7 June 2018

WISDOM ----- अपनी निंदा को स्वीकार कर पाना मुश्किल है l

  निंदा  सच्ची  हो  तो  भी  स्वीकार  नहीं  होती  l   निंदा  जितनी  सच  होती  है  उतनी  ही  खलती  है  l 
  किन्तु  यदि  निंदा - आलोचना  को  सहज  और  सकारात्मक  भाव  से  स्वीकार  किया  जाये   तो  व्यक्ति  को  अपने   आपका  सुधार  करने   के  लिए  भारी  मदद  मिलती  है  l   अपने  में  कौन  सी  कमियाँ  हैं ,  क्या  दोष  हैं  ?   इसका  स्वयं  इतना  पता  नहीं  चलता  l  अपने  व्यवहार  या  आचरण  की  परख  दूसरों  के  द्वारा  की  गई   आलोचना  और  निंदा  के  प्रकाश  में   भली  भांति  की  जा  सकती  है  l 
               निंदा  अपने  प्रकट  और  अप्रकट  दोषों    की   ओर    इंगित  करती  है   तथा  उन्हें  सुधारने  की  प्रेरणा  देती  है   l   इसके  लिए  चाहिए  वह  द्रष्टि    जो  निंदा  के  प्रकाश  में   अपने  दोष - दुर्गुणों  को  ढूंढ  सके    और  चाहिए  वह  सहिष्णुता   जो  निंदा - आलोचना  को  सह  सके   l