29 October 2018

WISDOM ------ कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

  मनुष्य  की  स्वतंत्रता  कर्म  करने  में  है  ,  उसके  फल  में  नहीं  l  हम  जो  आज  हैं  वह  हमारे  अतीत  में   किये  गए कर्मों  का  ही  परिणाम  है   और  भविष्य  में  हम  जो  भी  होंगे  ,  जिस  स्थिति   में  होंगे  वह  हमारे   वर्तमान  में  किये  गए  कर्मों  का  ही  परिणाम  होगा  l 
   महाभारत  में  महासमर  से  पहले  भगवान  श्रीकृष्ण  शांतिदूत  बनकर  कौरवों  की  सभा  में  गए  l  वहां  उन्होंने  शांति प्रस्ताव  के  कई  रूप  कौरवों  के  सामने  रखे   किन्तु  दुर्योधन  ने  इन्हें   मानने  से  इनकार  कर  दिया  और  अपने  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  भगवान  श्रीकृष्ण  को  बंदी  बनाने  का  प्रयत्न  करने  लगा   l   तब  भगवन  ने  कौरव  सभा  में  अपना  विराट  रूप  दिखाया   l   तब  धृतराष्ट्र   को  मन  में  लगने  लगा  कि  यदि  मेरी  अंधता  न  होती  तो  मैं  भी  भगवान  के   दिव्य  रूप  के  दर्शन  कर  सकता  l 
  उन्होंने  भगवान  श्रीकृष्ण  से  पूछा---- "  मेरे  किस  कर्म  के  अशुभ  प्रभाव  से   मुझे  यह  दंड  मिला  है  ?  क्या  प्रकृति  ने  मेरे  साथ  अन्याय  किया  है   ?  "
इस  पर  श्रीकृष्ण  बोले  ---- " प्रकृति  किसी  के  साथ  कोई  अन्याय  नहीं  करती   l "  उन्होंने  कहा --- " मैं  आपके  वर्तमान  जीवन  से  पहले  का  108 वां  जन्म  देख  रहा  हूँ  --- एक  किशोर  बालक   पेड़  के  घोंसले  से  चिड़िया  के  बच्चों  की  आँख  में  काँटा  चुभोकर   उन्हें  अँधा  कर  रहा  है  l  यह  किशोर  और  कोई  नहीं ,  स्वयं  आप  हैं   l  पिछले  जन्मों  में  शुभ  कर्मों  के  कारण  आपका  यह  संस्कार  उभर  नहीं  सका  ,  लेकिन  उसी  पाप  के  परिणामस्वरूप   इस  जन्म  में  आपको  अंधे  के  रूप में  जन्म  लेना  पड़ा   l  "