पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------ " महान व्यक्तित्व संपन्न जीवन का मूल्य व्याख्यान , प्रवचन एवं उपदेश देने में निहित नहीं होता , बल्कि सर्वप्रथम उसे अपने जीवन में उतारने एवं हृदयंगम करने में होता है l वे अपने आचरण से शिक्षा देते हैं l " भगवान बुद्ध के जीवन का प्रसंग है ---- बौद्ध भिक्षुक गाँव - गाँव में उपदेश देने और लोगों के कल्याण के लिए भ्रमण करते थे l भगवान बुद्ध भी उसी गाँव में पहुंचे , उन्होंने भिक्षुओं से पूछा --- " गाँव में जाकर आपने क्या किया ? " सभी भिक्षुओं ने कहा ---- हे प्रभु ! ग्रामीण जनों ने हमारी कोई बात नहीं सुनी , हमारी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया , इसलिए हम कोई सेवा नहीं कर सके l " भगवान बुद्ध ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और उठकर गाँव की ओर चल पड़े l उनके साथ उनके शिष्य भी थे l गाँव पहुंचकर भगवान बुद्ध उस गाँव की सफाई करने लगे , अपने हाथ से कूड़ा उठाया l फिर अपने शिष्यों के सहयोग से गाँव में भोजन बनाया और सभी गाँव के लोगों को बुलाकर प्यार से भोजन कराया l भगवान बुद्ध स्वयं भोजन करा रहे हैं , यह सुनकर आसपास के गाँव के लोग भी एकत्रित हो गए , उत्सव जैसा उमंग भरा वातावरण निर्मित हो गया l भगवान बुद्ध ने गाँव के लोगों से उनका सुख - दुःख पूछा l उनके भोजन , मकान , स्वास्थ्य आदि विभिन्न मदों पर आत्मीयता से बात की , उनकी समस्याओं को सुना और उनका समाधान किया l प्रेम और आत्मीयता का एक दिव्य और स्वर्गीय वातावरण बन गया l जब भगवान बुद्ध वापस संघ की ओर जाने लगे तो सब लोगों ने आँखों में आँसू भरकर उन्हें विदा किया l बुद्ध उनके हृदय में बस गए थे l भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध से कहा ---- " प्रभु ! आपने लोगों को न तो ध्यान की बात बताई और न ही कोई गूढ़ बात कही l फिर भी वे कैसे आपको समर्पित हो गए l " भगवान बुद्ध बोले --- " वत्स ! सेवा का अर्थ उपदेश देना नहीं , वरन लोगों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाना है l जिसको भूख लगी है वह भला भोजन के अलावा और क्या सोच सकता है ? जिसके सिर पर छत नहीं है , वह ध्यान की बात कैसे समझ सकता है ? उनके कष्टों का समाधान करना ही उन्हें ध्यान की ओर ले जायेगा l " भगवान बुद्ध ने अपने उपदेशों को जीवन में उतारकर कर्म के माध्यम से व्यक्त किया l