28 August 2019

WISDOM ------ किमाश्चर्यम परम ?

  महाभारत  में  धर्मराज  युधिष्ठिर  और  यक्ष  के  मिलने  की  कथा  है  l  इस  कथा में  यक्ष  ने  युधिष्ठिर  से  कई  प्रश्न  पूछे  l  इन्हीं  में  से  एक  प्रश्न  यह  भी  पूछा  गया  --- " इस  संसार  का  परम  आश्चर्य    क्या  है  ?  किमाश्चर्यम  परम  ?  " 
  युधिष्ठिर  ने  यक्ष  को  उत्तर  दिया ----- " सबसे  बड़ा  आश्चर्य  यह  है  कि  मृत्यु  को  सुनिश्चित  घटना   के  रूप  में  देखकर    भी मनुष्य  इसे  अनदेखा  करता  है  l  वह  मृत्यु  की  नहीं ,  जीवन  की   तैयारी  कुछ  इस  अंदाज  में  करता  है  ,  जैसे  विश्वास  हो  कि  वह कभी  मरेगा नहीं   l  उसे  सदा - सदा जीवित  रहना  है "
         इसके  लिए   क्या  कुछ   नहीं  किया  जाता  l अनगिनत  युक्तियाँ ,   अनेकों   षड्यंत्र  ,  यहाँ  तक  कि  बर्बर  हत्याएं  भी  l  लाख  आलीशान  इमारतें  ,  महल   और किले बनवा  लें  ,  पर  अंतिम  आश्रय  सभी  को  कब्र  में   ही   मिलता  है  l  बेशकीमती  सौन्दर्य  प्रसाधनों  से  सजाये  जाने  वाले  शरीरों  को  भी   शमशान  में  में   राख  के  ढेर  में  बदलने  के  लिए  विवश  होना  पड़ता  है  l  कोई  दूसरी मंजिल  नहीं   !  भगवान  ने  गीता  में कहा भी  है ----- '  सब  जन्म मुझी    से  पाते  हैं  ,   फिर  लौट  मुझी  में  आते   हैं  l  '
   कितना  ही  कोई  इकट्ठा  कर  ले ,  कितनी  ही  उपलब्धियां ,    सोची - विचारी  व  क्रियान्वित  की  गई  असंख्य  योजनाएं,   इस मृत्यु  में जाकर  समाप्त  हो  जाती  हैं   l   मृत्यु  से  बचने  की  सभी  कोशिशें   नाकाम  हो  जाती  हैं    l
 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने लिखा  है  ---- '  प्रयास    किए   जाने  चाहिए    मृत्यु   को  सार्थक  करने  के  ,   लेकिन    दुर्बुद्धि   के कारण    प्रयास  ऐसे  किए  जाते  हैं   ,  जिनसे  यह  जीवन   पूरी तरह  से निरर्थक   हो  जाता  है   l  '