31 January 2022

WISDOM ------

   कहते  हैं   जो  कुछ  महाभारत  में  है ,  वही  इस  धरती  पर  भी  है  l   जिनका  दृष्टिकोण  सकारात्मक  है   वे   इस  महाकाव्य  से  अच्छी  बातों  को  सीखकर  अपने  जीवन  को  सार्थक  करते  हैं   लेकिन  जो  आसुरी  प्रकृति  के  हैं   वे   षड्यंत्र , फरेब , छल ,  अनीति  , अत्याचार --- महाभारत  से  ही   सीखते  हैं  l   फिर  उनका   अंत  भी   वैसा  ही  होता  है  जैसा  कौरवों  का  हुआ   l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- " नीति   से  नियति  का  निर्माण  होता  है   l   नीति   का  मतलब  है   व्यक्ति  का  उद्देश्य  क्या  है   ? वह  क्या  करता  है  ?    और  नियति  उसके  कर्मों  का  परिणाम  होती  है   l  "      दुर्योधन  आदि  कौरव   सदा  से   ही  षड्यंत्रकारी , फरेबी  और  अहंकारी  थे   l   उनका  उद्देश्य  छल , कपट से  , षड्यंत्र  से  पांडवों  का  हक  छीनकर  स्वयं  को   स्थापित करना  था   l    अधर्म  और  पाप  का  आचरण  ही  उनकी  नीति   थी  l    इस  कारण  विनाश  ही  उनकी  नियति  थी   l   भीष्म पितामह ,  गुरु  द्रोणाचार्य , कृपाचार्य  और  कर्ण   जैसे  महारथी  भी  दुर्योधन  को  विनाश  की  नियति  से  नहीं  बचा  पाए  और  अधर्म  का  साथ  देने  के  कारण  स्वयं  भी  नष्ट  हो  गए   l   इसके   ठीक विपरीत  पांडव   सदाचारी , सत्य , न्यायप्रिय , और  परोपकारी  थे   l   उनकी  नीति  और  आचरण   धर्म  के  अनुकूल  था   इस  कारण  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  स्वयं  उनके   रथ  की  बागडोर   सम्हाली  l   इस  महासंग्राम  में  पांडव   विजयी  हुए  l   हम  भी  सतत   श्रेष्ठ  कर्म  और  अच्छी  नियत  द्वारा  अपनी    नियति    को  श्रेष्ठ  बना  सकते  हैं   l  

30 January 2022

WISDOM ------

  एक  प्रसिद्ध   दार्शनिक  का  कथन  है ---- " जीवन  में  कोई  तब  तक  बूढ़ा  नहीं  होता  ,  जब  तक  वह  अपने   सपने  पूरे   करने  में  लगा  रहता  है  l   जब  उसके  सपने  मरते  हैं ,  अधूरे  रह  जाते  हैं  ,  तब  वह  असहाय  महसूस  करता  है  l   इसलिए  अपने  सपनों  को  कभी  मरने  नहीं  देना  चाहिए  ,  इन्हे  हमेशा   जीवंत   रखना  चाहिए   क्योंकि  आँखों  में  सजे  हुए  सपने  ही    हमारी    आशाओं  के  स्रोत  हैं   l  "   सपने  देखने  के  लिए   उसमे   सफलता पाने  के  लिए   उम्र   का कोई  बंधन  नहीं  होता   l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- 'यदि  कोई  अपने  जीवन  में  कुछ  करने  की  ठान  ले   तो  उम्र  उसके  कार्य  में  बाधा  नहीं  बनती   और  शरीर  की  ऊर्जा   उसके  कार्य  में   रूकावट  नहीं  डालती   क्योंकि  उसका  निश्चय  मन  से  होता  है  ,  मन  की  शक्ति  से  होता  है   l   इसलिए  हर  रूकावट  को  ,  हर  मुश्किल  व  परेशानी  को   उसके  आगे  झुकने  के  लिए   मजबूर  होना  पड़ता  है   l  "   इसी  मन   की  शक्ति  के  कारण   लियोनार्डो   दि   विन्ची  ने   अपनी  प्रसिद्ध   पेंटिंग  ' मोनालिसा  '  51   साल  की  उम्र  में  बनाई   l   गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने   90   वर्ष  की  उम्र  में  रामचरितमानस  लिखना  शुरू  किया  l   मन  में  सच्ची  लगन  हो  तो  सब  कुछ  संभव  है   l 

29 January 2022

WISDOM -----

     योगेश्वर  श्रीकृष्ण  ने   आत्मविश्वास     को  अपने  जीवन  में  धारण  करने  की   प्रेरणा  देते  हुए  गीता   में कहा  है  ---- " संशययुक्त  मनुष्य  के  लिए  न  यह  लोक  है  ,  न  परलोक  है   और  न  सुख  ही  है  l   जीवन  के  हर  क्षेत्र  में   सफल  होने  के  लिए   और  जीवन  की  महान  उपलब्धि  को   हासिल  करने  के  लिए   आत्मविश्वासरूप   परम  बल  की    आवश्यकता है   l  "    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " संसार  उन  थोड़े  से  व्यक्तियों  का  इतिहास  है   जिन्हे  स्वयं  पर  विश्वास  था  l   आपका   सारी   दुनिया  से  विश्वास   उठ   चुका   हो  ,  पर  खुद  पर   विश्वास  बना  हुआ  हो   तो  समझिए   अभी  भी  आपके  पास  बहुत  कुछ  है  ,  जिससे  आप  सब  कुछ   पा  सकते  हैं   l  "  --------  आदिशंकराचार्य  और  मंडन   मिश्र  के  बीच  शास्त्रार्थ  होना  था  l   निर्णायक  की  भूमिका  मंडान  मिश्र  की  पत्नी   को  सौंपी  गई  l     शास्त्रार्थ  में  विजेता   कौन  हुआ  ,   इसे निश्चित   करने  के  लिए  उन्होंने  दोनों  के  गले  में   फूलों  की  माला  पहना  दी   और  कहा  कि   जिसके  गले  में  यह  माला  मुरझा  जाएगी  ,  वह  पराजित  कहलायेगा  l   शास्त्रार्थ  लम्बा  चला  ,  अंत  में  मंडान  मिश्र  के  गले  में  पड़ी  माला  मुरझा  गई   और  वे  पराजित  घोषित  हो  गए   l    यह प्रश्न  स्वाभाविक  था   कि   मंडन   मिश्र  के  गले   में पड़ी  माला  क्यों  मुरझा  गई   ?     विद्वानों  का  कहना  था  कि   दीर्घकाल  तक  चले  इस  शास्त्रार्थ  से  मंडन  मिश्र  का  मनोबल  टूटने  लगा  था  l    उन्हें लगने  लगा  था  कि  उनकी  कीर्ति  , यश   सब  डूबने  जा  रहा  है  ,  गणमान्य  लोगों  के  लिए   अपनी  पराजय  का  यह  दुःख   मरण   से भी  अधिक  दुःखदायी   होता  है   इसी लिए   उनका आत्मविश्वास  डिगने  लगा  , घबराहट  बढ़  गई  जिसके  कारण  वह  माला  मुरझा   गई   जबकि  शंकराचार्य   का  अपने  प्राण  और  मन  पर  पूरा  नियंत्रण  था  ,  वे  योग  के  महान  ज्ञाता   थे ,  उनका  धैर्य  और  विश्वास  अडिग  था   इस  कारण  वे  विजयी  हुए  l 

28 January 2022

WISDOM ----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  महानता    हर  किसी  व्यक्ति  के  अंदर  नहीं  होती  ,  लेकिन  इसे  हासिल   किया जा  सकता  है   l   महानता  को  हासिल  करने  के  लिए  यह  जरुरी  है   कि   हमें  अपनी   उन  भूलों  पर  लगाम  कसनी  होगी  ,  जो  आत्मविकास  में  बाधक  हैं   l   महानता  की  राह  पर  चलने  वाले  व्यक्ति   अन्याय   और शोषण   को सहते  नहीं   हैं , बल्कि  उसके  विरुद्ध  लड़ते  हैं   l   उनमे  संवेदना  होती  है  इस  कारण  वे  दूसरों  के  सुख - दुःख    को  अपना  सुख - दुःख  मानते  हैं  l "       पुराणों  में  महापुरुषों  के  विशिष्ट  गुणों  का  उल्लेख  है   जैसे --- जो   कर्मनिष्ठ हैं ,  ईर्ष्या , डाह , निंदा ,  आलोचना  से  दूर  रहते  हैं   l   सम्पूर्ण  मानव  जाति   के  प्रति  सद्व्यवहार  करते  हैं ,  किसी  को  हीन   नहीं  समझते  हैं   l   विपत्ति  में  धैर्य , उत्कर्ष  में  विनम्रता , सत्यवादिता ,  आत्मबल    महापुरुषों  के  स्वाभाविक   गुण   हैं   l     महात्मा  गाँधी  का  व्यक्तित्व  आत्मशक्ति  से  संपन्न  था   l   उनकी  अहिंसा  की  शक्ति   के  समक्ष   अंग्रेजों को  झुकना  पड़ा   l  जब  उनकी  मृत्यु  हुई  ,  तब  उनके  पास  से  जो  सामग्री  मिली   उसमे  उनका  चश्मा ,  दो  जोड़ी  चप्पलें  ,  एक चरखा , एक  घड़ी  और  कुछ  अन्य  सामान्य  चीजें  मिलीं   l   उनके  पास  जो  बहुमूल्य  चीज  थी  वह  थी    उनकी  आत्मशक्ति  

27 January 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  मनुष्य  जिन  बड़ी - बड़ी  बीमारियों   और  विक्षिप्तताओं   से  परिचित  है  ,  महत्वाकांक्षा   से  बड़ी  बीमारी  इनमें  से  कोई  नहीं   l   जिस  व्यक्ति  में  अति  की  महत्वाकांक्षा  है , शांति , संगीत  और  आनंद  उसके  भाग्य  में  नहीं  हो  सकते  l "     महर्षि   रमण   से  पश्चिमी  विचारक  पॉल   ब्रन्टन   ने  पूछा  था  ---- " इस  महत्वाकांक्षा  की  जड़  क्या  है  ? "   तब  महर्षि  ने  कहा  था   --- " हीनता  का भाव  ,  अभाव  का  बोध  l  "  हीनता  स्वयं  से  छुटकारा  पाने  की  कोशिश  में   महत्वाकांक्षा  बन  जाती    है   और  बहुमूल्य - से - बहुमूल्य  साज - सज्जा  के   बावजूद  वह  न  तो  मिटती   है   और  न  नष्ट  होती  है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- "  महत्वाकांक्षी   मन  की  प्रत्येक  सफलता  आत्मघाती   है  ,  क्योंकि   वह  अग्नि  में  घृत  का  काम  करती  है   l   सफलता  तो  आ  जाती  है  ,  पर  हीनता  नहीं  मिटती ,  इसलिए  और  बड़ी  सफलताएं  जरुरी  लगने  लगती  हैं  l   यह  हीनता  का  निरंतर  बढ़ते  जाना  है   l    विश्व  का  ज्यादातर  इतिहास  ऐसे  ही  बीमार   लोगों  से  भरा  पड़ा  है  - तैमूर ,  सिकंदर ,  हिटलर ------- l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- " थोड़े  बहुत  रूप  में  इस  बीमारी  के  कीटाणु  हम  में  भी  तो  हैं  l   प्राय:  सभी  इस  रोग  से  संक्रमित  हैं  ,  यही  कारण  है  कि   यह  महारोग    जल्दी   किसी  को  नजर  नहीं  आता   l   महत्वाकांक्षा  रुग्ण  चित   से  निकली  घृणा   है ,  ईर्ष्या  है   l   युद्ध  इसी  का  व्यापक  रूप  है   l  "    इस  महारोग  का  इलाज  अध्यात्म  में  है  ,  स्वस्थ  और  शांत  चित   विध्वंस  नहीं  करता  ,  सृजन  करता  है   l 

26 January 2022

WISDOM -----

         ईश्वर  के  बारे  में  लोगों  की  भिन्न - भिन्न  धारणा   है   l   दुर्बुद्धि  के  कारण    आपस  में  लड़ाई - झगड़ा  करने  के  लिए  भी     लोगों  ने  ईश्वर   का  बहाना  बना  लिया   l   धर्म  और  ईश्वर  के   आधार  पर   इस   तरह  लड़ने  पर   उतारू होते  हैं  जैसे  उन्होंने  ईश्वर  को  देखा  है   l   वास्तव  में   लड़ाई - झगड़ा ,  युद्ध ,  विनाश  के  कार्य  करना  ,  यह  सब  मानसिक  विकृति  है  ,  इसका  खामियाजा  मानव  जाति   को  भुगतना  पड़ता  है  l   श्रीमद् भगवद्गीता   का  सन्देश  मनुष्य  समझे   तो  कम  से  कम  लड़ाई  का  एक  बहाना  तो  समाप्त  हो  जाये    भगवान  श्रीकृष्ण  कहते  हैं  -- मनुष्य  चाहे  जिस  तरह  से   भगवान   को  अपनाते ,  उनसे  प्रेम  करते   और  आनंदित  होते  हों  ,  भगवान   उन्हें   उसी  तरह  अपनाते ,  उनसे  प्रेम  करते    और  आनंदित  होते  हैं  l   ईश्वर  तो  एक  ही  हैं  ,  लेकिन  मनुष्य  की  जैसी  भावना  होती   है  वह  उन्हें   वैसा   ही समझता  है   l   सूरदास जी , मीरा  ,   कंस , दुर्योधन   आदि  ने  जैसी  उनकी  भावना  थी  ,  उसी  रूप  में  उन्हें  जाना   l    यह  भी  एक  आश्चर्य  की  बात  है    कि   दिन  के  तो  वही  24   घंटे  होते  हैं    उसी  में  व्यक्ति  चाहे  साधारण  हो   या   समर्थ हो , शक्तिशाली   हो  उसके  पास   लड़ाई - झगड़ा ,  युद्ध  जैसे  नकारात्मक  कार्यों    को  करने  या  कराने  का  कितना  समय  होता  है   l   यह  सबसे  बड़ी  दुर्बुद्धि  है  कि   वह  अपनी   ऊर्जा को  सकारात्मक  दिशा  में  नहीं  लगाता  l 

WISDOM -----

   महर्षि  दयानंद   के  एक  शिष्य  थे --- अमीचन्द्र   l   वे  गाते   भी  बहुत  अच्छा  थे   और  तबला   भी बजाते  थे  l   पर  उन्हें  शराब  पीने  की  बुरी  लत  थी   l   दूसरे  शिष्यों  ने  उनसे  कहा  --- ' भगवन ,  इन्हे  अपने  साथ  न  रखें   l   इनसे  हम  सबकी  प्रतिष्ठा  गिरती  है   l   स्वामी जी  बोले --- " पहले   यह  गाता   था  ,  पेट  के  लिए   व  मनोरंजन  के  लिए   l   अब  जब  से  हम  से  जुड़ा  है  ,  भगवान   की  खातिर   उन्ही  को   सुनाकर   गीत  गाता   है   l   यह  स्वयं  बदलेगा  l  "  हुआ  भी  वही   l   प्रेरक  प्रभु  के  सन्देश   को  फैलाने  वाले   गीत  सुनाते - सुनाते   अमीचन्द्र  बदल  गए  ,  उनकी  आदत  भी  छूट  गई   और  समाज  सुधार  के  कार्य  में    स्वामी जी  के  सहयोगी  बने  l 

25 January 2022

WISDOM -----

   श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  श्रीकृष्ण  कहते  हैं ---- ' जैसे  जल  में  चलने  वाली  नाव  को   वायु  हर  लेती  है  ,  वैसे  ही    विषयों में   विचरती  हुई   इन्द्रियों  में   से  मन  जिस  इन्द्रिय  के  साथ  रहता  है  ,  वह  एक  इन्द्रिय  ही   इस  पुरुष  की  बुद्धि  को  हर  लेती  है  l  '   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' हिरन ,  हाथी ,  पतंगा ,  मछली   और  भौंरा  ,  ये  अपने  - अपने  स्वभाव   के  कारण   पांच  विषयों  में  से  किसी  एक   में  आसक्त  होने  के  कारण   मृत्यु  को  प्राप्त  होते  हैं  ,  तो  इन  पांच  विषयों  से  जकड़ा   हुआ  असंयमी   व्यक्ति  कैसे  बच  सकता  है   ?   इसलिए  मनुष्य  को  बहुत  सावधान  रहना  चाहिए   l   एक  ही  इन्द्रिय  काफी  है  ,  जो  मनुष्य  को  पतन  की  ओर   ले  जा  सकती  है   l  "       पुराण  में  एक  कथा  है  -----  द्धापर   युग  में  एक  असुर  था  ,  उसका  नाम  था  -- शंबरासुर  l   उसने  भगवान  श्रीकृष्ण  के  बड़े  पुत्र  प्रद्युम्न  का  हरण  कर  लिया   था   l   रति  भी  उसी  के  यहाँ  कैद  थी    l   शंबरासुर  पाककला  में    निपुण  स्त्रियों  का  ही  अधिकतर  हरण  करता  था   l   उसकी  पाकशाला   सदैव  सजी   रहती थी  l   उसे  खाने  का  बड़ा  शौक  था   l   वह  चाहता  था  कि   उसकी  पाकशाला   में  बढ़िया  से  बढ़िया  खाना  बने   और  उसे  खिलाया  जाये  l   वह  किसी  स्त्री  की  खूबसूरती  को  नहीं  देखता  था  ,  न  ही  उन्हें  हाथ  लगाता   था   l   उन  स्त्रियों  का  पाककला  में  पारंगत  होना  जरुरी   था  l   प्रद्युम्न  ने  शंबरासुर  को  मारकर   अगणित  स्त्रियों  को  मुक्त  कराया   l   मात्र  एक  इन्द्रिय  ही  उस  असुर  के  पतन  का  कारण  बनी --- सुस्वादु  आहार  का  सेवन   l   दिन - रात  उसी  का  चिंतन  

24 January 2022

WISDOM -----

   विश्व  युद्ध ,  विभिन्न  देशों  के  बीच  समय - समय  पर  होने  वाले  युद्ध ,  दंगे ,  विभाजन  जैसी  त्रासदी  --यह  सब  मनुष्य  के  ही  अहंकार , स्वार्थ ,  अति महत्वाकांक्षा ,  'स्वयं  को  सर्वश्रेष्ठ  समझना  जैसी  मानसिक  दुष्प्रवृतियों  का  ही  दुष्परिणाम  थे  l   ऐसी  घटनाओं  में  सबसे  दुःखद   बात  यह  होती  है  कि  कितने  ही  बच्चे  जिन्होंने  बोलना , खड़े  होना  ही  नहीं  सीखा  , वे  बिना  वजह  मारे  जाते  है  ,  कुछ  माँ  के  गर्भ  से  बाहर  आने  को  ही  तरस  जाते  हैं ,   अचानक  ही  धरती  पर  अनाथों , अपाहिजों ,  विधवाओं ,  और  बेसहारा  लोगों  की  संख्या  बढ़  जाती  है  ,  धरती  लाशों  से  पट  जाती  है  l   बेवजह  हुई  ऐसी  त्रासदी  से  धरती  तो  बोझिल  होती  है , वायुमंडल  भी  जख्मी  हो  जाता  है  l  इसके  दुष्परिणाम  केवल  वर्तमान  पीढ़ी  ही  नहीं ,  भावी  पीढ़ियाँ   भी  झेलती  हैं  l   इसी  कारण  वातावरण  को   परिष्कृत करने  के  लिए  भगवान  राम  ने  लंका  विजय  के  उपरांत  राजसूय  यज्ञ  कराया  l   महाभारत  के  युद्ध  के  बाद  धर्मराज युधिष्ठिर  ने  भी  राजसूय  यज्ञ  कराया  l   भारत  के  प्राचीन  इतिहास  में  ऐसे  यज्ञ  कराने   के  अनेक  उदाहरण  हैं   l  इन  यज्ञों  का  उद्देश्य  यही  था  कि   ऐसी  विभीषिका  से  वातावरण  में  जो  नकारात्मकता  भर  गई  है   उसे  दूर  किया  जाये  l   लेकिन  वर्तमान   युग  में  जब   भौतिक  प्रगति , समृद्धि  को  ही  सब  कुछ  माना   जाता  है  ,  अब  संवेदना  नहीं  है  l    पद   पाने  की , धन  कमाने  की  ,   अपनी    महत्वाकांक्षाओं  की  पूर्ति  की  भागदौड़  है  l   जब  जीवन  का  लक्ष्य  ही  स्वार्थ  है   तो  युद्ध  हो  या  न  हो   ,  शांति  नहीं  होगी  l 

23 January 2022

WISDOM ------

   अणुबम  कितना  शक्तिशाली  होता  है  कि   उसके  दुष्परिणाम  भावी  पीढ़ियों  को  भी  दशकों  तक  झेलने  पड़ते  हैं    l    विनाश  तो  पल भर  में  हो  जाता  है  ,  पुनर्निर्माण  की  प्रक्रिया  दीर्घकाल  तक    चलती    है   l  कहते  हैं  मनुष्य   का  मन  परमाणु  बम  से  भी  ज्यादा  शक्तिशाली  है   l मन  से  उठने  वाली  तरंगे , विचार  वायुमंडल  में  रहते  हैं   l   युद्ध , दंगे  बम  विस्फोट  जैसी  घटनाओं  के  बाद   भौतिक  रूप  से  पुनर्निर्माण  के  कार्य  तो  किए   जाते  हैं   लेकिन  इन  युद्धों , दंगे ,  जाति  , धर्म , रंग भेद  , ऊंच - नीच   आदि  के  कारण  कितने  बच्चे - बूढ़े   निर्दोष  व्यक्ति  बेरहमी   से  मारे  गए  ,  उनके  मन , आत्मा  से  निकलने  वाली  कराह ,  चीत्कार    जो   अणु  विस्फोट  से  भी  ज्यादा  शक्तिशाली  हैं  वायुमंडल  में  भर  गईं  l   वे  देश ,  वे  क्षेत्र  जहाँ  उत्पीड़न , लूटपाट ,भेदभाव ,   हत्याएं  आदि  हृदयविदारक  घटनाएं  बहुत  हुई  हैं  ,  यदि  निष्पक्ष  रूप  से  वहां  सर्वेक्षण  किया  जाये  तो  यह  सत्य  सामने  आएगा   कि   आज  भी  उन  क्षेत्रों  में  अपराध  किसी  न  किसी  रूप  में  ज्यादा  होते  हैं , वातावरण  बोझिल  है ,  लोग    संपन्न  होने  के  बावजूद  भी  तनाव   , मानसिक  बीमारियों    आदि   से  पीड़ित  हैं  l   जो  क्षेत्र  डाकुओं  की  समस्या  से  ग्रस्त  थे  ,  वहां  लोगों  में  षड्यंत्र , साजिश , हक   छीनना   आदि  आपराधिक  मनोवृति  होगी   l   जो  क्षेत्र  दंगा रहित  रहे ,   पवित्र   धार्मिक  स्थल  हैं   वहां  शांति  सद्भाव  देखने  को  मिलेगा  l   जिन  स्थानों  पर  एक्सीडेंट    बहुत  होते  हैं ,   वहीँ  पर  अक्सर  होते  हैं   l    मनुष्य के  भीतर  देवता  और  असुर  दोनों  हैं  ,  उसकी  मानसिक  स्थिति  के  अनुसार   वातावरण   में  विद्यमान  तरंगे    उसके भीतर  की  प्रवृति  को  जाग्रत  कर  देती  हैं  l   इसलिए  वातावरण  के  परिष्कार   के  प्रयास  बड़े  पैमाने  पर  होने  चाहियें  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   वातावरण  के  परिष्कार  के  लिए   यज्ञ ,  हवन   करने  के  लिए  कहा  ,  इसके  अतिरिक्त  यदि    जो  वास्तव  में  पीड़ित  हैं  उनके  पीड़ा  निवारण  के  कार्य   यदि  बड़े  स्तर  पर  हों  ,   खुशियां  छीनने   का नहीं  ,  खुशियाँ   बाँटने  का  प्रयास  हो   वातावरण परिष्कृत  होगा ,  लोगों  का  मन  भी  शांत  रहेगा  l 

22 January 2022

WISDOM ------

   कहते  हैं  जब  कलियुग  ने  राजा  परीक्षित  से  पूछा  कि ,  मैं  कहाँ  निवास  करूँ  ?   तब  उन्होंने    उसके  लिए  जो   स्थान   निश्चित  किए   उनमे  एक  था --- सोने   का मुकुट  l   अब  मुकुट  तो  कोई  पहनता  नहीं  है  ,  इसलिए  कलियुग  ने  लोगों  की  बुद्धि  में  सरलता  से  प्रवेश  कर  लिया  l   और  बुद्धि  को  दुर्बुद्धि  में  बदल  दिया  ,    यही  कारण  है  कि   आज  संसार  में  चारों  और  समस्याएं  हैं  ,  उन्ही  की  चर्चा  है  ,  कहीं  समाधान  नहीं  है   क्योंकि  बुद्धि  पर  लोभ , स्वार्थ  और  अति महत्वाकांक्षा  हावी  है  ,  जो  उस  समस्या  का  समाधान  होने  ही  नहीं  देती  l   अब  यह  जरुरी  है  कि   सब  लोग  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें   l   सद्बुद्धि  होने  पर  संवेदना  जागेगी  और  तब  सब  समस्याएं  स्वत:  ही  हल  हो  जाएँगी   l  

WISDOM ------

   इस  संसार  में  हर  युग  में  किसी  न  किसी  रूप  में  देवासुर  संग्राम   होता  रहा  है   l  असुरता   कभी  नहीं  चाहती  कि   देवत्व  शक्तिशाली  हो  ,  इसलिए  वह  किसी  न  किसी  तरह  देवत्व  को  कमजोर  करने  के  प्रयास   करते   रहते  हैं  l   आज  का  युग  ज्ञान - विज्ञान   का  युग  है  ,  परिश्रम  करने  और  कर्मयोगी  बनने  का  युग  है  l   लेकिन  यदि  लोग   ज्ञानी  और  कर्मयोगी  हो  गए  तो  वे  असुरता   को  समझ  जायेंगे  और  उसे  मिटा  देंगे  l   इसलिए  असुरता  ऐसे  हथकंडे  अपनाती  है   कि   लोगों  के  ज्ञान  प्राप्त  करने  में  अनेक  बाधाएं   उपस्थित  हो  जाएँ , ज्ञान  ही  नहीं  होगा  तो   वे जागरूक  भी  नहीं  होंगे  ,  इससे  असुरता  को  अपना   वर्चस्व  कायम  करना  आसान  होगा  l    इस  सत्य  को   स्पष्ट  करने  वाली  एक  लघु  कथा  है  -----   सतयुग  धरती  की  ओर   बढ़  रहा  था   l   यह  देखकर  कलियुग  ने  अपने  सहायकों  की  सभा   बुलाई  l   किसी  ने  कहा ,  मैं  पृथ्वी  पर  जाकर  धन  का  लालच  फैला  दूंगा  ,  किसी  ने  कहा  ,  हम  लोगों  को  कामनाओं  में  फंसा  देंगे   l   किसी  ने  कामिनी  का  दर्प  दिखाया  ,  पर  कलि   को  संतोष  न  हुआ   l   एक  बुड्ढा   सहायक  एक  कोने  में  बैठा  था  ,  वह  बोला -----  मैं  जाकर  लोगों  में   निराशा  और  आलस्य  पैदा  कर  दूंगा  l   उनके  साहस  को  नष्ट  कर  दूंगा  ,  बस ,  फिर  वे  किसी  काम  के  न  रहेंगे   और  न  वे  किसी   बुराई  को  दूर  करने   के  लिए   संघर्ष  कर  सकेंगे    और  न  ही  किसी  अच्छाई  को  उपार्जित  करने  का   साहस  उनमे  रहेगा   l   इस  वृद्ध  सहायक  की  बात  कलि   महाराज  को  बहुत  पसंद  आई  ,  उन्होंने  इसे  राज्य  में  प्रमुख  पद  दे  दिया   l   आज  के  निराश  और  आलसी  लोग   कलि   महाराज  की  प्रजा  बने  हुए  हैं   l   इन  परिस्थितियों  में  बेचारा  सतयुग   कहाँ   ?

21 January 2022

WISDOM -----

   वर्तमान  समय  में    भौतिक  और  वैचारिक   प्रदूषण     इतना  बढ़  गया  है  कि   संयमित  जीवन  जीने  और  एक  अच्छी  जीवनशैली  के  बाद  भी    लोग  स्वस्थ  नहीं  रह  पाते  ,  कोई  न  कोई  बीमारी  उन्हें  अपनी  चपेट  में  ले  ही  लेती  है  l   इसका  कारण  है  कि  कीटनाशक  ,  हानिकारक  तत्वों  के  कारण  वायु ,  जल ,  अन्न  सब  प्रदूषित  है   जो   व्यक्ति  की  जीवनीशक्ति  को  कमजोर  कर   रहे   है  l   प्रकृति  से  दूर  और  दवाइयों  पर  अत्यधिक  निर्भर  रहकर   व्यक्ति  अपने  जीवन  को  जीता  नहीं  ,  ढोता   है  l   यदि  समाज  जागरूक  हो  जाये   तो  इस  बाहरी  प्रदूषण    को  तो  दूर  किया  जा  सकता  है    लेकिन  जो   प्रदूषण    व्यक्ति  के  भीतर  है  , काम , क्रोध ,  लोभ , ईर्ष्या , द्वेष  ,  अति महत्वाकांक्षा  ,  असत्य बोलना , बेईमानी , धोखा  देना , षड्यंत्र  करना    ये  सब  दुर्गुण  व्यक्ति  को  तनाव  और  बड़ी  बीमारियों  से  ग्रस्त  कर  देते  हैं  l   इस  मानसिक    प्रदूषण    को  दूर  करना   आसान  नहीं  है  l   श्रीमद्भगवद्गीता   में     इन  दोषों  से  मुक्ति  पाने  का  सरल  रास्ता  बताया  गया  है   कि   निष्काम  कर्म  करने  से   मन  निर्मल  हो  जाता  है  ,  इसके  लिए  धैर्य  और  विश्वास  की  जरुरत  है   l 

20 January 2022

WISDOM ----

  आज  के  युग  की  सबसे  बड़ी  समस्या  ' तनाव  '  है  l  गरीब  व्यक्ति    मेहनत - मजदूरी  कर   पत्थर  पर  भी  चैन  की  नींद  सो  जायेगा  लेकिन  जिसके  पास  जितनी  सुविधाएँ  हैं  वह  उतना  ही  तनावग्रस्त  है  l    विकसित  देशों  में  आर्थिक  समस्या  नहीं  है   लेकिन  फिर  भी  अशांति  है , तनाव  है  l   इसका  कारण  यही  है  कि   विज्ञानं   ने मानव  शरीर  को  यंत्र  बना  दिया  है   और   मानव  मन  की  भावनाओं  की  उपेक्षा  करने  से  जीवन  खोखला  हो  गया  है   l   भौतिकता  के  सामने  मानवीय  संवेदना  कहीं  खो  गई  l   विज्ञान   आँसुओं   का  वैज्ञानिक  विश्लेषण  तो  कर  सकता  है  कि   उसमे   कितना  पानी , खनिज , क्षार   आदि  है   लेकिन  आँख  से  गिरने  वाला    आँसू   स्नेह , ममता ,  व्यथा , वेदना , करुणा ,  दुःख   आदि  कौन  सी  भावना  को  व्यक्त  कर  रहा  है  ,  इसका  विश्लेषण   नहीं  कर  सकता   इसलिए  विज्ञानं  संवेदनहीन  है  l मनुष्य   का     केवल     रासायनिक  पदार्थों  का  सम्मिश्रण  नहीं  है  ,   श्रद्धा , निष्ठां , साहस , उमंग ,  नैतिकता , ईमानदारी  ,  आत्मविश्वास   आदि  श्रेष्ठ  भावनाएं  उसके  व्यक्तित्व  को  ,  उसके  आभामंडल  को  निर्मित  करती  है  l   भावनाओं   की   उपेक्षा  के  कारण  ही     लोग  तनावग्रस्त  हैं  ,  नई -नई  बीमारियां  उसे  घेर  लेती  हैं  l   फिर  उन  बीमारियों  का  इलाज  भी   उसी  तरह  होता  है    जैसे   मशीनों  में  तेल  डालकर  उनके  कल -पुर्जों  को  सुधारा  जाता  है   l  भौतिकता  की  अंधी  दौड़  में  मनुष्य  ने  भावनाएं  तो  खो  दीं ,  और  वह  प्रकृति  से  भी  दूर  हो  गया   l   जिन  पांच  तत्वों  से  मिलकर  उसका  शरीर  बना   ,  उन्ही  तत्वों  को  प्रदूषित  कर  रहा  है   l   अपने  ही  विनाश  पर  उतारू  है  l  

19 January 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  आचार्य  जी लिखते  हैं ---- " जीवन  की  अनंत  संभावनाएं  हैं   l   हमें  अपने  विचारों  को   विधेयात्मक  बनाते  हुए    भावनाओं  को  पवित्र  बनाना  चाहिए   l    सदा   औरों  के  प्रति  प्रेमपूर्ण  सद व्यवहार  करने  से    हमारे  जीवन  में  भी   ख़ुशी  आ  सकती  है  l   परिस्थिति  का  समझदारी  और  बहादुरी   के  साथ  सामना  करने  पर   ही  हमारी  संकुचित  क्षमता  का   विकास  संभव  है   l  "       जीवन  के  प्रति  सकारात्मक  दृष्टिकोण  रखने  से   अनेक  समस्याएं  आसानी  से  हल  हो  जाती  हैं   l   संत  तुकाराम  के  जीवन  का  किस्सा  है  -------  एक  बार  वे  कहीं  से  एक  गणना  लाये  थे   ,  उनकी  पत्नी   ने  उसे  उनकी  पीठ  पर  दे  मारा   और  उसके  दो  टुकड़े  हो  गए   l   एक  टुकड़े  को  उन्होंने  अपनी  पत्नी  के  हाथ  में  थमा   दिया   और  एक  को  स्वयं  चूसने  लगे   l   उन्होंने  कहा   कि   पीठ  में  लग  गई  ,  सो  लग  गई   लेकिन  तुमको  कितने  ठीक  तरीके  से  निशाना  मारना   आता  है   l  गन्ना   मारने  की  कला  कैसी  बढ़िया  है  ,  एक  बार   में ही  दो  बराबर  टुकड़े  कर  दिए  l      उन्होंने  अपनी  पत्नी  की  गलती  नहीं   देखी ,  बल्कि  उसमे  भी  अच्छाई  ढूंढ   ली  l   सकारात्मक  दृष्टिकोण  से  अनेक  समस्याएं    आसानी  से  हल   हो  जाती हैं   l 

18 January 2022

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " उपासना  का  अर्थ  मात्र   मन्दिर   बना  देना  नहीं  है  l   वैसा  जीवन  भी  जीना   होता है  ,  तभी  वह  सफल  है  l  " ------  चित्रगुप्त  महाराज  अपनी  पोथी  के  पृष्ठों  को   उलट   रहे  थे  ,  तभी  यमदूतों  ने   दो  व्यक्तियों  को  उनके  सम्मुख  प्रस्तुत  किया   और  प्रथम  व्यक्ति   का परिचय   कराते  हुए  कहा ---- "  यह  नगर  सेठ  है  l  धन  की  कोई  कमी  नहीं  है   इनके पास  l  खूब  कमाया  और  समाज  के  हित   के  लिए   धर्मशाला , मंदिर , कुंए  और   विद्यालय  जैसे  अनेक  निर्माण  कार्य  कराए  l  "    अब  दूसरे  व्यक्ति  की  बारी  थी ,  यमदूतों  ने  कहा --- "  यह  व्यक्ति  बहुत  गरीब  है  ,  दो  समय  का  भोजन  जुटाना  भी  इसके  लिए  मुश्किल  है   l   एक  दिन  जब  यह  भोजन  कर  रहा  था  तो  एक  भूखा  कुत्ता   इसके  पास  आया  l   इसने  भोजन  न  कर  सारी   रोटियाँ   कुत्ते  को  दे   दीं  l   स्वयं  भूखा  रहकर  दूसरे   की क्षुधा  शांत  की  l   अब  आप   बताइये  इन  दोनों   के लिए  क्या  आज्ञा  है   ? "    चित्रगुप्त  महाराज  ने  गंभीरता  से  कहा ---- "  धनी   व्यक्ति  को  नरक  में  और  निर्धन  व्यक्ति  को  स्वर्ग  में  भेजा  जाए  l  "    उनका  निर्णय  सुनकर  धनी   व्यक्ति  बहुत  परेशान    हो  गया  l    वह पृथ्वी  तो  नहीं  जहाँ  पैसा  खर्च  कर  के    कुछ  काम  बन  जाये ,  चित्रगुप्त  महाराज  के  आगे  भला  किसकी  चलती  है   ?   धनी   व्यक्ति  ने  बड़ी  हिम्मत  जुटा   कर  कहा -- 'महाराज  !  मैंने  तो  इतना  दान - पुण्य  किया  फिर  मुझे  इतनी  सजा  क्यों  ? '  चित्रगुप्त  महाराज  ने  कहा  ---- "  तुमने  निर्धनों  और  असहायों  का  बुरी  तरह  शोषण  किया   l   उनकी  विवशताओं  का  बुरी  तरह  दुरूपयोग  किया   और  उस  पैसे  से  ऐश - आराम  का  जीवन  व्यतीत   किया  l  यदि  बचे  हुए  धन  का   एक  अंश  लोकेषणा   की  पूर्ति  हेतु  व्यय   कर  भी  दिया   तो  उसके  पीछे  भावना  थी  कि   लोग  मेरी  प्रशंसा  करें ,   मेरे  गुण   गायें   l    जबकि  इस   गरीब  ने   पसीना   बहाकर   जो  कमाई  की  , उस  रोटी  को  भी    भूखे  कुत्ते  को  खिला  दिया  l   यदि  यह  साधन - संपन्न  होता  ,  तो  न  जाने  कितने  अभावग्रस्त  लोगों   की  मदद  करता   l   पाप   और पुण्य  का  संबंध   मानवीय  भावनाओं  से  है  ,  क्रियाओं  से  नहीं  l   मेरे  द्वारा   दिया गया  निर्णय  अंतिम  है  l  "

17 January 2022

WISDOM -----

 जीवन  में  ' संतोष  '  का  अर्थ  यह  नहीं  कि   हम  आगे  बढ़ने  की  कोशिश  ही  न  करें  l ' संतोष ' का  अर्थ  है  ---   हम  आगे  बढ़ने  की  सही  रास्ते  से  भरपूर  कोशिश  करें ,  इसके  साथ  जो  ईश्वर  ने  हमें  दिया  है   उसे  अपना  सौभाग्य  माने , ईश्वर  के  प्रति  कृतज्ञ  हों  l '   जब  व्यक्ति  अपनी  इच्छाओं  को  पूरा  करने  के  लिए  छल - कपट ,  धोखा , षड्यंत्र ,  दूसरे  का  हक  छीनना ,  साजिश  करना  जैसे  ओछे  कार्य  में  उलझ  जाता  है   तभी  से  वह  स्वयं  अपने  लिए  तनाव  और  बीमारी  मोल  ले  लेता  है  l  ------ एक  व्यक्ति  एक  संत  से  बोला ---- " महाराज  !  मेरे  जीवन  में  तनाव  बहुत  है   l   क्या  करूँ  ?  मेरी  कोई  इच्छा  पूर्ण  ही  नहीं  होती   और  तनाव  बढ़ता  जाता  है   l "  संत  बोले ---- " बेटा  !  रामचरितमानस  में  तुलसीदास जी  लिखते  हैं  --- " विषय  मनोरथ  दुर्गम  नाना  l   ते  सब  सूल   नाम  को  जाना  l "  अर्थात  इस  संसार  में  जितनी  भी  इच्छाएं  हैं  ,  वे  सब  कांटे  के  समान   हैं   l   वे  जितनी  बढ़ती  जाती  हैं  ,  उतना  ही  मन  पीड़ित  होता  जाता  है    l   इसलिए  इच्छाएं  पूरी  करने   की  दौड़  में  पड़ने  के  बजाय   जितना  है   उसमे  संतोष   करने  का  प्रयत्न  करो   तो  जीवन  स्वत:  ही  तनाव मुक्त  हो  जायेगा  l " 

16 January 2022

WISDOM -----

   चिकित्सा  के  क्षेत्र  में  आज  मनुष्य  ने  जितनी  तरक्की  कर  ली  ,  उससे  ज्यादा  नई - नई  बीमारियाँ   पैदा  हो   गईं   l   बीमारी  का  आक्रमण  तभी  होता  है  जब  हमारे  भीतर  नकारात्मकता  हो ,  प्रतिरोधक  शक्ति  कम   हो  l   बीमारी - महामारी   के लिए  किस - किसको  दोष  दें ---रासायनिक  खाद  बीज , कीटनाशक , वैज्ञानिक  आविष्कार ------- आदि   अनेक  कारणों  के  बीच  यदि   हमारी   सोच  सकारात्मक  है  ,  कोई  तनाव  नहीं  है   तो  हम  समस्याओं   पर   विजय  पा  सकते   हैं  l   आज  की   भाग - दौड़   की जिंदगी  में  व्यक्ति   तनावग्रस्त  है  ,  इस  कारण   उसे अनेक  बीमारियाँ   घेरने  लगती  हैं   l  ब्लड प्रेशर , अल्सर , हार्ट अटैक , डाइबिटीज  जैसी  अनेक  बीमारियों  के  कारण  व्यक्ति  की  प्रतिरोधक  क्षमता  कम  हो  जाती  है  ,  इस  कारण  नई   बीमारी  उस  पर  तेजी  से  आक्रमण  करती  हैं  l   यदि  व्यक्ति  अपनी  जीवनशैली  को  सुधार   ले  ,  मन  को  शांत  रखे , सादा - सरल  जीवन  जिए   तो    इन परिस्थितियों  के  बीच  भी स्वस्थ  रह  सकता  है   l 

WISDOM ------

   महाभारत  में  धर्मराज  युधिष्ठिर  से  यक्ष  ने  कई   प्रश्न  पूछे  ,  उनमे  एक  प्रश्न  था  ---- ' इस  संसार   का परम  आश्चर्य  क्या  है  ? '    युधिष्ठिर  ने  उत्तर  दिया  --- "  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  है  कि  मृत्यु  को  सुनिश्चित  घटना  के  रूप  में   देखकर  भी   मनुष्य  इसे  अनदेखा  करता  है  l   यह  मृत्यु  की  नहीं ,   जीवन  की  तैयारी   कुछ  इस  ढंग  से  करता  है  ,  जैसे  विश्वास  हो  कि    वह कभी  नहीं  मरेगा   l   उसे  सदा - सदा  जीवित  रहना  है   l  "  लोग  सोचते  हैं  कि   मृत्यु  का कारण  कोई  रोग  या  दुर्घटना  है   l   यदि  उसका  समाधान  निकल  लिया  जाये  तो  मृत्यु  से  बचा  जा  सकता   है   लेकिन   '  मौत  के  अनेक  बहाने   होते हैं    और  जीवन  रक्षा  के  अनेक  सहारे  होते  हैं  l  "     आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- हमें  मृत्यु  को  निश्चित  मानकर  ,  जीवन  को  सार्थक  करने  का  प्रयास  करना  चाहिए   l  '

14 January 2022

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' अगर  आप  दूसरों  से  स्नेह , सम्मान , सहानुभूति  चाहते  हैं   तो  उनकी  आलोचना , बुराई  न  करें  l   किसी  की  आलोचना  करने  से  कोई  फायदा  नहीं  होता  l  आलोचना  से  कोई  सुधरता  नहीं  है  , बल्कि  इससे  संबंध   जरूर  बिगड़  जाते  हैं   l  ' अब्राहम  लिंकन  ने   अपने  जीवन  के  अनुभव  से   दूसरों  की  आलोचना  करने  के   बुरे  परिणाम  को  जाना  l   उनका  प्रिय  कोटेशन  था ---- " किसी  की  आलोचना  मत  करो ,  ताकि  आपकी   भी आलोचना  न  हो   l "  जब  भी  श्रीमती  लिंकन  और   दूसरे  लोग  दक्षिणी   प्रान्त  के  लोगों  की   आलोचना  करते  तो  लिंकन    जवाब   देते  थे  ---- " उनकी  आलोचना  मत  करो  ,  अगर  हम  उन  परिस्थितियों  में  होते   तो  हम  भी  वैसे  ही  होते  l  "  लिंकन  अपने  जीवन  के  कटु  अनुभव  से  जानते  थे   कि   तीखी  आलोचना  और   डांट  - फटकार    हमेशा  नुकसानदायक  होती  है   और  उससे  कोई  लाभ  नहीं  होता   l  आलोचना  यदि  दूसरों  को  सुधारने  के  लिए  भी  हो   तो  दूसरों  को  सुधारने  के  बजाय  खुद  को  सुधारना    ज्यादा  फायदेमंद   होता  है   और  कम  खतरनाक  भी   l  "     आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- " यदि  किसी  के  मन  में  स्वयं  के  प्रति  विद्वेष  पैदा  करना  है  ,  जो  दशकों  तक  पलता    रहे   और  मौत  के  बाद  भी  बना  रहे  ,  तो  इसके  लिए  कुछ  ख़ास  नहीं  करना  पड़ता  ,  सिर्फ  चुनिंदा  शब्दों  में   चुभती  हुई   आलोचना   करनी  होती  है   l   जाने - अनजाने   ज्यादातर  लोग  ऐसा  ही  करते  हैं   और  दूसरों  के  मन  में   खुद  के  प्रति  विषबीज  बो  देते  हैं  l "

WISDOM -----

   आज  जब  संसार  में  बीमारी ,  महामारी  का  कोहराम  है  ,  लोग  भयभीत  हैं  l   अपना  स्वाभाविक  जीवन  नहीं  जी    पा    रहे  हैं   l   यह  स्थिति  समस्त  संसार  के  लिए  एक  संकेत  है   कि   ' वेदों  की  ओर   लौट  चलो  '  प्रकृति  का  सम्मान  करो  ,  प्रकृति  हमें  पोषित  करेगी  l ------   ऋषियों  ने  हमें  ज्ञान  दिया  -----'   वेदों  में  सूर्य  किरण  चिकित्सा  का  वर्णन   बड़े  विस्तार  से  आता  है  l  मत्स्य पुराण  कहता  है   नीरोगता   की  इच्छा  है  तो   सूर्य  की  शरण  में  जाओ   l   वेदों  में   उदित  होते  सूर्य  की   किरणों  का  बड़ा  महत्व  बताया  गया  है   l   अथर्ववेद  में   वर्णन  है  कि  उदित  होता  सूर्य   मृत्यु  के  सभी  कारणों  , सभी  रोगों  को  नष्ट   कर  देता  है  l   इस  समय  की   किरणों  में  जीवनी  शक्ति  होती  है   l   ऋग्वेद  में  उल्लेख  है   कि   रक्त अल्पता  की  सर्वश्रेष्ठ  औषधि   है   उदित  होते  सूर्य  के  दर्शन, ध्यान  l   हृदय  की  सभी  बीमारियाँ   नित्य  उगते  सूर्य  के  दर्शन , ध्यान  एवं  अर्घ  से   दूर  हो  सकती  हैं   l  "  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  लिखा  है --- जिन  देशों  में  सूर्योदय  के  दर्शन    किसी  कारण  से    संभव    नहीं  होते  हैं   तो  आप  मन  में  सूर्योदय  की  कल्पना   कर  सकते  हैं   कि   पवित्र  प्रकाश  हमारे  रोम - रोम  में  समा   रहा  है   और  ऐसी  कल्पना   के साथ  अर्घ  दे  सकते  हैं   l '

13 January 2022

WISDOM -----

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " सकारात्मक  भावना  व्यक्तित्व  को   मजबूत  एवं  आशावान  बनती  हैं  l   ऐसे  व्यक्ति  का  व्यक्तित्व   अविभक्त  होता  है   और  वही  भक्त  कहलाता  है  l   भक्त  हर  परिस्थिति  में  सुखी  , संतुष्ट  एवं  शांत  रहता  है  ,  वह  कभी  शिकायत  नहीं  करता  ,  कभी  परेशान    नहीं  होता  और   न  किसी  को  परेशान    करता  है   l "------- बहराम  बड़ा  ही  धनवान  था   l   उसका  कारवाँ   डाकुओं   ने  लूट  लिया  ,  बहुत  नुकसान  हो  गया  l  संत  अहमद  उसके  समीप  ही  रहते  थे  , एक  दिन  उससे  मिलने  गए  l   बहराम  ने  भोजन  लाने  का  आदेश  दिया  l  संत  बोले ---- " भाई  !  तुम्हारा  इतना  नुकसान  हुआ  है  l   मैं  भोजन  करने  नहीं  ,  तुम्हे  सांत्वना  देने  आया  हूँ   l  "  बहराम  बोला ---- "  आप  निश्चिन्त  होकर  भोजन  कर  लें   l   यह  सच  है  कि   मेरा  बहुत  बड़ा  नुकसान  हुआ  ,  डाकुओं  ने  मुझे   लूटा   है  ,  पर  मैंने  कभी  किसी  को  नहीं  लूटा ,  किसी  का  अहित   नहीं किया  l   मैं  अल्लाह   का एहसानमंद  हूँ  कि   मात्र  मेरी  नश्वर  सम्पति  लूटी  गई  है  l   मेरी  शाश्वत  सम्पति  है  --- ईश्वर  के  प्रति  मेरा  दृढ  विश्वास   l  यही  मेरे  जीवन  की  सच्ची  सम्पति  है   और  वह  मेरे  पास  है   l "  संत  बोले  --- ' भाई  !   सच्चे अर्थों  में  तुम  संत  हो   l l '

WISDOM ------

   स्वस्थ  जीवन  बिताने  के  लिए   सूर्य  से  सहायता  लेने  की  बड़ी  आवश्यकता  है  l   भगवान  भास्कर  में  इतनी  प्रचंड  रोगनाशक  शक्ति  है  ,  जिसके  बल  से  कठिन  से  कठिन   रोग  दूर  होते  हैं  l  जब  से  हमने  सूर्य  रश्मियों  का  अनादर  किया  ,  बंद  जगहों  में  निवास   करना  सभ्यता  में  शामिल  किया  ,  तब  से  हमने  अपने  बहुमूल्य  स्वास्थ्य  को  गँवा  दिया  l   पृथ्वी  का  केंद्र  सूर्य  है  , इस   महत्व    को  समझकर  ही  हमारे  प्राचीन  आचार्यों  ने   सूर्य  प्राणायाम , सूर्य  नमस्कार  , सूर्य  चक्र  बेधन  आदि   अनेक  क्रियाओं  को  धार्मिक  स्थान  दिया  l  प्रसिद्ध   दार्शनिक  न्योची   का  मत  है ---- " जब  तक  दुनिया  में  सूरज  मौजूद  है  ,  तब  तक  लोग   व्यर्थ  ही  दवाओं  की  तलाश  में  भटकते  हैं  l   उन्हें  चाहिए   कि   इस  शक्ति , सौंदर्य  और  स्वास्थ्य   के  केंद्र  सूर्य  की  और  देखें   और  उसकी  सहायता  से  अपनी  असली  अवस्था  को  प्राप्त  करें   l  "   गायत्री  मन्त्र  के  देवता   सविता  देव  ( सूर्य )  ही  हैं  l  मनुष्य  का  अहंकार   नकली  सूर्य  बनाने  का  दावा   करता  है   लेकिन   गायत्री  मन्त्र  के  जप  और  सविता  देव  की  उपासना  से  जो  विवेक  जाग्रत  होगा ,  सद्बुद्धि  आएगी   वह  नकली  सूर्य  से   कभी  नहीं  आएगी  l   विज्ञानं  और  वैज्ञानिक  आविष्कारों  का  अपना  महत्व   है   लेकिन   जो  शक्ति  मानव  मन  को  रूपांतरित  कर  उसे   इनसान   बनाये , उच्च  अवस्था  में  पहुंचाए   , वह  शक्ति  भारतीय  अध्यात्म  में  है  l 

12 January 2022

WISDOM ----

   मनुष्य  के  अस्तित्व   के लिए   पेड़ - पौधे , पशु - पक्षी , वनस्पति , जल, वन   आदि  सभी   कुछ अनिवार्य  है   l  ' हम  सब  एक  माला  के  मोती  हैं  l   सबका  हित  , सबकी  सुरक्षा   और  सब की  ख़ुशी  में  ही   स्वयं  का  आनंद  है  l -------- याकूब  ने  सुना  था  कि   संत  तालसुद   पहुंचे  हुए  फकीर   हैं   l   उनकी  दुआ  से   दुःखी   लोग  भी  आनंदित  होकर  लौटते  हैं   l   याकूब  उन्हें  खोजता  हुआ    एक  बियावान  में  जा  पहुंचा  l   वहां  पर  उसने  देखा   कि   वे  संत   एक  टोकरी  में  दाना  लिए  चिड़ियों  को   चुगा  रहे  हैं   और  चिड़ियों  की  चहचहाहट ,व  उनकी  फुदकन  के  देखकर  आनंदविभोर  हो  रहे  थे  l   याकूब  बहुत  देर  तक  बैठा    रहा    ,  पर  जब  संत  का  ध्यान   उसकी  ओर   नहीं  गया  तो  वह  झल्लाया   l   तालसुद   ने  उसे  ऊँगली  के  इशारे  से  बुलाया   और  हाथ  की टोकरी  उसके  हाथ  में  थमाते   हुए  कहा  --- " लो  अब  तुम  चिड़िया  चुगाओ   और  उनकी    प्रसन्न्ता  देखकर  स्वयं  आनंद  लो  l  "  फिर  थोड़ा  गंभीर  स्वर  में  बोले  ---- " अपना  दुःख  भूलकर   दूसरों  को  जहाँ  तक  संभव  हो   आनंद  की  अनुभूति  दे  पाना  ,  उनके  दुःख  के  क्षणों  में   स्वयं  को  उनका  सहभागी  बना   लेना  ही   संसार  की   सबसे  बड़ी  सेवा  है   l   मैंने  जीवन  भर  यही  किया  ,  तुम  भी  यही  करो  और  अपने  जीवन  को  धन्य  बनाओ   l  "

WISDOM-----

    बात  उन  दिनों   की है  जब  स्वामी  विवेकानंद   एल. एल. बी.  के  अंतिम  वर्ष  में  थे  l   उन्हें  लक्ष्य  कर  के  स्वामी  रामकृष्ण परमहंस  ने   आत्मीयता पूर्वक  कहा  था  ---- " क्यों  रे  नरेन  !  तू  कब  तक  भटकता  रहेगा  l  वकालत  कर  के  झूँठ - मूँठ   पैसा  कमाने   के  चक्कर  में  पड़ा   तो  तेरे  हाथ  का  छुआ  पानी  नहीं  पीऊंगा  l  "  उनकी  बात  स्वीकार  कर  वे   पूरी  तरह  विद्या  के  क्षेत्र  में   कूद  पड़े   l   विद्या  में   प्रवीण  होकर    चमत्कारी  व्यक्तित्व  के  स्वामी  बन  जाने  पर    किसी ने  ठाकुर  से  पूछा --- " उनसे  क्या  कराएँगे   l  "  गले  में  कैंसर  हो  जाने  के  कारण ठाकुर  बोल  नहीं  सकते  थे  , उन्होंने  कोयले  का  टुकड़ा  उठाकर  जमीन  पर  लिखा  --- " नरेन   शिक्षा  दिबे  l "    नरेंद्र  विद्या   का  शिक्षण  देगा   l     स्वामी  विवेकानंद  कहते   थे ---- " मेरे  गुरु  ने  मुझे  विद्या  दी  है   l   इसको  पाकर  मैं  दार्शनिक  नहीं  हुआ  ,  तत्ववेत्ता  भी  नहीं  बना  हूँ   l   संत  बनने  का  दावा   नहीं  करता   l   परन्तु  मैं  इन्सान   हूँ   और  इन्सानों   को  प्यार  करता  हूँ   l  "

WISDOM -----

   स्वामी  विवेकानंद  अपने   परामर्श  प्रसंगों  में  कहते  हैं  --- " ध्यान  करना  हो  तो  अपने  कमरे  का  एक  कोना   सकारात्मक  बना  लें  l   सभी  सिद्धों - महापुरुषों   को  नमन  कर   वहां  आमंत्रित  करें  l   उनके  विचार  - सूक्तियों  में  खो  जाएँ   l   उस  कोने  में   एक  आसन   या    कुर्सी  पर  बैठकर   जितना  समय  मिले  ,  सकारात्मक  भावनाएं  बिखरायें   l  वे  सभी  लौटकर  आएँगी   l   सारी   उदासी  दूर  कर   मन  को  प्रसन्न  करेंगी   और  ध्यान  को  सशक्त  बनाएंगी  l   कुछ  न  करें  ,  बस   द्वेषमुक्त   व  प्रसन्नचित्त  चिंतन   करते  रहें   l  "

11 January 2022

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपने  विचारों  से  ,  लघु  कथाओं  के  माध्यम  से  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l    इस  कला  की  थोड़ी  भी  समझ  आ  जाने  से   हम  कैसी  भी  परिस्थिति  हो   तनाव रहित  और  सुकून  की  जिंदगी  जी  सकते  हैं  ------   ' एक  भेड़िया  बहुत  दुष्ट  स्वभाव   का  था   l  भलमनसाहत  उसे  आती   ही   न  थी  l   वह  सभी  से  वैर  भाव  रखता  था  l   एक  दिन  भेड़िये  के  गले  में   किसी  जानवर  की  हड्डी  अटक  गई   l   दम   घुटने  लगा  ,  प्राण  निकलने  लगे   तो  दौड़कर  सारस   के  पास  पहुंचा   और  बोला  ---- तुम्हारा   अहसान  मैं  कभी  नहीं  भूलूंगा  , तुम्हारी  मदद  करूँगा  ,  तुम  अपनी  लम्बी  चोंच  से   मेरे  गले  में  फँसी   हड्डी  निकल  दो  l   सारस  को  दया  आ  गई  ,  उसने  वैसा  ही  किया   और  हड्डी  निकाल  दी   l   बहुत   दिन बाद  सारस  को  कुछ  काम  पड़ा  ,  वह  सहायता  के  लिए  भेड़िये  के  पास  गया    l   भेड़िये  के  मना  करने  पर  उसने   पिछले    अहसान  और  उसके  वायदे  की  याद  दिलाई  l   भेड़िये  ने  कुटिलता  से  कहा ---- " तुम्हारी  गर्दन  मेरे  मुँह   में  जाने  के  बाद  भी   साबुत  निकल  आई  ,  वही  अहसान  क्या  कम  था  ?  "  सारस  ने    अपने  परिवार  के   सभी  लोगों  को   बुलाकर  समझाया   कि   दुष्ट  की   सहायता  करके   उससे  किसी   प्रकार  के   सद्व्यवहार   की  आशा  नहीं  करनी  चाहिए   l    दुष्ट  के  साथ   न  तो  मित्रता  रखनी  चाहिए   और  न  ही  उससे  दुश्मनी  मोल  लेनी  चाहिए  l   उससे  तो  दूर  रहे  l 

10 January 2022

WISDOM ----

   कलियुग  का  सबसे  बड़ा  लक्षण  है   कि   इस  युग  में  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है  ,  उसकी  आँखों  पर  अविवेक  का  पर्दा  पड़ा  रहता  है   l  जिस के  साथ  प्रेम  से  रहना  चाहिए  ,  उससे  वह  वैर  रखता  है   और  जिससे   दूर  रहना  चाहिए  , उसके  पीछे  भागता  है  l   इतिहास  में  यह  बात  स्पष्ट  है  कि   अंग्रेजों  ने   ' फूट   डालो  और  राज्य  करो '  की  नीति   से   विशाल  भारत  पर  लम्बे  समय  तक  राज्य  किया   l   अंग्रेजों  ने  हिन्दू  और  मुसलमान    दोनों  पर  हुकूमत  की ,  गुलामी  दोनों  ने  ही  सहन  की   लेकिन  आश्चर्य   !  दोनों  को  अंग्रेजों  से  कोई  शिकायत  नहीं  है  l   यह  हमारी  दुर्बुद्धि  थी  ,  हम  ' कान  के  कच्चे '   थे  ,  आपस  में  लड़  मरे   और  वे   तमाशा  देखते  रहे   और  अब  तक  लड़  रहे  हैं  l   यदि  हमारे  पास  सद्बुद्धि  होती    तो    कहते   यह   हमारा  घरेलु  मामला  है  ,  हमें  बहकाओ  मत  l   जैसे  महाभारत  में  युधिष्ठिर  ने  कहा  था  -- हम    कौरव , पांडव   आपस  में  चाहे  झगड़  लें  लेकिन  तीसरे  पक्ष  के  सामने  हम  एक  सौ   पांच    हैं  l   लेकिन  ईर्ष्या , द्वेष , लालच , महत्वाकांक्षा ,  ये  सब  दुर्गुण   व्यक्ति  को  विवेकहीन  कर  देते  हैं ,  उसे  सही - गलत  की  समझ  ही  नहीं  रहती  l   अंग्रेजियत  हम  पर   इतनी  हावी  है  कि   यह  फूट   डालने  वाली    नीति  अब  राजनीति   के  साथ  परिवारों  पर  भी  हावी  हो  गई  है  l   ईर्ष्या , द्वेष  के  कारण   लोग  किसी  को  सुख - चैन  से  नहीं  देख  सकते   l  किसी  की  सम्पति  पर  कब्ज़ा  करने  के  लिए  ,  अपना  कोई  स्वार्थ  सिद्ध  करने  के  लिए  लोग   दूसरों  के  परिवारों  में , रिश्ते  में  फूट   डलवा  देते  हैं ,  जहर  का  बीज  बो  देते  हैं  l  दुर्बुद्धि  यहाँ  भी  वैसी  ही  है  ,  जिन    रिश्तों  में  फूट   डाली  , वे  बिना  सोचे - समझे  आपस  में  वैर  रखते  हैं  और  जिसने   फूट   डलवाने  का  घृणित  काम  किया  उसके  प्रति  निष्ठा   रखते  हैं   l  हमें  यदि  अपने  परिवार ,  अपनी  संस्कृति  को  बचाना  है    तो  अपने  विवेक  को  जाग्रत  करना  होगा  ,  सद्बुद्धि  जरुरी  है   और  इसे  जाग्रत  करने  का  एक  ही  तरीका  है  ----  गायत्री  मन्त्र  l 

9 January 2022

WISDOM------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " यदि  योगी  के  ह्रदय  में  अहिंसा  प्रतिष्ठित  हो  जाये   तो  उसके    सान्निध्य  में  प्राणी  अपने  प्राकृतिक  वैर  का  त्याग  कर  देते  हैं   किन्तु  मनुष्य  में  वैर   उसकी  मानसिक  विकृतियों  से    उपजा  है    l   इसलिए     ईसा  मसीह ,  सुकरात   और  महात्मा  गाँधी  जैसे  महान  पुरुष   जिनका  किसी  से  कोई  वैर  नहीं  था   ,    प्रकृति  और  प्राणियों  द्वारा  नहीं  ,  बल्कि  विकृत   मनुष्यों  द्वारा  मारे  गए   l '  ईर्ष्या , द्वेष    ऐसी  मानसिक   विकृति  है  कि   जब  यह  बहुत  गहन  हो  जाती  है  तो  मनुष्य   ,  ईश्वर  और  अवतार  को   भी    पहचान  नहीं  पाता   और  उनसे  भी  ईर्ष्या   करने  लगता  है  ,  उन्हें  हानि  पहुँचाने  की  कोशिश  करता  है  --------- भगवान  बुद्ध  का  एक  चचेरा  भाई  था  --देवदत्त   l   वह  भगवान  बुद्ध  से   गहरी  ईर्ष्या  करता  था   l   उसकी  हमेशा  यह  कोशिश  रहती  थी  कि   कब  उसे  मौका  मिले   और  कब  वह  तथागत  की  हत्या  कर  दे   l   कहा  जाता  है   कि   जब  बुद्ध   पहाड़ी  के  निकट  वृक्ष  के  नीचे  ध्यान  कर  रहे  थे   तो  देवदत्त  ने  उन  पर   एक  बड़ी  सी  चट्टान  लुढ़का  दी  l   पूरी  संभावना  थी  कि   बुद्ध  कुचल  जाते  ,  लेकिन  आश्चर्य   !  न  जाने  कैसे  चट्टान  ने  अपनी  राह  बदल  दी   और  तथागत  साफ  बच  गए  l   किसी  ने  पूछा  --- " भगवन  !  यह  आश्चर्य  कैसे  घटित  हुआ   ? "  तब  उत्तर  में   बुद्ध  ने  कहा  --- " एक  चट्टान  ज्यादा  संवेदनशील  है    देवदत्त  से  ,  चट्टान  ने  अपना  मार्ग  बदल  लिया   l  "  असुरता   ,  देवत्व  को  मिटाना  चाहती  है   लेकिन  अंत  में  जीत  देवत्व  की  ही  होती  है   l 

WISDOM -----

   गुरु  गोविंदसिंह  ने  अपने   ज्ञान ,   अपने  अनुभव  से  संसार  को  अनेक  शिक्षाएं  दीं  l   उनके  जीवन  का  एक  प्रसंग  है -----  गुरु  गोविंदसिंह  उन  दिनों  गोदावरी  के  तट   पर   नगीना  नाम  का  एक  घाट   बनवा  रहे  थे  l   दिनभर  उन  काम  में  व्यस्त  रहकर   वे  सायंकाल   प्रार्थना  कराते   और  लोगों  को  संगठन  तथा  बलिदान  का  उपदेश  दिया  करते  थे   l   उन   दिनों  उनके  पास  अनेक  शिष्य  भी  रहते  थे  ,  उनमे  एक  शत्रु  भी  छिपा  हुआ  था  ,  उसका  नाम  था  - अताउल्ला  खां  l  उसका  पिता  पैदे  खां   एक  युद्ध  में  गुरु जी  के  हाथ  से  मारा  गया  था   l  उसके  अनाथ  पुत्र  को   गुरु जी  ने  आश्रम  में  रखकर  पाल  लिया  था   किन्तु  उनकी  यही  दया  और  शत्रु  के  पुत्र  के  साथ  की  गई  मानवता   उनके  अंत  का  कारण  बन  गई   l   अताउल्ला  खां   हर  समय  इस  घात   में रहता  था  कि  कब  गुरु जी  को  अकेले  असावधान  पाए   और  मार  डाले  l   एक  दिन  उसने   पलंग  पर  सोते  हुए  गुरु जी  की  काँख   में   छुरा भौंक  दिया   l   गुरु जी  तत्काल  सजग  होकर   उठ  बैठे   और  वही  कटार   निकालकर   भागते  हुए  विश्वास  घाती   को  फेंककर  मारी  l   वह  कटार   उसकी  पीठ  में  धँस   गई   l   अताउल्ला  खां   वहीँ  गिरकर  ढेर  हो  गया  l   गुरु  के  घाव  पर  टाँके   लगा  दिए  गए  l   सांयकाल  उन्होंने   प्रार्थना  सभा   में  लोगों  को  बतलाया  कि   मेरी  इस  घटना  से  शिक्षा  लेकर   हर  सज्जन  व्यक्ति  को   यह नियम   बना  लेना  चाहिए   कि   यदि  शत्रु  पक्ष  को  ,  निराश्रय  की  स्थिति  में   सहायता   भी करनी  हो  तो   भी  उसे  अपने  पास   निकट  नहीं  रखना  चाहिए   और  उससे  सदा  सावधान    रहना  चाहिए   क्योंकि  कभी - कभी   असावधान  परोपकार  भी  अनर्थ  का  कारण  बन  जाता  है   l 

8 January 2022

WISDOM ----

 एक   जिज्ञासु  संत  कबीर  के  पास  पहुंचा  , बोला -- दो  बातें  सामने  हैं  --- संन्यासी  बनूँ  या  गृहस्थ  l    कबीर  ने  कहा  --- जो  भी  बनो  आदर्श  बनो  l   इसे  समझाने   के  लिए  उन्होंने  दो  घटनाएं  प्रस्तुत  कीं  l ---- अपनी  पत्नी  को  बुलाया  l  दोपहर  का  प्रकाश  तो  था  ,  पर  उन्होंने  दीपक  जला  लाने  के  लिए  कहा    ताकि  वे  अच्छी  तरह  कपड़ा   बुन   सकें  l  पत्नी  दीपक  जला  लायी  और  बिना  कुछ  बहस  किए   रखकर  चली  गई  l   कबीर   ने  कहा  --- गृहस्थ  बनना  हो  तो  परस्पर  ऐसे  विश्वासी  बनना   कि   दूसरे  की  इच्छा  ही  अपनी  इच्छा  बने   l    दूसरा    उदाहरण  संत  का  देना  था  l   वे  जिज्ञासु  को  लेकर   एक  टीले   पर  गए  ,  जहाँ  वयोवृद्ध  महात्मा  रहते  थे  l   वे  कबीर  को  जानते  न  थे  l   नमाज  के  उपरांत  उनसे  पूछा  --- आपकी  आयु  कितनी  है  ?   महात्मा  बोले --- अस्सी  बरस  l   इधर - उधर  की  बातों  के  बाद  कबीर  ने   कहा --- बाबाजी ,  आयु  क्यों  नहीं  बताते  ?  संत  ने  शांति  से  कहा --- बेटे , अभी  तो  बताया  था , अस्सी  बरस  l  तुम  भूल  गए  हो  l '  टीले   से  आधी  चढ़ाई  उतर  लेने  पर   कबीर  ने  संत  को  जोर  से  पुकारा   और  नीचे   आने  के  लिए  कहा   l   संत  हाँफते -हाँफते   चले  आये   और  कारण  पूछा  l   तो  फिर  कबीर  ने  वही  प्रश्न  किया  --- आपकी  आयु  कितनी  है  ?   संत  को  तनिक  भी  क्रोध  नहीं  आया  l   वे  उसे  पूछने  वाले  की   विस्मृति   मात्र  समझे  फिर  कहा  --- अस्सी  बरस   ,  और  हँसते  हुए  वापस  लौट  गए  l  कबीर  ने  कहा  ---- संत  बनना  हो  तो  ऐसा  बनना   जिसे  क्रोध  ही  न  आये   l 

7 January 2022

WISDOM ------

   विश्व  के  सर्वोच्च  वैज्ञानिक  आइंस्टीन  को  प्रयोगशाला  से  संन्यास  लेकर  एक   छोटे  से  विद्यालय  में  देखकर   जापानी  वैज्ञानिकों   के  प्रतिनिधि  मंडल  ने जानना  चाहा  कि   यह  उनकी  प्रतिभा  का  दुरूपयोग   तो  नहीं   ?  तब  आइन्स्टीन   ने  प्रतिभा  की  यथार्थता  को  समझाते  हुए  कहा ----- "  प्रतिभावान  वह  नहीं  जिसने  कोई  बड़ा  पद  हथिया  लिया  हो  ,  जिसकी  शारीरिक  और  बौद्धिक  क्षमताएं  बढ़ी - चढ़ी  हों  l   इसके  साथ  एक  शर्त   यह  भी   जुड़ी   है   कि   उसकी  दिशा  क्या  है   l   दिशा  विहीनता  की  स्थिति  में  व्यक्ति  क्षमतावान  तो  हो  सकता  है  ,  किन्तु  प्रतिभावान  नहीं   l   अंतर  उतना  ही  है  जितना  वेग  और  गति  में  ,  एक  दिशाहीन  है   दूसरा  दिशायुक्त  है   l   उन्होंने  भौतिक  विज्ञान   की  भाषा  में  समझाया   l   सामर्थ्य  दोनों  में  है  ,  क्रियाशील  भी  दोनों  हैं   पर  एक  को  अपने  गंतव्य  का   कोई  पता  - ठिकाना  नहीं  ,  और  दूसरा  प्रतिपल  गंतव्य  की  और  बढ़  रहा  है   l   प्रतिभा  वह  क्षमता  है  जिसकी  दिशा  सृजन  की  ओर   हो  l  जिसके  हर  बढ़ते  कदम  का स्वागत  मानवीय  मुस्कान  करे   l   सुख - सुविधा  के  साधन  हमारी  प्रथम  आवश्यकता  नहीं  हैं  ,  हमारी  प्राथमिकता  है  इस  बात  की  जानकारी  कि   जीवन  कैसे  जिया  जाये   ,  समूची  जिंदगी   अनेकों  सद्गुणों  की   सुरभि  बिखेरने  वाला   गुलदस्ता  बनें  l  "

WISDOM ------

   प्रकृति  हमें  अपने  तरीके  से  जीवन  जीने  की  कला  सिखाती  है  l   एक  व्यक्ति  ने  सुन  रखा  था  कि   आम  के  फल  में  बहुत  मिठास  होती  है  ,  उसने  सोचा  क्यों  न  घर  में  ही  आम  का  पेड़  लगाया  जाये  l   कहीं  से  एक  पौधा  ले  आया  ,  उसकी  बहुत  हिफाजत  की , खाद - पानी  दिया  ,  अपने  जीवन  का  बहुमूल्य  समय  उसकी  देख- रेख  में   ही  गुजार  दिया  ,  पेड़  बड़ा  हो  गया   लेकिन  उसमे  फल  नहीं  आये ,  उसमें  तो  कांटे  ही  कांटे  थे  ,  विशेषज्ञ  को  दिखाया  तो  पता  चला  कि   वह  तो  बबूल   का   पेड़  है  l   यही  स्थिति  संसार  में  है   l   आज  जो  संसार  में  षड्यंत्र  करते , अपराध , अत्याचार  और  अन्याय  करते   हैं  उनके  जीवन  को  गहराई  से  समझने  की  जरुरत   है ,  जो  बीज  , जिससे  यह  वृक्ष  बना  वह  वास्तव  में  क्या  था  ?   अधिकांश लोग  अपने  चेहरे  पर  एक  मुखौटा  लगाए  हैं  ,  जैसे  वे  दीखते  हैं  ,  वास्तव  में  वे  वैसे  हैं  नहीं  l   और  जैसे  वो  वास्तव  में  हैं  ,  वे  लक्षण   संस्कार  रूप  में  आगे  आने  वाली  पीढ़ियों  में  आ  जाते  हैं  l   पढ़ाई - लिखाई   से  व्यक्ति  सभ्य  तो  बन  जाता  है   लेकिन  जिस  पल  संस्कार  प्रबल  हो  जाते  हैं  तब  असली  रूप  सामने  आ  जाता  है  l यह  सत्य  महाभारत  में  भी  उजागर  हुआ  है  l  ऋषि  का  श्राप  मिलने  की  वजह  से  महाराज  पाण्डु   पितामह  भीष्म  के  संरक्षण  में  धृतराष्ट्र   को  सिंहासन  सौंपकर  वन  चले  गए  l  धृतराष्ट्र  की  आँखें  नहीं  थीं  तो  क्या  हुआ  ,  उनका  लालच , उनकी  कामनाएं  समाप्त     नहीं  हुईं  थीं  , उन्हें  सिंहासन  की  आदत  बन  गई  थी ,  यही  लालच  दुर्योधन  में  था  ,  वह  अपने  पिता  के  साथ  मिलकर    सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  पांडवों  को  देना  नहीं  चाहता  था  l    कौरव , पांडवों  को  गुरु  द्रोणाचार्य  ने  एक  जैसी  शिक्षा  दी  , पांडव  सत्य ,नीति   और  धर्म  के  पथ  पर  चले  लेकिन  दुर्योधन   पितामह  भीष्म , कृपाचार्य , महात्मा  विदुर ,  गांधारी  जैसी  पतिव्रता  माँ  के  संरक्षण  में  रहकर  भी  कौरव  वंश  के  समूल  नाश  का  कारण  बना  l 

6 January 2022

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी का  कहना  है  -----' अधिकार  के लिए  आतुर   और  कर्तव्य  से  बचने  वालों  को   घाटा    भी  पड़ता  है   और  अपयश  भी  मिलता  है  l  '   एक  कहानी  है  ----चार  चोर  एक  गाय  चुराकर  लाये  l  बंटवारा  इस  प्रकार  हुआ   कि   चारों  बारी - बारी   से   एक एक  दिन  उसे   अपने  घर    रखें  l  चतुरता  में  चारों  एक  दूसरे  से   बढ़े   चढ़े  थे  ,  जिस  दिन  जिसकी  बारी  होती   तो  गाय  का  दूध  तो  निकालते   ,  पर  घास  यह  सोचकर  नहीं  खिलाते   कि   पिछले  दिन  वाले  ने   इसका  पेट  भरा  ही  होगा   और  अगले  दिन  वाला  भी   खिलायेगा  ही   l   एक  दिन  मैं  न  खिलाऊँ   तो  क्या  हर्ज  है   l   यह  क्रम  कई  दिन  चला  l  भूखी  गाय  का  दूध  भी  सूखता  गया  और  अंत  में  उसके  प्राण  ही  निकल  गए   l   --- अधिकार  के  साथ  कर्तव्यपालन  भी  जरुरी  है   l 

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'कर्मफल  का  सिद्धांत  बड़ा  ही  अकाट्य  और  शाश्वत  है  , कर्मों  के  फल  से  कोई  नहीं  बच  सकता  l ' कबीर दास जी  कहते  हैं --- 'करै   बुराई  सुख  चहै ,  कैसे  पावै  कोय  l  रोपे   पेड़  बबूल   का  ,  आम  कहाँ  से  होय   l  '  पाप  और  पुण्य  दो  बीज  हैं  l   जो  बोयेंगे  ,  वही  काटेंगे   l    पुराण  में  एक  कथा  है ----- एक  बार  देवर्षि  नारद   भगवान  विष्णु  से  मिलने   वैकुण्ठ  पहुंचे  l  उन्होंने  भगवान  को  नमन - वंदन  करते  हुए  कहा  --- " भगवान  !  आजकल  धरती  पर  तो   कर्मफल  विधान  के  विपरीत  परिणाम  देखने  को  मिल  रहे  हैं  l   सब  देखकर  मुझे  बड़ी  हैरानी  है   l  पापी  को  सुख  मिल  रहा  है  और  पुण्यात्मा  कष्ट  में  हैं   l "  भगवान  ने  कहा ---- " नारद जी  !  आपने  ऐसा  क्या  देख  लिया  , मुझे  विस्तार  से  बताएं  l "   नारद जी  ने  कहा --- "  भगवन  !  जब  मैं  धरती  पर  भ्रमण  कर  रहा  था  ,  जंगल  के   रास्ते  में  बहुत  कीचड़  था    तभी  मैंने  देखा   एक  गाय  कीचड़  में  गहरे  धँस  चुकी  थी   और  बाहर  नहीं  निकल  पा  रही  थी  l  तभी  वहां  से  एक  चोर  निकला  ,  गाय  को  बाहर  निकालने  की  बात  तो  दूर  वह  गाय   के  शरीर  पर   पैर     रखकर  आगे  निकल  गया   जिससे  गाय  कीचड़   में और  भी  धँस   गई   l  जैसे  ही  वह  चोर  आगे  बढ़ा  ,  उसे  एक  वृक्ष  के  नीचे  सोने  की  मोहरों  से  भरी  थैली  मिली,  जिसे  पाकर  वह  बहुत  खुश  हुआ  l   फिर  मैंने  देखा   कि   उसी  मार्ग  से  एक  साधु  पुरुष  जा  रहे  थे  l   जैसे  ही  उन्होंने  उस  गाय  को  देखा  , तुरंत  कीचड़  में  उतर  गए  और  बहुत  मेहनत  कर   गाय   को बाहर  निकाल  लिया  l   इसके  बाद  जैसे  ही  वे  बाहर  निकले   कि   वहां  रखे  एक  पत्थर  से  उनका   पैर   टकरा  गया   और  वे  गिर  गए  जिससे  उनके  सिर   में  गहरी  चोट  लगी  खून  बहने  लगा  l  "  नारद  जी  आगे  बोले ---- " भगवान  !  ऐसा  अनर्थ  आखिर  क्यों   हुआ  ?  चोर  को  सोने  की  मोहरें  मिली   और  गाय  की  मदद  करने  वाले  को  सिर   में  चोट  लगी  ?  "  भगवान  विष्णु  ने  कहा --- " नारद  !  पूर्व  में  किए   गए  एक  शुभ  कर्म  के  कारण    चोर   को सोने  की  मोहरें  मिली  ,  उससे  ज्यादा  उसे  और  कुछ  नहीं  मिल  सकता  था  ,  लेकिन  उस  साधु  पुरुष  की  तो   आज  जंगल  में  ही  उसके  पूर्व  प्रारब्ध  के  कारण  मौत  लिखी  थी  ,  जो  गाय  की  सेवा  करने  के  कारण  टल   गई  l  "  इस  कथा  से  हमें  यही  प्रेरणा  मिलती  है   कि   हमारे   द्वारा किए   गए  शुभ  कर्म  कभी  निष्फल  नहीं  होते  हैं  , हमें  उनका  पारितोषिक  किसी  न  किसी  रूप  में  अवश्य  मिलता  है  l  इसलिए  हम  हमेशा  पुण्य  कर्म  करें  l   निस्स्वार्थ  भाव  से  किए   गए  पुण्य  कर्म   अकाल मृत्यु  से  हमारी  रक्षा  करते  हैं  ,  तनाव  से  मुक्ति  और  शांति  प्रदान  करते  हैं  l 

5 January 2022

WISDOM------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- '  क्रोध  पल  भर  में  व्यक्ति  की  सारी  अच्छाई  को  नष्ट  कर  सकता  है   और  उससे  कुछ  भी  अनिष्ट  करवा  सकता  है  l  क्रोध  दहकते  हुए   उस  कोयले  के  समान   है  ,  जिसे  व्यक्ति  दूसरों  को  जलाने   के  लिए   अपने  पास  रखे  रहता  है  ,  अपने  मन  में  रखे  रहता  है   और  उससे  हर  पल   वह  स्वयं  ही  जलता  रहता  है  l   इसलिए  क्रोध  से  बाहर   निकालो    l  प्रेम , करुणा  और  सहिष्णुता  के  जल  से   इस  क्रोध  की  चिनगारी   को  बुझाओ  l   क्रोध  के  शांत  होते  ही   अंदर  से  सुख  और  शांति  की  प्राप्ति  होने  लगेगी  l  '

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' आप  अपनी  ऊर्जा  कैसे  खर्च  करेंगे  , यह  आपके  ऊपर  निर्भर  करता  है  l  यदि  आप  अपनी  ऊर्जा  और  शक्ति  दूसरों  की  बुराई  करने  में  खरच   कर  देते  हैं   तो  यह  मानकर  चलिए  कि   इससे  दूसरे  व्यक्ति  का   कोई   नुकसान  नहीं  होगा  ,  बल्कि  आपको  ही   इससे  दोगुना  नुकसान  होगा  l  '    महाभारत  का  एक  पात्र  है -- ' शकुनि '--गांधार  नरेश  होते  हुए  भी  वह  हस्तिनापुर  में  रहा   और  पांडवों  के  विरुद्ध  दुर्योधन  के  मन  में  विषबीज  बोता    रहा  , बुराई  और  षड्यंत्र  करता  रहा  l   इसका  परिणाम  महाभारत  का  युद्ध  हुआ  l   वह  स्वयं  तो  डूबा ,  मारा  गया  ,  अपने  साथ  पूरे   कौरव  वंश  को  ले  डूबा  l   निर्दोष  और   धर्म  की  राह  पर  चलने  वालों  के  साथ  षड्यंत्र  करने  का  परिणाम  ऐसा  ही  विनाशकारी  होता  है   l  यह  परिणाम  कब  और  किस  रूप  में  मिलेगा  इसे  काल  निर्धारित  करता  है  l   समझदार  व्यक्ति  दूसरों  की  बुराई  करने  और  षड्यंत्र  रचने  में  अपनी  ऊर्जा  नहीं  गँवाते ,  बल्कि  उस  समय  का  उपयोग   अपनी  रचनात्मकता  को  निखारने  में   करते  हैं  l   हैरी पॉटर   सीरीज  की  लेखिका  ने    लिखा  है  ---- " मैं  जिंदगी  भर  ऐसे  लोगों  से  जूझती  रही  हूँ  ,  जिन्होंने  मेरी  लेखनी  को  कमतर ,  निकृष्ट  और  अविश्वसनीय  बताया   l   ये  लोग  मुंह  पर  मेरी   तारीफ  करते   और  पीठ  पीछे  बुराई   l  क्या  इससे  मुझे  नुकसान  हुआ  ?  नहीं  l   बल्कि  फायदा  ही  हुआ  l   मैं  बिना  वजह  कई  लोगों  को  याद  रह  गई  l  "

4 January 2022

WISDOM -----

   एक  बार  की  बात   है  धारा  नगरी  में  आग  लग  गई  l   दो  सुकुमार  बच्चे   आग  की  लपट  में  घिर  गए  l   महाराज  भोज  चिल्लाये   जो  इन  बच्चों  को  बचाएगा  उसे   पुरस्कार  दिया  जायेगा   l   भीड़  में  से  कोई  आगे  नहीं  बढ़  रहा  था  l   तभी  एक  ओर   से  एक  व्यक्ति  आया   और  आग  में  घुस  गया  l   दोनों  बच्चों  को  निकाल   तो  लाया  ,  पर  स्वयं  बुरी  तरह  जल  गया  l   उपचार  के  बाद  पहचान  में  आया  कि   वह  तो  महान  उदार , दयालु  कवि  माघ  थे  l   महाराजा  भोज  ने   शीश  झुकाते  हुए  कहा  --- " कविवर  !  आज  तो  तुमने  काव्य  से  भी  अधिक    अपनी  कर्तव्य  परायणता  से   हम  सबको   जीत  लिया  l "  कवि   बोले ---- " महाराज  !  आप  सबका  स्नेह - सम्मान  बहुमूल्य  है  ,  परन्तु   आज  मैंने  अपना  कर्तव्यपालन   कर  के  अपनी   अंतरात्मा   का  स्नेह - सम्मान  पा  लिया  l   इस  आत्मसंतोष  के   आगे  चमड़ी  की   जलन   कोई  महत्व   नहीं  रखती   l "