहने  का  आग्रह  किया  गया  ,  अनेक  प्रलोभन  उनके  जीवन  में  आये  परन्तु  उन्होंने  सदैव  यही  उत्तर  दिया  कि   मेरा  कार्य  देश  और  जाति  की  सेवा  कर  के  सुधार  करना  है   न  कि  धन - सम्पति  इकट्ठी  कर  के  सांसारिक  भोगों  में  लिप्त  होना   l मैं  परमात्मा  के  दिखाए  श्रेष्ठ मार्ग  से  कभी  विमुख  नहीं  हो  सकता  l  

13 July 2019

WISDOM ----

  समर्थ  गुरु  रामदास  का  ' दासबोध '  समयानुकूल  शिक्षाओं  का   भण्डार  है  l  ' दासबोध  में  वे  कहते  हैं --- समाज  में  रहने  वाले  व्यक्तियों  को   अपना  आचरण  ऐसा  रखना  चाहिए  जिससे  अपनी  उन्नति  और  भलाई  के  साथ  समाज  का  भी  हित  हो  l  उन्होंने  कहा  --- लोकमत  को  जानना  और   उसका  आदर  करना  बहुत  आवश्यक  है  l  जो  मनुष्य  लोकमत  की  उपेक्षा  करता  है  , वह  प्राय:  उद्दंड  और  स्वेच्छाचारी  हो  जाता  है  l  ऐसा  व्यक्ति  कभी   समाज    के  लिए  हितकारी  नहीं  हो  सकता   वरन  वह  किसी  न  किसी  तरह  समाज  की  हानि करने  वाला  ही  होता  है  l 
 समर्थ  गुरु  ने  आदेश  दिया  है  कि   मनुष्य  को  लोकमत  के  विरुद्ध  नहीं  चलना  चाहिए  l   समाज  में   मूढ़तावश   प्रचलित   कुरीतियों  या  हानिकारक  परम्पराओं   को  मिटाने  के  लिए  इस  प्रकार  का  व्यवहार  करना  चाहिए   जिससे  व्यर्थ  का   विरोध - भाव  उत्पन्न  न  हो   l   लोगों  को  समझा - बुझाकर  और  अपना  उदाहरण  दिखाकर  ही   सुधारने  का  प्रयत्न  करना  चाहिए  l  
  श्री  समर्थ  ने  आचार  और   विचार  दोनों  की   ही  शुद्धता  पर  बहुत  जोर  दिया  l  

12 July 2019

WISDOM ----- धर्म का सच्चा स्वरुप

 चैतन्य  महाप्रभु  ने कहा  है --- जो  लोग केवल  धार्मिक  ग्रन्थ  पढ़  लेने   अथवा  थोड़ा  सा  पूजा - पाठ  कर   कर  लेने  को  धर्मात्मा  का  लक्षण  मान  बैठते  हैं   वे  धार्मिक  नहीं  माने  जा  सकते  l  जब  तक  मनुष्य  नैतिक , चारित्रिक  और  व्यावहारिक  द्रष्टि  से  अपना  सुधार  नहीं  करेगा  तब  तक  वह  धर्मात्मा  कहलाने  का  अधिकारी  नहीं  हो  सकता  l   धर्म  का  पालन  करने  वाला  वही  हो  सकता  है  जो   अन्य  मनुष्यों  का   हित  साधन  करे  ,  किसी  को  शारीरिक , मानसिक  पीड़ा  नहीं  पहुंचाए  l  '
 महात्मा  गाँधी     के  धार्मिक  विचार  थे ---- ' मनुष्य  का ,  चाहे  वह  कितना  ही  महान  क्यों  न  हो  ,  कोई  काम  तब  तक  सफल  और  लाभदायक  न  होगा  ,  जब  तक  उसको  कोई  प्रमाणिक  धार्मिक  आधार न  मिले  l  यहाँ  धर्म  से  मेरा  तात्पर्य  उस  धर्म  से  नहीं  , जो  आप  संसार  के  समस्त  धर्म - ग्रंथों  को  पढ़कर  सीखते  हैं  l  जिस  धर्म  से  मेरा  तात्पर्य  है  उसका  सम्बन्ध  ह्रदय  से  है  l  इस  धर्म  भावना  को  चाहे  हम  किसी  बाहरी  सहायता  से  प्राप्त  करें   और  चाहे  आत्मिक  उन्नति  से  जाग्रत  करें  ,  पर  यदि  हम  किसी  काम  को  उचित   रीति  से  करना  चाहें  तो  हमको  यह  धर्म  भाव  अवश्य  जागृत  करना  पड़ेगा   l  "
   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' सांस्कृतिक  चेतना  के  उन्नायक '  में  लिखा  है ---- ' जो  लोग  थोड़ा  बहुत   ऊपरी   क्रिया - कांड  कर  के  ही  अपने  को  धार्मिक  मानने  लग  जाते  हैं  ,  वे  या  तो  दम्भी  होते  हैं  या  मूढ़  l  सत्य  धर्म  का  सम्बन्ध  ह्रदय  से  ही  रहता  है   और  जो  उसे  समझ  लेता  है  ,  वह  फिर  किसी  धर्म  का  विरोध  या  अपमान  नहीं  करता   l  वह  स्वयं   अपने  समाज  के  अनुसार  ही  बाह्य  आचरण  करता  है  और  अपनी  नियमित  प्रणाली  द्वारा   ईश्वर  की  पूजा , उपासना  भी  करता  रहता  है  , पर  उनके  कारण  न  तो  वह  किसी  का  विरोधी  बनता  है   और  न  कोई  ऐसा  कार्य  करता  है  ,  जिससे  अन्य  लोग  उसके  विरोधी  बन  जाये  l   वह  सदैव  इस  बात  को   द्रष्टि  में  रखता  है  ,  कि  जब  सब  लोगों  का   ईश्वर  एक  ही  है  ,  तो  फिर  आपस  में  वैर - विरोध  रखने  की  क्या  आवश्यकता  है   ? '

11 July 2019

WISDOM ----- कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान दुखदायी होता है

  इतिहास  की   विभिन्न   घटनाएँ  हमें  जीवन  जीने  की  शिक्षा  देती  हैं  ---- मित्रता  नीतिसंगत  और  व्यवहारिक   होनी  चाहिए  ---- जोधपुर  के  राजा  जसवंतसिंह  ने  औरंगजेब  से  मित्रता  की  l  उन्होंने  यह  सोचने  का  प्रयास  ही  नहीं  किया  कि  यह  क्रूर , निर्दयी , अन्यायी  औरंगजेब  जब  अपने  पिता  को  कैद  कर  सकता  है  ,     भाइयों  का  क़त्ल  करवा  सकता  है   तो  समय  आने  पर  उन्हें  भी  दगा   दे  सकता  है  , उनका  राज्य  हथिया  सकता  है  l   उन्होंने  औरंगजेब  के  दरबार  में  रहना  स्वीकार  कर  लिया  l
  जसवंतसिंह  की   वीरता  और  पराक्रम  से  औरंगजेब  ने  जी  भर  के  लाभ  उठाया  l  जसवंतसिंह  ने  उसके  लिए  कठिन  से  कठिन  संग्राम  जीते  l  शंकालु  प्रवृति  का  औरंगजेब  उनसे  भीतर  ही  भीतर  भयभीत  रहता  था   कि  यदि  जसवंतसिंह  बदल  गया  तो  उसकी  ' आलमगीरी '  धरी  रह  जाएगी  l   औरंगजेब  ने  धोखे  से  उन्हें  मरवा  दिया  l 
 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग '  में  लिखा  है --- कुटिल  की मित्रता  और  अपना  अति  अभिमान  उनकी  मृत्यु  का  कारण  ही  नहीं  बना  वरन  उनके  परिवार  और  राज्य  पर  संकट  आने  का  कारण  भी   l   यह  मित्रता  नीतिसंगत  और  व्यावहारिक  नहीं  थी  l  यह  तो  बेर  और  कदली  के  सामीप्य  जैसी  मित्रता  थी  l  
 आचार्य श्री  ने  आगे  लिखा  है ---  आज    समय  में  भी   सच्चे  और  ईमानदार   व्यक्तियों  को  यदि  दीन - हीन  देखा  जाता   है  तो  उसके  पीछे  एक  कारण  यह   भी  है  कि  उसका  लाभ  बुरे  लोग  उठा  लेते  हैं  l  सच्चे  लोगों  को  संगठित   होना  चाहिए  l  यह  भी  देखना  चाहिए  कि  उसका  लाभ  गलत  व्यक्ति  तो  नहीं  उठा  रहे  हैं  l   नहीं  तो  यह   अच्छाइयां  भी  राजा  जसवंतसिंह  के  पराक्रम  की  तरह  निरर्थक    चली  जाएँगी  l   

8 July 2019

WISDOM -----

 टालस्टाय  ने  एक  बार  बड़े  स्पष्ट  शब्दों  में  कहा  था ---- बौद्धिक  कार्य  करने  वाले  को  भी  प्रतिदिन  नियम  से  खेती , कारीगरी  आदि   का  कुछ उपयोगी  शारीरिक  श्रम  अवश्य  करना  चाहिए  l  इससे एक  और  जहाँ  हम  इस  ईश्वरीय  आदेश  का  पालन  कर  सकेंगे  कि  ' मनुष्यों  को   अपने  पसीने  की  रोटी  खानी  चाहिए  '    वहां  इस  प्रकार  का  श्रम   हमारे  स्वास्थ्य  और  मानसिक  प्रसन्नता   की  रक्षा  करने  वाला   भी  होगा   l   टालस्टायस्वयं  चिलचिलाती   धूप  में   घास  काटने  व  खेती  का   काम  करते  थे  l  उनकी  प्रेरणा  से  अनेक  बड़े  विद्वान्  , उच्च  पदाधिकारियों  ने  इसका  अनुकरण  किया  l  गांधीजी  ने  दक्षिण  अफ्रीका   में   फीनिक्स  स्थित  ' टालस्टाय  फार्म  इसी   आदर्श  पर  स्थापित  किया  था  कि   उसमे  कितने  ही   सुशिक्षित भारतीय  और  यूरोपियन  कृषि  सम्बन्धी  तथा   अन्य  शारीरिक  श्रम  के  कार्य  करते  थे   l  

7 July 2019

WISDOM ------ मन , कर्म और वचन की एकता ही दूसरों की अंतरात्मा पर अपनी छाप छोड़ती है l

 संसार  में   बुराई  इसलिए  फैली  है  कि  लोगों  के  मन  में  बुरे  विचारों  का  बाहुल्य  रहता  है  l  चोर , डाकू , जुआरी , व्यभिचारी , व्यसनी  अपने  विचारों  के  पक्के  होते  हैं  l शराबी  अपने  विचारों  में  पक्का  होता  है  l  बदनामी ,  धनहीनता   और  स्वास्थ्य नाश  की  परवाह  न  कर  के  वह  शराब  पीता है  l  उसके  विचार  और  कर्म में  एकता  है , वह  स्वयं  तन्मय  होकर  शराब  पीता  है  फिर  अपने  संगी - साथियों  को  भी  पीने  के  लिए  प्रेरित  करता  है  l  विचार  व  कर्म  की  इस  एकता  से  एक  द्रढ़ता  उसमे  रहती  है   , इस  कारण  अनेक  मनुष्य  उसके  प्रभाव  में  आकर  शराब  पीने  लगते  हैं  l
  चरित्र  शिक्षण  की  यही  पद्धति  सफल  होती  है  --- जैसा  कहते  हो , उपदेश  देते  हो  ,  वैसा  आचरण  स्वयं  करो  l  
 बुराई  की   भांति  अच्छाई  में  भी  अपनी  शक्ति  होती  है  किन्तु  अच्छाई  इसलिए  पनप  नहीं  पाती   क्योंकि  उसका  शिक्षण  करने  वाले  ऐसे  लोग  नहीं  निकल  पाते   जो  अपने  वचन  व  कर्म  की  एकता  से  दूसरों  की  अंतरात्मा  पर  अपनी  छाप  छोड़  सकें  l  अपने  अवगुणों  को  छिपाने  के  लिए  या  सस्ती  प्रशंसा  पाने  के  लिए  लोग  अच्छाई  का , शराफत  का  आडम्बर  ओढ़  लेते  हैं  l  ' पर  उपदेश  सकल  बहुतेरे  l '
   जब  कभी  परिपक्व  आचरण  के  सच्चे  एवं  श्रेष्ठ  व्यक्ति  प्रकाश  में  आते  हैं  तो  असंख्य  लोग  उनसे  प्रेरणा  प्राप्त  करते  हैं  l  महात्मा  गाँधी  वही  कहते  थे  ,  जो  करते  थे  l  जो  उनके  मन  में है , वही  उनकी  वाणी  में  है   इसलिए  उनकी  प्रेरणा  से  असंख्य  व्यक्तियों  की  भावनाएं  बदली  ,  सुख - वैभव  छोड़कर  लाखों  व्यक्तियों  ने  हँसते - हँसते  भारी  बलिदान  की  जोखिम  उठाई  l  वे   विश्व  भर  में   असंख्यों  के  लिए  अनुकरणीय  हैं  l  

6 July 2019

WISDOM ----- पुण्य कार्यों का पैसे से कोई संबंध नहीं , पुण्य तो भावना से खरीदा जाता है l

 पुण्य  और  पाप  किसी  कार्य  के  बाह्य  रूप  के  ऊपर  नहीं   वरन  उस  काम  को  करने  वाले  की  भावना  के  ऊपर  निर्भर  है  l   दुनिया  को  भ्रम  या  भुलावे  में  डाला  जा  सकता  है , परन्तु  परमात्मा  को  धोखा  देना  असंभव  है  l  ईश्वर  के  दरबार  में  काम  के  बाहरी  रूप  को  देखकर  नहीं  वरन  काम  करने  वाले  की  भावनाओं  को  परख  कर  धर्म - अधर्म  की  नाप तोल  की जाती  है  l   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' भारतीय  संस्कृति  के  आधारभूत  तत्व '  में  लिखा  है ---- ' आज  हम  अनेक  ऐसे  धूर्तों  को  अपने  आसपास  देखते  हैं  जो  करने  को  तो  बड़े - बड़े  अच्छे  काम  करते  हैं  पर  उनका  भीतरी  उद्देश्य  बड़ा  ही  दूषित  होता  है  l   अनाथालय , विधवा आश्रम ,  गोशाला   आदि  पवित्र  संस्थाओं  की  आड़  में  बहुत  से  बदमाश  अपना  उल्लू  सीधा  करते  हैं  ,  यज्ञ  करने  के  नाम  पर  पैसा  बटोर  कर  कई  आदमी  अपना  घर  भर  लेते  हैं  l '
              आचार्यजी  ने  आगे  लिखा  है --- 'जीवन  के  हर काम  की  अच्छाई  और  बुराई  कर्ता  की  भावनाओं  के  अनुरूप  होती  है  l  बाहरी  द्रष्टि  से  देखने  पर   अनाथालय , विधवाश्रम , गोशाला  चलाना , बच्चों  के  आश्रय - गृह , साधु, उपदेशक  बनना , मंदिर  बनवाना  आदि  सब  अच्छे  और  पुण्य कार्य  हैं  , इनके  करने  वाले  को  पुण्यफल  मिलना  चाहिए  किन्तु  यदि  करने  वाले  की  भावनाएं  विकृत  हैं  , पापमय  विचार  हैं  , इनके  माध्यम  से  वह  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करता  है   तो  वह  पापी ही  बनेगा   और  ईश्वरीय  न्याय  के  अनुसार  उसे  पाप  का कठोर  दंड   अवश्य  ही  मिलेगा  l   भावना  की  सच्चाई  और  सात्विकता  के  साथ  आत्म त्याग  और  कर्तव्य  पालन '   यही  धर्म  का  पैमाना  है  l  '

5 July 2019

WISDOM ------ ईश्वर की सर्वज्ञता और ईश्वरीय न्याय की बात जब लोगों के मन में जमेगी तभी वे कुमार्ग पर चलने से हिचकेगें

   प्राचीन  काल  में   पापी  व्यक्ति  के  सामाजिक  बहिष्कार   एवं  सार्वजनिक  निंदा    की   प्रथा   का  चलन    था  इस  कारण  कुछ  हद  तक  लोग  बुराई  से  बचते  थे   लेकिन  अब  झूठ  बोलने  वाले ,  बेईमानी  करने  वालों   और  अनीति  बरतने  वालों  का    सामाजिक  बहिष्कार  होता  अब  कहीं  दिखाई  नहीं   देता  ,  उलटे  इसे  लोगों  से  डरकर   या  उनसे  लाभ   उठाने  के  लिए   अनेक  लोग  उनके  समर्थक बन  जाते  हैं  l 
 यही  बात  राजदंड  के  सम्बन्ध  में  है   l  एक  तो  कानून  से  दंड  बहुत  कम  मिलता  है  और  आवश्यक  गवाह  न  मिल  पाने  के  कारण  असंख्य  लोग  अपराधी  होते  हुए  भी   छूट  जाते  हैं   l
पं.  श्रराम शर्मा  आचार्य  ने  लिखा  है ----  लोकनिंदा   और    राजदंड  की  उपेक्षा  का  भाव  यदि  मन  में   जम  जाये  तो   व्यक्ति  और  भी  ढीठ  व    उच्छ्रंखल  हो  जाता  है  l                                  

4 July 2019

WISDOM ---- भारतीय संस्कृति पुरुषार्थवादी आदर्श के स्थान पर भाग्यवादी कैसे हो गई ?

 भारतीय  संस्कृति  में कर्मयोग   की  प्रधानता  है ,  ईश्वर  को  पुरुषार्थी  प्रिय  हैं   फिर  आज  मनुष्य  इतना  भाग्यवादी  कैसे  हो  गया  ?   अन्याय , अत्याचार , अनीति  सबको   अपना  भाग्य  मानकर  मूर्छित  स्थिति  में  रहता  है  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' भारतीय  संस्कृति  के  आधारभूत  तत्व '  में  लिखा  है --- जहाँ  प्रतिरोध  की  संभावना  न  हो  वहां  हर  बुराई  मनमाने  ढंग  से  पनपती  और  फलती - फूलती  रह  सकती  है  l   उन्होंने  लिखा  है  कि  विदेशी  आक्रमणकारियों  ने  इतने  लम्बे  समय  तक    भारत  पर  शासन  किया  , मनमाने  अत्याचार  किये  l  इसके  पीछे  एक  ही  दर्शन  था  --- भाग्यवाद  l 
आचार्यजी   ने  वाड्मय पृष्ठ 1.57  पर  लिखा  है  ---- अन्याय पीड़ितों  और  शोषितों  के  मन  में  प्रतिकार  की , विद्रोह  की  आग  न  भड़कने  लगे  इसलिए  अनाचारी  लोगों  ने  यह  भाग्यवादी  विचारधारा  तथाकथित  पंडितों   और  विद्वानों  के  माध्यम  से  प्रचलित  करायी l     भारतीय  जनता  को  अन्याय  सहने  का  अभ्यस्त  बनाने  के  लिए   कुछ  साधुओं , पंडितों  को  प्रचुर  धन  देकर   भाग्यवाद  का  प्रचार  किया  -- कि   अनीति  के  प्रतिरोध  का  उपाय   विद्रोह  न  बताकर  यह  कहा  कि  ईश्वर  की  भक्ति  करो , भजन कीर्तन  में मन  लगाओ , इससे  भगवान  प्रसन्न  होंगे  तो  कष्ट  कम  हो  जायेंगे  l  इस  प्रकार  भाग्यवाद  की  नशीली  गोली  खिलाकर सर्वसाधारण  की  मनोभूमि  को  लुंज -पुंज , अर्ध -मूर्च्छित   कर  दिया  l
आचार्यजी  ने  लिखा  है   उच्च  वर्ग  के  तथाकथित  अहंकारियों  को    अपने   इस  प्रयोजन  के  लिए  यह  तीर  उपयुक्त  जंचा l  जो  लोग  किसी  वर्ग  को  पिछड़ा  रखकर  उनके  शोषण  का  लाभ  उठाना  चाहते  हैं  उनके  लिए  यह  भाग्यवादी  विचारधारा  बहुत  लाभकर  सिद्ध  हो  रही  है   l 
अमेरिका  में  नीग्रो  को  मानवीय  अधिकार  प्राप्त  हो  गए ,  गोर - काले  रंग  का  भेदभाव  समाप्त  हो  गया   लेकिन  भारत  जैसे  धार्मिक  देश  में   जहाँ  इतनी  पूजा  आराधना  होती  है  , कहते  हैं  सब  में  एक  आत्मा  है  फिर  भी  दलितों  पर  अत्याचार  हैं ,  नारी - जाति  की  स्थिति  भी ---- 
मूर्च्छा  से  जागना  जरुरी  है  ,  अपनी  संस्कृति  के  प्रति  श्रद्धा  रखें  और  जो  अनुपयुक्त  है  उसका  विरोध  करने  की    हिम्मत  और  प्रगति  के  लिए  अपार  उत्साह  हो  l 
  

3 July 2019

WISDOM ---- अच्छा , बुरा होना हिन्दू या मुसलमान होने पर निर्भर नहीं है बल्कि यह मनुष्यों का अपनी प्रवृतियों के अनुसार एक स्वभाव होता है

इतिहास  में  ऐसे  अनेकों  उदाहरण  भरे  पड़े  हैं   जो  यह  बताते  हैं  कि  जाति  या  धर्म  से  कोई  बुरा  नही  होता  ,  व्यक्ति  के  अपने  संस्कार  व  स्वभाव  है  जिससे  विवश  होकर  वह  अच्छे  या  बुरे  कर्म  करता  है   l   ----- गुरु गोविन्दसिंह  जब  आनंदगढ़  के  किले  में  अपने  परिवार  के  साथ  थे   तब  औरंगजेब  ने   धर्मद्रोही  और  देशघाती  राजाओं  के  साथ  मिलकर   उस  किले  पर  आक्रमण  किया  l  इस  युद्ध  में  उनका  परिवार  बिछुड़  गया  l  गुरु  गोविन्दसिंह  अपने  दो  पुत्रों  के  साथ  एक  ओर  जा  पड़े  और    उनकी  माँ  व  गुरूजी  के  दो  छोटे  पुत्र  दूसरी  और  जा  पड़े  l    गुरु  गोविन्दसिंह  की  माता  अपने  दो  छोटे  पोतों  के  साथ  रसोइये  गंगू  के  अनुरोध  पर  उसके  घर  चली   गईं l   किले  से  निकलते  समय  माता  अपने  साथ  जेवरात  तथा  जवाहरात  की  पिटारी  ले  आईं  थीं  l  इस  पिटारी पर गंगू  रसोइये  की  नियत  खराब  हो  गई  और  उसने   सरहिन्द  के  नवाब  को  खबर  कर  गुरु  गोविन्दसिंह  के  दो  पुत्रों  और  उनकी  माता  को  गिरफ्तार  करा  दिया  l   बाद  में  जब  गंगू  नवाब  से  इनाम  लेने  गया  तो  नवाब  ने  उस  कौमी  गद्दार  को  जल्लादों  को  सौंप  कर मरवा  दिया  l
  दूसरी  ओर  जब  गुरु  गोविन्दसिंह   जंगलों , पहाड़ों  नदी - नाले  पार  करते  हुए  एक  गाँव  में  आ  गए   तो  वहां  दो  पठानों  ने  गुरूजी को  पहचान  लिया   और  उन्हें  प्रणाम  कर  बोले --- " महाराज , आप  आगे  न  जाएँ  , वहां  खतरा  है   l  उन्होंने  कहा --- ' यद्दपि  हम  मुसलमान  हैं  पर  आपके  शुभ चिन्तक  हैं  l हम  जानते  हैं  कि आप  हिन्दू - मुसलमानों  का  सवाल  लेकर  नहीं  लड़  रहे  l  आप  अन्याय  के  विरुद्ध  लड़  रहे  हैं  l  आपने  न्याय  के  लिए  अपनी  सम्पति  और  परिवार  तक  को  बलिदान  कर  दिया  l   आततायी  और अन्यायी  चाहे  वह  हिन्दू  हो  या  मुसलमान,  असामाजिक ही  होता  है  l  '  उन  पठानों  ने  मुसलमान  मौलवियों  के  वेश  में   गुरूजी  को  अपने  कन्धों  पर  चढ़ाकर  खतरे  से  बाहर  निकाल  दिया  l 
  वर्तमान  युग  में  हम  देखें  तो  एक  ही  परिवार , एक  ही  जाति - धर्म  में  पैदा  हुए  भाई - भाई  धन  व  सम्पति  के  लिए  एक - दूसरे  के  कट्टर  दुश्मन  हो  जाते  हैं  l  जिन  परिवारों  में  महिलाएं  अकेली  रह  जाती  हैं , कमजोर  हैं   उनकी  सम्पति  को  उसके  परिवार  के  सदस्य  ही   हड़प  लेते  हैं  l  इसी  तरह  विभिन्न  संस्थाओं  में  , नौकरी  में   अपनी  महत्वाकांक्षा  के  कारण  लोग  अपनी  ही  जाति - धर्म  के  लोगों  की  तरक्की  में  बाधा  डालते  हैं , उनका  हक  छीनते  हैं  ,  मानसिक  रूप  से  उत्पीड़ित  करते  हैं  l  दहेज  के  लिए  अत्याचार  कोई  गैर  नहीं , अपने  ही  करते  हैं  l 
समाज  में  सुख - शान्ति  रहे   इसके  लिए जागरूकता  जरुरी  है ,  कौन  अपना , कौन  पराया , कौन  अच्छा , कौन  बुरा ,  विवेक  द्रष्टि  से  इसकी  पहचान  जरुरी  है  l  

2 July 2019

WISDOM ----- मानसिक पराधीनता

राजनीतिक  रूप  से  हम  स्वतंत्र  हैं  लेकिन  मानसिक  द्रष्टि से  हम  आज  भी  पराधीन  हैं   l  श्री  शरतचंद्र  ने   लिखा  है ---- " पराधीन  देश  का  सबसे  बड़ा  दुर्भाग्य   यह  होता  है  कि  उसके  स्वाधीनता  संग्राम  में  मनुष्य  को  विदेशियों  की  अपेक्षा  अपने  देश  के  लोगों  के  साथ  अधिक  लड़ाई  लड़नी  पड़ती  है  l "
 समाज  में  लोगों  की  दूषित  मनोवृति  एक  प्रकार  की  पराधीनता  है  l  इससे  समाज  व  राष्ट्र को  भयंकर  हानि  उठानी  पड़ती  है  l----  जब  व्यक्ति  अपने  किसी  संगी - साथी  को   विशेष  सफलता  प्राप्त  करते  देखते  हैं   अथवा  किसी  का  अपने  से  अधिक  सम्मान   प्राप्त  करते देखते  हैं   तो  हर  संभव  तरीके  से  उसे  गिराने  की  चेष्टा  करते  हैं  l  यह  दूषित  मनोवृति  सर्वत्र पाई  जाती  है  ,  लेकिन  भारत  बहुत  लम्बे  समय  तक  विदेशियों  के   आधीन  रहा  ,  इस  कारण  यह  दोष  बड़ी   मात्रा   में  पाया  जाता  है  l 
  इसके  अतिरिक्त   संकुचित  द्रष्टिकोण    के  कारण  जनता  सार्वजनिक  कार्यों  के  प्रति  जागरूक  नहीं  है   इस  कारण    सामाजिक ,  राष्ट्रीय  और  आर्थिक  कार्यक्रम   पूर्ण  रूप  से  और  सही  अर्थों  में  सफल  नहीं  हो  पाते  l 
यूरोप ,  अमेरिका   के  प्राय : सभी  छोटे - बड़े  प्रगतिशील  राष्ट्रों  के  निवासी   देश  के  प्रति  अपनी  जिम्मेदारी  को  समझते  हैं   इसलिए  कोई  संकट  का  समय  आने  पर  अपनी  स्थिति  के  अनुकूल  रक्षा  कार्य  में  हिस्सा  बंटाते  हैं   l  द्वितीय महायुद्ध  में  जब   हिटलर  ने  इंग्लैण्ड  पर  तूफानी  आक्रमण  किया  , जर्मनी  की  वायु - सेना  के  दल   एक  के  बाद  एक  आकर  ब्रिटेन  के  नगरों  पर  बम - वर्षा  करते  थे   तो  वहां  के  नेताओं  ने  ही  नहीं  , जनता  ने  भी   अपने  मनोबल  से  उनका  मुकाबला  किया  l  उस  समय  अंग्रेजी  सेना  की  युद्ध  सामग्री    भी  फ़्रांस  की  भूमि  पर  हुई  पराजय  के  कारण  नष्ट  हो  गई  थी  ,  पर  इंग्लैण्ड  की  सामान्य  जनता  इनमे  से  किसी   कठिनाई  से  न  घबरा  कर   नियम  से  कारखानों   में  जाती  रही   और  पहले  से    ड्योढ़ा  काम  करती  रही   जिसके  परिणामस्वरूप  एक   भयंकर  शत्रु  से  देश  की  रक्षा  हो  सकी   और  ब्रिटिश  सेना  पुनः  अस्त्र - शस्त्र  से  सज्जित  होकर   हिटलर  का  मुकाबला  करने  को  तैयार  हो  गई  l 
यदि  हमारे  देशवासियों  की  ऐसी  मनोवृति  जाग्रत  हो  जाये   और  जनता  उपयोगी  सार्वजनिक  कार्यों  के  महत्व  को  समझकर  स्वेच्छा  से  आवश्यक  सहयोग  प्रदान  करे  और  ईमानदारी  से  कर्तव्यपालन  करे  तो  देश  की  परिस्थितियों  में  बहुत  कुछ  सुधार  हो  सकता  है  l