26 June 2022

WISDOM -----

   इस  संसार  में  अंधकार  है  , तो  प्रकाश  भी  है  l   दैवी  शक्तियां  हैं  तो  असुरता  भी  है  l  यह  व्यक्ति  के  अपने  संस्कार  हैं ,  उसका  चुनाव  है   कि  वो  अपने  जिंदगी  के  सफ़र  में   आगे  बढ़ने  के  लिए  दैवी  शक्तियों  की  मदद  लेना    चाहता  है  या  आसुरी  तत्वों  की  मदद  लेता  है   l   परिणाम  निश्चित  है ---असुरता  को , अंधकार  को  मिटना  ही  पड़ता  है  l  विजय  हमेशा  सत्य  की  , देवत्व  की  होती  है  l   असुर  अपनी  सफलता  के  लिए  तांत्रिक  शक्तियों  की  मदद  लेते  हैं   l   पुराण   की    भक्त   प्रह्लाद   की   यह   कथा  बताती  है  कि  ईश्वर  का  नाम ,  उनकी  भक्ति   तांत्रिकों  के  सम्राट  को  भी  पराजित  कर  देती  है  ------ भक्त  प्रह्लाद  असुरराज  हिरण्यकश्यप   के  पुत्र  थे  l  अपने  बल , पराक्रम  और   कठोर  तपस्या  से  वह  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  था   और  चाहता  था  कि  प्रह्लाद  उसे  ही  अपना  इष्ट  माने , उसे  ही  परमात्मा  मानकर  पूजा  करे  l लेकिन  प्रह्लाद  का  कहना  था  --- आप  तो  पिता  हैं , परमपिता  कैसे  हो  सकते  हैं   ?  पिता  तो  हमारी  देह  के   सर्जक  हैं  ,  परन्तु  परमपिता  तो  हमारी  आत्मा  के  सर्जक  हैं  l  ईश्वर  से  बड़ा  कोई  नहीं  l  जब  से  प्रह्लाद  ने  बोलना  शुरू  किया  हमेशा   'नारायण -नारायण  जपते   l  यह  सब  देख  हिरण्यकश्यप  को  बहुत  क्रोध  आया  , उसने  अपने  पांच  वर्ष  के  अबोध  बालक  को  भयंकर  कष्ट  दिए   और  दैत्यगुरु , स्रष्टि  के  महान  तांत्रिक  शुक्राचार्य    को   प्रह्लाद  को  अपनी   तांत्रिक  क्रियाओं   से  वश  में  करने  को  कहा  l   -----  बालक  प्रह्लाद  अपनी  माता  कयाधू  की  गोद  में  लेते  थे  , राजवैद्यों  के  हर  संभव  इलाज   के  बावजूद  उनका  बुखार  नहीं  उतर  रहा  था  , कोई  दवा  कारगर  नहीं  थी ,  बार -बार  बेहोश  हो  जाते , जब  थोडा  सा  होश  आता  तो  नारायण -नारायण  बुदबुदाते  l  पांच  दिन  बीत  गए  ,  माता  कयाधू  ने  देवर्षि  नारद  को  याद  किया  ,  नारद जी  ने  आकर  प्रह्लाद  को  गोद  लिया   विष्णु  भगवान  की  कथा  सुनाई  तो  बालक  प्रह्लाद  का  बुखार  उतर  गया  और  स्वस्थ  हुए  l  तब  माता  कयाधू  ने  पूछा ---- ' हे  देवर्षि  !  मेरे  पुत्र  की  बीमारी  का  मूल  कारण  क्या  है  ? '  तब  नारद जी  ने  बताया  --- " यह  कोई  रोग  नहीं  है   l  यह  दैत्यगुरु  शुक्राचार्य  द्वारा   की  गई   अनवरत   तांत्रिक  क्रियाओं  का  परिणाम  है  l "  माता  के  यह  पूछने  पर  कि  इतने  छोटे  बालक  से  दैत्यगुरु  का  क्या  बैर  है  ?  नारद जी  ने  कहा ---- " हे  देवी  !  यह  अहंकार  सबसे  खतरनाक  चीज  है  l  अहंकार  विवेकरूपी  आँखों  पर  पट्टी  बांध  देता  है  ,  वह  अपनी  शक्ति  का  प्रयोग  अबोध  बालक  पर  भी  करने  से  नहीं  चूकता  l  शुक्राचार्य  को  अपने  तंत्र  पर  बड़ा  गर्व  है  ,  वे  तंत्र  के  माध्यम  से  प्रह्लाद  के  मन  में  यह   विचार  डालना  चाहते  थे  कि  वे  अपने  पिता  को  ही  परमात्मा  माने   लेकिन  प्रह्लाद  ने  उनकी  बात  नहीं  मानी , वे  तो  विष्णु  भगवान  को  ही  हर  पल  याद  करते , और  परमात्मा  मानते  l  इसलिए  शुक्राचार्य  ने   उन  पर  मारण  जैसी  क्रिया  का  प्रयोग  किया  था  जिससे  उन्हें  बुखार  और  शरीर  में  भयंकर  पीड़ा  हुई  l  आप  चिंता  न  करें ,  शुक्राचार्य  का  बड़े  से  बड़ा  मारक  तंत्र  प्रह्लाद  का  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकता   ,  परमात्मा  के  प्रति  उनकी  निष्ठां  और  भक्ति  उनका  सुरक्षा  कवच  है  l  " --------   आखिर  वो  दिन  आ  ही   गया  जब  भगवान  ने  नृसिंह  अवतार  लेकर  हिरण्यकश्यप   का  वध  किया   l