18 September 2020

WISDOM -----

 एक  रोगी  राजवैद्य  शार्गंधर   के  समक्ष  अपनी  कष्टगाथा  सुना  रहा  था  l  अपच , बेचैनी , अनिद्रा ,  दुर्बलता ,  खांसी , जुकाम   जैसे  अनेकों  कष्ट  व  उनके  उपचार   में  ढेरों   राशि  नष्ट  कर   कोई  लाभ  न  मिलने   के  कारण  ही   वह  राजवैद्य  शार्गंधर  के  पास  आया  था   l   वैद्यराज  ने  उसे  संयम युक्त  जीवन  जीने   व  आहार - विहार  के  नियमों  का  पालन   करने  को  कहा   l   रोगी  बोला ---- ' यह  सब  तो  मैं  कर  चुका    हूँ  l   आप  तो  मुझे  कोई  औषधि   दीजिए ,  ताकि  मैं  कमजोरी  पर  नियंत्रण  पा  सकूँ  l   पौष्टिक  आहार  आदि  भी  बता  दें  ,  आप  मुझे  पहले  जैसा  समर्थ  बना  दें  l '    वैद्यराज  बोले --- " वत्स  ! तुमने  संयम  अपनाया  होता  तो  मेरे  पास  आने  की   स्थिति  ही  नहीं  आती  l  तुमने  जीवनरस  ही  नहीं  ,  जीवन  की  सामर्थ्य   और  धन - संपदा   भी  इसी  कारण  खोई  है   l     बाह्य  उपचारों  से  और  पौष्टिक  आहार  आदि  से   ही  स्वस्थ  बना   जा  सका  होता    तो  विलासी  और  समर्थ    कोई  भी  मधुमेह  ,  अपच   आदि  का  रोगी  नहीं  होता  l   मूल  कारण  तुम्हारे  अंदर  है , बाहर  नहीं   l  पहले  संयमित  जीवन  जियो  , अमृत  का  संचय  करो   और  फिर  देखो   वह  शरीर  निर्माण  में  किस  प्रकार  जुट  जायेगा   l  "        रोगी  ने  सही  दृष्टि  पाई    और  जीवन  को  नए  सांचे  में  ढाला ,  अपने  अंतरंग   और  बहिरंग  की    अपव्यय  वृत्तियों   पर    रोकथाम  की  और  कुछ  ही  माह  में  स्वस्थ - समर्थ  हो  गया  l